Thursday 14 November 2013

15-11-13


महात्मा नित्यानंद ने अपने शिष्यों को बाँस से
बनी बाल्टियां पकड़ाकर कहा :
जाओ, इन बाल्टियों में नदी से जल भर लाओ।
आश्रम में सफाई करनी है। नित्यानंद की इस
विचित्र आज्ञा को सुनकर सभी शिष्य
आश्चर्यचकित रह गए। भला बाँस से
बनी बाल्टियों में जल कैसे
लाया जा सकता था! फिर भी,सभी शिष्यों ने
बाल्टियां उठाईं और जल लेने नदी तट की ओर
चल दिए। वे जब बाल्टियां भरते, तो सारा जल
निकल जाता था।
अंतत: निराश होकर एक को छोड़कर
सभी शिष्य लौट आए और महात्मा नित्यानंद
से अपनी दुविधा बता दी। लेकिन, एक शिष्य
बराबर जल भरता रहा। जल रिस जाता,
तो पुन: भरने लगता। शाम होने तक वह
इसी प्रकार श्रम करता रहा। इसका परिणाम
यह हुआ कि बाँस की शलाकाएं फूल गईं और
छिद्र बंद हो गए। तब वह बड़ा प्रसन्न हुआ
और उस बाल्टी में जल भरकर गुरुजी के पास
पहुँचा। जल से भरी बाल्टी लाते देख
महात्मा नित्यानंद ने उसे शाबाशी दी और
अन्य शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा,..
" विवेक, धैर्य, निष्ठा व सतत् परिश्रम से दुर्गम
कार्य को भी सुगम बनाया जा सकता है।"

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