Saturday 2 November 2013

03-11-13


जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना...!
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ..!!
दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए। क्योंकि दीया कहीं भी जले उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं। जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है.दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म साक्षात्कार का पर्व है। यह अपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है।, प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक देदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था-'बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत'।........''शुभ कामनाएं''

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