Wednesday, 31 July 2013

01.08.13


गुरु गोबिँद दोऊ खड़े काके लागु पाये बलिहारि गुरु आपने जिन गोबिँद दीयो मिलाय् ।।

मंगल नाम राम राम, मंगल नाम राम राम !
मंगल नाम राम राम, मंगल नाम राम राम !!

गुरु कि बातें गूढ़ है, ...गुरु कि शक्ती महान !
गुरु कि कडवी घूँट का, कर लेना जल पान !
------------------------------------------------------
एक भक्त था वह बिहारी जी को बहुत मानता था,बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा किया करता था.
एक दिन भगवान से कहने लगा –
में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई.
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो.
भगवान ने कहा ठीक है.
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,जब तुम रेत पर चलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे, दो तुम्हारे पैर होगे और दो पैरो के निशान मेरे होगे.इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी.
अगले दिन वह सैर पर गया,जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,अब रोज ऐसा होने लगा.
एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह सड़क पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया.
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत मे सब साथ छोड देते है.
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये.उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोड दिया.धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे.
एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने लगे.उससे अब रहा नही गया,
वह बोला-
भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है, पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था,
ऐसा क्यों किया?
भगवान ने कहा 
तुमने ये कैसे सोच लिया की में तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,
उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है. इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है...

Tuesday, 30 July 2013

31.07.13


बहुत समय पहले , किसी गाँव में एक किसान रहता था . वह रोज़ भोर में दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता . इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था . - उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था , और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था . सालों से चल रहा था . - सही घड़े को इस बात का घमंड कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है , वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा एक दिन उससे रहा नहीं गया , उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?” “क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ? ” - “शायद आप नहीं जानते मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो .” - घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा . - किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया . आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता 

Monday, 29 July 2013

30.07.13


हनुमान्जी के चरित्र में एक सूत्र आपको और मिलेगा कि हनुमानजी का रूप सर्वदा बदलता रहता है। वे ही हनुमानजी कहीं लघु हैं, कहीं अति लघु हैं, ये दोनों शब्द भी आपको मिलेंगे। लंका जलाने के पश्चात्-

पूछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता क...े आगे ठाढ़ भयउ कर जोरि।।5/26


यहाँ ‘लघु’ शब्द का प्रयोग है और जब लंका में पैठने लगे तब सुरसा के सामने पहले तो विशाल रूप प्रकट करते हैं, परन्तु जब सुरसा ने सौ योजन का मुँह फैलाया तो हनुमानजी ने लघु नहीं ‘अति लघु’ रूप बनाया—


सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।

कभी लघु बन जाते हैं, कभी अति लघु, कभी विशाल बन जाते हैं और उसमें भी कभी बड़े होते हुए हल्के होते हैं तो कभी भारी भी होते हैं। क्या यह हनुमानजी में कोई जादूगरी है ? समुद्र लाँघने के पूर्व वे विशाल भी बने और उस समय विशाल बनने के साथ-साथ उनका भार इतना था कि लिखा गया—

जोहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेऊ सो गा पाताल तुरंता।
जिस पर्वत पर चरण रखकर हनुमानजी छलाँग लगते हैं, वह पर्वत हनुमानजी के बोझ से तुरन्त पाताल चला गया। यहाँ हनुमानजी विशाल भी हैं और भारी भी और जब लंका जलाने लगे तो विशाल तो इतने बन गये कि—

हरि प्रेरित तेहिं अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।

हनुमानजी ने अपने शरीर को इतना बढ़ा लिया कि वे आकाश को छूने लगे। ऐसा लगा कि समुद्र लाँघते समय भी बड़े बने थे और अब लंका जलाते समय भी बहुत बड़े बन गये, परन्तु नहीं, दोनों में एक अन्तर है कि समुद्र लाँघते समय वे विशाल भी थे और भारी भी, परन्तु लंका जलाते समय विशाल तो थे, परन्तु—
देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।।


शरीर जितना ही विशाल है, भार की दृष्टि से वे उतने ही हल्के हैं। इस प्रकार अलग-अलग रूपों में जो हनुमानजी के दर्शन है, इसका तात्त्विक अभिप्राय यह है कि जो चार पक्ष हैं, हनुमानजी इन चारों पक्षों के आचार्य हैं और जिस समय जिस समस्या का समाधान करने के लिए जिस पक्ष को प्रधानता देनी चाहिए, हनुमानजी उसी को प्रधानता देते हैं। अगर गहराई से विचार करके देखें तो चारों योगों में मुख्यता भले ही किसी एक को दी जाय, परन्तु आवश्यकता है इन चारों योगों की या चारों मार्गों के समन्वय की।!!!۞!!!

!!!۞!!! ॥ॐ श्री राम ॥ !!!۞!!!
!!!۞!!! ॥ॐ श्री हनुमते नमः ॥ !!!۞!!!

Sunday, 28 July 2013

29.07.13



परोपकार की भावना - पुराने जमाने की बात है। एक राजा ने दूसरे राजा के पास एक पत्र और सुरमे
की एक छोटी सी डिबिया भेजी। पत्र में
लिखा था कि जो सुरमा भिजवा रहा हूं, वह अत्यंत मूल्यवान है। इसे लगाने से
अंधापन दूर हो जाता है। राजा सोच में पड़ गया। वह समझ
नहीं पा रहा था कि इसे किस-किस को दे। उसके राज्य में
नेत्रहीनों की संख्या अच्छी-खासी थी, पर सुरमे की मात्रा बस इतनी थी जिससे दो आंखों की रोशनी लौट सके। राजा इसे अपने किसी अत्यंत प्रिय व्यक्ति को देना चाहता था।
तभी राजा को अचानक अपने एक वृद्ध मंत्री की स्मृति हो आई। वह
मंत्री बहुत ही बुद्धिमान था, मगर आंखों की रोशनी चले जाने के कारण
उसने राजकीय कामकाज से छुट्टी ले ली थी और घर पर ही रहता था।
राजा ने सोचा कि अगर उसकी आंखों की ज्योति वापस आ गई तो उसे उस
योग्य मंत्री की सेवाएं फिर से मिलने लगेंगी। राजा ने मंत्री को बुलवा भेजा और उसे सुरमे की डिबिया देते हुए कहा, ‘इस सुरमे
को आंखों में डालें। आप पुन: देखने लग जाएंगे। ध्यान रहे यह केवल 2
आंखों के लिए है।’ मंत्री ने एक आंख में सुरमा डाला। उसकी रोशनी आ गई।
उस आंख से मंत्री को सब कुछ दिखने लगा। फिर उसने बचा-
खुचा सुरमा अपनी जीभ पर डाल लिया। यह देखकर राजा चकित रह गया। उसने पूछा, ‘यह आपने क्या किया? अब
तो आपकी एक ही आंख में रोशनी आ पाएगी। लोग आपको काना कहेंगे।’
मंत्री ने जवाब दिया, ‘राजन, चिंता न करें। मैं काना नहीं रहूंगा। मैं आंख
वाला बनकर हजारों नेत्रहीनों को रोशनी दूंगा। मैंने चखकर यह जान लिया है
कि सुरमा किस चीज से बना है। मैं अब स्वयं सुरमा बनाकर
नेत्रहीनों को बांटूंगा।’ राजा ने मंत्री को गले लगा लिया और कहा, ‘यह हमारा सौभाग्य है कि मुझे
आप जैसा मंत्री मिला। अगर हर राज्य के मंत्री आप जैसे हो जाएं
तो किसी को कोई दुख नहीं होगा।

Saturday, 27 July 2013

28.07.13



एक बार श्री कृष्ण बलदेव एवं सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गये !
सघन वन था ;न आगे राह सूझती थी न पीछे लौट सकते थे ! निर्णय हुआ कि घोड़ो को बांध कर यही रात्रि में विश्राम किया जाय ! तय हुआ कि तीनो बारी-बारी जाग कर पहरा देंगे ! सबसे पहले सात्यकि जागे बाकी दोनो सो गये ! एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यकि को मल्ल-युद्ध के लिए ललकारने लगा !पिशाच की ललकार सुन कर सात्यकि अत्यंत क्रोधित हो गये ! दोनो में मल्लयुद्ध होने लगा ! जैसे -जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दुगने क्रोध से लड़ने लगते !सात्यकि जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता !मल्ल-युद्ध में सात्यकि को बहुत चोटें आईं !एक प्रहर बीत गया अब बलदेव जागे !सात्यकि ने उन्हें कुछ न बताया और सो गये !बलदेव को भी पिशाच की ललकार सुनाई दी !बलदेव क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये !लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ !अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी !बलदेव ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये !श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई !पिशाच जितने अधिक क्रोध में श्री कृष्ण को संबोधित करता श्री कृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते ;पिशाच का आकार घटता जाता !अंत में वह एक कीड़े जितना रह गया जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर में बांध लिया !प्रात:काल सात्यकि व बलदेव ने अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई तो श्री कृष्ण ने मुस्करा कर उस कीड़े को दिखाते हुए कहा -यही है वह क्रोध-रूपी पिशाच जितना तुम क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था !पर जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया !अतः क्रोध पर विजय पाने के लिये संयम से काम ले !

Friday, 26 July 2013

27.07.13


एक संतपुरुष और ईश्वर के मध्य एक दिन बातचीत हो रही थी। संत ने ईश्वर से पूछा – “भगवन, मैं जानना चाहता हूँ कि स्वर्ग और नर्क कैसे दीखते हैं।”

ईश्वर संत को दो दरवाजों तक लेकर गए। उन्होंने संत को पहला दरवाज़ा खोलकर दिखाया। वहां एक बहुत बड़े कमरे के भीतर बीचोंबीच एक बड़ी टेबल रखी हुई थी। टेबल पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पकवान रखे हुए थे जिन्हें देखकर संत का मन भी उन्हें चखने के लिए लालायित हो उठा।

लेकिन संत ने यह देखा की वहां खाने के लिए बैठे लोग बहुत दुबले-पतले और बीमार लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने कई दिनों से अच्छे से खाना नहीं खाया था। उन सभी ने हाथों में बहुत बड़े-बड़े कांटे-चम्मच पकड़े हुए थे। उन काँटों-चम्मचों के हैंडल २-२ फीट लंबे थे। इतने लंबे चम्मचों से खाना खाना बहुत कठिन था। संत को उनके दुर्भाग्य पर तरस आया। ईश्वर ने संत से कहा – “आपने नर्क देख लिया।”
फ़िर वे एक दूसरे कमरे में गए। यह कमरा भी पहलेवाले कमरे जैसा ही था। वैसी ही टेबल पर उसी तरह के पकवान रखे हुए थे। वहां बैठे लोगों के हाथों में भी उतने ही बड़े कांटे-चम्मच थे लेकिन वे सभी खुश लग रहे थे और हँसी-मजाक कर रहे थे। वे सभी बहुत स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे।

संत ने ईश्वर से कहा – “भगवन, मैं कुछ समझा नहीं।”

ईश्वर ने कहा – “सीधी सी बात है, स्वर्ग में सभी लोग बड़े-बड़े चम्मचों से एक दूसरे को खाना खिला देते हैं। दूसरी ओर, नर्क में लालची और लोभी लोग हैं जो सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते हैं।

Thursday, 25 July 2013

26.07.13


एक भक्त था वह बिहारी जी को बहुत मनाता था,बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवाकिया करता था.एक दिन भगवान सेकहने लगा –में आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझेआपकी अनुभूति नहीं हुई.मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो

.भगवान ने कहा ठीक है.तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,जब तुम रेत परचलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे,दो तुम्हारे पैर होगे और दो पैरो के निशान मेरे होगे.इस तरह तुम्हे मेरीअनुभूति होगी.अगले दिन वह सैर पर गया,जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैरऔर भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,अब रोज ऐसा होने लगा.

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया,वह रोड पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया.देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत मे सब साथ छोडदेते है.अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाईदिये.उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोडदिया.
धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसकेपास वापस आने लगे.एक दिन जब वह सैरपर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने लगे.उससे अब रहा नही गया,वह बोला-भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया मेंऐसा ही होता है,पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था,ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा –तुमने ये कैसे सोच लिया की में तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वेतुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है.इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है

Wednesday, 24 July 2013

25.07.13


एक राजा था, एक बार उसने भगवानकृष्ण जी का एक मंदिर बनवाया और पूजा के लिए एक पुजारी जी को लगा दिया.पुजारी जी बड़े भाव से बिहारी जी की सेवा करने लगे,
भगवान का श्रंगार करते, भोग लगाते, उन्हें सुलाते,ऐसा करते-करते पुजारी जी बूंढे हो गए,
राजा रोज एक फूलो की माला सेवक के हाथ से भेजा करता था,
पुजारी जी वह माला बिहारी जी को पहना देते थे,
जब राजा दर्शन करने जाते थे तो पुजारी जी वह माला बिहारी जी के गले से उतार कर राजा को पहना देते थे.ये हर दिन का नियम था.
एक दिन राजा किसी काम से मंदिर नहीं जा सके इसलिए उसने सेवक से कहा-तुम ये माला लेकर मंदिर जाओ और पुजारी जी से कहना आज हमें कुछ काम है इसलिए हम नही आ सकते वे हमारा इंतजार न करे.सेवक ने जाकर माला पुजारी जी को दे दी और सारी बात बता कर वापस आ गया .पुजारी जी ने माला बिहारी जी को पहना दी फ़िर वे सोचने लगे की आज बिहारीजी की मुझ पर बड़ी कृपा है.राजा तो आज आये नहीं क्यों न ये माला में पहन लू ,
इतना सोचकर पुजारी जी ने माला उतार कर स्वंय पहन ली .
इतने में सेवक ने बाहर से कहा-राजा आ रहे है.
पुजारे जी ने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गलेमें देखली, तो मुझ पर बहुत नाराज होगे हड़बडा़हट में पुजारी जी ने अपने गले से माला उत्तार कर बिहारी जी को पहना दी,जैसे ही राजा आये तो माला उतार कर राजा को पहना दी.
राजा ने देखा माला में एक सफ़ेद बाल लगा है तो राजा समझ गए की पुजारी जी ने माला स्वंय पहन ली हैराजा को बहुत गुस्सा आया.
राजा ने पुजारी जी से पूँछा -पुजारी जी ये सफ़ेद बाल किसका है ?
पुजारी जी को लगा अगर में सच बोलूगा तो राजा सजा देगा इसलिये पुजारी जी ने कहा-
ये सफ़ेद बाल बिहारी जी का है.अब तो राजा को और भी गुस्सा आया कि ये पुजारी जी झूठ पर झूठ बोले जा रहा है.बिहारीजी के बाल भी कही सफ़ेद होते है.
राजा ने कहा - पुजारी जी अगर ये सफेद बाल बिहारी जी का है तो सुबह श्रंगार करते, समय में आँउगा और देखूँगा कि बिहारी जी के बाल सफ़ेद है या काले, अगर बिहारी जी के बाल काले निकले तो आपको फाँसी की सजा दी जायेगे.

इतना कह कर राजा चला गया .अब पुजारी जी रोने लगे और बिहारी जी से कहने लगे –
हेप्रभु अब आप ही बचाइए नहीं तो राजा मुझे सुबह होते ही फाँसी पर चढा देगा,
पुजारी जी की सारी रात रोने मेंनिकल गयी कब सुबह हो गयी उन्हें पता ही नहीं चला.
सुबह होते ही राजा आ गया और बोला पुजारी जी में स्वंय देखूगा.
इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट हटाया तो क्या देखता है बिहारी जी के सारे बाल सफ़ेद है.

राजा को लगा, पुजारी जी ने ऐसा किया है अब तो उसे और भी गुस्सा आया और उसने परीक्षा करने के लिए कि बाल असली है या नकली,जैसे ही एक बाल तोडा़ तो बिहारी जी के सिर से खून कि धार बहने लगी और बिहारी जी के श्री विग्रह से आवाज आई कि-
हे राजा तुमने आज तक मुझ केवल एक मूर्ति ही समझा इसलिए आज से में तुम्हारे लिए मूर्ति ही हूँ...पुजारी जी तो मुझे साक्षात भगवान् ही समझते हैं !!! ये उनकी श्रद्धा ही है की मेरे बाल मुझे सफेद करने पढ़े व् रक्त की धार भी बहानी पढ़ी तुझे समझाने के लिए !!
और पुजारी जी की सच्ची भक्ति से भगवान बड़े प्रसन्न हुए.
सार-- मंदिर में बैठे भगवान केवल एक पत्थर की मूर्ति नहीं है, उन्हें इसी भाव से देखो की वे साक्षात बिहारी जी है और वैसे ही उनकी सेवा करो.

"जय जय श्री राधे"

Tuesday, 23 July 2013

24.07.13


एक किसान था. वह एक बड़े से खेत में
खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच
पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ
था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर
चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे
टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे. रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह
खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ
रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान
का हल पत्थर से टकराकर टूट गया.
किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन
ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर
फ़ेंक देगा.
वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५
लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस
पत्त्थर के पास पहुंचा .
” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान
किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से
निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”
और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार
वार करने लगा, पर ये क्या ! अभी उसने एक-दो बार
ही मारा था की पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में
पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा ,”
क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच
में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक
मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल
वह बस एक छोटा सा पत्थर था !! उसे
पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने
का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुक्सान
उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने
उसका मज़ाक बनता . Devotees इस किसान की तरह ही हम भी कई बार
ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं
को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने
की बजाये तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बात
की है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से
लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से
पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से
ठोकर मार कर आगे बढ़ सकते हैं —

Monday, 22 July 2013

23.07.13


एक भिखारी भूख – प्यास से त्रस्त होकर
आत्महत्या की योजना बना रहा था , तभी वहां सेएक
नेत्रहीन महात्मा गुजरे | भिखारी ने उन्हें अपने मन
की व्यथा सुनाई और कहा , ” मैं अपनी गरीबी से तंग
आकर आत्महत्या करना चाहता हूँ |” उसकी बात सुन
महात्मा हँसे और बोले , “ठीक है,
आत्महत्या करो लेकिन पहले अपनी एक आंख मुझे दे
दो | मैं तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ”
भिखारी चोंका | उसने कहा , “आप कैसी बात करते हैं
| मैं आंख कैसे देसकता हूँ |”
महात्मा बोले, “आंख न सही , एक हाथ ही दे दो , मैं
तुम्हे एक हज़ार अशरफिया दूंगा | ” भिखारी असमंजस
में पड़ गया | महात्मा मुस्कराते हुए बोले, संसार में
सबसे बड़ा धन निरोगी काया है | तुम्हारे हाथ-पाव
ठीक है, शारीर स्वस्थ है, तुमसे बड़ा धनी और कौन
हो सकता है | तुमसे गरीब तो में हूँ कि मेरी आँखें
नहीं हैं मगर में तो कभी आत्महत्या के बारे में
नहीं सोचता | भिखारी ने उनसे छमा मांगी और संकल्प
किया कि वह कोई काम करके जीवन-यापन करेगा

Sunday, 21 July 2013

22.07.13


एक निसंतान बादशाह ने सात मंजिला महल बनवा कर अपनी समस्त धन-दौलत उसकी प्रत्येक मंजिल में फैला दी। पहली मंजिल में कौडिय़ा, दूसरी मंजिल में पैसे,तीसरी पर रूपए,चौथी पर मोहरें,पांचवी पर मोती,छठी पर हिरे-जवाराहत और सातवीं पर स्वंय बैठ गया। शहर में एलान करवा दिया जिसको जो चाहिए वे आए और ले जाए लेकिन जो एक बार आएगा वे दोबारा नहीं आएगा।

शहर के लोगों की भीड़ लग गई, बहुत से लोग तो पैसों की गठरियां बांधकर ले गए। जो उनसे ज्यादा समझदार थे, वे रूपयों की गठरियां बांधकर ले गए। जो ओर आगे गए वे चांदी ले गए, उनसे आगे बढऩे वाले मोहरें, मोती, हीरे-जवाराहत लेकर चले गए। एक व्यक्ति ने सोचा, मैं सबसे ऊपर पहुंचूंगा और देखूगां,आखिर वहां है क्या? वह जब ऊपर गया तो देखता है वहां बादशाह खुद आपने सिंहासन पर विराजमान था। उसने उस व्यक्ति को देखकर खुली बांहों से उसका स्वागत किया और उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया।
हर जीव के भाग्य में यह ज्ञान नहीं होता कि जो कर्म हम इस जन्म में करते हैं उसी का फल हमें अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। बड़े खेद की बात है अपने जीवन को व्यर्थ के कार्यों में उलझा लेते हैं। जो बच्चों में उलझे रहते हैं, वे अपना संपूर्ण जीवन पैसे इकट्ठे करने में व्यतित करते है। जो लोग थोड़े समझदार है वे रूपए कमा लेते हैं। जो लोग नित्य नियम, पूजा-पाठ आदि धर्म-कर्म के कार्य करते हैं वे चांदी कमा लेते हैं। जिन्होंने नौ दरवाजे खोल कर अंदर परदा खोला उन्होंने मोहरें ले ली। जो परम ब्रहमा में पहुंचे, उन्होंने मोती ले लिए। जिसने सोचा मुझे धुर तक पंहुचना हैं, वह आगे गया तो आगे बादशाह अकालपुरूष को बैठे देखा। अकालपुरूष ने उसको अपने साथ मिला लिया।

विचार करें, आपके अंदर करोड़ों खण्ड-ब्रहामण्ड है, करोड़ों खुशियां हैं, सुख और शांति है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अकालपुरूष का वास है, मानव चौले का मकसद उस तक पंहुचना हैं। हमें चाहिए कि जो कुछ बन सके, इसी जन्म में कर लें।


Saturday, 20 July 2013

21.07.13


मुसीबत,


नसरुद्दीन एक शाम अपने घर से निकला. उसे किन्हीं मित्रों के घर उसे मिलने जाना था. वह चला ही था कि दूर गाँव से उसका एक दोस्त जलाल आ गया. नसरुद्दीन ने कहा, “तुम घर में ठहरो, मैं जरूरी काम से दो-तीन मित्रों को मिलने जा रहा हूँ और लौटकर तुमसे मिलूंगा. अगर तुम थके न हो तो मेरे साथ तुम भी चल सकते हो”.

जलाल ने कहा, “मेरे कपड़े सब धूल-मिट्टी से सन गए हैं. अगर तुम मुझे अपने कपड़े दे दो तो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ. तुम्हारे बगैर यहां बैठकर मैं क्या करूंगा? इसी बहाने मैं भी तुम्हारे मित्रों से मिल लूँगा”.

नसरुद्दीन ने अपने सबसे अच्छे कपड़े जलाल को दे दिए और वे दोनों निकल पड़े.
जिस पहले घर वे दोनों पहुंचे वहां नसरुद्दीन ने कहा, “मैं इनसे आपका परिचय करा दूं, ये हैं मेरे दोस्त जलाल. और जो कपड़े इन्होंने पहने हैं वे मेरे हैं”.

जलाल यह सुनकर बहुत हैरान हुआ. इस सच को कहने की कोई भी जरुरत न थी. बाहर निकलते ही जलाल ने कहा, “कैसी बात करते हो, नसरुद्दीन! कपड़ों की बात उठाने की क्या जरूरत थी? अब देखो, दूसरे घर में कपड़ों की कोई बात मत उठाना”.

वे दूसरे घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “इनसे परिचय करा दूं. ये हैं मेरे पुराने मित्र जलाल; रही कपड़ों की बात, सो इनके ही हैं, मेरे नहीं हैं”.
जलाल फिर हैरान हुआ. बाहर निकलकर उसने कहा, “तुम्हें हो क्या गया है? इस बात को उठाने की कोई क्या जरूरत थी कि कपड़े किसके हैं? और यह कहना भी कि इनके ही हैं, शक पैदा करता है, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”

नसरुद्दीन ने कहा, “मैं मुश्किल में पड़ गया. वह पहली बात मेरे मन में गूंजती रह गई, उसकी प्रतिक्रिया हो गई. सोचा कि गलती हो गई. मैंने कहा, कपड़े मेरे हैं तो मैंने कहा, सुधार कर लूं, कह दूं कि कपड़े इन्हीं के हैं”. जलाल ने कहा, “अब ध्यान रखना कि इसकी बात ही न उठे. यह बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए”.

वे तीसरे मित्र के घर पहुंचे. नसरुद्दीन ने कहा, “ये हैं मेरे दोस्त जलाल. रही कपड़ों की बात, सो उठाना उचित नहीं है”. नसरुद्दीन ने जलाल से पूछा, “ठीक है न, कपड़ों की बात उठाने की कोई ज़रुरत ही नहीं है. कपड़े किसी के भी हों, हमें क्या लेना देना, मेरे हों या इनके हों. कपड़ों की बात उठाने का कोई मतलब नहीं है”.
बाहर निकलकर जलाल ने कहा, “अब मैं तुम्हारे साथ और नहीं जा सकूंगा. मैं हैरान हूं, तुम्हें हो क्या रहा है?”

नसरुद्दीन बोला, “मैं अपने ही जाल में फंस गया हूं. मेरे भीतर, जो मैं कर बैठा, उसकी प्रतिक्रियाएं हुई चली जा रही हैं. मैंने सोचा कि ये दोनों बातें भूल से हो गयीं, कि मैंने अपना कहा और फिर तुम्हारा कहा. तो मैंने तय किया कि अब मुझे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, यही सोचकर भीतर गया था. लेकिन बार-बार यह होने लगा कि यह कपड़ों की बात करना बिलकुल ठीक नहीं है. और उन दोनों की प्रतिक्रिया यह हुई कि मेरे मुंह से यह निकल गया और जब निकल गया तो समझाना जरूरी हो गया कि कपड़े किसी के भी हों, क्या लेना-देना”.

यह जो नसरुद्दीन जिस मुसीबत में फंस गया होगा बेचारा, पूरी मनुष्य जाति ऐसी मुसीबत में फंसी है. एक सिलसिला, एक गलत सिलसिला शुरू हो गया है. और उस गलत सिलसिले के हर कदम पर और गलती बढ़ती चली जाती है. जितना हम उसे सुधारने की कोशिश करते हैं, वह बात उतनी ही उलझती चली जाती है.

Friday, 19 July 2013

20.07.13


दो हट्टे-कट्टे युवा संन्यासी शाम को अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे, वे गेरुए वस्त्रों में और नंगे पैर थे। थोड़ी देर पहले ही बारिश हुई थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी भर गया था। अचानक उनकी नजर एक सुंदर युवती पर पड़ी, जो नए कपड़े पहनकर कहीं जा रही थी। वह सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन चूंकि सड़क पर अधिक पानी भरा हुआ था इसलिए सड़क पार नहीं कर पा रही थी। उसे असमंजस में देख एक संन्यासी ने दूसरे से कहा- हमें उसकी मदद करनी चाहिए.। दूसरा बोला- लेकिन हम तो संन्यासी हैं, वह लड़की, पहला संन्यासी उसकी बात को नजरअंदाज करके उस युवती के पास पहुंच गया और बोला - मैं आपको सड़क पार करा देता हूं। युवती ने अनुमति दी तो उस संन्यासी ने लड़की को गोद में उठाकर सड़क पार करा दी।
शाम को जब दूसरा संन्यासी पहले संन्यासी से मिला, तो वह बोला - तुमने उस लड़की को अपनी गोद में उठाया था, जबकि संन्यासियों को महिलाओं को छूना भी नहीं चाहिए, तुमने ऐसा क्यों किया ? तो पहला संन्यासी बोला - मैंने तो उस युवती को उठाकर सड़क के दूसरी ओर छोड़ दिया था, लेकिन लगता है तुम उसे अब भी उठाए हुए हो - तुम भी उसे छोड़ दो . . . . . तो अच्छे आचरण के लिए दिखावा करने के बजाय मानसिकता का शुद्ध होता अति आवश्यक है . . . . 

Thursday, 18 July 2013

19.07.13



एक बार की बात है एक राजा था। उसका एक बड़ा-सा राज्य था। एक दिन उसे देश घूमने का विचार आया और उसने देश भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया। उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे मेरे पैरों में चुभ गए और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।
कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने सैनिकों व मंत्रियों को आदेश दिया कि देश की संपूर्ण सड़कें चमड़े से ढंक दी जाएं। राजा का ऐसा आदेश सुनकर सब सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस काम के लिए बहुत सारे रुपए की जरूरत थी। लेकिन फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद राजा के एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।
अगर आप इतने रुपयों को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक रुपयों की बर्बादी भी बच जाएगी। राजा आश्चर्यचकित था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की बात कही थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की सड़कों को चमड़े से ढंकने के बजाय आप चमड़े के एक टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज की दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए जूता बनवाने का आदेश दे दिया।
यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है कि हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। दूसरों के साथ बातचीत से भी अच्छे हल निकाले जा सकते हैं।

Wednesday, 17 July 2013

18.07.13


कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...

बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..

कांपते होठों से मैंने पुछा,
"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"

दूकानदार बोला:

"कौनसा लोगे..?

बेटे का ..या बाप का..?

बहिन का..या भाई का..?
बोलो कौनसा चाहिए..?

इंसानियत का.या प्रेम का..?

माँ का..या विश्वास का..?

बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...

मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?

दुकानदार नम आँखों से बोला:

"संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,

और जिस दिन ये बिक जायेगा...
उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."

सभी मित्रों को समर्पित..

Tuesday, 16 July 2013

17.07.13


एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है, देवदूत के हाथ में एक सूची है। उसने कहा, ‘यह उन लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।’ संत ने कहा, ‘मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूँ, मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।’ देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।’ संत उदास हो गए - फिर उन्होंने पूछा, ‘इसमें मेरा नाम क्यों नहीं है। मैं ईश्वर से ही नहीं अपितु गरीब, असहाय, जरूरतमंद सबसे प्रेम करता हूं। मैं अपना अधिकतर समय दूसरो की सेवा में लगाता हूँ, उसके बाद जो समय बचता है उसमें प्रभु का स्मरण करता हूँ - तभी संत की आंख खुल गई।
दिन में वह स्वप्न को याद कर उदास थे, एक शिष्य ने उदासी का कारण पूछा तो संत ने स्वप्न की बात बताई और कहा, ‘वत्स, लगता है सेवा करने में कहीं कोई कमी रह गई है।’ तभी मैं ईश्वर को प्रेम करने वालो की सूची में नहीं हूँ - दूसरे दिन संत ने फिर वही स्वप्न देखा, वही देवदूत फिर उनके सामने खड़ा था। इस बार भी उसके हाथ में कागज था। संत ने बेरुखी से कहा, ‘अब क्यों आए हो मेरे पास - मुझे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए।’ देवदूत ने कहा, ‘आपको प्रभु से कुछ नहीं चाहिए, लेकिन प्रभु का तो आप पर भरोसा है। इस बार मेरे हाथ में दूसरी सूची है।’ संत ने कहा, ‘तुम उनके पास जाओ जिनके नाम इस सूची में हैं, मेरे पास क्यों आए हो ?’
देवदूत बोला, ‘इस सूची में आप का नाम सबसे ऊपर है।’ यह सुन कर संत को आश्चर्य हुआ - बोले, ‘क्या यह भी ईश्वर से प्रेम करने वालों की सूची है।’ देवदूत ने कहा, ‘नहीं, यह वह सूची है जिन्हें प्रभु प्रेम करते हैं, ईश्वर से प्रेम करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन प्रभु उसको प्रेम करते हैं जो सभी से प्रेम करता हैं। प्रभु उसको प्रेम नहीं करते जो दिन रात कुछ पाने के लिए प्रभु का गुणगान करते है।’ - प्रभु आप जैसे निर्विकार, निस्वार्थ लोगो से ही प्रेम करते है । संत की आँखे गीली हो चुकी थी - उनकी नींद फिर खुल गयी - वो आँसू अभी भी उनकी आँखों में थे .

Monday, 15 July 2013

16.07.13


एक सज्जन व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा पूरी कर के
भगवान के पास पहुंचे...भगवान् उन्हें ऊपर
कि व्यवस्था दिखाने लगे...
सबसे पहले एक कमरा आया उसमे बहुत से सेवादार बैठे काम
में व्यस्त थे...व्यक्ति ने पूछा: प्रभु इस कमरे में
क्या होता है ? भगवान जी ने कहा: यहाँ दुनिया भर से
लोगो कि प्राथनाएँ, मन्नते, फ़रियाद आती है
एक दूसरा कमरा आया वहां भी बहुत से सेवादार बैठे काम
कर रहे थे व्यक्ति ने फिर पूछा भगवान ने कहा: यहाँ उन
में से किन प्राथनाओ का जवाब देना है उसका हिसाब
यहाँ होता है...
अब तीसरा कमरा आया वहां सिर्फ एक सेवादार
बैठा था और वो भी खाली बैठा था व्यक्ति ने पूछा प्रभु
यहाँ क्या होता है ? भगवान जी ने कहा:
यहाँ लोगो कि प्राथनाएँ पूरी होने के बाद लोग
धन्यवाद देते है
मित्रो ! ये काम ही हम भूल जाते है...जब
भी हमारा कोई काम बन जाता है तो हम भगवान
को धन्यवाद देना उनका शुक्रिया अदा करना भूल जाते
है...हमें तो उस मालिक ने इतना दिया है कि अगर हम
हमेशा उसका शुक्रिया अदा करते रहे तो भी कम है...

Sunday, 14 July 2013

15.07.13


बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक
किसान रहता था। वह रोज़ सुबह उठकर दूर झरनों से
स्वच्छ पानी लेने जाया करता था। इस काम के लिए
वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में
बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था।
उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था ,और दूसरा एक दम
सही था। इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुँचते किसान
के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।
ऐसा दो सालों से चल रहा था।
सही घड़े को इस बात का घमंड
था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके
अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ
फूटा घड़ा इस बात से
शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक
पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार
चली जाती है। फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान
रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने
किसान से कहा - "मालिक, मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और
आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ।"
"क्यों?" , किसान ने पूछा - "तुम किस बात से
शर्मिंदा हो?"
"शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ ,
और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर
पहुँचाना चाहिए था बस
उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत
बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद
होती रही है", फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा।
किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह
बोला - " कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते
वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो "
घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर
फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ
दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से
आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और
किसान से क्षमा मांगने लगा।
किसान बोला -"शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे
रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे ,
सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए
क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर
की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया .
मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के
बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें
सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत
बना दिया . आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन
फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और
अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ। सोचो अगर तुम जैसे
हो वैसे नहीं होते, तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर
पाता ?"

Saturday, 13 July 2013

14.07.13


राजा भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्यण रहता था !एक दिन गरीबी से परेशान होकर उसने राजभवन में चोरी करने का निश्चय कर लिया !जब रात में वह वहां पहुंचा तो सभी लोग सो रहे थे !सिपाहियों की नजरों से बचते हुए वह राजा के कक्ष तक पहुंच गया !स्वर्ण रत्न बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे किंतु वह जो भी वस्तु उठाने का विचार करता उसका शास्त्र ज्ञान उसे रोक देता !ब्राह्यण ने जैसे ही स्वर्ण राशि उठाने का विचार किया ;मन में स्थित शास्त्र ने कहा -स्वर्ण चोर नरकगामी होता है !जो भी वह लेना चाहता उसी की चोरी को पाप बताने वाले शास्त्रीय वाक्य उसकी स्मृति में जाग उठते !रात बीत गई पर वह चोरी नहीं कर पाया !सुबह पकड़े जाने के भय से ब्राह्यण राजा के पलंग के नीचे छिप गया !महाराज के जागने पर रानियां व दासियां उसके अभिवादन हेतु प्रस्तुत हुई !राजा भोज के मुंह से किसी श्लोक की तीन पंक्तियां निकली पर अचानक वे रुक गये शायद चौथी पंक्ति उन्हें याद नहीं आ रही थी !विद्वान ब्राह्यण से रहा नहीं गया ;चौथी पंक्ति उसने पूर्ण कर दी !महाराज चौंक गये और ब्राह्यण को पलंग के नीचे से बाहर निकलने को कहा !जब ब्राह्यण से राजा भोज ने चोरी न करने का कारण पूछा तो वह बोला -राजन् मेरा शास्त्र ज्ञान मुझे रोकता रहा ;उसी ने मेरी धर्म रक्षा की !राजा बोले -सत्य है कि ज्ञान उचित-अनुचित का बोध कराता है !जिसका धर्म-संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है !राजा भोज ने ब्राह्यण को प्रचुर धन देकर सदा के लिये उसकी निर्धनता दूर की दी

Friday, 12 July 2013

13.07.13


छोटे से गाँव में एक माँ - बाप और एक लड़की का गरीब परिवार रहता था .
वह बड़ी मुश्किल से एक समय के खाने का गुज़ारा कर पाते थे .
सुबह के खाने के लिए शाम को सोचना पड़ता था और शाम का खाना सुबह के लिए .
एक दिन की बात है ,
लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने पति को बोली की
एक तो हमारा एक समय का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप की तरह बड़ी होती जा रही है .
गरीबी की हालत में इसकी शादी केसे करेंगे ?
बाप भी विचार में पड़ गया .
दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फेसला किया की कल बेटी को मार कर गाड़ देंगे .
दुसरे दिन का सूरज निकला ,
माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार किया , अचे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी .
यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ?
वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,
तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया ,
माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया .
रस्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया ,
बाप एक दम से निचे बेथ गया ,
बेटी से देखा नहीं गया उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया .
बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे
बाप ने फावड़ा लेकर एक गढ़ा खोदने लगा बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी ,
थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा .
बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी .
बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बेठ।

थोड़ी देर बाद जब बाप गडा खोदते - खोदते थक गया ,
बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी,
जब उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली
पिताजी आप थक गये है .
लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो .
मुझसे आप की तकलीफ नहीं देखि जाती .
यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले लगा लिया,
उसकी आँखों में आंसू की नदिया बहने लगी ,
उसका दिल पसीज गया ,
बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह गढ़ा में तेरे लिए ही खोद रहा था .
और तू मेरी चिंता करती है , अब जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी
में खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -
सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट है ,
बेटा - बेटी दोनों समान है ,
उनका एक समान पालन करना हमारा फ़र्ज़ है

Thursday, 11 July 2013

12.07.13


जिंदगी का एक कड़वा सच
===============
एक भिखारी था| वह न ठीक से
खाता था, न पीता था, जिस वजह से
उसका बूढ़ा शरीर सूखकर
कांटा हो गया था| उसकी एक-एक
हड्डी गिनी जा सकती थी|
उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे
कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक
ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख
मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से
रोज निकलता था| भिखारी को देखकर
उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत
ही दुखी होता| वह सोचता, वह
क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह
क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते?
एक दिन उससे न रहा गया| वह
भिखारी के पास गया और बोला -"बाबा,
तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर
भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते
हो, पर ईश्वर से यह 
प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें
अपने पास बुला ले?"
भिखारी ने मुंह खोला -"भैया तुम जो कह
रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है|
मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं,
पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह
चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे
दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक
दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह
दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह
हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड
नहीं करना चाहिए|"
लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया|
उसने जो कहा था, उसमें
कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह
जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने
वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|

Wednesday, 10 July 2013

11.07.13


एक संत जी अपनी कुटिया में ध्यान में लीन थे। इस दौरान कोई उनसे मिलने नहीं आता था। मगर इस बात से अनजान एक अतिथि उनसे ध्यान का तरीका सीखने उनके पास आया और उन्हें पुकारने लगा। उसने बताया कि वह जानना चाहता है कि कैसे ध्यानमग्न हुआ जाए। कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वह जोरों से दरवाजा पीटने लगा। उसे लगा शायद अंदर संत न हों। तो उसने जोर से चिल्लाकर पूछा- अंदर कौन है? मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

दरवाजा नहीं ही खुला। वह वहीं बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा। शाम के वक्त जब संत जी बाहर निकले तो वह उलाहना देते हुए बोला- मैंने आपको बहुत पुकारा। कई बार आवाजें लगाईं पर आपने तो कोई जवाब ही नहीं दिया। इस पर संत जी मुस्कराते हुए बोले- मैं तो कुटिया के भीतर ही था। पर तुम्हारे प्रश्न 'कौन है' का जवाब खोजने के लिए मुझे अपने भीतर जाना पड़ा। सो उसी में देर हो गई। अतिथि ने कुछ नहीं कहा। तब तक वहां कई लोग जमा हो गए। संत जी का प्रवचन शुरू हो गया। लेकिन थोड़ी ही देर के बाद जबर्दस्त आंधी-तूफान आया। अफरातफरी मच गई।

सब अपनी जान बचाने इधर-उधर दौड़े। वह अतिथि भी भागा पर संत जी को वहीं बैठे देख वापस लौट आया। वह संत के चरण पकड़ कर बोला- इस तूफान में सब भागे पर आप नहीं ऐसा क्यों?
संत ने कहा- जब सब बाहर की ओर भागे मैं भीतर चला गया, अपने ही ध्यान में, वहां कोई तूफान नहीं था। वहां परम शांति थी।
अतिथि ने कहा - प्रभू मुझे ध्यान का तरीका मिल गया।

Tuesday, 9 July 2013

10.07.13


रात के बारह बजे थे। कमरे में पत्नी बीमार पड़ी थी और वो सोचने में मशग़ूल था कि पत्नी के ऑपरेशन के लिए पाँच लाख कहाँ से लाऊँ।
भगवान से हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा ..

अचानक कमरे में भगवान प्रकट हुए,वो भौंचक्का रह गया,कहीं भ्रम तो नहीं ? ख़ुद को चिकोटी काटी। लेकिन सपना नहीं था वह।
मुसकुराते हुए भगवान बोले - "बोलो मनुवा ! क्या चाहिए तुम्हें ?"
वो हड़बड़ाया, क्या माँगूँ ?
"ज़ल्दी कर मनुवा !समय निकला जा रहा है " भगवान फिर बोले।
वो घबरा गया। क्या माँगूँ ? महल, पैसे, गाड़ी ? सोचा पैसे ही माँगूँगा।

यही तो चाहिए ऑपरेशन के लिए, सुखी जीवन के लिए। पर कितना माँगूँ ? दश लाख, पचास लाख, एक करोड़ या दश करोड़ ?...सोचने में समय बहुत तेज़ी से निकल रहा था .

"मेरे पास वक़्त नहीं हैं मनुष्य, जल्दी माँगो !" भगवान बोले।
"दश करोड़ रूपए प्रभु !" उसने एक ही साँस में कहा ।
"तथास्तु !" भगवान चले गए। अचानक दश करोड़ के नोट चारों तरफ़ दिखाई देने लगे।

ख़ुशी से पागल हो उसने पत्नी को उठाने की कोशिश की। लेकिन वह तो ठंडी पड़ गई थी। एक तरफ़ पत्नी की लाश और दूसरी तरफ़ दस करोड़ के नोट।
वो जोर से चिल्लाया - "प्रभु ! मेरी पत्नी को ज़िदा कर दो !" लेकिन भगवान वहाँ नहीं थे। चारों ओर सन्नाटे ओर नोटों के सिवा कुछ न था।

Monday, 8 July 2013

09.07.13


एक बार गर्मी में मौसम में एक मजदुर को एक सेठ के दूकान पर बहुत भारी ,वजनी सामान लेकर जाना था बेचारे मजदुर का चिलचिलाती धुप , गर्मी और प्यास के कारण बुरा हाल हो रहा था ....बहुत दूर तक चलने के बाद आखिर दूकान आ गयी और सारा सामान उतार कर उस मजदुर को कुछ राहत मिली तब भी उसे बहुत जोरो से प्यास लगी थी ..

उसने सेठजी को कहा ...' सेठ जी थोडा पानी पिला दो...'

सेठ आराम से अपने गद्दी पर बैठे ठंडी हवा का आनंद उठा रहे थे ,उन्होंने इधर-उधर देखा और अपने नौकर को आवाज लगायी...काफी देर तक नौकर नहीं आया..,

मजदुर ने फिर कहा सेठ जी पानी पिला दो.....,

सेठ जी ने कहा रुको अभी मेरा आदमी आये तो वह तुम्हे पानी पिला देगा ......कुछ और समय बिता... बार -बार मजदुर की नजरे ठन्डे पानी के मटके पर जा रही थी... प्यास से बेहाल उसने अपनी सूखे होठो पर जुबान फेरते हुए कहा सेठ जी बहुत प्यास लगी है...पानी पिला दो ...

सेठ जी झल्ला कर उसे डांटने लगे ..थोडा रुक जा न अभी मेरा "आदमी" आएगा और पिला देगा तुझे पानी ....

प्यास से बेहाल मजदुर बोला .....
" सेठ जी कुछ समय के लिए आप ही " आदमी " बन जाओ न .."

Sunday, 7 July 2013

08.07.13


1) पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नही :

कभी-कभी हमारे साथ कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे हम बहुत low महसूस करते है। ऐसा लगता है जैसे अब सब कुछ खत्म हो गया इससे कई लोग depression मे चले जाते है तो कई लोग बड़ा और बेवकूफी भरा कदम उठा लेते है जैसे आत्महत्या पर जरा सोचिये पतझड़ के समय जब पेड़ मे ऐक भी पत्ती नही बचती है तो क्या उस पेड़ का अंत हो जाता है? नही। वो पेड़ हार नही मानता नए जीवन और बहार के आश मे खड़ा रहता है। और जल्द ही उसमे नयी पत्तियाँ आनी शुरू हो जाती है, उसके जीवन मे फिर से बहार आ जाती है। यही प्रकृति का नियम है। ठीक ऐसे ही अगर हमारे जीवन मे कुछ ऐसे destructive पल आते है तो इसका मतलब अंत नही बल्की ये इस बात का इशारा है कि हमारे जीवन मे भी नयी बहार आयगी। अत: हमे सबकुछ भूलकर नयी जिन्दगी की शुरूआत करनी चाहिये। और ये विश्वास रखना चाहिए कि नयी जिन्दगी पुरानी से कही बेहतर होगी।

2) कमल किचड़ मे भी रहकर अपना अलग पहचान बनाता है :

ये मेरी favorite line है। यही बात मुझे बुराई के बीच रहकर भी अच्छा करने के लिये प्ररित करती है। जिस तरह कमल कीचड़ मे रहकर भी अपने अंदर कीचड़ वाले गुण विकसित नही होने देता है उसी तरह चाहे हमारे आस-पास कितनी ही बुराईयाँ हो पर उसे अपने अंदर पनपने नही देना चाहिये। हमे अपना अलग पहचान बनाना चाहिये।

3) नदी का बहाव ऊँचाई से नीचे की ओर होता है :

जिस तरह से नदी मे पानी का बहाव ऊँचे level से नीचे level की ओर ही होता है उसी तरह हमारी जिन्दगी मे भी प्रेम भाव का प्रवाह बड़े से छोटे की ओर होता है इसलिये हमे कभी भी अपने आप को दूसरो के सामने ज्ञानवान या बड़ा बताने की जरूरत नही है और इससे कोई फायदा भी तो नही है उल्टा प्रेम भाव हम तक बहकर नही आयेगा।

4) ऊँचे पर्वतों मे आवाज का परावर्तन:

जब कोई पर्वत की ऊँची चोटी से जोर से आवाज लगाता है तो वही आवाज वापस लौटकर उसी को सुनाई देती है । विज्ञान मे इस घटना को echo कहते है पर यही नियम हमारे जीवन मे भी लागू होता है। हम वही पाते है जो हम दूसरो को देते है। हम जैसा व्यवहार दूसरो के लिये करते है वही हमे वापस मिलता है यदि हम दूसरो का सम्मान करते है तो हमे भी सम्मान मिलेगा। यदि हम दूसरो के बारे मे गलत भाव रखेँगे तो वो वापस हमे ही मिलेगा। अत: आप जैसा भी व्यवहार करे याद रखिये कि वो लौटकर आपको ही मिलने वाला है।

5) छोटे पौधो के अपेक्षा विशाल पेड़ को तैयार होने मे ज्यादा समय लगता है:

जिस तरह विशाल पेड़ को तैयार होने मे ज्यादा समय लगता है उसी तरह हमारे महान लक्ष्य को भी पूरा होने मे समय लगता है। लेकिन कुछ लोग धैर्य नही रख पाते और अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है। ऐसा करने वाले को बाद मे पछतावा ही मिलता है। So, बड़े लक्ष्य मे सफलता के लिये कड़ी मेहनत के अलावा धैर्य की भी आवश्यकता होती है।

दोस्तों , आइये हम भी प्रकृति से मिली इन सीखों को अपनी लाइफ में follow करें और एक बेहतर दुनिया का निर्माण करें...

Saturday, 6 July 2013

07.07.13


वृंदावन में एक कथा प्रचलित है कि एक गरीब
ब्राह्मण बांके बिहारी का परम भक्त था।
एक बार उसने एक महाजन से कुछ रुपये उधार लिए।
हर महीने उसे थोड़ा- थोड़ा करके वह
चुकता करता था। जब अंतिम किस्त रह गई तब
महाजन ने उसे अदालती नोटिस
भिजवा दिया कि अभी तक उसने उधार
चुकता नहीं किया है, इसलिए पूरी रकम मय व्याज
वापस करे।
ब्राह्मण परेशान हो गया। महाजन के पास जा कर
उसने बहुत सफाई दी, अनुनय-विनय किया, लेकिन
महाजन अपने दावे से टस से मस नहीं हुआ।
मामला कोर्ट में पहुंचा।कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज
से वही बात कही,
मैंने सारा पैसा चुका दिया है। महाजन झूठ बोल
रहा है।
जज ने पूछा, कोई गवाह है जिसके सामने तुम
महाजन को पैसा देते थे।
कुछ सोच कर उसने कहा,
हां, मेरी तरफ से गवाही बांके बिहारी देंगे।
अदालत ने गवाह का पता पूछा तो ब्राह्मण ने
बताया, बांके बिहारी, वल्द वासुदेव, बांके
बिहारी मंदिर, वृंदावन।
उक्त पते पर सम्मन जारी कर दिया गया।
पुजारी ने सम्मन को मूर्ति के सामने रख कर कहा,
भगवन, आप को गवाही देने कचहरी जाना है।
गवाही के दिन सचमुच एक बूढ़ा आदमी जज के
सामने खड़ा हो कर बता गया कि पैसे देते समय मैं
साथ होता था और फलां- फलां तारीख को रकम
वापस की गई थी।
जज ने सेठ का बही- खाता देखातो गवाही सच
निकली। रकम दर्ज थी, नाम
फर्जी डाला गया था।जज ने ब्राह्मण को निर्दोष
करार दिया। लेकिन उसके मन में यह उथल पुथल
मची रही कि आखिर वह गवाह था कौन।
उसने ब्राह्मण से पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि वह
तो सर्वत्र रहता है, गरीबों की मदद के लिए अपने
आप आता है।
इस घटना ने जज को इतना उद्वेलित किया कि वह
इस्तीफा देकर, घर-परिवार छोड़ कर फकीर बन
गया।
बहुत साल बाद वह वृंदावन लौट कर आया पागल
बाबा के नाम से।
आज भी वहां पागल बाबा का बनवाया हुआ
बिहारी जी का एक मंदिर है।...
बोल वृंदावन बिहारी लाल की जय..

Friday, 5 July 2013

06.07.13


एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे कोई मछ्वारा बैठा हुआ था,
वो छाया के नीचे बैठे अपनी बीड़ी पी रहा था.तभी वहां से एक अमीर
आदमी गुज़रा. उसने मछवारे से पूछा की वो पेड़ के नीचे बैठकर
बीड़ी पीते हुए अपना time waste क्यों कर रहा हैं. इसके जवाब में
मछवारे ने कहा की वो पर्याप्त मछलियाँ पकड़ चूका हैं. और अब
आराम कर रहा हैं. अमीर आदमी ने ये सुनते ही बोहै चड़ा लीं. उसे
बहुत गुस्सा आया. उसने कहा की : तुम आराम से बैठने के बजाय और
मछलियाँ क्यों नहीं पकड़ लेते.
मछवारे ने पूछा : मैं और मछलियाँ पकड़ के क्या करूँगा?
अमीर आदमी : तुम ज्यादा मछलियाँ पकड़ कर, उन्हें बेचकर
ज्यादा पैसे कमा पाओगे, और एक बड़ी बोट खरीद सकोगे.
मछ्वारा : उसके बाद में क्या करूँगा?
अमीर आदमी : तुम गहरे समुद्र में बोट ले जा सकोगे, फिर और
भी ज्यादा मछलियाँ पकड़ सकोगे. फिर ज्यादा पैसे
कमा पाओगे.
मछ्वारा : और उसके बाद में क्या करूँगा?
अमीर आदमी : तुम बहुत सारी boats खरीद सकोगे और बहुत सारे
लोगों को नौकरी दे पाओगे. फिर और भी ज्यादा पैसे
कमाओगे.
मछ्वारा : और उसके बाद में क्या करूँगा?
अमीर आदमी : अरे तुम मेरी तरह एक बहुत अमीर आदमी बन जाओगे.
मछ्वारा : अच्छा उससे क्या होगा?
अमीर आदमी : फिर तुम अपनी जिंदगी शांति और ख़ुशी से
कट पाओगे.
मछ्वारा : क्या मैं अभी ये नहीं कर रहा हूँ? मैं
तो अभी भी शांति से जी रहा हूँ. और खुश भी हूँ.
Moral: आपको खुश रहने के लिए कल की राह देखने
की आवश्यकता नहीं हैं. और ज्यादा अमीर बनने की भी नहीं, न
ही अधिक शक्तिशाली बनने की. जिंदगी अभी हैं, इसे
अभी जिए.

Thursday, 4 July 2013

05.07.13


आस्था एवं संस्कार

एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी . अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया .
जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा -
“बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे , तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है , इसे बेचना नहीं है.”
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले
उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली.
” अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे
क्या दे सकती हो ?” , युवक ने पूछा. ” देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो…तौलने के काम आएगा.”- सब्जी वाली बोली. युवक आगे बढ़ गया. इस बार वो एक
दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर
की कीमत जानना चाही . दुकानदार बोला ,” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे
सकता हूँ..देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़
जाओ.”
युवक इस बार एक सुनार के पास गया ,
सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की, फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला. और अंत में युवक शहर के सबसे बड़े हीरा विशेषज्ञ के
पास पहुंचा और बोला, ” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें .” विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला ,” यह तो एक अमूल्य हीरा है , करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है.” मित्रों , यदि हम गहराई से सोचें
तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन
भी है . यह अलग बात है कि हममें से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझा तुच्छ कामो में लगा देते हैं.
आइये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें ।

Wednesday, 3 July 2013

04.07.13


काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके
एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’
संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’
बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से
कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।’
शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट
आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे
हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांप है।’
संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से
आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप
होगा तो भाग जाएगा।’ शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने
मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह
डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला, ‘सांप वहां से
जा नहीं रहा है।’ संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप
होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’
शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप
नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण
उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर
शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे
में मैंने उसे सांप समझ लिया था।’ संत ने कहा, ‘वत्स,
इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है।
ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है
लेकिन अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रम जाल पाल लेते हैं
और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह
आंतरिक दीपक का प्रकाश संतों और ज्ञानियों के सत्संग
से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश
प्रज्वलित नहीं होगा, लोगबाग भ्रमजाल से
मुक्ति नहीं पा सकते।

Tuesday, 2 July 2013

03.07.13


श्री कृष्ण का माता यशोदा से प्रेम

एक बार रुक्मणि आदि रानियों ने पूँछा प्रभु आप व्रज
को, नन्दबाबा और यशोदा मईया को जितना प्रेम
करते है वैसा प्रेम हमने और किसी के लिए नहीं देखा.
भगवान कृष्ण ने उस समय तो कुछ नहीं कहा सुबह हुई
तो भगवान कृष्ण रानियों से बोले -कल रात को तुम मै से
किसी ने मुझे दूध नहीं दिया. तुम सब जानती हो मै दूध
पीकर ही सोता हूँ.
इस पर रानियाँ बोली - प्रभु! हमें याद था परन्तु आप
जल्दी सो गए थे, आपको जगाना उचित
नहीं समझा इसलिए नहीं दिया. प्रभु बोले
जानती हो जब कभी मै वृंदावन में बिना दूध पिए
सो जाता था तब मेरी यशोदा माँ दूध लेकर मेरे
सिरहाने सारी रात
खड़ी रहती थी कि लाला अभी सो गया तो कोई बात
नहीं, रात में यदि लाला कि नीद खुली तो मै उसे
पिला दुंगी.और जब रात्रि में मेरी कभी नीद
खुलती थी तो माँ को सिरहाने खड़ा पाता था. कल तुम
सब ने पूंछा था न बस इसलिए मै मईया यशोदा को हर
पल याद करता हूँ.

Monday, 1 July 2013

02.07.13


एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था.
उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली. उसने निश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…पर घंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली.
अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा…और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी.
किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?”
लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया औरचुप-चाप बैठ गया, और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाईदे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.”
Friends, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें life की ज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है . हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जसमे हम बिलकुल अकेले हों , जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम life को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे .