Saturday 29 December 2012

29.12.12

कामी लज्या ना करै, मन माहें अहिलाद।
नींद न मांगै सांथरा, भूख न मांगै स्वाद॥

अर्थ- गलत रास्ते या तरीके अपनाते हुए कामी मनुष्य को लज्जा नहीं आती, मन में बड़ी खुशी होती है। ठीक वैसे ही जैसे नींद लगने पर बिस्तर कैसा है, यह नहीं देखा जाता और भूखा मनुष्य चाहे जो खा लेता है, स्वाद नहीं समझना चाहता।
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परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं।
दिवस चारि सरसा रहै, अंति समूला जाहिं॥

अर्थ – पराई स्त्री से जो प्रेम संबंध बनाते हैं और चोरी की कमाई खाते हैं, भले ही वे चार दिन खुशी से उछलते-कूदते फिरते हैं, पर आखिरकार पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं।
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परनारि का राचणौं, जिसी लहसण की खानि।
खूणैं बैसि र खाइए, परगट होइ दिवानि॥

अर्थ- चरित्र की कमजोरी से किया गया परस्त्री का संग व्यक्ति के कर्म, बोल, भाव, व्यवहार, मनोदशा या अन्य जरियों से उजागर हो ही जाता है। ठीक वैसे ही जैसे लहसुन को किसी भी जगह पर छिपकर खाने पर भी उसकी गंध छिपाए नहीं छिपती।
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कामी अमी न भावई, विष ही कौं लै सोधि।
कुबुद्धि न जाई जीव की, भावै स्यंभ रहौ प्रमोधि॥

अर्थ- कामी मनुष्य को अमृत पसंद नहीं आता, वह तो जगह-जगह जहर को ही ढूंढता रहता है। यानी अपने सुख के लिए गलत काम चुनता है। कामी की भ्रष्ट बुद्धि जाती नहीं, फिर चाहे उसे स्वयं भगवान् शिव ही सबक दे-देकर समझावें

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