Wednesday 29 May 2013

30.05.13


एक बार एक यज्ञ मे नारद जी ने सत्यभामा जी से दान-स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को ही माँग लिया !
बड़ी दुविधा पैदा हो गई क्योकि सत्यभामा जी से भगवान श्री कृष्ण के जुदा होने का मतलब था देह से प्राणो का जुदा होना !काफी सोच-विचार के बाद तय किया गया कि भगवान की जगह उनके तुल्य स्वर्ण ही दे दिया जाय !अब एक पलड़े मे प्रभु बैठे और दूसरे मे स्वर्ण रखा जाने लगा लेकिन यह क्या ?स्वर्ण का तो पहाड़ खड़ा कर दिया गया परन्तु भगवान का पलड़ा ज्यो का त्यो धरती से लगा रहा ;जरा भी ना उठा !
जब सारे प्रयास असफल हो गये तो श्री कृष्ण की दूसरी रानी रुक्मिणी जी ने प्रभु के नाम सुमिरन का आसरा लिया !एक तुलसी पत्र लिया और सुमिरन करके स्वर्ण वाले पलड़े मे रख दिया !बस उसी क्षण चमत्कार घटा ;दोनो पलड़े बराबर हो गये !
इस संसार मे प्रभु के बराबर कोई है तो वह है स्वयं उनका नाम !वास्तव मे नाम और नामी दोनो मे कोई भिन्नता नही है !वस्तुतः दोनो एक ही तत्व है

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