Saturday 13 July 2013

14.07.13


राजा भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्यण रहता था !एक दिन गरीबी से परेशान होकर उसने राजभवन में चोरी करने का निश्चय कर लिया !जब रात में वह वहां पहुंचा तो सभी लोग सो रहे थे !सिपाहियों की नजरों से बचते हुए वह राजा के कक्ष तक पहुंच गया !स्वर्ण रत्न बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे किंतु वह जो भी वस्तु उठाने का विचार करता उसका शास्त्र ज्ञान उसे रोक देता !ब्राह्यण ने जैसे ही स्वर्ण राशि उठाने का विचार किया ;मन में स्थित शास्त्र ने कहा -स्वर्ण चोर नरकगामी होता है !जो भी वह लेना चाहता उसी की चोरी को पाप बताने वाले शास्त्रीय वाक्य उसकी स्मृति में जाग उठते !रात बीत गई पर वह चोरी नहीं कर पाया !सुबह पकड़े जाने के भय से ब्राह्यण राजा के पलंग के नीचे छिप गया !महाराज के जागने पर रानियां व दासियां उसके अभिवादन हेतु प्रस्तुत हुई !राजा भोज के मुंह से किसी श्लोक की तीन पंक्तियां निकली पर अचानक वे रुक गये शायद चौथी पंक्ति उन्हें याद नहीं आ रही थी !विद्वान ब्राह्यण से रहा नहीं गया ;चौथी पंक्ति उसने पूर्ण कर दी !महाराज चौंक गये और ब्राह्यण को पलंग के नीचे से बाहर निकलने को कहा !जब ब्राह्यण से राजा भोज ने चोरी न करने का कारण पूछा तो वह बोला -राजन् मेरा शास्त्र ज्ञान मुझे रोकता रहा ;उसी ने मेरी धर्म रक्षा की !राजा बोले -सत्य है कि ज्ञान उचित-अनुचित का बोध कराता है !जिसका धर्म-संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है !राजा भोज ने ब्राह्यण को प्रचुर धन देकर सदा के लिये उसकी निर्धनता दूर की दी

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