Friday 31 May 2013

01.06.13


एक जंगल में एक भयंकर सर्प रहता था। उसके आतंक के कारन कोई वहां से नहीं जाता था। एक दिन एक ऋषि उस रस्ते से गुजर रहे थे। उनको देखकर सर्प लपका और काटना चाहा, परन्तु ऋषि ने योग बल से उसपर विजय पा ली।सर्प शरणागत होकर बोला - क्षमा करिए ऋषिवर, मैं आपकी शरण में हूँ। ऋषि ने उसे क्षमा कर दिया, और कहा कि आज से तू किसी को नहीं काटेगा। सर्प मान गया। ऋषि चले गए। उनके जाने के बाद सर्प ने लोगों को काटना बंद कर दिया। किसी को वह नहीं काटता था और धीरे-धीरे जंगल का रास्ता खुल गया। लोग आने-जाने लगे। सर्प लोगों को देखकर मार्ग से हट जाता। चरवाहे लड़के वहां आने लगे। वह सर्प को देखते ही पत्थर मरने लगे। सर्प भागकर बिल में चला जाता था। वह मार खाते-खाते दुबला और घायल हो गया था। बहुत समय बाद मुनि उस रास्ते से गुजरे। सर्प ने प्रणाम किया और अपनी व्यथा बताई। मुनि बोले - मुर्ख मैंने काटने से मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं। मुनिवर समझाकर चले गए। सर्प समझ गया। चरवाहे लड़के पत्थर मारने वाले ही थे, कि वह फुफकार उठा। लड़के घबराकर भाग गए। तब से उसे किसी ने पत्थर नहीं मारा।
मनुष्य को अकारण किसी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए, परन्तु इतना डरपोक भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी उसपर आक्रमण करने की हिम्मत कर सके। इसलिए अपना रोबीला अस्तित्व बनाये रखें, ताकि कोई भी आपकी ओर आँख उठाकर नहीं देख सके।

Thursday 30 May 2013

31.05.13


~एक सदना नाम का कसाई था,मांस बेचता था, पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी, एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहा था, रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया....उसे अच्छा लगा उसने सोचा बड़ा अच्छा पत्थर है क्यों ना मैँ इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करू. उसे उठाकर ले आया....और मांस तौलने में प्रयोग करने लगा.
जब एक किलो तौलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तौलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार चाहे जितना भी तौलता हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता.
एक दिन की बात है उसी दुकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे, उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत उस सदना के पास आये और गुस्से में बोले ये तुम क्या कर रहे हो क्या तुम जानते नहीं जिसे पत्थर समझकर तुम तौलने में प्रयोग कर रहे हो वे शालिग्राम भगवान है, इसे मुझे दो जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला हे ब्राह्मण देव मुझे पता नहीं था कि ये भगवान है मुझे क्षमा कर दीजिये.और शालिग्राम भगवान को उसने ब्राह्मण को दे दिया....
ब्राह्मण शालिग्राम शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमलके बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की. जब रात हुई और वह ब्राह्मण सोया तो सपने में भगवान आये और बोले ब्राह्मण मुझे तुम जहाँ से लाए हो वहीँ छोड आओं मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा. इस पर ब्राह्मण बोला भगवान ! वो कसाई तो आपको तुला में रखता था जहाँ दूसरी ओर मास तौलता था उस अपवित्र जगह में आप थे.
भगवान बोले - ब्राहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तौलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से झूला झूला रहा हो जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था.हर पल मेरा भजन करता था जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था वो आनंद यहाँ नहीं.इसलिए आप मुझे वही छोड आये.तब ब्राह्मण तुरंत उस सदना कसाई के पास गया ओर बोला मुझे माफ कर दीजिए.वास्तव में तो आप ही सच्ची भक्ति करते है.ये अपने भगवान को संभालिए......।।।~


♥~जय श्री राधे कृष्ण.....।।।~♥

Wednesday 29 May 2013

30.05.13


एक बार एक यज्ञ मे नारद जी ने सत्यभामा जी से दान-स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को ही माँग लिया !
बड़ी दुविधा पैदा हो गई क्योकि सत्यभामा जी से भगवान श्री कृष्ण के जुदा होने का मतलब था देह से प्राणो का जुदा होना !काफी सोच-विचार के बाद तय किया गया कि भगवान की जगह उनके तुल्य स्वर्ण ही दे दिया जाय !अब एक पलड़े मे प्रभु बैठे और दूसरे मे स्वर्ण रखा जाने लगा लेकिन यह क्या ?स्वर्ण का तो पहाड़ खड़ा कर दिया गया परन्तु भगवान का पलड़ा ज्यो का त्यो धरती से लगा रहा ;जरा भी ना उठा !
जब सारे प्रयास असफल हो गये तो श्री कृष्ण की दूसरी रानी रुक्मिणी जी ने प्रभु के नाम सुमिरन का आसरा लिया !एक तुलसी पत्र लिया और सुमिरन करके स्वर्ण वाले पलड़े मे रख दिया !बस उसी क्षण चमत्कार घटा ;दोनो पलड़े बराबर हो गये !
इस संसार मे प्रभु के बराबर कोई है तो वह है स्वयं उनका नाम !वास्तव मे नाम और नामी दोनो मे कोई भिन्नता नही है !वस्तुतः दोनो एक ही तत्व है

Tuesday 28 May 2013

29.05.13


एक दिन यमदुत एक इन्सान के प्राण हरण करने आया, तो उस इन्सान ने कहा: मुझे आप के साथ आना पङेगा?
यमदुत: बिल्कुल
इन्सान: क्योँ?
यमदुत: मेरे पास एक लिस्ट है,उसमे
तेरा नाम सबसे ऊपर है ईसिलिए तुझे मेरे
साथ चलना पङेगा।
इन्सान: चलो अच्छा लेकिन मेरी एक
ईच्छा हे कि हम यहा दोनो साथ मे
खाना खाकर जायेँगेँ।
यमदुत: ठीक है।
( वो इन्सान यमदुत से नजर चुराकर खाने मेँ नीदं की गोलीया मिला देता है।)
खाना खाने के बाद यमदुत को जोरदार नीँद आती है और वो वही सो जाता है,
वो इन्सान मौके का फायदा उठाकर
लिस्ट मेँ से अपना नाम उपर से काटकर
सबसे नीचे लिख देता है।
जब यमदुत नीँद से उठता हे तो कहता है, हे
मानव ! तेरा खाना बहुत स्वादिष्ट था।
मैँ तुझसे खुश हु।
अब मैँ पहले तुझे नही लिस्ट मेँ सबसे नीचे
वाले से जाने की शुरुआत करुंगा।
Moral- मौत को कोई नही टाल सकता,
विधि का जो लेख है वो होकर ही रहेगा..

Monday 27 May 2013

28 05.13


*. मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता।

*. आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।

*. प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते।
...
*. तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक।हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले।

*. धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती।

*. पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता।

*. प्रजा के सुख में ही राजाका सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।

*. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है।

*. कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है।

*. आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्तिके समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें ।) 

Sunday 26 May 2013

27.05.13


मजदूर के जूते...

एक बार एक शिक्षक संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शिष्य के साथ कहीं टहलने निकले . उन्होंने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .

शिष्य को मजाक सूझा उसने शिक्षक से कहा , “ गुरु जी क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!”

शिक्षक गंभीरता से बोले , “ किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है . क्यों ना हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!”

शिष्य ने ऐसा ही किया और दोनों पास की झाड़ियों में छुप गए .

मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया . उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ , उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा की अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे , उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें पलट -पलट कर देखने लगा . फिर उसने इधर -उधर देखने लगा , दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए . अब उसने दूसरा जूता उठाया , उसमे भी सिक्के पड़े थे …मजदूर भावविभोर हो गया , उसकी आँखों में आंसू आ गए , उसने हाथ जोड़ ऊपर देखते हुए कहा – “हे भगवान् , समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए उस अनजान सहायक का लाख -लाख धन्यवाद , उसकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दावा और भूखें बच्चों को रोटी मिल सकेगी .”

मजदूर की बातें सुन शिष्य की आँखें भर आयीं . शिक्षक ने शिष्य से कहा – “ क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्का डालने से तुम्हे कम ख़ुशी मिली ?”

शिष्य बोला , “ आपने आज मुझे जो पाठ पढाया है , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा . आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया हूँ जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था कि लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है . देने का आनंद असीम है . देना देवत्त है

Saturday 25 May 2013

26.05.13


अनकहे अनजाने सच.....

बहुत पुरानी बात है। एक गाँव में युधिष्ठिर नाम का एक कुम्हार रहता था। उसे शराब पीने की बहुत बुरी लत थी। एक दिन शराब के नशे में लडखड़ाकर वह एक टूटे बर्तन पर गिर पड़ा। टूटे हुए बर्तन का तीखा कोना उसके माथे में जा घुसा और भलभलाकर खून बहने लगा। लेकिन कुम्हार ने घाव की कोई परवाह नहीं की और जिसका घाव बिगड़ गया। कुछ समय बाद घाव तो भर गया लेकिन माथे पर एक बड़ा निशान पड़ गया।
कुछ समय बाद इलाके में अकाल पड़ गया कुम्हार का काम भी ठप पड़ गया। अतः वह रोजगार की तलाश में दूसरे देश की ओर चल दिया। वहाँ पहुंचकर उसने किसी प्रकार वहां के राजा के पास नौकरी पा ली।
एक बार जब राजा ने उसके माथे पर पड़ा निशान देखा तो उसने सोचा कि वह बहुत बहादुर होगा। शायद शत्रु सेना के किसी सिपाही के साथ युद्ध करते समय इसके माथे पर घाव लगा होगा। अतः राजा ने उसे अपने चुने हुए सेनापतियों के साथ नियुक्त कर दिया।

एक बार जब पड़ोसी देश के साथ युद्ध के आसार बनने लगे तो राजा ने अपने सेनापतियों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्हें सम्मानित किया।
कुछ समय बाद उसने कुम्हार को अपनी सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाने का निर्णय लिया। उसने कुम्हार से पूछा-‘‘वीर युवक ! तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारे माथे पर यह निशान कैसे पड़ा ? उस युद्ध का क्या नाम है था, जिसमें तुमने भाग लिया था ?’’

‘‘महाराज !’’ कुम्हार बोला-‘‘पेशे से मैं कुम्हार हूं। एक बार मैं शराब पीकर टूटे हुए कांच पर गिर पड़ा था। कांच मेरे माथे में घुस गया था और निशान उसी घाव का है, जो कांच घुसने से बना था।’’

यह सुनकर राजा आग बबूला हो उठा। उसने उस कुम्हार को सेना तथा देश से बाहर निकालने का आदेश दे दिया।
राजा के पैर पकड़कर कुम्हार बहुत गिड़गिड़ाया। अनेक दलीलें दीं कि वह उसे अपनी सेना में बना रहने दे। सेना में रहकर युद्ध के समय उसे जौहर दिखाने का मौका दे, लेकिन राजा ने उसकी एक न सुनी और उसे देश से बाहर कर दिया।
अब कुम्हार बिचारा सोच रहा था कि क्या सच बोलने का अंजाम ऐसा भी हो सकता है..

Friday 24 May 2013

25.05.13


जरूर पढेँ....
पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता
पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.
तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है.
उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”
और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.
बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे . लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”
पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल
सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”
” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था, आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .
दोस्तों , कई बार life की problems
भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर
वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं !


Thursday 23 May 2013

24.05.13


बहुत समय पहले की बात है !! एक सरोवर में बहुत
सारे मेंढक रहते थे !! सरोवर के बीचों -बीच एक
बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे
उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने
लगवाया था !! खम्भा काफी ऊँचा था और
उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी !!
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक
रेस करवाई जाए !! रेस में भाग लेने
वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर
चढ़ना होगा और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच
जाएगा वही विजेता माना जाएगा !!
रेस का दिन आ पंहुचा !! चारो तरफ बहुत भीड़
थी !! आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में
हिस्सा लेने पहुचे !! माहौल में सरगर्मी थी !! हर
तरफ शोर ही शोर था !!
रेस शुरू हुई, लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र
हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई
भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा !! हर तरफ
यही सुनाई देता - "अरे ये बहुत कठिन है !!
वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे !!
सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं !! इतने चिकने
खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता !!"
और यही हो भी रहा था, जो भी मेंढक कोशिश
करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता !!
कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने
प्रयास में लगे हुए थे !!
पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी - "ये
नहीं हो सकता , असंभव !!" और वो उत्साहित मेंढक
भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास
छोड़ दिया !!
लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था,
जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ
ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था !! वो लगातार ऊपर
की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच
गया और इस रेस का विजेता बना !!
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ !!
सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे -
"तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे
अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से
मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय
कैसे प्राप्त की ??"
तभी पीछे से एक आवाज़ आई - "अरे उससे क्या पूछते
हो , वो तो बहरा है !!"
अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने
की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ
मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक
बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें
पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते
हैं !! आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर
बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे
हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं !!
और तब हमें
सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक
पायेगा !!

Wednesday 22 May 2013

23.05.13


बहुत समय पहले की बात है , किसी गावं में 6 अंधे आदमी रहते थे. एक दिन गाँव वालों ने उन्हें बताया , ” अरे , आज गावँ में हाथी आया है.” उन्होंने आज तक बस हाथियों के बारे में सुना था पर कभी छू कर महसूस नहीं किया था. उन्होंने ने निश्चय किया, ” भले ही हम हाथी को देख नहीं सकते , पर आज हम सब चल कर उसे महसूस तो कर सकते हैं ना?” और फिर वो सब उस जगह की तरफ बढ़ चले जहाँ हाथी आया हुआ था.

सभी ने हाथी को छूना शुरू किया.

” मैं समझ गया, हाथी एक खम्भे की तरह होता है”, पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा.

“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है.” दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा.

“मैं बताता हूँ, ये तो पेड़ के तने की तरह है.”, तीसरे व्यक्ति ने सूंढ़ पकड़ते हुए कहा.

” तुम लोग क्या बात कर रहे हो, हाथी एक बड़े हाथ के पंखे की तरह होता है.” , चौथे व्यक्ति ने कान छूते हुए सभी को समझाया.

“नहीं-नहीं , ये तो एक दीवार की तरह है.”, पांचवे व्यक्ति ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा.

” ऐसा नहीं है , हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है.”, छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी.

और फिर सभी आपस में बहस करने लगे और खुद को सही साबित करने में लग गए.. ..उनकी बहस तेज होती गयी और ऐसा लगने लगा मानो वो आपस में लड़ ही पड़ेंगे.

तभी वहां से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुजर रहा था. वह रुका और उनसे पूछा,” क्या बात है तुम सब आपस में झगड़ क्यों रहे हो?”

” हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि आखिर हाथी दीखता कैसा है.” , उन्होंने ने उत्तर दिया.

और फिर बारी बारी से उन्होंने अपनी बात उस व्यक्ति को समझाई.

बुद्धिमान व्यक्ति ने सभी की बात शांति से सुनी और बोला ,” तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो. तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भाग छुए

हैं, पर देखा जाए तो तुम लोगो ने जो कुछ भी बताया वो सभी बाते हाथी के वर्णन के लिए सही बैठती हैं.”

” अच्छा !! ऐसा है.” सभी ने एक साथ उत्तर दिया . उसके बाद कोई विवाद नहीं हुआ ,और सभी खुश हो गए कि वो सभी सच कह रहे थे.

दोस्तों, कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी बात को लेकर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं और बाकी सब गलत है. लेकिन यह संभव है कि हमें सिक्के का एक ही पहलु दिख रहा हो और उसके आलावा भी कुछ ऐसे तथ्य हों जो सही हों. इसलिए हमें अपनी बात तो रखनी चाहिए पर दूसरों की बात भी सब्र से सुननी चाहिए , और कभी भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहिए. वेदों में भी कहा गया है कि एक सत्य को कई तरीके से बताया जा सकता है. तो , जब अगली बार आप ऐसी किसी बहस में पड़ें तो याद कर लीजियेगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके हाथ में सिर्फ पूँछ है और बाकी हिस्से किसी और के पास हैं.


Tuesday 21 May 2013

22.05.13


एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे.
संयासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पुछा;
"क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?"
शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, "क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !”
"पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं", सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया.
कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.
अंततः सन्यासी ने समझाया…
“जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा.
क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”
सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”

Monday 20 May 2013

21.05.13


 कैसे हुआ हनुमान जी का जन्म -

यूं तो भगवान हनुमान जी को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिसमें से उनका एक नाम वायु पुत्र भी है। जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में इन्हें वातात्मज कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला।

पुराणों की कथानुसार हनुमान की माता अंजना संतान सुख से वंचित थी। कई जतन करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस दुःख से पीड़ित अंजना मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा सरोवर के पूर्व में एक नरसिंहा आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहां जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करना पड़ेगा तब जाकर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु का ही भक्षण किया तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से खुश होकर उसे वरदान दिया जिसके परिणामस्वरूप चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को अंजना को पुत्र की प्राप्ति हुई। वायु के द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषियों ने वायु पुत्र नाम दिया।

कैसे पड़ा हनुमान नाम।

वायु द्वारा उत्पन्न हनुमान के जन्म का नाम वायु पुत्र था परंतु उनका नाम हनुमान कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक रोचक घटना है।
इसके पीछे भी एक रोचक घटना है।

एक बार की बात है। कपिराज केसरी कहीं बाहर गए हुए थे। माता अंजना भी बालक हनुमान को पालने में लिटाकर वन में फल-फूल लेने चली गई थीं। बालक हनुमान जी को भूख लगी, माता अंजना की अनुपस्थिति में ये क्रंदन करने लगे। सहसा इनकी दृष्टि उगते हुए सूर्य भगवान पर गई। हनुमान जी ने सूर्य को कोई लाल मीठा फल समझकर छलांग लगाई|


Sunday 19 May 2013

20.05.13


एक गाँव में एक परिवार रहता था परिवार में कुल जमा चार लोग थे युवा पति-पत्नि, उनका दस साल का बेटा और पति का बुजुर्ग बाप... पति-पत्नि थोड़े खुदगर्ज किस्म के थे... बजुर्ग पिता अक्सर बीमार रहता था, और बेटे-बहू को उसकी देखभाल व इलाज में समय व पैसा खर्च करना कतई पसंद नहीं था... हाँ दस साल के उनके बेटे के लिये उसके दादा उसके सबसे अच्छे दोस्त थे... एक दिन रात को बेटा-बहू योजना बनाते हैं कि यह बुढ्ढा तो कि...सी काम का है नहीं, खर्चा अलग से करवाता है, इसलिये सुबह-सुबह बेटा अपने बूढ़े बाप को एक बोरे में ले जाकर पहाड़ की चोटी में एक गढ्ढे में दफन कर आयेगा... पोता इस योजना को सुन लेता है...

सुबह होती है, बेटा अपने बूढ़े बाप को लेकर चल पड़ता है पहाड़ की चोटी की ओर... चोटी पर पहुंच बोरे को एक तरफ रखता है, थोड़ा सुस्ताता है और फिर गढ्ढा खोदना शुरू करता है... कुछ ही देर में वह अनुभव करता है कि खोदने के लिये वह कुदाल तो एक बार चलाता है पर आवाजें दो बार आतीं हैं... वह हैरान-परेशान, फिर एक बार कुदाल चलाता है फिर वही होता है... वह अपने चारों तरफ देखता है तो पाता है कि थोड़ा सा नीचे एक झाड़ी के पीछे उसका दस साल का बेटा भी एक गढ्ढा खोद रहा है...

आगबबूला हो वह अपने बेटे से उस गढ्ढे को खोदने का कारण पूछता है तो दस साल का वह बच्चा कहता है कि " हे पिता, मैं तो आपका ही अनुकरण कर रहा हूँ... एक न एक दिन तो आप भी बूढ़े होंगे ही... मैंने सोचा तब के लिये गढ्ढा अभी से तैयार कर लूं "|

हरे कृष्णा !!!

Saturday 18 May 2013

19.05.13


महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिये घोर तप कर रहे थे !
उन्होंने अपने शरीर को काफी कष्ट दिया ;घने वनो में कड़ी साधना की पर आत्म-ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई !एक दिन निराश हो बुद्ध सोचने लगे -मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया अब आगे क्या कर पाऊंगा ?
निराशा अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें क्षुब्ध कर दिया !कुछ ही क्षणों बाद उन्हें प्यास लगी !वे थोड़ी दूर स्थित एक झील पर पहुंचे !वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नन्ही-सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब गये है !पहले तो वह गिलहरी जड़वत बैठी रही फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई !अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी !ऐसा वह बार-बार करने लगी !
बुद्ध सोचने लगे -इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खतापूर्ण है क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी ?किंतु गिलहरी यह प्रयास लगातार जारी रहा !बुद्ध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो कि यह झील कभी खाली होगी या नही यह मैं नहीं जानती किंतु मैं अपना प्रयास नहीं छोड़ूंगी !
अंततः उस छोटी सी गिलहरी ने भगवान बुद्ध को अपने लक्ष्य-मार्ग से विचलित होने से बचा लिया !वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सुखा देने के लिये दृढ़ संकल्पित है तो मुझमें क्या कमी है ?मैं तो इससे हजार गुणा अधिक क्षमता रखता हूँ !
यह सोचकर गौतम बुद्ध पुनः अपनी साधना में लग गये और एक दिन बोधि-वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ !
यदि हम प्रयास करना न छोड़ें तो एक न एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है !

Friday 17 May 2013

18.05.13


कवन सो काज कठिन जगमाहीं,
जो नहिं होइ, तात तुम पाहीं।
भगवान हनुमान के एक विशेष मंदिर जो मालवा क्षेत्र में साँवेर नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें हनुमानजी की उलटी मूर्ति स्थापित है। और इसी वजह से यह मंदिर उलटे हनुमान के नाम से मालवा क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक धार्मिक नगरी उज्जैन से मात्र 30 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर को यहाँ के निवासी रामायणकालीन बताते हैं। मंदिर में हनुमानजी की उलटे चेहरे वाली सिंदूर लगी मूर्ति है।
यहाँ के लोग एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जब अहिरावण भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया था, तब हनुमान ने पाताल लोक जाकर अहिरावण का वध कर श्रीराम और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहाँ से हनुमानजी ने पाताल लोक जाने हेतु पृथ्वी में प्रवेश किया था।
कहते हैं भक्ति में तर्क के बजाय आस्था का महत्व अधिक होता है। यहाँ प्रतिष्ठित मूर्ति अत्यंत चमत्कारी मानी जाती है। यहाँ कई संतों की समाधियाँ हैं। सन् 1200 तक का इतिहास यहाँ मिलता है।
उलटे हनुमान मंदिर परिसर में पीपल, नीम, पारिजात, तुलसी, बरगद के पेड़ हैं। यहाँ वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं। पुराणों के अनुसार पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का भी वास रहता है। मंदिर के आसपास के वृक्षों पर तोतों के कई झुंड हैं। इस बारे में एक दंतकथा भी प्रचलित है। तोता ब्राह्मण का अवतार माना जाता है। हनुमानजी ने भी तुलसीदासजी के लिए तोते का रूप धारण कर उन्हें भी श्रीराम के दर्शन कराए थे।
साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। यही आस्था श्रद्धालुओं को यहाँ तक खींच कर ले आती है।

Thursday 16 May 2013

17.05.13


एक गाँव में एक फकीर आए। वे किसी की भी समस्या दूर कर सकते हैं।
सभी लोग जल्दी से जल्दी अपनी समस्या फकीर को बताकर उपाय जानना चाहते थे। नतीजा यह हुआ कि हर कोई बोलने लगा और किसी को कुछ समझ में नहीं आया। अचानक फकीर चिल्लाए. ‘खामोश’। सब चुप हो गए। फकीर ने कहा, “मैं सबकी समस्या दूर कर दूंगा। एक साथ बोलने के बजाय सब लोग एक-एक कागज पर अपनी समस्या लिख लाएं और मुझे दें। कुछ ही देर में फकीर के सामने कागजों का ढेर लग गया। फकीर ने कागजों को एक टोकरी में रखा और सबसे गोला बनाकर बैठ ने को कहा। गोले के बीच में टोकरी रख दी। एक आदमी की तरफ इशारा करके कहा, “यहाँ से शुरू करके सब बारी-बारी से आएंगे और एक-एक कागज़ उठा लेंगें।” ध्यान रहे किसी को अपना कागज़ नहीं उठाना है। लोग एक-एक कर आए कागज उठा-उठा कर अपनी-अपनी जगह बैठ गए। फकीर ने कहा,”अब इस कागज़ में लिखी किसी दूसरे की समस्या पढो। अगर चाहो तो मैं तुम्हारी समस्या दूर कर दूँगा पर उसके बदले कागज़ पर लिखी समस्या तुम्हारी हो जाएगी। तुम्हें लगता है कि तुम्हारी समस्या बडी है तो उसे दूर करवाकर कागज़ पर लिखी दूसरे की छोटी-सी समस्या अपना लो। चाहो तो आपस में कागज़ बदल लो। जब तय कर लो कि अपनी समस्या के बदले कौन सी समस्या लोगे तब मेरे पास आ जाना। लोगों ने जब कागज़ पर लिखी समस्या पढी तो वे घबरा गए। लोग एक दूसरे से कागज़ बदल-बदल कर पढ रहे और बार-बार उन्हें लगता कि उनकी समस्या तो जैसी है वैसी है, पर इस नई समस्या का सामना वे कैसे कर पाएंगे। कुछ देर में हर किसी को समझ में आ गया कि उनकी समस्या जैसी भी है उनके अपने जीवन का हिस्सा है और वे उसी का सामना कर सकते हैं। एक-एक कर के लोग चुपचाप वहाँ से चले गये।

Wednesday 15 May 2013

16.05.13


SON: "Daddy, may I ask you a question?"
DAD: "Yeah sure, what is it?"
SON: "Daddy, how much do you make an hour?"
DAD: "That's none of your business. Why do you ask such a thing?"
SON: "I just want to know. Please tell me, how much do you make an hour?"
DAD: "If you must know, I make $100 an hour."
SON: "Oh! (With his head down).
SON: "Daddy, may I please borrow $50?"
The father was furious.
DAD: "If the only reason you asked that is so you can borrow some money to buy a silly toy or some other nonsense, then you march yourself straight to your room and go to bed. Think about why you are being so selfish. I work hard everyday for such this childish behavior."

The little boy quietly went to his room and shut the door.
The man sat down and started to get even angrier about the little boy's questions. How dare he ask such questions only to get some money?
After about an hour or so, the man had calmed down, and started to think:
Maybe there was something he really needed to buy with that $ 50 and he really didn't ask for money very often. The man went to the door of the little boy's room and opened the door.

DAD: "Are you asleep, son?"

SON: "No daddy, I'm awake".
DAD: "I've been thinking, maybe I was too hard on you earlier. It's been a long day and I took out my aggravation on you. Here's the $50 you asked for."

The little boy sat straight up, smiling.
SON: "Oh, thank you daddy!"
Then, reaching under his pillow he pulled out some crumpled up bills. The man saw that the boy already had money, started to get angry again. The little boy slowly counted out his money, and then looked up at his father.

DAD: "Why do you want more money if you already have some?"

SON: "Because I didn't have enough, but now I do.

"Daddy, I have $100 now. Can I buy an hour of your time? Please come home early tomorrow. I would like to have dinner with you."
The father was crushed. He put his arms around his little son, and he begged for his forgiveness. It's just a short reminder to all of you working so hard in life. We should not let time slip through our fingers without having spent some time with those who really matter to us, those close to our hearts. Do remember to share that $100 worth of your time with someone you love? If we die tomorrow, the company that we are working for could easily replace us in a matter of days. But the family and friends we leave behind will feel the loss for the rest of their lives. And come to think of it, we pour ourselves more into work than to our family.

Some things are more important.

Tuesday 14 May 2013

15.05.13


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मीरा के प्रभु , गिरधर गोपाल ! दुसरो न कोई .
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संत मीरा बाई अपने
कुछ भक्त के साथ हरि नाम संकीर्तन करते हुए अपने
कान्हा के धाम वृंदावन जा रही थीं ,

एक दिन संध्या हो चला था ,
उनके एक भक्त ने कहा
“ माँ, अब हमें आगे नहीं जाना चाहिए हमारे साथ भक्त की टोली में बच्चे और स्त्री साधक अनेक हैं , आगे घना जंगल है , हम आसपास यहीं कहीं रात्री काट लेते हैं “|

संत मीरा बाई ने
भी हामी भर दी और कहा की पूरी टोली के लिए कोई आसरा देखो |

एक भक्त ने कहा
“ कुछ ही दूरी पर एक संत का बड़ा आश्रम है हम सब वहीं रुक जाएगे |

माँ ने हामी भर दी |

पूरी टोली उस आश्रम पहुंची | आश्रम का एक सेवक द्वार पर खड़ा था ,

मीराबाई ने कहा
“ क्या मुझे और मेरी भक्त की टोली को रात्रि निवास के लिए स्थान मिलेगा ?”

सेवक ने कहा
“ मैं स्वामीजी से
पूछ कर बताता हूँ “ |

सेवक ने स्वामीजी से मिलने के पश्चात आकर बोला
“ स्वामीजी ने
कहा है इस आश्रम में मात्र पुरुष ही रुक सकते हैं ,
यहाँ सब ब्रह्मचारी रहते हैं “|

मीरा बाई ने पंक्ति लिखकर उस सेवक को पकड़ा दी और कहा
“अपने स्वामीजी को देकर आयें “ |

स्वामीजी ने जैसे ही उस पंक्ति को पढ़ा वे दौड़ कर आए और मीरबाई के चरणों में गिर पड़े और कहा
“ माँ, हमे क्षमा करना, हम आपको पहचान नहीं पाये |

“ मीराबाई ने जो एक पंक्ति लिखकर भेजी थी वह इस प्रकार थी

“ मुझे लगा था कि इस संसार में एक ही पुरुष है-
श्री कृष्ण और शेष सभी नारी ,
आज पता चला कि दो पुरुष हैं !!!

जय श्री कृष्ण “ |
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जय जय श्री राधे-श्याम
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Monday 13 May 2013

14.05.13


एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।

कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'

उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।

दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

Sunday 12 May 2013

13.05.13


 दीवार को उधेड़ रहा तो उसने
देखा कि वहां दीवार में एक
छिपकली फंसी हुई थी।
छिपकली के एक पैरमें कील
ठुकी हुईथी। उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने
इस मामले में उत्सुकता दिखाई
और गौर से उस छिपकली के पैर में
ठुकी कील को देखा। अरे यह
क्या! यह तो वही कील है जो दस
साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी। यह क्या !!!!
क्यायह छिपकली पिछले दस
सालों से इसी हालत से दो चार
है? दीवार के अंधेरे हिस्से में
बिना हिले-डुले पिछले दस
सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग
इसको गवारा नहीं कर रहा। उसे
हैरत हुई।यह छिपकली पिछले दस
सालों से आखिरजिंदा कैसे है!!!
बिना एक कदम हिले-डुले
जबकि इसके पैर में कील ठुकी है! उसने अपना काम रोक दिया और
उस छिपकली को गौर से देखने
लगा। आखिर यह अब तक कैसे रह
पाई औरक्या और किस तरह
की खुराक इसे अब तक मिल पाई।
इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने
कहां से वहां आई जिसके मुंह में
खुराक थी।
अरे!!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल
गया। यह दूसरी छिपकली पिछले
दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।
जरा गौर कीजिए वह
दूसरी छिपकली बिना थके और
अपने साथी की उम्मीद छोड़े
बिना लगातार दस साल से उसे
खिलाती रही।आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप
अपने जीवनसाथी के लिए

ऐसी कोशिश कर सकते हैं?
सोचिए क्या तुम अपनी मां के
लिए ऐसा कर सकते हो जो तुम्हें
नौ माह तक परेशानीपर परेशानी उठाते हुए अपनी कोख
में लिए-लिए फिरती है?
और कम से कम अपने पिता के लिए,
अपने भाई- बहिनों के लिए
या फिर अपने दोस्त के लिए?

गौर और फिक्र कीजिए अगर एक छोटा सा जीव ऐसा कर
सकता है तो वह जीव
क्यों नहीं जिसको ईश्वर ने सबसे
ज्यादा अक्लमंद बनाया है..

Saturday 11 May 2013

12.05.13


पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा

कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए वह इनका सदुपयोग ही करेंगे

मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस मे उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा भाई तुमने मुझे किराए के रुपये काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे

कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी हो?

पंडित जी को हामी भरने पर कंडक्टर बोला मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा है आपको बस मे देखातो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं ज्यादा पैसे लौटाऊँ तो आप क्या करते हो अब मुझे पता चल गया की आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है जिससे सभी को सिख लेनी चाहिए

ये बोलकर कंडक्टर ने गाड़ी आगे बड़ा दी

पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से कहा है प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी पर तूने सही समय पर मुझे थाम लिया....!

जय जय श्रीराम

Friday 10 May 2013

11.05.13


 एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे |

जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी|
पर साधु ने कहा-
” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”

धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया, और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा ,इतने में वहां से एक नाव गुजरी|

मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”

“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.

नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.
कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”

उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |

कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |

मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?

भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”

मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की प्रतीक्षा नहीं करते है , वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

Thursday 9 May 2013

10.05.13


एक 8 साल के एक लडके की माँ मर जाती है..! बाप ने दूसरी शादी कर ली...
एक दिन बाप ने अपने लडके से पुछा कि बेटा, तुझे अपनी नई माँ और अपनी मरी हुई माँ मेँ क्या फर्क लगा..?
तो वह लडका बोला : मेरी नई माँ सच्ची है और मरी हुई माँ झुठी थी..!!
यह सुनकर बाप अचरज मेँ पड गया,
फिर बोला : क्यु बेटा तुझे ऐसा लगता है..? जिसने तुझे अपनी कोख से जन्म दिया वह
झुठी और कल आई हुई माँ सच्ची क्यु लगती है..?
तो लडका बोला : जब मैँ मस्ती करता था तब मेरी माँ कहती थी कि"अगर तु इस
तरह करेगा तो तुझे खाना नही दुगीँ"फिर भी मैँ बहुत मस्ती करता रहता था.
और मुझे पुरे गाँव मेँ से ढुढँ कर घर लाती और अपने पास बिठाकर अपने हाथो से खाना खिलाती थी..!!
और यह नई माँ कहती है कि"अगर तु
मस्ती करेगा तो तुझे खाना नही दुँगी.... और सच मेँ उसने मुझे आज तीन दिन से खाना नही दिया...;(

Wednesday 8 May 2013

09.05.13


बस रुकी तो एक बुढ़िया बस में चढ़ी। सीट
खाली न पाकर वह आगे ही खड़ी हो गयी।
बस झटके के साथ चली तो वह लड़खड़ाकर गिर पड़ी। सीटों पर बैठे लोगों ने उसे गिरते हुए देखा। जब तक कोई उठकर उसे उठाता, वह उठी और पास की एक सीट को कसकर पकड़कर खड़ी हो गई।
जिस सीट के पास वह खड़ी थी, उस पर बैठे पुरुष ने उसे बस में चढ़ते, अपने पास
खड़ा होते और गिरते देखा था। लेकिन अन्य बैठी सवारियों की भाँति वह
भी चुप्पी साधे बैठा रहा।
अब बुढ़िया मन ही मन बड़बड़ा रही थी--
कैसा जमाना आ गया है! बूढ़े लोगों पर
भी लोग तरस नहीं खाते। इसे देखो, कैसे
पसरकर बैठा है। शर्म नहीं आती, एक
बूढ़ी-लाचार औरत पास में खड़ी है, लेकिन
मजाल है कि कह दे, आओ माताजी, यहाँ बैठ जाओ...।
तभी, उसके मन ने कहा-- क्यों कुढ़
रही है ?... क्या मालूम यह बीमार हो ?
अपाहिज हो ? इसका सीट पर
बैठना ज़रूरी हो। इतना सोचते ही वह
अपनी तकलीफ़ भूल गयी। लेकिन, मन
था कि वह कुछ देर बाद फिर कुढ़ने लगी--
क्या बस में बैठी सभी सवारियाँ बीमार-
अपाहिज हैं ?... दया-तरस नाम की तो कोई चीज रही ही नहीं।
इधर जब से वह बुढ़िया बस में चढ़ी थी,
पास में बैठे पुरुष के अन्दर भी घमासान
मचा हुआ था। बुढ़िया पर उसे दया आ
रही थी। वह उसे सीट देने की सोच
रहा था, पर मन था कि वहाँ से दूसरी ही आवाज निकलती-- क्यों उठ जाऊँ? सीट पाने के लिए तो वह एक स्टॉप पीछे से बस में चढ़ा है। सफ़र भी कोई छोटा नहीं है। पूरा सफ़र खड़े होकर यात्रा करना कितना कष्टप्रद है। और फिर, दूसरे भी तो देख रहे हैं, वे क्यों नहीं इस बुढ़िया को सीट दे देते?
इधर, बुढ़िया की कुढ़न जारी थी और उधर
पुरुष के भीतर का द्वंद्व। उसके लिए सीट
पर बैठना कठिन हो रहा था--
क्या पता बेचारी बीमार हो?.. शरीर में
तो जान ही दिखाई नहीं देती।
हड्डियों का पिंजर। न जाने कहाँ तक
जाना है बेचारी को ! तो क्या हुआ ?.. न,
न ! तुझे सीट से उठने की कोई ज़रूरत नहीं।
--माताजी, आप बैठो। आखिर वह उठ
खड़ा हुआ। बुढ़िया ने पहले कुछ सोचा, फिर सीट पर सिकुड़कर बैठते हुए बोली-- तू भी आ जा पुत्तर, बैठ जा मेरे संग। थक
जाएगा खड़े-खड़े।

Tuesday 7 May 2013

08.05.13


एक किसान था. वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.
रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया.
किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.
वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा .
” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”
और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर ये क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था की पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा ,” क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था !! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुक्सान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता Friends, इस किसान की तरह ही हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाये तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बात की है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से ठोकर मार कर आगे बढ़ सकते हैं.

Monday 6 May 2013

07.05.13


~~~~~~सच्चा प्रेम~~~~~~
एक गरीब आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था।
एक दिन पत्नी ने अपने लिए एक कंघे की फरमाइश की ताकि वह अपने लम्बे बालों की देखभाल ठीक से कर सके। पति ने बहुत दुखी मन से मना करते हुई बताया कि पैसे न होने के कारण वह अपनी घड़ी का टूटा हुआ पट्टा भी नहीं सुधरवा पा रहाहै। पत्नी नेअपनी बात पर जोर नहीं दिया।
पति काम पर जाते समय एक घड़ी-दुकान के सामने से गुजरा, उसने अपनी टूटी घड़ी कम दाम पर बेचकर एक कंघा खरीद लिया।
शाम घर आते समय वह खुश था कि अपनी पत्नी को नया कंघा दे सकेगा किन्तु अपनी पत्नी के छोटे-छोटे बाल देखकर चकित रह गया। उसकी पत्नीअपने बाल बेचकर घड़ी का नया पट्टा हाथ में लेकरखड़ी थी।
यह देखकर दोनों की आँखों से एक साथ आँसू बहने लगे। यह अश्रुपात अपना प्रयास के विफल होने के कारण न होकर एक दूसरे के प्रति पारस्परिक प्रेम केआधिक्यके कारण था।
वास्तव में प्यार करना कुछनहीं है, प्यार पाना कुछ उपलब्धि है किन्तु प्यार करने के साथ-साथ प्रेमपत्रका प्यार पाना ही सच्ची उपलब्धि है। प्यार को अपनेआप मिली वस्तु न मानें, प्यार पाने के लिए प्यार दें।

Sunday 5 May 2013

06.05.13


एक किसान को गाँव
के साहूकार से कुछ धन उधार लेना पड़ा।
बूढा साहूकार बहुत चालाक
और धूर्त था, उसकी नज़र किसान
की खूबसूरत बेटी पर थी।
अतः उसने किसान से एक सौदा करने
का प्रस्ताव रखा। उसने
कहा कि अगर
किसान अपनी बेटी की शादी साहूकार
से कर दे
तो वो उसका सारा कर्ज माफ़
कर देगा। किसान और उसकी बेटी,
साहूकार के इस प्रस्ताव से कंपकंपा उठे।
तब साहूकार ने उनसे कहा कि ठीक
है,अब ईश्वर को ही यह
मामला तय करने देते हैं। उसने
कहा कि वो दो पत्थर
उठाएगा,एक काला और एक सफ़ेद, और
उन्हें एक खाली थैले में
डाल देगा। फिर किसान
की बेटी को उसमें से एक पत्थर
उठाना होगा-
१-अगर
वो काला पत्थर उठाती है
तो वो मेरी पत्नी बन
जायेगी और किसान का सारा कर्ज
माफ़ हो जाएगा ,
२-अगर वो सफ़ेद पत्थर उठाती है
तो उसे साहूकार से शादी करने
की जरूरत नहीं रहेगी और फिर
भी किसान का कर्ज माफ़ कर
दिया जाएगा,
३-पर अगर वो पत्थर उठाने से
मना करती है तो किसान को जेल में
डाल दिया जाएगा।
वो लोग किसान के खेत में एक
पत्थरों से भरी पगडण्डी पर
खड़े थे, जैसे ही वो बात कर रहे थे,
साहूकार ने नीचे झुक कर
दो पत्थर उठा लिये, जैसे ही उसने
पत्थर उठाये, चतुर बेटी ने
देख लिया कि उसने दोनों ही काले
पत्थर उठाये हैं और उन्हें
थैले में डाल दिया। फिर साहूकार ने
किसान की बेटी को थैले में से एक
पत्थर
उठाने के लिये कहा। अब किसान
की बेटी के लिये
बड़ी मुश्किल हो गयी, अगर
वो मना करती है तो उसके
पिता को जेल में डाल दिया जाएगा,
और अगर पत्थर उठाती है
तो उसे साहूकार से
शादी करनी पड़ेगी।
किसान की बेटी बहुत समझदार थी,
उसने थैले में हाथ डाला और एक पत्थर
निकाला, उसे देखे बिना ही घबराहट
में पत्थरों से
भरी पगडण्डी पर नीचे गिरा दिया,
जहां वो गिरते ही अन्य
पत्थरों के बीच गुम हो गया।
"हाय, मैं भी कैसी अनाड़ी हूँ", उसने
कहा, " किन्तु कोई बात
नहीं, अगर आप थैले में दूसरा पत्थर देखेंगे
तो पता चल
जाएगा कि मैंने कौनसा पत्थर
उठाया था।" क्योंकि थैले में
अभी दूसरा पत्थर है, किसान की बेटी
जानती थी कि थैली से केवल काला
पत्थर निकलेगा और यही
माना जायेगा कि उसने सफ़ेद
पत्थर उठाया था और
साहूकार भी अपनी बेईमानी को स्वीकार
नहीं कर पाता इस तरह होशियार किसान
की बेटी ने असंभव को संभव
कर दिखाया।

"बड़ी से बड़ी समस्या का भी हल होता है, बस
हम उसे हल करने का कदम नहीं उठाते"

Saturday 4 May 2013

05.05.13


एक फकीर 50 साल से एक ही जगह बैठकर रोज की 5 नमाज पढता था.
एक दिन आकाशवाणी हुई और खुदा की आवाज आई
"हे फकीर.!
तु 50 साल से नमाज पढ रहा है, लेकिन तेरी एक भी नमाज कबुल नही हुई"
फकीर के साथ बैठने वाले दुसरे बंदो को भी दु:ख हुआ कि,
यह बाबा 50 साल से नमाज पढ रहे है और इनकी एक भी नमाज कबुल नही हुई.
...
खुदा यह तेरा कैसा न्याय.?
लेकिन फकीर दु:खी होने के बजाय खुशी से नाचने लगा.
दुसरे लोगो ने फकीर को देखकर आश्चर्य हुआ.
एक बंदा फकीर से बोला : बाबा, आपको तो दु:ख होना चाहिए कि आपकी 50 साल कि बंदगी बेकार गई.!
फकीर ने जवाब दिया : " मेरी 50 साल की बंदगी भले ही कबुल ना हुई तो क्या हुआ...!!! लेकिन खुदा को तो पता है ना कि मैँ 50 साल से बंदगी कर रहा हूँ "
इसिलिए दोस्तो जब आप मेहनत करते हो और फल ना मिले तो निराश मत होना,
क्युकिँ
अल्लाह को तो पता है ही कि आप मेहनत कर रहे है, इसिलिए फल तो जरुर देगें..!!

Friday 3 May 2013

04.05.13


बहुत पुरानी बात है. मिस्र देश में एक सूफी संत रहते थे जिनका नाम ज़ुन्नुन था. एक नौजवान ने उनके पास आकर पूछा, “मुझे समझ में नहीं आता कि आप जैसे लोग सिर्फ एक चोगा ही क्यों पहने रहते हैं!? बदलते वक़्त के साथ यह ज़रूरी है कि लोग ऐसे लिबास पहनें जिनसे उनकी शख्सियत सबसे अलहदा दिखे और देखनेवाले वाहवाही करें”.
ज़ुन्नुन मुस्कुराये और अपनी उंगली से एक अंगूठी निकालकर बोले, “बेटे, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब ज़रूर दूंगा लेकिन पहले तुम मेरा एक काम करो. इस अंगूठी को सामने बाज़ार में एक अशर्फी में बेचकर दिखाओ”.
नौजवान ने ज़ुन्नुन की सीधी-सादी सी दिखनेवाली अंगूठी को देखकर मन ही मन कहा, “इस अंगूठी के लिए सोने की एक अशर्फी!? इसे तो कोई चांदी के एक दीनार में भी नहीं खरीदेगा!”
“कोशिश करके देखो, शायद तुम्हें वाकई कोई खरीददार मिल जाए”, ज़ुन्नुन ने कहा.
नौजवान तुरत ही बाज़ार को रवाना हो गया. उसने वह अंगूठी बहुत से सौदागरों, परचूनियों, साहूकारों, यहाँ तक कि हज्जाम और कसाई को भी दिखाई पर उनमें से कोई भी उस अंगूठी के लिए एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ. हारकर उसने ज़ुन्नुन को जा कहा, “कोई भी इसके लिए चांदी के एक दीनार से ज्यादा रकम देने के लिए तैयार नहीं है”.
ज़ुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब तुम इस सड़क के पीछे सुनार की दुकान पर जाकर उसे यह अंगूठी दिखाओ. लेकिन तुम उसे अपना मोल मत बताया, बस यही देखना कि वह इसकी क्या कीमत लगाता है”.
नौजवान बताई गयी दुकान तक गया और वहां से लौटते वक़्त उसके चेहरे पर कुछ और ही बयाँ हो रहा था. उसने ज़ुन्नुन से कहा, “आप सही थे. बाज़ार में किसी को भी इस अंगूठी की सही कीमत का अंदाजा नहीं है. सुनार ने इस अंगूठी के लिए सोने की एक हज़ार अशर्फियों की पेशकश की है. यह तो आपकी माँगी कीमत से भी हज़ार गुना है!”
ज़ुन्नुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “और वही तुम्हारे सवाल का जवाब है. किसी भी इन्सान की कीमत उसके लिबास से नहीं आंको, नहीं तो तुम बाज़ार के उन सौदागरों की मानिंद बेशकीमती नगीनों से हाथ धो बैठोगे. अगर तुम उस सुनार की आँखों से चीज़ों को परखने लगोगे तो तुम्हें मिट्टी और पत्थरों में सोना और जवाहरात दिखाई देंगे. इसके लिए तुम्हें दुनियावी नज़र पर पर्दा डालना होगा और दिल की निगाह से देखने की कोशिश करनी होगी. बाहरी दिखावे और बयानबाजी के परे देखो, तुम्हें हर तरफ हीरे-मोती ही दिखेंगे”.

Thursday 2 May 2013

03.05.13


बड़ी मेहनत और लगन से पढ़ा था वो, जब उसके दोस्त और साथी मंहगे मंहगे टूशन पढ़ते थे, वो अपने पड़ोस के बच्चों को पढाया करता था, ताकि अपने स्कूल की फीस और किताबों का खर्च उठा सके..शायद ही वो सिनेमा देखने गया हो, और अच्छे कपडे ना होने की वजह से वो ज्यादा पार्टियों में भी नहीं जाता था..उसकी मुस्कराहट एक गंभीरता सी ओढ़े रहती थी, शायद उसकी उम्र कहती थी की हंस खेल ले, लेकिन परिवार की गरीबी दूर करने का बोझ उसे गंभीर बनाए रहता था.
खैर 78% के साथ उसने 12vi पास की और फर्स्ट एटेम्पट में Btech में एडमिशन भी हो गया.
फीस के लिए भारी भरकम बैंकलोन के तले भविष्य की खुशियों के लिए वर्तमान की खुशियों को नज़रंदाज़ करता हुआ, अपने दोस्तों को पढ़ता हुआ, मेहनत करता हुआ वो चला जा रहा था..आज उसके कॉलेज में प्लेसमेंट डे था..अच्छा एकेडमिक रिकॉर्ड रहा था उसका..सबको उम्मीद है की आज उसकी नौकरी लग जायेगी, पिताजी मन ही मन खुश हैं, और हर आहट के साथ दरवाजे की ओर देख रहे हैं, माँ ने आज उसके पसंद का हलवा बनाया है, उधर वो खड़ा है आंसुओं में, जिन्दगी के दोराहे पे, अपने मार्कशीट ओर सर्टिफिकेट लिए, बेरोजगार, बैंक के लोन तले, क्यूंकि इंटरव्यू लेने वाले ने बताया उसे इंजिनियर बनने के लिए इंजीनियरिंग तो आती थी, लेकिन नौकरी करने लायक अंग्रेजी नहीं..उसके चेहरे पे गंभीरता तो वही है, लेकिन फीकी सी ख़ुशी आज गायब है..शायद सपने टूटने से हौसले नहीं टूटा करते.


Wednesday 1 May 2013

02.05.13


एक छोटा बच्चा एक बड़ी दूकान पर लगे टेलीफोनबूथ पर जाता हैं और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं| दूकान का मालिक उस
लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं लड़का- मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की साफ़ सफाई का काम देंगी?

औरत- (दूसरी तरफ से) नहीं, मैंने एक दुसरे लड़के को अपने बगीचे का काम देखने के लिए रखलिया हैं|

लड़का- मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस लड़के से आधे वेतन में करने को तैयार हूँ!

औरत- मगर जो लड़का मेरे बगीचे का काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ|

लड़का- ( और ज्यादा विनती करते हुए) मैडम मैं आपके घर की सफाई भी फ्री में करदिया करूँगा!!

औरत- माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत नहीं हैं धन्यवाद|

लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया| दूकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था वह लड़के के पास आया और बोला- " बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ, मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ"

लड़का- नहीं सर मुझे जॉब की जरुरत नहीं हैं आपका धन्यवाद|

दुकानमालिक- (आश्चर्य से) अरे अभी तो तुमउस लेडी से जॉब के लिए इतनी विनती कर रहे थे !!

लड़का- नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था, उन्ही के यहाँ पर जॉब करता हूँ|

*"This is called Self Appraisal" "आप अपना बेहतर दीजिये, फिर देखिये