Tuesday, 19 November 2013

20-11-13


कड़वा है पर सच है !"

एक हलवाई बहुत सी मिठाइयों को सजाए दुकान पर बैठा था ,की तभी कहीं से एक मक्खी उड़कर आई और मिठाई पर बैठ गई ! हलवाई को बुरा लगा और पंखा लेकर मक्खी को झटके से उड़ा दिया ,थोड़ी देर बाद वह फिर आ बैठी तो हलवाई ने फिर झटक कर उड़ा दिया , मिठाई खुले में जो रखी थी इसलिए और चार-पाँच मक्खियाँ आकर्षक दिखने वाली मिठाइयों पर आ बैठीं, अब हलवाई ने सोचा इस तरह तो मिठाइयों का कबाड़ा हो जाएगा, और हलवाई ने एक पतला प्लास्टिक का पैमाना लेकर एक-एक मक्खी को मारना शुरू कर दिया ये सोचकर की अब सब कुछ ठीक हो जाएगा,एक,दो,तीन ,चार इस तरह पंद्रह-बीस मक्खियाँ मरने के बाद हलवाई ने सोचा की अब हालत काबू मे आ जाएँगे पर ये क्या खुली मिठाइयों के महक और आकर्षण ने कुछ और मक्खियों और कीड़ों को आकर्षित कर दिया और लगे मंडराने मिठाइयों पर अब हलवाई माथा पकड़ कर बैठ गया की हे भगवान ये हालात कैसे सुधरेंगे ? कैसे मैं अपनी कीमती मिठाइयों को सुरक्षित रख सकता हूँ ?
"इस तरह एक-एक मक्खी को मार कर कोई हल नही निकल रहा ,तभी उधर से गुज़रते हुए एक महात्मा ने हलवाई की दशा को समझा और कहा की बालक समस्या इन मक्खियों में नही तुम्हारी खुली और बेतरतीब रखी मिठाइयों में है इसलिए बजाए एक-एक मक्खी को मारने के तुम अपनी मिठाइयों को सुरक्षित करने के लिए सबसे पहले उन्हे शीशे के संदूक में या साफ-सुथरे कपड़े से ढक दो जो बेवजह मक्खियों को अपनी महक और क्षणिक आकर्षण से उत्तेजित कर रही हैं इस तरह समस्या आधी से ज़्यादा ही ख़त्म हो जाएगी !"

अब इस सिद्धांत को आधुनिक हालात से जोड़कर देखते हैं और अपने आप से एक प्रश्न करते हैं की कहीं हमारी और हमारे प्रशासन क़ी दशा उस हलवाई की तरह तो नही जो किसी विकृत हो चुकी मानसिकता वाले अपराधी को मक्खी समझ फाँसी पर चढ़वा कर ये सोचते हैं की अब हालात सुधर जाएँगे तो ये हमारी भूल है ! क्योंकि इस तरह केवल विकृत ख़त्म होगा ,विकृति नही !"

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