Saturday, 30 November 2013

01-12-13


एक संन्यासी एक राजा के पास पहुंचे। राजा ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। संन्यासी कुछ दिन वहीं रुक गए। राजा ने उनसे कई विषयों पर चर्चा की और अपनी जिज्ञासा सामने रखी। संन्यासी ने विस्तार से उनका उत्तर दिया। जाते समय संन्यासी ने राजा से अपने लिए उपहार मांगा।

राजा ने एक पल सोचा और कहा, 'जो कुछ भी खजाने में है, आप ले सकते हैं।' संन्यासी ने उत्तर दिया, 'लेकिन खजाना तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तो राज्य का है और तुम मात्र उसके संरक्षक हो। ' राजा बोले, 'तो यह महल ले लीजिए।' इस पर संन्यासी ने कहा 'यह भी तो प्रजा का है।' इस पर राजा ने कहा, 'तो मेरा यह शरीर ले लीजिए।' संन्यासी ने उत्तर दिया, 'शरीर तो तुम्हारी संतान का है। मैं इसे कैसे ले सकता हूं?'

राजा ने हथियार डालते हुए कहा, 'तो महाराज आप ही बताएं कि ऐसा क्या है जो मेरा हो और आपको देने लायक हो?' संन्यासी ने उत्तर दिया, 'हे राजा, यदि तुम सच में मुझे कुछ देना चाहते हो, तो अपना अहं दे दो। अहंकार पराजय का द्वार है। यह यश का नाश करता है। यह खोखलेपन का परिचायक है। अहंकार का फल क्रोध है। अहंकार वह पाप है जिसमें व्यक्ति अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझता है। वह जिस किसी को अपने से सुखी-संपन्न देखता है, ईर्ष्या कर बैठता है। अहंकार वह विचार है कि मैं ही हूं इस पूरे ब्रह्मांड का केन्द्र। अहंकार हमें सभी से अलग कर देता है।
 
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Friday, 29 November 2013

30-11-13


एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे .

सन्यासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा ;

” क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?’

शिष्य कुछ देर सोचते रहे ,एक ने उत्तर दिया, ” क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”

” पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है , जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं “, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया .

कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए .

अंततः सन्यासी ने समझाया …

“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं . और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते ….वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.

क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं , क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं , उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”

सन्यासी ने बोलना जारी रखा ,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं , वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”

“प्रिय शिष्यों ; जब तुम किसी से बात करो तो ये ध्यान रखो की तुम्हारे ह्रदय आपस में दूर न होने पाएं , तुम ऐसे शब्द मत बोलो जिससे तुम्हारे बीच की दूरी बढे नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि तुम्हे लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा. इसलिए चर्चा करो, बात करो लेकिन चिल्लाओ मत.
 

Thursday, 28 November 2013

29-11-13


गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री मंत्र संक्षेप में
गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे
उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है.

इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है. हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं
आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं
हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त
कर सकें क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के
गुणों की व्याख्या करते हैं

ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह,
सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि,
यो = जो,
नः = हमारी,
प्रचोदयात् = हमें
शक्ति दें (प्रार्थना) इस प्रकार से कहा जा सकता है कि गायत्री मंत्र में तीन
पहलूओं क वर्णं है - स्त्रोत, ध्यान और प्रार्थना.

Wednesday, 27 November 2013

28-11-13



एक आइसक्रीम वाला रोज एक मोहल्ले में आइसक्रीम बेचने जाया करता था , उस कालोनी में सारे पैसे वाले लोग रहा करते थे . लेकिन वह एक परिवार ऐसा भी था जो आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उनका एक चार साल का बेटा था जो हर दिन खिड़की से उस आइसक्रीम वाले को ललचाई नजरो से देखा करता था. आइसक्रीम वाला भी उसे पहचानने लगा था . लेकिन कभी वो लड़का घर से बाहर नहीं आया आइसक्रीम खाने .
एक दिन उस आइसक्रीम वाले का मन नहीं माना तो वो खिड़की के पास जाकर उस बच्चे से बोला ,
" बेटा क्या आपको आइसक्रीम अच्छी नहीं लगती. आप कभी मेरी आइसक्रीम नहीं खरीदते ? "
उस चार साल के बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा ,
" मुझे आइसक्रीम बहुत पसंद हे . पर माँ के पास पैसे नहीं हे "
उस आइसक्रीम वाले को यह सूनकर उस बच्चे पर बड़ा प्यार आया . उसने कहा ,
" बेटा तुम मुझसे रोज आइसक्रीम ले लिया करो. मुझसे तुमसे पैसे नहीं चाहिए "
वो बच्चा बहुत समझदार निकला . बहुत सहज भाव से बोला ,
" नहीं ले सकता , माँ ने कहा हे किसी से मुफ्त में कुछ लेना गन्दी बात होती हे , इसलिए में कुछ दिए बिना आइसक्रीम नहीं ले सकता "
वो आइसक्रीम वाला बच्चे के मुह से इतनी गहरी बात सूनकर आश्चर्यचकित रह गया . फिर उसने कहा ,
" तुम मुझे आइसक्रीम के बदले में रोज एक पप्पी दे दिया करो . इस तरह मुझे आइसक्रीम की कीमत मिल जाया करेगी "
बच्चा ये सुकर बहुत खुश हुआ वो दौड़कर घर से बाहर आया . आइसक्रीम वाले ने उसे एक आइसक्रीम दी और बदले में उस बच्चे ने उस आइसक्रीम वाले के गालो पर एक पप्पी दी और खुश होकर घर के अन्दर भाग गया .
अब तो रोज का यही सिलसिला हो गया. वो आइसक्रीम वाला रोज आता और एक पप्पी के बदले उस बच्चे को आइसक्रीम दे जाता .
करीब एक महीने तक यही चलता रहा . लेकिन उसके बाद उस बच्चे ने अचानक से आना बंद कर दिया . अब वो खिड़की पर भी नजर नहीं आता था .
जब कुछ दिन हो गए तो आइसक्रीम वाले का मन नहीं मन और वो उस घर पर पहुच गया . दरवाजा उस बालक की माँ ने खोला . आइसक्रीम वाले ने उत्सुकता से उस बच्चे के बारे में पूछा तो उसकी माँ ने कहा ,
" देखिये भाई साहब हम गरीब लोग हे . हमारे पास इतना पैसा नहीं के अपने बच्चे को रोज आइसक्रीम खिला सके . आप उसे रोज मुफ्त में आइसक्रीम खिलाते रहे. जिस दिन मुझे ये बात पता चली तो मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई .आप एक अच्छे इंसान हे लेकिन में अपने बेटे को मुफ्त में आइसक्रीम खाने नहीं दे सकती . "
बच्चे की माँ की बाते सूनकर उस आइसक्रीम वाले ने जो उत्तर दिया वो आप सब के लिए सोचने का कारण बन सकता हे ,
" बहनजी , कौन कहता हे की में उसे मुफ्त में आइसक्रीम खिलाता था . में इतना दयालु या उपकार करने वाला नहीं हु में व्यापार करता हु . और आपके बेटे से जो मुझे मिला वो उस आइसक्रीम की कीमत से कही अधिक मूल्यवान था . और कम मूल्य की वास्तु का अधिक मूल्य वसूल करना ही व्यापार हे ,
एक बच्चे का निश्छल प्रेम पा लेना सोने चांदी के सिक्के पा लेने से कही अधिक मूल्यवान हे . आपने अपने बेटे को बहुत अच्छे संस्कार दिए हे लेकिन में आपसे पूछता हु क्या प्रेम का कोई मूल्य नहीं होता ?"
उस आइसक्रीम वाले के अर्थपूर्ण शब्द सूनकर बालक की माँ की आँखे भीग गयी उन्होंने बालक को पुकारा तो वो दौड़कर आ गया . माँ का इशारा पाते ही बालक दौड़कर आइसक्रीम वाले से लिपट गया . आइसक्रीम वाले ने बालक को गोद में उठा लिया और बाहर जाते हुए कहने लगा ,
" तुम्हारे लिए आज चोकलेट आइसक्रीम लाया हु . तुझे बहुत पसंद हे न ?"
बच्चा उत्साह से बोला ,
" हां बहुत "
बालक की माँ ख़ुशी से रो पड़ती है

Tuesday, 26 November 2013

27-11-13


एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी.

मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,

यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.” ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”

मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब
उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था.

मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर
समझा . बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .

चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.”
और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.

दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है.
हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता.

Monday, 25 November 2013

26-11-13


"स्वार्थ का बोझ"
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एक आदमी अपने सिर पर अपने खाने के लिए अनाज की गठरी ले कर जा रहा था।
दूसरे आदमी के सिर पर उससे चार गुनी बड़ी गठरी थी।
लेकिन पहला आदमी गठरी के बोझ से दबा जा रहा था, जबकि दूसरा मस्ती से गीत गाता जा रहा था।
पहले ने दूसरे से पूछा, "क्योंजी! क्या आपको बोझ नहीं लगता?"
दूसरे वाले ने कहा, "तुम्हारे सिर पर अपने खाने का बोझ है,
मेरे सिर पर परिवार को खिलाकर खाने का।
स्वार्थ के बोझ से स्नेह समर्पण का बोझ सदैव हल्का होता है।"
स्वार्थी मनुष्य अपनी तृष्णाओं और अपेक्षाओं के बोझ से बोझिल रहता है। जबकि परोपकारी अपनी चिंता त्याग कर संकल्प विकल्पों से मुक्त रहता है। —

Sunday, 24 November 2013

25-11-13


एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिय भक्त कौन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भक्त नारद मुनि की बात, और मुस्कुरा कर बोले ! मेरा सब से प्रिय भक्त उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप का बडा भक्त तो मै हूँ, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही??

भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उस ने सब से पहले अपने जानवरो को चारा वगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ धोऎ, देनिक कार्यो से निवृत्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया और शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पाँव धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बैठ कर खान...ा खाया, कुछ बाते की और फ़िर सो गया.

अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, और बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का ध्यान किया, और मैं तो चौबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का सबसे प्रिय भक्त वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा, अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना.

और भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिक्रमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भक्ति और पुण्य नष्ट हो जायेगे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मैंने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा और इस दौरान तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.

भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमित रुप से मेरा स्मरण करता है, क्योकि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिय भक्त हुआ, तुम तो सारा दिन खाली बैठे जप करते हो, और जब तुम्हे कर्म दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है|

Saturday, 23 November 2013

24-11-13


चाय का प्याला

कल्लू चाय के घूँट ले रहा था. कल्लू का पूरा नाम कालूराम है. काम, वह् सब काम कर लेता है, जो आम आदमी नहीं कर पाता है. मकान पर कब्जा करना हो, मकान खाली करवाना हो, चुनाव जीतना या हरवाना, मारा पीटी आदि. कल्लू कोई भी काम कर सकता है बस काम का दाम चुका दो. चाय बढ़िया थी और चाय की चुस्की लेते लेते कल्लू पुरानी यादों में खो गया.

कल्लू शहर के पास के ही एक गाँव का रहने वाला है. गरीब माता पिता की संतान. 8-10 साल की उम्र में ही पिता ने गाँव के ही एक साहूकार के घर पर दिन भर के लिए काम पर रखवा दिया था. महीने की पगार के साथ सुबह की चाय और दोपहर का खाना. सुबह 7 बजे से कल्लू की नौकरी चालू हो जाती. साहूकार के घर में उनकी पत्नी चाय बनाती. घर के सभी लोगों को चाय देने के पश्चात जरा सी चाय में और पानी डाल कर, उबाल कर, छान कर कल्लू को दे देती. शुरू शुरू में तो कल्लू कुछ समझ नहीं पाया पर बाद में उसे यह सब बहुत ही बुरा लगने लगा. दोपहर के भोजन में भी उसे बचा खुचा या बासा खाना खाने को मिलता वह् भी पेट भर नहीं. सभी बच्चे स्कूल जाते और यह सब देख् कर कल्लू की भी इच्छा स्कूल जाने की होती पर मन मसोस कर रह जाता.

दिन गुजरते गए और कल्लू जवान हो गया. उसे साहूकार की नौकरी अब अच्छी नहीं लगती पर पिता की आर्थिक स्थिति को देखकर चुप रहता. एक दिन साहूकार की जवान बेटी से 5-10 मिनट बात क्या कर ली, तूफान आ गया. पता नहीं साहूकार और उसकी पत्नी ने क्या क्या बोला. वह् साहूकार की बेटी, जिसे उसने बड़ा होते देखा था, को अपनी बहिन मानता था. उसके बाद कल्लू वापस साहुकार के घर दुबारा नहीं गया. साहूकार का बुलावा आया. पिता ने भी जोर डाला.पर कल्लू का मन खट्टा हो गया.

कल्लू भाग कर वह् शहर आ गया. शरीर से बलिष्ट, अच्छी कद काठी और साँवला रंग. हम्माली करने लगा. मेहनती था और दिमाग का होशियार भी. धीरे धीरे जिसमे पैसा मिले वह् सभी काम करने लगा. अच्छा पैसा बना लिया. मकान, कार, सुख सुविधा की सभी सामग्री जुटा ली. गाँव से परिवार को बुला लिया, शादी कर ली और बच्चे शहर के अच्छे स्कूल में शिक्षा पाने लगे.

सब कुछ होने के बाद भी कल्लू के मन में हमेशा एक दर्द रहता है कि काश उसे भी साहूकार के घर में अच्छा माहौल मिला होता तो वह् भी पढ़ लिख कर अच्छा काम कर रहा होता.

Friday, 22 November 2013

23-11-13


एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है।

* एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है।

* एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है।

* जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है।

* एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है।

* रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं।

* एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है।

* एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है।

* गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है।

* एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।
एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। त्‍वचा की देखभाल से लेकर बालों की खूबसूरती तक और घावों को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक में इस चमत्‍कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। एलोवेरा विटामिन ए और विटामिन सी का बड़ा स्रोत है। * एलोवेरा का जूस नियमित पीने वाला व्‍यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता है। * एलोवेरा जूस के सेवन से पेट के रोग जैसे वायु, अल्सर, अम्‍लपित्‍त आदि की शिकायतें दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कोई औषधि नहीं है। * जोडों के दर्द और रक्त शोधक के रूप में भी एलोवेरा बेजोड़ है। * एलोवेरा बालों की कुदरती खूबसूरती बनाए रखता है। यह बालों को असमय टूटने और सफेद होने से बचाता है। * रोज सोने से पहले एड़ियों पर एलोवेरा जेल की मालिश करने से एड़ियां नहीं फटती हैं। * एलोवेरा त्वचा की नमी को बनाए रखता है। * एलोवेरा त्वचा को जरूरी मॉश्चयर देता है। * गर्मियों में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। एलोवेरा वाले मोश्‍चराइजर व सनस्‍क्रीन का उपयोग त्‍वचा के सनबर्न को समाप्‍त करता है। * एलोवेरा एक बेहतरीन स्किन टोनर है। एलोवेरा फेशवॉश से त्‍वचा की नियमित सफाई से त्‍वचा से अतिरिक्‍त तेल निकल जाता है, जो पिंपल्‍स यानी कील-मुहांसे को पनपने ही नहीं देता है।

Thursday, 21 November 2013

22-13-13


एक बार एक गाँव की सीमा पर एक घोड़े पर सवार यात्री पहुंचा. वहां खेत में काम कर रहे किसान को देखकर उसने पूछा, ‘भाई, यह गाँव कैसा है ? मुझे बहुत दूर तक जाना है इसलिए कुछ दिनों के लिए मैं यहाँ रुकना चाहता हूँ. ‘ किसान ने यात्री से पूछा, ‘ आप यहाँ से पहले जहाँ से आये हैं वह जगह कैसी थी ? ‘

यात्री ने उत्तर दिया, ‘ इससे पहले मैं एक गाँव में ही था. वहां के लोग बड़े ही झगड़ालू थे. बात-बात में लड़ना उनकी आदत थी. इसलिए मैं वहां ज्यादा समय के लिए नहीं रुक सका. ‘

किसान ने कहा , ‘मेरी सलाह है आपको कि आप यहाँ भी ना रुके क्योंकि यहाँ के लोग तो और भी ज्यादा बुरे हैं. ‘ यात्री यह सुनकर तुरंत वहां से चला गया. उसके जाने के कुछ समय पश्चात एक और यात्री वहां आया. उसने भी किसान से यही पूछा , ‘यह गाँव कैसा है ? क्या मैं यहाँ रुक सकता हूँ ? ‘ किसान ने उससे भी यही पूछा कि आप जिस जगह से आये हैं वह जगह कैसी थी ? यात्री ने कहा , ‘वह गाँव और वहां के लोग बहुत अच्छे थे. अगर मुझे आगे ना जाना होता तो मैं वहीं रुक जाता. मुझे दूर तक जाना है इसलिए बीच में रुकना चाहता हूँ. ‘ किसान तुरंत बोला, ‘ मित्र आपका इस गाँव में स्वागत है. यहाँ के लोग और भी ज्यादा अच्छे हैं. आप यहाँ रुक सकते हैं. ‘

पास ही के खेत में एक और किसान काम कर रहा था. उसने पहले किसान से पूछा, ‘भाई, तुमने पहले यात्री को तो गाँव के लोगों का बर्ताव बुरा बताया और दुसरे को अच्छा. ऐसा क्यों ? पहले किसान ने उत्तर दिया, ‘ भाई, पहला यात्री नफरत लेकर आया था इसलिए वह जहाँ भी जाएगा नफरत ही फैलाएगा. दूसरा अपने साथ प्रेम लेकर आया था इसलिए जहाँ भी जाएगा और रहेगा हमेशा प्रेम ही देगा. अगर पहला यात्री यहाँ रुकता तो उसका हमारे गाँव पर बुरा प्रभाव पड़ता इसलिए मैं नहीं चाहता था कि वह यहाँ रुके.

दूसरा किसान पहले की बात से सहमत हो अपने काम में लग गया.

Wednesday, 20 November 2013

21-11-13


क्रोध पर विजय
एक व्यक्ति के बारे में यह विख्यात था कि उसको कभी क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ बुरी बातें ही सूझती हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में से एक ने निश्चय किया कि उस अक्रोधी सज्जन को पथच्युत किया जाये और वह लग गया अपने काम में। उसने इस प्रकार के लोगों की एक टोली बना ली और उस सज्जन के नौकर से कहा – “यदि तुम अपने स्वामी को उत्तेजित कर सको तो तुम्हें पुरस्कार दिया जायेगा।” नौकर तैयार हो गया। वह जानता था कि उसके स्वामी को सिकुडा हुआ बिस्तर तनिक भी अच्छा नहीं लगता है। अत: उसने उस रात बिस्तर ठीक ही नहीं किया।

प्रात: काल होने पर स्वामी ने नौकर से केवल इतना कहा – “कल बिस्तर ठीक था।”

सेवक ने बहाना बना दिया और कहा – “मैं ठीक करना भूल गया था।”

भूल तो नौकर ने की नहीं थी, अत: सुधरती कैसे? इसलिये दूसरे, तीसरे और चौथे दिन भी बिस्तर ठीक नहीं बिछा।

तब स्वामी ने नौकर से कहा – “लगता है कि तुम बिस्तर ठीक करने के काम से ऊब गये हो और चाहते हो कि मेरा यह स्वभाव छूट जाये। कोई बात नहीं। अब मुझे सिकुडे हुए बिस्तर पर सोने की आदत पडती जा रही है।”

अब तो नौकर ने ही नहीं बल्कि उन धूर्तों ने भी हार मान ली।


Tuesday, 19 November 2013

20-11-13


कड़वा है पर सच है !"

एक हलवाई बहुत सी मिठाइयों को सजाए दुकान पर बैठा था ,की तभी कहीं से एक मक्खी उड़कर आई और मिठाई पर बैठ गई ! हलवाई को बुरा लगा और पंखा लेकर मक्खी को झटके से उड़ा दिया ,थोड़ी देर बाद वह फिर आ बैठी तो हलवाई ने फिर झटक कर उड़ा दिया , मिठाई खुले में जो रखी थी इसलिए और चार-पाँच मक्खियाँ आकर्षक दिखने वाली मिठाइयों पर आ बैठीं, अब हलवाई ने सोचा इस तरह तो मिठाइयों का कबाड़ा हो जाएगा, और हलवाई ने एक पतला प्लास्टिक का पैमाना लेकर एक-एक मक्खी को मारना शुरू कर दिया ये सोचकर की अब सब कुछ ठीक हो जाएगा,एक,दो,तीन ,चार इस तरह पंद्रह-बीस मक्खियाँ मरने के बाद हलवाई ने सोचा की अब हालत काबू मे आ जाएँगे पर ये क्या खुली मिठाइयों के महक और आकर्षण ने कुछ और मक्खियों और कीड़ों को आकर्षित कर दिया और लगे मंडराने मिठाइयों पर अब हलवाई माथा पकड़ कर बैठ गया की हे भगवान ये हालात कैसे सुधरेंगे ? कैसे मैं अपनी कीमती मिठाइयों को सुरक्षित रख सकता हूँ ?
"इस तरह एक-एक मक्खी को मार कर कोई हल नही निकल रहा ,तभी उधर से गुज़रते हुए एक महात्मा ने हलवाई की दशा को समझा और कहा की बालक समस्या इन मक्खियों में नही तुम्हारी खुली और बेतरतीब रखी मिठाइयों में है इसलिए बजाए एक-एक मक्खी को मारने के तुम अपनी मिठाइयों को सुरक्षित करने के लिए सबसे पहले उन्हे शीशे के संदूक में या साफ-सुथरे कपड़े से ढक दो जो बेवजह मक्खियों को अपनी महक और क्षणिक आकर्षण से उत्तेजित कर रही हैं इस तरह समस्या आधी से ज़्यादा ही ख़त्म हो जाएगी !"

अब इस सिद्धांत को आधुनिक हालात से जोड़कर देखते हैं और अपने आप से एक प्रश्न करते हैं की कहीं हमारी और हमारे प्रशासन क़ी दशा उस हलवाई की तरह तो नही जो किसी विकृत हो चुकी मानसिकता वाले अपराधी को मक्खी समझ फाँसी पर चढ़वा कर ये सोचते हैं की अब हालात सुधर जाएँगे तो ये हमारी भूल है ! क्योंकि इस तरह केवल विकृत ख़त्म होगा ,विकृति नही !"

Monday, 18 November 2013

19-11-13


हर बात सोचने की तो होती है, पर हर बात कहने की नहीं होती। इसलिए व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए शब्दों का चयन हमेशा सावधानी से करें। बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्धू बोलकर सोचता है और इससे अधिक फर्क नहीं है, बुद्धिमान और बुद्धू में। इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानी से करें। सतर्कतापूर्वक करें और सोच-समझ कर बोले।

जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं, लेकिन जीभ का अगर गलत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दांत) भी संकट में पड़ जाएंगे।

यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए गलत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें, लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे।

एक समय की बात है। एक किसान ने अपने पड़ोसी की खूब निंदा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला- 'मैंने अपने पड़ोसी की निंदा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूं?'

पादरी ने वहां बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिए और कहा कि शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।'

किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया।

पादरी ने कहा- 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है, वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है। जिस प्रकार एक बार कमान से निकला तीर वापस कमान में नहीं लौटता, ठीक उसी प्रकार एक बार मुंह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं लौटाए जा सकते।'

Sunday, 17 November 2013

18-11-13


Nationalized banks & their Head Quarters

Allahabad Bank—Kolkata
Bank of India—Mumbai
Bank of Maharashtra— Pune
Canara Bank— Bangalore
Central Bank of India—Mumbai
Corporation Bank—Mangalore
Dena Bank—Mumbai
Indian Bank—Chennai
Indian Overseas Bank—Chennai
Oriental Bank of Commerce—New Delhi
Punjab National Bank—New Delhi
Punjab & Sind Bank— New Delhi
Syndicate Bank—Manipal
UCO Bank—Kolkata
Union Bank of India—Mumbai
United Bank of India— Kolkata
Vijaya Bank—Bangalore
Andhra Bank—Hyderabad
Bank of Baroda— Vadodara

Saturday, 16 November 2013

17-11-13


आहार और आचरण

सेठ कर्मचंद पिछले पन्द्रह दिनों से अपने आप को बड़ा असहज महसूस कर रहे थे. अपनी मानसिक उलझन को उन्होंने सेठानी को भी बताया परन्तु सेठानी सेठ जी की उलझन दूर करने मे कोई मदद नहीं कर पा रही थी. उलझन का कारण था, लगभग प्रत्येक रात मे स्वप्न मे वे भिन्न-भिन्न बस्तियों मे छोटी संकरी गलियों मे अपने लिए एक अलग छोटे से मकान की तलाश मे भ्रमण करते थे. चूंकि सेठ जी विरासत मे प्राप्त एक बहुत सुंदर और बड़ी हवेली मे रहते थे, ऐसे मे, सेठ जी को अपने लिए एक मकान की भला क्यों कर आवश्यकता होगी?

शुरू मे पांच सात दिन उन्होंने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया क्योंकि दिन मे अपने कारोबार मे बहुत व्यस्त रहते थे परन्तु जब यही सिलसिला लम्बा चला तो सेठ जी परेशान रहने लगे. यह कोई बीमारी भी नहीं थी की किसी चिकित्सक से उसका इलाज कराते. अतः उस मनोदशा को सहने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

उनके यहाँ भोजन बाहर से आने वाली एक माई बनाया करती थी.वह अपने जिस मकान मे गुजर बसर करती आ रही थी वह मकान मजबूरन उसे छोडना पड़ रहा था. वह कम से फारिग होकर रोज मकान की तलाश मे शहर के गली मोहल्लों मे भटकती फिरती थी. मकान खाली करने के लिए दिया गया एक मास का समय उसका पूरा होने को था. रोज रोज की किल्लत से बचने के लिए वह हैसियत न होते हुए भी छोटा-मोटा पुराना मकान खरीद लेना चाहती थी. वह सेठ जी के यहाँ पिछले बीसियों सालों से सेवा करते हुए विश्वासपात्र बन चुकी थी. अंत मे एक मकान उसे जब जंच गया तो उसने अपने साहुकार सेठ कर्मचंद से २५ हजार रूपया देने की प्रार्थना की. सेठ जी ने किसी प्रकार की हील हुज्जत न करते हुए माई को २५ हजार रूपये दे दिए. माई ने मकान ले लिया. मकान के लिए उसका भटकना बंद हो गया तो सेठ जी को वह स्वप्न आना भी बंद हो गया.

भावार्थ यह की भोजन बनाने वाले की मानसिक स्थिति भोजन करने वाले पर अपना प्रभाव डालती है.

 

Friday, 15 November 2013

16-11-13


एक बुजुर्ग व्यक्ति काफी दूर से लकड़ियों का गट्ठर अपने
सिरपर लादे चला आ रहा था। वह बुरी तरह थक
चुका था।
जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने अपने बोझ को जमीन
पर फेंक दिया और मृत्यु को इस दर्द से निजात दिलाने के
लिए पुकारा।
अगले ही पल मृत्यु उसके समक्ष आ खड़ी हुयी और पूछने
लगी कि वह क्या चाहता है?
बुजुर्ग व्यक्ति बोला - "मुझ पर सिर्फ इतनी कृपा करें
कि यह लकड़ी का गट्ठर फिर से मेरे सिर पर रखने में
सहायता कर दें।"
" जीवन अत्यंत प्रिय होता है। हताशा में मृत्यु
को पुकारना तो आसान है परंतु वास्तव में मृत्यु का वरण
करना बहुत कठिन है।?
/

Thursday, 14 November 2013

15-11-13


महात्मा नित्यानंद ने अपने शिष्यों को बाँस से
बनी बाल्टियां पकड़ाकर कहा :
जाओ, इन बाल्टियों में नदी से जल भर लाओ।
आश्रम में सफाई करनी है। नित्यानंद की इस
विचित्र आज्ञा को सुनकर सभी शिष्य
आश्चर्यचकित रह गए। भला बाँस से
बनी बाल्टियों में जल कैसे
लाया जा सकता था! फिर भी,सभी शिष्यों ने
बाल्टियां उठाईं और जल लेने नदी तट की ओर
चल दिए। वे जब बाल्टियां भरते, तो सारा जल
निकल जाता था।
अंतत: निराश होकर एक को छोड़कर
सभी शिष्य लौट आए और महात्मा नित्यानंद
से अपनी दुविधा बता दी। लेकिन, एक शिष्य
बराबर जल भरता रहा। जल रिस जाता,
तो पुन: भरने लगता। शाम होने तक वह
इसी प्रकार श्रम करता रहा। इसका परिणाम
यह हुआ कि बाँस की शलाकाएं फूल गईं और
छिद्र बंद हो गए। तब वह बड़ा प्रसन्न हुआ
और उस बाल्टी में जल भरकर गुरुजी के पास
पहुँचा। जल से भरी बाल्टी लाते देख
महात्मा नित्यानंद ने उसे शाबाशी दी और
अन्य शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा,..
" विवेक, धैर्य, निष्ठा व सतत् परिश्रम से दुर्गम
कार्य को भी सुगम बनाया जा सकता है।"

Wednesday, 13 November 2013

14-11-13


भाषाओं (Language) से सम्बन्धित रोचक जानकारी
*************************
1. हवायन (Hawaiian) वर्णामाला में केवल 12 अक्षर होते हैं।

2. उर्दू और अंग्रेजी दोनों के ही वर्णमालाओं में 26 अक्षर होते हैं।

3. ‘हरि’ हिन्दी का एक ऐसा शब्द है जिसके दर्जन भर से भी अधिक अर्थ हैं; यथा यमराज, पवन, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, विष्णु, सिंह, किरण, घोड़ा, तोता, साँप, वानर और मेढक, वायु, उपेन्द्र आदि।

4. राजभाषा अधिनियम के अनुसार हिन्दी भाषा के लिए देवनागरी लिपि तथा भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप प्रयोग किया जाता है।

5. अंग्रेजी का शब्द ‘News’ चार दिशाओं North, East, West, और South के प्रथम अक्षरों को मिला कर बना है।

6. अमेरिका की अपेक्षा चीन में अधिक लोग अंग्रेजी भाषा बोलते हैं।

7. ‘racecar,’ ‘kayak’ और ‘level’ अंग्रेजी के ऐसे शब्द हैं जिन्हें चाहे बायें से दायें पढ़ें कि दायें से बायें, वे एक जैसे ही पढ़े जाते हैं।

8. WAS IT A CAR OR A CAT I SAW. अंग्रेजी का ऐसा वाक्य है जो उल्टा सीधा एक समान है।

9. अंग्रेजी शब्द Stressed को उल्टा पढ़ने पर अंग्रेजी का ही एक दूसरा शब्द Desserts बन जाता है।

10. अंग्रेजी का सबसे छोटा पूर्ण वाक्य है – ‘Go’।

11. अंग्रेजी के केवल चार शब्द ऐसे हैं जिसके अन्त में “dous” आता है, वे हैं – hazardous, horrendous, stupendous, and tremendous।

12. “The quick brown fox jumps over a lazy dog.” वाक्य में अंग्रेजी के सभी अक्षर प्रयुक्त होते हैं।

13. बगैर कोई स्वर (vowel) वाला अंग्रेजी का सबसे बड़ा शब्द है “Rhythms”!

14. “uncopyrightable” अंग्रेजी का एक ऐसा शब्द है जिसमें प्रयुक्त कोई भी अक्षर दो बार नहीं आता।

15. अंग्रेजी में ‘E’ का प्रयोग सबसे अधिक होता है और ‘Q’ का सबसे कम।

Tuesday, 12 November 2013

13-11-13


एक नगर
में एक मशहूर
चित्रकार रहता था ।
चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर
तस्वीर बनाई और
उसे नगर के चौराहे मे
लगा दिया और नीचे लिख
दिया कि जिस
किसी को, जहाँ भी इसमें
कमी नजर आये वह
वहाँ निशान लगा दे ।
जब उसने शाम को तस्वीर
देखी उसकी पूरी तस्वीर पर
निशानों से ख़राब
हो चुकी थी । यह देख वह बहुत
दुखी हुआ। उसे
कुछ समझ नहीं आ
रहा था कि अब क्या करे वह
दुःखी बैठा हुआ था ।
तभी उसका एक मित्र
वहाँ से गुजरा उसने उसके
दुःखी होने का कारण
पूछा तो उसने उसे
पूरी घटना बताई । उसने
कहा एक काम करो कल
दूसरी तस्वीर
बनाना और उस मे
लिखना कि जिस
किसी को इस तस्वीर मे
जहाँ कहीं भी कोई
कमी नजर आये उसे सही कर दे ।
उसने अगले दिन यही किया ।
शाम को जब उसने
अपनी तस्वीर देखी तो उसने
देखा की तस्वीर पर किसी ने
कुछ नहीं किया ।
वह संसार की रीति समझ
गया।
"कमी निकालना,
निंदा करना, बुराई
करना आसान, लेकिन उन
कमियों को दूर
करना अत्यंत कठिन होता है".

Monday, 11 November 2013

12-11-13


**** " भारत का सबसे पहला, सबसे बड़ा, सबसे ऊँचा " ****
----------------------------------------------------------------
सबसे लम्बी नदी -- गंगा
सबसे ऊँचा जलप्रपात -- गरसोप्पा या जोग
सबसे ऊँचा दरवाजा -- बुलन्द दरवाजा
सबसे ऊँचा पत्तन -- लेह (लद्दाख)
सबसे ऊँचा पशु -- जिर्राफ
सबसे ऊँचा बाँध -- भाखड़ा नांगल बाँध
सबसे ऊँची चोटी -- गॉडविन ऑस्टिन (K-2)
सबसे ऊँची झील -- देवताल झील
सबसे ऊँची मार्ग -- लेह-मनाली मार्ग
सबसे ऊँची मीनार -- कुतुब मीनार
सबसे ऊँची मूर्ति -- गोमतेश्वर
सबसे बड़ा गुफा मन्दिर -- कैलाश मन्दिर (एलोरा)
सबसे बड़ा गुरुद्वारा -- स्वर्ण मन्दिर (अमृतसर)
सबसे बड़ा चिड़ियाघर -- जूलॉजिकल गॉर्डन्स (कोलकाता)
सबसे बड़ा डेल्टा -- सुन्दरवन
सबसे बड़ा तारामण्डल (प्लेनेटोरियम) -- बिड़ला तारामण्डल (प्लेनेटोरियम)
सबसे बड़ा पशुओं का मेला -- सोनपुर (बिहार)
सबसे बड़ा प्राकृतिक बन्दरगाह -- मुम्बई
सबसे बड़ा रेगिस्तान -- थार (राजस्थान)
सबसे बड़ा लीवर पुल -- हावड़ा सेतु (कोलकाता)
सबसे बड़ी झील (खारे पानी की) -- चिल्का झील (उड़ीसा)
सबसे बड़ी झील (मीठे पानी की) -- वूलर झील (काश्मीर)
सबसे बड़ी मस्जिद -- जामा मस्जिद (दिल्ली)
सबसे लम्बा प्लेटफॉर्म -- खड़गपुर (पश्चिम बंगाल)
सबसे लम्बा बाँध -- हीराकुण्ड बाँध (उड़ीसा)
सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग -- राजमार्ग नं. 7 (वाराणसी से कन्याकुमारी)
सबसे लम्बा रेलमार्ग -- जम्मू से कन्याकुमारी
सबसे लम्बा सड़क का पुल -- महात्मा गांधी सेतु (पटना)
सबसे लम्बी तटरेखा वाला राज्य -- गुजरात
सबसे लम्बी सड़क -- ग्रांड ट्रंक रोड
सबसे लम्बी सुरंग -- जवाहर सुरंग (जम्मू काश्मीर)

Sunday, 10 November 2013

11-11-13


एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे.
राह में एक भयंकर तूफ़ान आया और लड़की ने पिता से पूछा -- अब हम क्या करें?
पिता ने जवाब दिया -- कार चलाते रहो.
तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर
होता जा रहा था.
अब मैं क्या करू ? -- लड़की ने पुनः पूछा.
कार चलाते रहो. -- पिता ने पुनः कहा.
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे. उसने फिर अपने पिता से कहा -- मुझे कार रोक देनी चाहिए.
मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ. यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है. उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो.
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार
चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा किकुछ साफ़ दिखने लगा. कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया.
अब उसके पिता ने कहा -- अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो.
लड़की ने पूछा -- पर अब क्यों?
पिता ने कहा -- जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे
अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं. चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो.
यह किसा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है तो कठिन समय से गुजर रहे हैं.
मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं.
किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए. निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी.

Saturday, 9 November 2013

10-11-13


मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है.

कहते हैं कि आप जैसी भावना मन में लाते हैं या बोलते हैं वैसा करने के लिए सारी कायनात जुट जाती है. जैसा आप चौबीस घंटे सोचते हैं वैसा ही आपके साथ होने भी लगता है. इसलिये कहा गया है कि आपके विचार हमेशा सकारात्मक होना चाहिये.

एक साधु था. वह् गाँव गाँव भ्रमण करता था और एक गाँव में कभी भी एक महीने से ज्यादा नहीं रुकता था. भोजन के लिए वह् गाँव के मात्र पाँच घरों में भि
क्षा के लिए जाता था और जो मिल जाता था उसे खाकर संतुष्ट रहता था. प्रति दिन वह् भिक्षा के लिए घर बदल लेता था और किसी हाल में पाँच घर से ज्यादा नहीं जाता था फिर भिक्षा मिलें या न मिलें.

एक दिन वह् रोज़ की भांति भिक्षा के लिए निकाला. एक घर पर महिला ने भिक्षा न देते हुए साधु को बहुत ही भला बुरा कहा. साधु चुप चाप आगे बड़ गया. यह किस्सा 3-4 दिनों तक चलता रहा. साधु का गाँव छोड़ने का समय आ गया. वह् अन्तिम बार उस महिल के घर भिक्षा माँगने गया. महिला, जो कि साधु से बहुत ही परेशान हो चुकी थी, चिल्ला कर बोली कि उसके पास साधु को देने के लिये कुछ भी नहीं है. इस पर साधु ने कहा कि ,"बहिन तुम एक सम्पन्न परिवार की महिला हो और तुम्हे यह कहना शोभा नहीं देता है कि तुम्हारे पास मुझे देने के लिए कुछ भी नहीं है. हम जो विचार मन में लाते है और बोलते है, कई बार हमारे साथ वैसा ही होने लगता है. अतः तुम्हारा यह कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है. ग़लत है." फिर साधु ने जमीन की एक मुट्ठी मिट्ठी उठाई और महिलाको देते हुए कहा , " बहिन ये मिट्ठी तुम्हारे आँगन की है. तुम मुझे यही मिट्ठी भिक्षा में दे दो और आज से भविष्य में कभी भी ये न कहना कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है."

Friday, 8 November 2013

09-11-13


एक आदमी ने देखा कि एक गरीब बच्चा उसकी कीमती कार को बड़े
गौर से निहार रहा है।
आदमी ने उस लड़के को कार में बिठा लिया।
लड़के ने कहा:- आपकी कार बहुत अच्छी है, बहुत
कीमती होगी ना ?
आदमी:- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है।
लड़का (कुछ सोचते हुए):- वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं ।
आदमी:- मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो, तुम भी ऐसी कार
चाहते हो ना ?
लड़का:- नहीं ! मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ ।
आज का विचार...
"अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें, दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा ऊँची"

Thursday, 7 November 2013

08-11-13


यह जापान की कथा है। एक बेरोजगार युवक अपने परिवार के भरण-पोषण में अपने को असमर्थ पा रहा था। एक बार जब तीन दिनों तक उसकी पत्नी और बच्चे भूखे रहे तो वह इतना निराश हो गया कि अपने जीवन को बेकार समझने लगा। वह अपने घर से निकलकर चला गया और आत्महत्या की तैयारी करने लगा।

कुछ क्षण बाद वह संसार से विदा होने को ही था कि तभी पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, 'मित्र! इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा? निराश होने से तो कोई लाभ नहीं होगा। मैं मानता हूं कि तुम्हारे जीवन में आई हुई विपत्तियां ऐसा करने के लिए विवश कर रही हैं पर क्या तुम इन विपत्तियों को हंसते-हंसते पीछे नहीं धकेल सकते?' आत्मीयता से भरे इन शब्दों को सुनकर वह युवक रो पड़ा। सिसकियां भरकर उसने अपनी मजबूरी की सारी कहानी सुना दी। अब तो सुनने वाले व्यक्ति की आंखों में भी आंसू थे। यह सहृदय व्यक्ति जापान का प्रसिद्ध कवि शिनीची ईं गुची थे।

उस युवक की परेशानियों ने भावुक कवि शिनीची को प्रभावित किया, उन्होंने वहीं यह संकल्प किया कि वह अपनी कमाई का अधिक भाग उन व्यक्तियों की सेवाओं में लगाया करेंगे, जो अभावग्रस्त हैं। उस समय शिनीची ने युवक के परिवार के लिए कुछ धनराशि दे दी। घर लौट कर उन्होंने गुप्त दान पेटी बनाई और चौराहे पर लगवा दी। उस पेटी के ऊपर लिखा गया, 'जिन सज्जनों को सचमुच धन की आवश्यकता हो, वह इस पेटी से निकाल कर अपना काम चला सकते हैं। यह धन यदि कतिपय अभावग्रस्त व्यक्तियों की सहायता में लग सका, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी, धन्यवाद।' उस पेटी पर किसी व्यक्ति का नाम न था क्योंकि शिनीची अपने कार्य का श्रेय नहीं लेना चाहते थे। तटस्थ भाव से सेवा करने की उनकी प्रवृत्ति ने ही उन्हें महामानव का पद दिला दिया।

Wednesday, 6 November 2013

07-11-13


एक दिन किसी निर्माण के दौरान भवन की छटी मंजिल से सुपर वाईजर ने नीचे कार्य करने वाले मजदूर को आवाज दी.
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण नीचे काम करने वाला मजदूर कुछ समझ नहीं सका की उसका सुपरवाईजर उसे आवाज दे रहा है.
फिर
सुपरवाईजर ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक १० रु का नोट नीचे फैंका, जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा
मजदूर ने नोट उठाया और अपनी जेब मे रख लिया, और फिर अपने काम मे लग गया .
अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर वाईजर ने पुन: एक ५०० रु का नोट नीचे फैंका .
उस मजदूर ने फिर वही किया और नोट जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया .
ये देख अब सुपर वाईजरने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा. अब मजदूर ने ऊपर देखा और उसकी सुपर वाईजर से बात चालू हो गयी.
ये वैसा ही है जो हमारी जिन्दगी मे होता है.....
भगवान् हमसे संपर्क करना ,मिलना चाहता है, लेकिन हम दुनियादारी के कामो मे व्यस्त रहते है, अत: भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे याद नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये ये ना देखते हुए,उनका उपयोग कर लेते है, और भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है, लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते है, भगवान् का धन्यवाद नहीं करते ,उसे भूल जाते है.
तब भगवान् हम पर एक छोटा सा पत्थर फैंकते है , जिसे हम कठिनाई कहते है, और तुरंत उसके निराकरण के लिए भगवान् की और देखते है,याद करते है.
यही जिन्दगी मे हो रहा है.
यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें भगवान् के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा...!!!!!

Tuesday, 5 November 2013

06-11-13


♧ Some Amazing and Unknown Facts ❀

★ Ants never sleep!
★ When the moon is directly overhead, you will weigh slightly less.
★ Alexander Graham Bell, the inventor of the telephone, never called his wife or mother; because they were both deaf.
★ An ostrich’s eye is bigger than its brain.
★ “I Am” is the shortest complete sentence in the English language.
★ Babies are born without knee caps – actually, they’re made of cartilage
and the bone hardens, between the ages of 2-6 years.
★ Happy Birthday (the song) is copyrighted.
★ Butterflies taste with their feet.
★ A “jiffy”, is an actual unit of time for 1/100th of a second.
★ It is impossible to sneeze with your eyes open.
★ Leonardo Da Vinci invented the scissors.
★ Minus 40° Celsius, is exactly the same as minus 40° Fahrenheit.
★ No word in the English language, rhymes with month - orange - silver -or- purple.
★ Shakespeare invented the words “assassination” and “bump".
★ Stewardesses is the longest word typed with only the left hand.
★ Elephants are the only animals that cannot jump.
★ The names of all the continents end with the same letter that they start with.
★ The sentence, “The quick brown fox jumps over the lazy dog”
uses every letter in the English language.
★ The shortest war in history was between Zanzibar and England in 1896. Zanzibar surrendered after 38 minutes.
★ The strongest muscle in the body is the tongue.
★ The word “lethologica” describes the state of not being able to remember the word you want.
★ Camels have three eyelids to protect themselves from the blowing desert sand.
★ TYPEWRITER is the longest word that can be made using the letters on only one row of the keyboard.
★ You can’t kill yourself by holding your breath.
★ Your stomach has to produce a new layer of mucus every two weeks or it will digest itself.
★ The dot over the letter “i” is called a 'Tittle'.

Monday, 4 November 2013

05-11-13


जय कारा वीर बजरंगी......हर हर महादेव
क्या ब्रह्मचारी नहीं है हनुमान...?
संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो सभी परिचित हैं ! उन्हें बाल ब्रम्हचारी भी कहा जाता है ! लेकिन क्या अपने कभी सुना है कि हनुमान जी का विवाह भी हुआ था ?
उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है ? जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं !! कहा जाता है कि हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर में चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं ! आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में खास है ! यहां हनुमान जी अपने ब्रह्मचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है ! हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आए हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे और वाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है ! लेकिन पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख है !इसका सबूत है आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का !!
यह मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था !लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे ! पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे ! कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा ! दरअसल हनुमान जी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था ! हनुमान, सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ! सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते ! लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया ! कुल 9 तरह की विद्या में से हनुमान जी को उनके गुरु ने पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बची चार तरह की विद्या और ज्ञान ऐसे थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे ! हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे !!
इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वह धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे ! ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी को विवाह की सलाह दी ! और अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमान जी भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए ! लेकिन हनुमान जी के लिए दुल्हन कौन हो और कहां से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे ! ऐसे में सूर्यदेव ने अपने शिष्य हनुमान जी को राह दिखलाई ! सूर्य देव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया ! इसके बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई ! इस तरह हनुमान जी भले ही शादी के बंधन में बंध गए हो लेकिन शारीरिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं ! पाराशर संहिता में तो लिखा गया है की खुद सूर्यदेव ने इस शादी पर यह कहा की - यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ !!!!
जय बजरंगी..जय श्री राम

Sunday, 3 November 2013

04-11-13


एक बार स्वामी रामतीर्थ कॉलेज से घर आ रहे थे।
रास्ते में उन्होंने एक व्यक्ति को सेब बेचते हुए पाया।
लाल-लाल सेब देखकर उनका मन चंचल हो उठा और वह
सेब वाले के पास पहुंचे और उससे सेबों का दाम पूछने
लगे।
तभी उन्होंने सोचा, 'यह जीभ क्यों पीछे पड़ी है?' वह
दाम पूछकर आगे बढ़ गए। कुछ आगे बढ़कर उन्होंने
सोचा कि जब दाम पूछ ही लिए तो उन्हें खरीदने में
क्या हर्ज है। इसी उहापोह में कभी वे आगे बढ़ते और
कभी पीछे जाते। सेब वाला उन्हें देख रहा था।
वह बोला, 'साहब, सेब लेने हैं तो ले लीजिए, इस तरह
बार-बार क्यों आगे पीछे जा रहे हैं?' आखिरकार
उन्होंने कुछ सेब खरीद लिए और घर चल पड़े। घर पहुंचने पर
उन्होंने सेबों को एक ओर रखा। लेकिन उनकी नजर
लगातार उन पर पड़ी हुई थी। उन्होंने चाकू लेकर सेब
काटा। सेब काटते ही उनका मन उसे खाने के लिए
लालायित होने लगा, लेकिन वह स्वयं से बोले,
'किसी भी हाल में चंचल मन को इस सेब को खाने से
रोकना है। आखिर मैं भी देखता हूं कि जीभ
का स्वाद जीतता है या मेरा मन नियंत्रित होकर
मुझे जिताता है। सेब को [ जारी है ] उन्होंने
अपनी नजरों के सामने रखा और स्वयं पर
नियंत्रण रखकर उसे खाने से रोकने लगे। काफी समय
बीत गया। धीरे-धीरे कटा हुआ सेब पीला पड़कर
काला होने लगा लेकिन स्वामी जी ने उसे हाथ तक
नहीं लगाया। फिर वह प्रसन्न होकर स्वयं से बोले,
'आखिर मैंने अपने चंचल मन को नियंत्रित कर
ही लिया।' फिर वह दूसरे काम में लग गए!


Saturday, 2 November 2013

03-11-13


जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना...!
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ..!!
दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए। क्योंकि दीया कहीं भी जले उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं। जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है.दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म साक्षात्कार का पर्व है। यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है।, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था-'बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत'।........''शुभ कामनाएं''

Friday, 1 November 2013

02-11-13


Deep Jalte Jagmagate Rahe,
Hum Aapko Aap Hame Yaad Aate Rahe,
Jab Tak Zindagi Hai, Dua Hai Hamari
Aap Chand Ki Tarah Jagmagate Rahe.
"Happy Deepawali " 

01-11-13


जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है !

कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह बता रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की, "हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए।" दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले, "हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है "।

यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।