Thursday 31 October 2013
31-10-13
दिवाली पर बरतें सावधानियां:
यदि आग कपड़ों में लग गई हो तो कंबल या मोटे कपड़े से व्यक्ति को ढंककर जमीन
पर लेटने को कहें और जले हुए भाग को नल के खुले पानी के नीचे रखें।
पहने हुए कपड़े चिपक जाने पर उन्हें खींचकर न उतारें, कैंची से काटकर बहुत ध्यान से उतारें, किसी भी हालत में त्वचा को छिलने न दें।
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को न घेरें। उसे खुली हवा की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह उसे मिलने दें।
अगर थोड़ा बहुत जला है तो घाव पर दवा लगाएं। वरना तुरंत चिकित्सक के पास जाएं। यह सब करते समय घबराएं नहीं और गाड़ी बहुत तेज न चलाएं।
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति गंभीर होने पर खुद डॉक्टर न बनें।
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को सांत्वना दें, गलती के लिए डांटने-फटकारने से
बचें।
------------------------------ ------------------------------ -----------
-पटाखे छोड़ने से पहले खुली जगह तलाश लें। आप घर या बाहर जहां भी पटाखे
जला रहे हों, ध्यान रखें कि उसके आसपास आसानी से जलने वाली कोई चीज मसलन
पेट्रोल, डीजल, केरोसिन या गैस सिलिंडर वगैरह न रखा हो।
-पटाखे
छुड़ाते समय बच्चों के साथ रहें और उन्हें पटाखे चलाने का सुरक्षित तरीका
बताएं। छोटे बच्चों को पटाखे न जलाने दें। पांच साल से छोटे बच्चों को तो
फुलझड़ी भी न जलाने दें, इन्हें खुद जलाकर बच्चों को दिखाएं।
-पटाखे जलाने के लिए मोमबत्ती या लंबी लकड़ी का इस्तेमाल करें। माचिस से आग लगाना खतरनाक हो सकता है।
एक बार में एक ही पटाखा चलाएं। एक साथ कई पटाखे छोड़ने की हालत में आपका
ध्यान बंट सकता है और यही लापरवाही हादसे की वजह बन जाती है।
- पटाखे को टिन या शीशे की बोतल में रखकर कभी न चलाएं।
- पटाखे चलाते समय पास में एक बाल्टी पानी जरूर रखें।
आप सभी को एडवांस मे हैपी दीपावली
जय श्री राम.
Tuesday 29 October 2013
30-10-13
जीवन में संयम एक तलवार की धार पर चलने जैसा है.
जीवन में संयम रखना बहुत ही बड़ा काम है. कई बार देखा गया है कि संयमी आदमी भी थोड़ी सी छूट मिलने के पश्चात सभी बाँध तोड़ देता है. ऐसी ही एक कहानी है जिसमे पुरुष को थोड़ी सी छूट और लालच / आकर्षण मिलने के कारण एक ही वर्ष में जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा.
रमेश एक पढ़ा लिखा सम्पन्न परिवार का व्यक्ति. उम्र लगभग ५० वर्ष. बैंक में नौकरी. परिवार में सुशील पत्नी और दो बेटे. कोई बुरी आदत नहीं. बैंक में क्लर्क की नौकरी से शुरुवात की. कोई प्रमोशन नहीं लिया. ५० की उम्र होने पर यह सोचकर की अब बच्चे बड़े हो गए हैं और पत्नी और बच्चे घर संभाल लेंगे और रिटायरमेंट को १० वर्ष बचे हैं, प्रमोशन ले लिया. प्रमोशन के पश्चात बैंक ने ट्रान्सफर २५०-३०० कि. मी. दूर के नगर में कर दिया. रमेश पत्नी और बच्चों को छोड़कर अकेले ही चले गए. यह सोचकर कि स्वयं अकेले रह लेंगे पत्नी और बच्चों को क्यों परेशान करें और कुछ वर्ष बाहर नौकरी करके वापस आ जायेंगे.
नयी जगह बैंक में ज्वाइन करने के पश्चात एक मित्र के साथ मकान साझा कर लिया. मित्र को पीने पिलाने का शौक. रमेश ने कभी पी नहीं. पर होनी अपना काम करती है. इस उम्र में रमेश को मित्र के आग्रह करने पर पीने की लत लग गई. छुट्टियों में घर जाना छोड़ दिया. पत्नी को शंका हुई और वह आई तब तक रमेश तो पक्का शराबी बन चुका था. पत्नी रमेश को सम्हालती इसके पहले ही रमेश की दाढ़ में दर्द रहने लगा. डॉक्टर को दिखाया तो मालूम पडा कि दाढ़ में कैंसर हो गया है. ऑपरेशन की बात आई तो मालूम पडा कि हार्ट में भी समस्या है और ऑपरेशन नहीं हो सकता. कई डॉक्टर आदि को दिखाया पर लाभ नहीं हुआ और दो महीने की बीमारी के बाद रमेश का, बहुत ही कष्ट भोग कर, निधन हो गया.
जब तक रमेश परिवार में पत्नी और बच्चों के साथ था, शायद परिवार में रहने के कारण उसे कोई आदत नहीं लगी पर अकेले मित्र के साथ रहने पर जैसे एक दम छूट मिल गई और बीमारियों ने शरीर पर कब्जा कर लिया. जिसका परिणाम रमेश के निधन के रूप में हुआ.
जीवन में संयम रखना बहुत ही बड़ा काम है. कई बार देखा गया है कि संयमी आदमी भी थोड़ी सी छूट मिलने के पश्चात सभी बाँध तोड़ देता है. ऐसी ही एक कहानी है जिसमे पुरुष को थोड़ी सी छूट और लालच / आकर्षण मिलने के कारण एक ही वर्ष में जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा.
रमेश एक पढ़ा लिखा सम्पन्न परिवार का व्यक्ति. उम्र लगभग ५० वर्ष. बैंक में नौकरी. परिवार में सुशील पत्नी और दो बेटे. कोई बुरी आदत नहीं. बैंक में क्लर्क की नौकरी से शुरुवात की. कोई प्रमोशन नहीं लिया. ५० की उम्र होने पर यह सोचकर की अब बच्चे बड़े हो गए हैं और पत्नी और बच्चे घर संभाल लेंगे और रिटायरमेंट को १० वर्ष बचे हैं, प्रमोशन ले लिया. प्रमोशन के पश्चात बैंक ने ट्रान्सफर २५०-३०० कि. मी. दूर के नगर में कर दिया. रमेश पत्नी और बच्चों को छोड़कर अकेले ही चले गए. यह सोचकर कि स्वयं अकेले रह लेंगे पत्नी और बच्चों को क्यों परेशान करें और कुछ वर्ष बाहर नौकरी करके वापस आ जायेंगे.
नयी जगह बैंक में ज्वाइन करने के पश्चात एक मित्र के साथ मकान साझा कर लिया. मित्र को पीने पिलाने का शौक. रमेश ने कभी पी नहीं. पर होनी अपना काम करती है. इस उम्र में रमेश को मित्र के आग्रह करने पर पीने की लत लग गई. छुट्टियों में घर जाना छोड़ दिया. पत्नी को शंका हुई और वह आई तब तक रमेश तो पक्का शराबी बन चुका था. पत्नी रमेश को सम्हालती इसके पहले ही रमेश की दाढ़ में दर्द रहने लगा. डॉक्टर को दिखाया तो मालूम पडा कि दाढ़ में कैंसर हो गया है. ऑपरेशन की बात आई तो मालूम पडा कि हार्ट में भी समस्या है और ऑपरेशन नहीं हो सकता. कई डॉक्टर आदि को दिखाया पर लाभ नहीं हुआ और दो महीने की बीमारी के बाद रमेश का, बहुत ही कष्ट भोग कर, निधन हो गया.
जब तक रमेश परिवार में पत्नी और बच्चों के साथ था, शायद परिवार में रहने के कारण उसे कोई आदत नहीं लगी पर अकेले मित्र के साथ रहने पर जैसे एक दम छूट मिल गई और बीमारियों ने शरीर पर कब्जा कर लिया. जिसका परिणाम रमेश के निधन के रूप में हुआ.
Monday 28 October 2013
29-10-13
आज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर
सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था। मैंने
देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच
रहा था और
बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में
भी मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने
पर
आमादा थे मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं,
लेकिन जाते-
जाते
उसे सलाह दे डाली कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू
कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर
बेचे..
और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से
गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद
दिया.. क्योंकि अब उसकी झाड़ू "10 रुपए में
दो" बड़े
आराम से बिक
रही थी…।
===============
मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं
तो आपसे भी आग्रह करता हूँ
कि दीपावली का समय है, सभी लोग
खरीदारियों में जुटे हैं, ऐसे समय सड़क किनारे
धंधा करने
वाले इन छोटे-
छोटे लोगों से मोलभाव न
करें…। मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने,
खील-
बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन
पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव
करना??
जब हम टाटा-बिरला-अंबा नी-भारती के
किसी भी उत्पाद में
मोलभाव नहीं करते (कर
ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय चार पैसे
कमाने
की उम्मीद में बैठे
इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से "कठोर
मोलभाव"
करना एक प्रकार
का अन्याय ही है..
सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था। मैंने
देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच
रहा था और
बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में
भी मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने
पर
आमादा थे मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं,
लेकिन जाते-
जाते
उसे सलाह दे डाली कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू
कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर
बेचे..
और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से
गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद
दिया.. क्योंकि अब उसकी झाड़ू "10 रुपए में
दो" बड़े
आराम से बिक
रही थी…।
===============
मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं
तो आपसे भी आग्रह करता हूँ
कि दीपावली का समय है, सभी लोग
खरीदारियों में जुटे हैं, ऐसे समय सड़क किनारे
धंधा करने
वाले इन छोटे-
छोटे लोगों से मोलभाव न
करें…। मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने,
खील-
बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन
पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव
करना??
जब हम टाटा-बिरला-अंबा नी-भारती के
किसी भी उत्पाद में
मोलभाव नहीं करते (कर
ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय चार पैसे
कमाने
की उम्मीद में बैठे
इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से "कठोर
मोलभाव"
करना एक प्रकार
का अन्याय ही है..
Sunday 27 October 2013
28-10-13
खजाना !
दो भिखारी जिसमे एक अंधा व दूसरा लंगडा था दोनों दिन भर इधर-उधर घूम-घूम कर भीख मांग कर शाम को अपने मुकाम शिव मंदिर के पास पीपल के पेड के नीचे रात काटते थे यह सिलसिला पिछले सात-आठ सालों से चल रहा था इसलिये दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई थी दोनों रात का खाना एक साथ मिल बांट कर ही खाते थे, दोनो ही सुख-दुख में एक-दूसरे के हमसफ़र थे।
एक दिन पास में ही माता के मंदिर के पास अंधा भीख मांग रहा था वहीं एक बीमार आदमी दर्द से कराह रहा था लगभग मरणासन अवस्था में था अंधा भिखारी उसके पास जाकर पानी पिलाने लगा और भीख में मिली खाने की बस्तुएं उसे खाने को देने लगा ... दो बिस्किट खाते खाते उसकी सांस उखडने लगी ... मरते मरते उसने बताया कि वह "डाकू" था तथा उसने एक "खजाना" छिपाकर रखा है उसे निकाल लेना, खजाने का "राज" बताने के बाद वह मर गया ...
.... अंधा भिखारी सोच में पड गया .... शाम को उसने यह राज अपने मित्र लंगडे भिखारी को बताया ... दूसरे दिन सुबह दोनों उस मृतक के पास पंहुचे उसकी लाश वहीं पडी हुई थी दोनों ने मिलकर भीख में मिले पैसों से उसका कफ़न-दफ़न कराया और खजाने के राज पर विचार-विमर्श करने लगे ...
... पूरी रात दोनों खजाने के बारे में सोचते सोचते करवट बदलते रहे ... सुबह उठने पर दोनों आपस में बातचीत करते हुए ... यार जब हमको खजाने के बारे में सोच-सोच कर ही नींद नहीं आ रही है जब खजाना मिल जायेगा तब क्या होगा !!! .... बात तो सही है पर जब "खजाना" उस "डाकू" के किसी काम नहीं आया तो हमारे क्या काम आयेगा जबकि "डाकू" तो सबल था और हम दोनों असहाय हैं ...
... और फ़िर हमको दो जून की "रोटी" तो मिल ही रही है कहीं ऎसा न हो कि खजाने के चक्कर में अपनी रातों की नींद तक हराम हो जाये ... वैसे भी मरते समय उस "डाकू" के काम खजाना नहीं आया, काम आये तो हम लोग .... चलो ठीक है "नींद" खराब करने से अच्छा ऎसे ही गुजर-बसर करते हैं जब कभी जरुरत पडेगी तो "खजाने" के बारे में सोचेंगे.
दो भिखारी जिसमे एक अंधा व दूसरा लंगडा था दोनों दिन भर इधर-उधर घूम-घूम कर भीख मांग कर शाम को अपने मुकाम शिव मंदिर के पास पीपल के पेड के नीचे रात काटते थे यह सिलसिला पिछले सात-आठ सालों से चल रहा था इसलिये दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई थी दोनों रात का खाना एक साथ मिल बांट कर ही खाते थे, दोनो ही सुख-दुख में एक-दूसरे के हमसफ़र थे।
एक दिन पास में ही माता के मंदिर के पास अंधा भीख मांग रहा था वहीं एक बीमार आदमी दर्द से कराह रहा था लगभग मरणासन अवस्था में था अंधा भिखारी उसके पास जाकर पानी पिलाने लगा और भीख में मिली खाने की बस्तुएं उसे खाने को देने लगा ... दो बिस्किट खाते खाते उसकी सांस उखडने लगी ... मरते मरते उसने बताया कि वह "डाकू" था तथा उसने एक "खजाना" छिपाकर रखा है उसे निकाल लेना, खजाने का "राज" बताने के बाद वह मर गया ...
.... अंधा भिखारी सोच में पड गया .... शाम को उसने यह राज अपने मित्र लंगडे भिखारी को बताया ... दूसरे दिन सुबह दोनों उस मृतक के पास पंहुचे उसकी लाश वहीं पडी हुई थी दोनों ने मिलकर भीख में मिले पैसों से उसका कफ़न-दफ़न कराया और खजाने के राज पर विचार-विमर्श करने लगे ...
... पूरी रात दोनों खजाने के बारे में सोचते सोचते करवट बदलते रहे ... सुबह उठने पर दोनों आपस में बातचीत करते हुए ... यार जब हमको खजाने के बारे में सोच-सोच कर ही नींद नहीं आ रही है जब खजाना मिल जायेगा तब क्या होगा !!! .... बात तो सही है पर जब "खजाना" उस "डाकू" के किसी काम नहीं आया तो हमारे क्या काम आयेगा जबकि "डाकू" तो सबल था और हम दोनों असहाय हैं ...
... और फ़िर हमको दो जून की "रोटी" तो मिल ही रही है कहीं ऎसा न हो कि खजाने के चक्कर में अपनी रातों की नींद तक हराम हो जाये ... वैसे भी मरते समय उस "डाकू" के काम खजाना नहीं आया, काम आये तो हम लोग .... चलो ठीक है "नींद" खराब करने से अच्छा ऎसे ही गुजर-बसर करते हैं जब कभी जरुरत पडेगी तो "खजाने" के बारे में सोचेंगे.
Saturday 26 October 2013
27.10.13
बहुत समय पहले की बात है , दो दोस्त बीहड़ इलाकों से होकर शहर जा रहे
थे . गर्मी बहुत अधिक होने के कारण वो बीच -बीच में रुकते और आराम करते .
उन्होंने अपने साथ खाने-पीने की भी कुछ चीजें रखी हुई थीं . जब दोपहर में
उन्हें भूख लगी तो दोनों ने एक जगह बैठकर खाने का विचार किया .
खाना खाते – खाते दोनों में किसी बात को लेकर बहस छिड गयी ..और धीरे -
धीरे बात इतनी बढ़ गयी कि एक दोस्त ने दूसरे को थप्पड़ मार दिया .पर थप्पड़
खाने के बाद भी दूसरा दोस्त चुप रहा और कोई विरोध नहीं किया ….बस उसने
पेड़ की एक टहनी उठाई और उससे मिटटी पर लिख दिया “ आज मेरे सबसे अच्छे
दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा ”
थोड़ी देर बाद उन्होंने पुनः यात्रा शुरू की , मन मुटाव होने के कारण वो बिना
एक -दूसरे से बात किये आगे बढ़ते जा रहे थे कि तभी थप्पड़ खाए दोस्त के
चीखने की आवाज़ आई , वह गलती से दलदल में फँस गया था …दूसरे दोस्त ने
तेजी दिखाते हुए उसकी मदद की और उसे दलदल से निकाल दिया .
इस बार भी वह दोस्त कुछ नहीं बोला उसने बस एक नुकीला पत्थर उठाया
और एक विशाल पेड़ के तने पर लिखने लगा ” आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी
जान बचाई ”
उसे ऐसा करते देख दूसरे मित्र से रहा नहीं गया और उसने पूछा , “ जब मैंने तुम्हे
पत्थर मारा तो तुमने मिटटी पर लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो
तुम पेड़ के तने पर कुरेद -कुरेद कर लिख रहे हो , ऐसा क्यों ?”
” जब कोई तकलीफ दे तो हमें उसे अन्दर तक नहीं बैठाना चाहिए ताकि क्षमा
रुपी हवाएं इस मिटटी की तरह ही उस तकलीफ को हमारे जेहन से बहा ले जाएं ,
लेकिन जब कोई हमारे लिए कुछ अच्छा करे तो उसे इतनी गहराई से अपने मन में
बसा लेने चाहिए कि वो कभी हमारे जेहन से मिट ना सके .” , दोस्त का जवाब आया.
Friday 25 October 2013
26-10-13
एक पिता अपने बेटे के साथ पहाड़ों की सैर पर निकला। अचानक बेटा गिर गया। चोट लगने पर उसके मुंह से निकला , ' आह !!!'
तुरंत पहाड़ों में से कहीं - से आवाज आई - ' आह !!!'
बेटा अचरज में रह गया। उसने फौरन पूछा - तुम कौन हो ?
सामने से वही सवाल आया , ' तुम कौन हो ?'
बेटा चिल्लाया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
पहाड़ों से जवाब आया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
अपनी बात की नकल करते देखकर बेटा गुस्से में चिल्लाया , ' डरपोक !'
जवाब मिला , ' डरपोक !'
उसने पिता की ओर देखा और पूछा , ' यह क्या हो रहा है ?'
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा , ' बेटा , जरा ध्यान दो। '
इसके बाद पिता चिल्लाया , ' तुम चैंपियन हो !'
जवाब मिला , ' तुम चैंपियन हो !'
बेटे को हैरानी हुई लेकिन वह कुछ समझ नहीं सका।
इस पर पिता ने उसे समझाया , ' लोग इसे गूंज ( इको ) कहते हैं , लेकिन वास्तव में यह जिंदगी है। '
यह आपको हर चीज़ वापस लौटाती है , जो आप कहते हैं या करते हैं। हमारी
जिंदगी हमारे कामों का ही प्रतिबिंब है। अगर आप दुनिया में ज्यादा प्यार
पाना चाहते हैं तो अपने दिल में ज्यादा प्यार पैदा करें। अगर अपनी टीम में
ज्यादा काबिलियत चाहते हैं तो अपनी काबिलियत को बढ़ाएं। यह संबंध जिंदगी के
हर पहलू , हर चीज में नजर आता है।
Thursday 24 October 2013
25-10-13
एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा।
अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्या तुम्हे सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो,
युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप की सेवा करना चाहूँगा , मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा।
इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया।
उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया.
घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता।
" ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान -जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें "
" कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है "
Wednesday 23 October 2013
24-10-12
1. श्रीलंका का पुराना नाम क्या है।- सिलोन
2. उत्तरांखंड का पुराना नाम है।- उत्तराचल
3. सात पहाड़ियों का नगर कहलाता है।- रोम
4. हैदराबाद किस नदी के पास बसा है।- मूसी नदी
5. लूनी नदी के पास कौनसा शहर बसा हुआ है।- अजमेर
6. उज्जैन किस नदी के तट पर स्थित है।- क्षिप्रा
7. हवा वाला शहर कहलाता है।- शिकागो
8. लाहौर किस नदी के किनारे पर बसा हुआ है।- रावी नदी
9. तंबाकू मुक्ति दिवस कब मनाया जाता है।- 31 May को
10. विश्व श्रमिक दिवस (मई दिवस) कब मनाया जाता है। - 1 मई
11.पंचपदरा में सुदर्शन शक्ति में कितने सैनिकों ने भाग लिया ? - 60 हजार सैनिक
12. रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर कौन है? - सुबीर गोकर्ण
13. भागवत संप्रदाय के संस्थापक हैं। - वासुदेव
14. 17 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कहां आयोजित किया गया है? - डरबन
15. फेसबुक ने हाल ही में किसे 65 लाख का पैकेज ऑफर किया है? - रोहतक के अंकुर को
16.भारत में पाक के उच्चयुक्त कौन है? - सलमान बशीर
17. अकबर का मकबरा किसने बनवाया था। - जहांगीर ने सिकंदरा में
18. बाबर का भारत में अंतिमयुद्ध कौनसा था। - घाघरा कायुद्ध (1529
Tuesday 22 October 2013
23-10-13
आखिरी उपदेश...
गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों में आज काफी उत्साह था , उनकी बारह वर्षों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और अब वो अपने घरों को लौट सकते थे . गुरु जी भी अपने शिष्यों की शिक्षा-दीक्षा से प्रसन्न थे और गुरुकुल की परंपरा के अनुसार शिष्यों को आखिरी उपदेश देने की तैयारी कर रहे थे।
उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा , ” आप सभी एक जगह एकत्रित हो जाएं , मुझे आपको आखिरी उपदेश देना है .”
गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सभी शिष्य एक जगह एकत्रित हो गए .
गुरु जी ने अपने हाथ में कुछ लकड़ी के खिलौने पकडे हुए थे , उन्होंने शिष्यों को खिलौने दिखाते हुए कहा , ” आप को इन तीनो खिलौनों में अंतर ढूँढने हैं।”
सभी शिष्य ध्यानपूर्वक खिलौनों को देखने लगे , तीनो लकड़ी से बने बिलकुल एक समान दिखने वाले गुड्डे थे . सभी चकित थे की भला इनमे क्या अंतर हो सकता है?
तभी किसी ने कहा , ” अरे , ये देखो इस गुड्डे के कान में एक छेद है .”
यह संकेत काफी था ,जल्द ही शिष्यों ने पता लगा लिया और गुरु जी से बोले ,
” गुरु जी इन गुड्डों में बस इतना ही अंतर है कि -
एक के दोनों कान में छेद है
दूसरे के एक कान और एक मुंह में छेद है ,
और तीसरे के सिर्फ एक कान में छेद है “
गुरु जी बोले , ” बिलकुल सही , और उन्होंने धातु का एक पतला तार देते हुए उसे कान के छेद में डालने के लिए कहा .”
शिष्यों ने वैसा ही किया . तार पहले गुड्डे के एक कान से होता हुआ दूसरे कान से निकल गया , दूसरे गुड्डे के कान से होते हुए मुंह से निकल गया और तीसरे के कान में घुसा पर कहीं से निकल नहीं पाया .
तब गुरु जी ने शिष्यों से गुड्डे अपने हाथ में लेते हुए कहा , ” प्रिय शिष्यों , इन तीन गुड्डों की तरह ही आपके जीवन में तीन तरह के व्यक्ति आयेंगे .
पहला गुड्डा ऐसे व्यक्तियों को दर्शाता है जो आपकी बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देंगे ,आप ऐसे लोगों से कभी अपनी समस्या साझा ना करें .
दूसरा गुड्डा ऐसे लोगों को दर्शाता है जो आपकी बात सुनते हैं और उसे दूसरों के सामने जा कर बोलते हैं , इनसे बचें , और कभी अपनी महत्त्वपूर्ण बातें इन्हें ना बताएँ।
और तीसरा गुड्डा ऐसे लोगों का प्रतीक है जिनपर आप भरोसा कर सकते हैं , और उनसे किसी भी तरह का विचार – विमर्श कर सकते हैं , सलाह ले सकते हैं , यही वो लोग हैं जो आपकी ताकत है और इन्हें आपको कभी नहीं खोना चाहिए ."
गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों में आज काफी उत्साह था , उनकी बारह वर्षों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और अब वो अपने घरों को लौट सकते थे . गुरु जी भी अपने शिष्यों की शिक्षा-दीक्षा से प्रसन्न थे और गुरुकुल की परंपरा के अनुसार शिष्यों को आखिरी उपदेश देने की तैयारी कर रहे थे।
उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा , ” आप सभी एक जगह एकत्रित हो जाएं , मुझे आपको आखिरी उपदेश देना है .”
गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सभी शिष्य एक जगह एकत्रित हो गए .
गुरु जी ने अपने हाथ में कुछ लकड़ी के खिलौने पकडे हुए थे , उन्होंने शिष्यों को खिलौने दिखाते हुए कहा , ” आप को इन तीनो खिलौनों में अंतर ढूँढने हैं।”
सभी शिष्य ध्यानपूर्वक खिलौनों को देखने लगे , तीनो लकड़ी से बने बिलकुल एक समान दिखने वाले गुड्डे थे . सभी चकित थे की भला इनमे क्या अंतर हो सकता है?
तभी किसी ने कहा , ” अरे , ये देखो इस गुड्डे के कान में एक छेद है .”
यह संकेत काफी था ,जल्द ही शिष्यों ने पता लगा लिया और गुरु जी से बोले ,
” गुरु जी इन गुड्डों में बस इतना ही अंतर है कि -
एक के दोनों कान में छेद है
दूसरे के एक कान और एक मुंह में छेद है ,
और तीसरे के सिर्फ एक कान में छेद है “
गुरु जी बोले , ” बिलकुल सही , और उन्होंने धातु का एक पतला तार देते हुए उसे कान के छेद में डालने के लिए कहा .”
शिष्यों ने वैसा ही किया . तार पहले गुड्डे के एक कान से होता हुआ दूसरे कान से निकल गया , दूसरे गुड्डे के कान से होते हुए मुंह से निकल गया और तीसरे के कान में घुसा पर कहीं से निकल नहीं पाया .
तब गुरु जी ने शिष्यों से गुड्डे अपने हाथ में लेते हुए कहा , ” प्रिय शिष्यों , इन तीन गुड्डों की तरह ही आपके जीवन में तीन तरह के व्यक्ति आयेंगे .
पहला गुड्डा ऐसे व्यक्तियों को दर्शाता है जो आपकी बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देंगे ,आप ऐसे लोगों से कभी अपनी समस्या साझा ना करें .
दूसरा गुड्डा ऐसे लोगों को दर्शाता है जो आपकी बात सुनते हैं और उसे दूसरों के सामने जा कर बोलते हैं , इनसे बचें , और कभी अपनी महत्त्वपूर्ण बातें इन्हें ना बताएँ।
और तीसरा गुड्डा ऐसे लोगों का प्रतीक है जिनपर आप भरोसा कर सकते हैं , और उनसे किसी भी तरह का विचार – विमर्श कर सकते हैं , सलाह ले सकते हैं , यही वो लोग हैं जो आपकी ताकत है और इन्हें आपको कभी नहीं खोना चाहिए ."
Sunday 20 October 2013
21-10-13
एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस
पाना चाहता था. उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली. उसनेनिश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…पर घंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली.
अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक
मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जानेलगा…
और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी.
किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से पूछा ,” बेटा,
कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?”
लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया और
चुप-चाप बैठ गया, और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे गयी , जिससे मैंने
उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.”
Friends, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित
हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें life कीज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है . हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जसमे हम बिलकुल अकेले हों , जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने
भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम life को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे..
Saturday 19 October 2013
20-10-13
नमस्कार मित्रो आप का दिन शुभ हो.
-----''''बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति''''----- '' ( आचार्य चाणक्य के अनुसार)
आचार्य चाणक्य के अनुसार किसी बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति के सम्बन्ध में
यह कहना है कि मुर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं जितना कि
एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना उपयोगी है ! जिस प्रकार किसी अंधे व्यक्ति के
लिए आईना व्यर्थ है ! ठीक इसी प्रकार किसी भी मूर्ख व्यक्ति के लिए
किताबें या ज्ञान की बात भी फिजूल ही है ! क्योंकि मूर्ख व्यक्ति ज्ञान की
बातों पर भी तर्क-वितर्क करते हैं और उन्हें समझ नहीं पाते !
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति अक्सर कुतर्क में ही समय नष्ट
करते रहते हैं जबकि बुद्धिमान व्यक्ति ज्ञान को ग्रहण कर उसे अपने जीवन में
उतार लेते हैं ! ऐसे में बुद्धिमान लोग तो जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य
कर लेते हैं लेकिन मूर्ख व्यक्ति का जीवन कुतर्क करने में ही निकल जाता है !
''मूर्ख व्यक्ति को कोई भी समझा नहीं सकता है !''
अत: बेहतर यही होता है कि उनसे बहस न की जाए, ना ही उन्हें समझाने का प्रयास किया जाए !
किसी भी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की किताबों का ढेर लगा देने से भी
वह उनसे कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाएगा। उनके लिए किताबें मूल्यहीन ही है और
किताबों में लिखी ज्ञान की बातें फिजूल है। अत: किसी भी मूर्ख व्यक्ति को
समझाने में अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
Friday 18 October 2013
19-10-13
jor se bolo shri banke bihari lal ki jai hooooo
रेगिस्तान में दो मित्र
दो मित्र रेगिस्तान में यात्रा कर रहे थे। सफर में किसी मुकाम पर उनका किसी बात पर वाद-विवाद हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि एक मित्र ने दूसरे मित्र को थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ खाने वाले मित्र को इससे बहुत बुरा लगा लेकिन बिना
कुछ कहे उसने रेत में लिखा – “आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा”।
वे चलते रहे और एक नखलिस्तान में आ पहुंचे जहाँ उनहोंने नहाने का सोचा। जिस व्यक्ति ने थप्पड़ खाया था वह रेतीले दलदल में फंस गया और उसमें समाने लगा लेकिन उसके मित्र ने उसे बचा लिया। जब वह दलदल से सही-सलामत बाहर आ गया तब उसने एक पत्थर पर लिखा – “आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मेरी जान बचाई”।
उसे थप्पड़ मारने और बाद में बचाने वाले मित्र ने उससे पूछा – “जब मैंने तुम्हें मारा तब तुमने रेत पर लिखा और जब मैंने तुम्हें बचाया तब तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों?”
उसके मित्र ने कहा – “जब हमें कोई दुःख दे तब हमें उसे रेत पर लिख देना चाहिए ताकि क्षमाभावना की हवाएं आकर उसे मिटा दें। लेकिन जब कोई हमारा कुछ भला करे तब हमें उसे पत्थर पर लिख देना चाहिए ताकि वह हमेशा के लिए लिखा रह जाए।”
Thursday 17 October 2013
18-10-13
एक राजा था, उन्होंने आज्ञा दी कि संसार में इस
बात की खोज की जाए कि कौन से जीव-जंतुओं
का उपयोग नहीं है।
बहुत खोजबीन करने के बाद उन्हें
जानकारी मिली कि संसार में दो जीव 'जंगली मक्खी'
और 'मकड़ी' बिल्कुल बेकार हैं।
राजा ने सोचा- क्यों न जंगली मक्खियों और
मकड़ियों को खत्म कर दिया जाए। इसी बीच राजा पर
एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया।
युद्ध में राजा की हार हुई और जान बचाने के लिए
उन्हें राजपाट छोड़कर जंगल में जाना पड़ा।
शत्रु के सैनिक उनका पीछा करने लगे। काफी दौड़भाग
के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक
पेड़ के नीचे सो गए। तभी एक जंगली मक्खी ने
उनकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल
गई।
उन्हें ख्याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित
नहीं है और वे एक गुफा में जा छिपे।
राजा के गुफा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफा के
द्वार पर जाला बुन दिया।
शत्रु के सैनिक उन्हें यहां-वहां ढूंढते हुए गुफा के
नजदीक पहुंचे। द्वार पर घना जाला देखकर आपस में
कहने लगे, 'अरे चलो आगे, इस गुफा में
राजा आया होता तो द्वार पर बना यह
जाला क्या नष्ट न हो जाता।'
गुफा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के
सैनिक आगे निकल गए।
उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार
में कोई भी प्राणी या चीज बेकार नहीं। अगर
जंगली मक्खी और मकड़ी न होती तो उसकी जान न
बच पाती।
moral... "भगवान की बनाई दुनिया में हर जीव
का मोल है, कब कहां किसकी जरूरत पड़ जाए "
Wednesday 16 October 2013
17-10-13
A TRUTH.
शादी की पहली रात को नवविवाहित जोड़े ने तय किया की वो सुबह कोई भी बिना कारण दरवाजा खटखटाएगा तो वो दरवाजा नहीं खोलेंगे.
सुबह पति के माँ ने दरवाजा खटखटाया.
दोनों ने एक दूसरे को देखा.और रात में जैसा तय किया था उस अनुसार उन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला.
थोड़ी देर बाद पत्नी के पिता ने दरवाजा खटखटाया.
दोनों ने फिर एक दूसरे की और देखा.
पत्नी के आँखों से आंसू बहने लगे और उसने रोना शुरू कर दिया.
बोली "मैं अपने पिता
को ऐसे ही दरवाज़ा खटखटाते नहीं छोड़ सकती, मैं पहले ही उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर आयी हूँ, उन्हें कितना दुःख होगा अगर मैंने दरवाज़ा नहीं खोला तो."
पति ने कुछ नहीं कहा, पत्नी ने दरवाजा खोल दिया.
कई साल बीत गए,
इस युगल के 5 बच्चे हुए, जिनमे से पहले 4 लड़के थे और आख़िरी लड़की.
जब लड़की ने जन्म लिया तो उस व्यक्ति को बहुत खुशी हुई, उसे ऐसा लगा जैसे उसे भगवान ने ज़िंदगी का सबसे बड़ा उपहार दिया है.
उसने काफी बड़ा जश्न मनाया, और कई लोगो को बुलाया.
जश्न के दौरान उससे एक व्यक्ति ने पूछा की क्यों वह बेटी होने के खुशी में इतना जश्न मना रहा है, जबकी किसी भी बेटे के जन्म पर उसने जश्न नहीं मनाया.
उसने जवाब दिया : "ये बेटी ही है जो हमेशा मेरे लिए दरवाजा खोलेगी, बेटों का क्या भरोसा!"
इस कहानी को खुद वास्तविकता में परखिये, बेटे माता-पिता को नज़रंदाज़ कर सकते हैं, किन्तु बेटी नहीं !
16-10-13
बड़ी मुद्दतों चाँद दिखने की रात आई है,
फिर से खुशियों की बारात आई है
बहुत दूरियां हो गयी है अपनों के बीच
फिर गले मिलने की सौगात आई है,
इन चाँद तारों को देखो मोहब्बत से
इनसे नूर बरसने की बात आई है
इस भाग दौड़ में सब भूल ही जाते है
फिर खुदा को याद करने की आवाज आई है
आओ सब हसलो मुस्कुरा लो जी भर के
कितनी हसरतों की यह ईद आई है...
ईद मुबारक हो आप सब को
फिर से खुशियों की बारात आई है
बहुत दूरियां हो गयी है अपनों के बीच
फिर गले मिलने की सौगात आई है,
इन चाँद तारों को देखो मोहब्बत से
इनसे नूर बरसने की बात आई है
इस भाग दौड़ में सब भूल ही जाते है
फिर खुदा को याद करने की आवाज आई है
आओ सब हसलो मुस्कुरा लो जी भर के
कितनी हसरतों की यह ईद आई है...
ईद मुबारक हो आप सब को
Monday 14 October 2013
15-10-13
Jai Shree Krishna
------------------------
दो भाई थे। एक की उम्र 8 साल दूसरेकी 10
साल।
दोनों बड़े ही शरारती थे। उनकी शैतानियों से
पूरा मोहल्ला तंग आया हुआ था। माता-
पिता रात-
दिन
इसी चिन्ता में डूबे रहते कि आज पता नहीं वे
दोनों क्या करेंगे।
एक दिन गांव में एक साधु आया।
लोगों का कहना था कि बड़े ही पहुंचे हुए
महात्मा है।
जिसको आशीर्वाद दे दें उसका कल्याण
हो जाये।
पड़ोसन ने बच्चों की मां को सलाह दी कि तुम
अपने
बच्चों को इन साधु के पास ले जाओ। शायद
उनके
आशीर्वाद से उनकी बुध्दि कुछ ठीक हो जाये।
मां को पड़ोसन की बात ठीक लगी। पड़ोसन ने यह
भी कहा कि दोनों को एक साथ मत ले
जाना नहीं तो क्या पता दोनों मिलकर वहीं कुछ
शरारत
कर दें और साधु नाराज हो जाये।
अगले ही दिन मां छोटे बच्चे को लेकर साधु के
पास
पहुंची। साधु ने बच्चे को अपने सामने
बैठा लिया और
मां से बाहर जाकर इंतजार करने को कहा।
साधु ने बच्चे से पूछा- बेटे, तुम भगवान
को जानते
हो न? बताओ, भगवान कहां है?
बच्चा कुछ नहीं बोला बस मुंह बाए साधु की ओर
देखता रहा।
साधु ने फिर अपना प्रश्न दोहराया पर
बच्चा फिर
भी कुछ नहीं बोला।
अब साधु को कुछ चिढ़ सी आई, उसने
थोड़ी नाराजगी प्रकट करते हुये कहा- मैं
क्या पूछ
रहा हूं तुम्हें सुनाई नहीं देता,जवाब दो, भगवान
कहां है?
बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुंह बाए साधु
की ओर हैरानी भरी नजरों से देखता रहा।
अचानक जैसे बच्चे की चेतना लौटी। वह
उठा और
तेजी से बाहर की ओर भागा। साधु ने आवाज
दी पर
वह रूका नहीं सीधा घर जाकर अपने कमरे में पलंग
के
नीचे छुप गया। बड़ा भाई, जो घर पर ही था, ने
उसे
छुपते हुये देखा तो पूछा- क्या हुआ? छुप
क्यों रहे
हो?
"भैया, तुम भी जल्दी से कहीं छुप जाओ।" बच्चे
ने
घबराये हुये स्वर में कहा।
"पर हुआ क्या?" बड़े भाई ने भी पलंगके नीचे
घुसने
की कोशिश करते हुये पूछा।
"अबकी बार हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गये
हैं।
भगवान कहीं गुम हो गया है और लोग समझ रहे हैं
कि इसमें हमारा हाथ है !
Sunday 13 October 2013
Saturday 12 October 2013
Friday 11 October 2013
12-10-13
देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं. दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है. महागौरी आदिशक्ति हैं. महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं.देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”
Thursday 10 October 2013
11-10-13
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली माँ हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं।
Wednesday 9 October 2013
10-10-13
नवदुर्गा का छठवां स्वरूप मां कात्यायनी
नवरात्रि में छठे दिन कीजिए मां कात्यायनी की पूजा
कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की
उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। तब
मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी
कात्यायनी कहलाईं।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। इसलिए कहा जाता है
कि इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और
मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो
जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
Tuesday 8 October 2013
09.10.11
नवशक्ति का पांचवा स्वरुप स्कन्दमाता
पांचवे दिन कीजिये माँ स्कन्दमाता की पूजा
नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है।
इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं।
नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
जय माँ स्कन्दमाता
नवरात्रि के पांचवी स्कन्दा माता माहारानी।
इसका ममता रूप है ध्याए ग्यानी ध्यानी॥
कार्तिक्ये को गोद ले करती अनोखा प्यार।
अपनी शक्ति दी उसे करे रकत संचार॥
भूरे सिंह पे बैठ कर मंद मंद मुस्काए।
कमल का आसन साथ में उसपर लिया सजाए॥
आशीर्वाद दे हाथ से, मन में भरे उमंग।
कीर्तन करता आपका छाडे नाम का रंग॥
जैसे रूठे बालक की सुनती आप पुकार।
मुझको भी वो प्यार दो मत करना इनकार॥
नवरात्रों की माँ कृपा कर दो माँ।
नवरात्रों की माँ कृपा कर दो माँ॥
जय माँ स्कन्दमाता ।
जय माँ स्कन्दमाता॥
Monday 7 October 2013
Sunday 6 October 2013
07.10.13
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं चंद्रघंटा। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा-आराधना की जाती है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इस देवी को चंद्रघंटा कहा गया है। वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास के लिए इनकी आराधना की जाती है.
Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. Jai mata di _/\_ .. :)
06-10-13
A=Ambe
B=Bhawani
C=Chamunda
D=Durga
E=Ekrupi
F=Farsadharni
G=Gayatri
H=Hinglaj
I=Indrani
J=Jagdamba
K=Kali
L=Laxmi
M=Mahamaya
N=Narayni
O=Omkarni
P=Padma
Q=Qatyayani
R=Ratnapriya
S=Shitla
T=Tripursundari
U=Uma
V=Vaishnavi
W=Warahi
Y=Yati
Z=Zyana
ABCD padhte jao.. JAI MATA DI kehte jao..
Happy Navratri..
B=Bhawani
C=Chamunda
D=Durga
E=Ekrupi
F=Farsadharni
G=Gayatri
H=Hinglaj
I=Indrani
J=Jagdamba
K=Kali
L=Laxmi
M=Mahamaya
N=Narayni
O=Omkarni
P=Padma
Q=Qatyayani
R=Ratnapriya
S=Shitla
T=Tripursundari
U=Uma
V=Vaishnavi
W=Warahi
Y=Yati
Z=Zyana
ABCD padhte jao.. JAI MATA DI kehte jao..
Happy Navratri..
Friday 4 October 2013
05-10-13
नवरात्र विशेष: पहले दिन कीजिये मां शैलपुत्री की पूजा
आज से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। भक्तजन इस अवसर पर माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। अतः इसे नवरात्र के नाम भी जाना जाता है। देवी के नौ रूप क्रमशः इस प्रकार हैं- प्रथम-शैलपुत्री, दूसरी-ब्रह्मचारिणी, तीसरी-चन्द्रघंटा, चौथी-कुष्मांडा, पाँचवीं-स्कंधमाता, छठी-कात्यायनी, सातवीं-कालरात्रि, आठवीं-महागौरी, नौवीं-सिद्धिदात्री। नवरात्रि में देवी के इन्हीं नौ रूपों की पूजा का महात्म्य है ।
आज नवरात्र का प्रथम दिन है इसलिए आज के दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है इसलिए इन्हें ही प्रथम दुर्गा कहा जाता है।
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। मां शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
यह मंत्र है वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
नवरात्र के पहले ही दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी पूरे नौ दिनों तक पूजा की जाती है। मां का यह अद्भुत रूप है। दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने पुत्रों को आर्शीवाद देने आती है। श्वेत व दिव्य रूप में मां वृषभ पर बैठी है। कहते हैं सच्चे मन से मां से जो भी मांगो वो जरूर पूरा होता है। शैल पुत्री का रूप काफी मोहक और प्रभावशाली है इसलिए आज जातक को मन से मां की पूजा करनी चाहिए जिसके चलते उस पर आने वाले हर संकट को मां उससे दूर कर देंगी।
Wednesday 2 October 2013
03-10-13
एक दिन भेड़िया मजे से मछली खा रहा था की अचानक मछली का कांटा उसके गले में अटक गया | भेड़िया दर्द के मारे चीखा-चिल्लाया | वह इधर-उधर भागता फिरा | पर उसे चेन न मिला | उससे न खाते बनता था न पीते बनता था |
तभी उसे नदी किनारे खड़ा एक सारस दिखाई दिया | भेड़िया सारस के पास गया | भेड़िया की आँखे में आसू थे | वह गिडगिडा कर बोला, “सारस भाई, मेरे गले में कांटा अटक गया है | मेरे गले से कांटा निकल दो | में तुम्हारा अहसान कभी न भुलुगा | मुझे इस दर्द से छुटकारा दिला दो |
सारस को भेडिये पर दया आ गई | उसने अपनी लंबी चोंच भेडिये के गले में डाली और कांटा निकाल दिया | भेडिये को बड़ा चेन मिला | सारस बोला, भेडिये भाई मेने आप की मदद की है अब आप मुझे कुछ इनाम दो |
इनाम की बात सुनते ही भेडिये को गुस्सा आ गया | सारस की अपने बड़े-बड़े दांत दिखाते हुए बोला, “तुझे इनाम चाहिए? एक तो मेरे मुंह में अपनी गंदी चोंच डाली | मेने सही – सलामत निकल लेने दी | और अब इनाम मांगता है | जिंदा रहना चाहता है तो भाग जा यंहा से इनाम मांगता है |”
बेचारा सारस वहा से चुप चाप चला गया |
सीख: जो भी आप की मदद करे उसकी हमेशा मदद करे |
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