Tuesday, 14 May 2013

15.05.13


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मीरा के प्रभु , गिरधर गोपाल ! दुसरो न कोई .
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संत मीरा बाई अपने
कुछ भक्त के साथ हरि नाम संकीर्तन करते हुए अपने
कान्हा के धाम वृंदावन जा रही थीं ,

एक दिन संध्या हो चला था ,
उनके एक भक्त ने कहा
“ माँ, अब हमें आगे नहीं जाना चाहिए हमारे साथ भक्त की टोली में बच्चे और स्त्री साधक अनेक हैं , आगे घना जंगल है , हम आसपास यहीं कहीं रात्री काट लेते हैं “|

संत मीरा बाई ने
भी हामी भर दी और कहा की पूरी टोली के लिए कोई आसरा देखो |

एक भक्त ने कहा
“ कुछ ही दूरी पर एक संत का बड़ा आश्रम है हम सब वहीं रुक जाएगे |

माँ ने हामी भर दी |

पूरी टोली उस आश्रम पहुंची | आश्रम का एक सेवक द्वार पर खड़ा था ,

मीराबाई ने कहा
“ क्या मुझे और मेरी भक्त की टोली को रात्रि निवास के लिए स्थान मिलेगा ?”

सेवक ने कहा
“ मैं स्वामीजी से
पूछ कर बताता हूँ “ |

सेवक ने स्वामीजी से मिलने के पश्चात आकर बोला
“ स्वामीजी ने
कहा है इस आश्रम में मात्र पुरुष ही रुक सकते हैं ,
यहाँ सब ब्रह्मचारी रहते हैं “|

मीरा बाई ने पंक्ति लिखकर उस सेवक को पकड़ा दी और कहा
“अपने स्वामीजी को देकर आयें “ |

स्वामीजी ने जैसे ही उस पंक्ति को पढ़ा वे दौड़ कर आए और मीरबाई के चरणों में गिर पड़े और कहा
“ माँ, हमे क्षमा करना, हम आपको पहचान नहीं पाये |

“ मीराबाई ने जो एक पंक्ति लिखकर भेजी थी वह इस प्रकार थी

“ मुझे लगा था कि इस संसार में एक ही पुरुष है-
श्री कृष्ण और शेष सभी नारी ,
आज पता चला कि दो पुरुष हैं !!!

जय श्री कृष्ण “ |
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जय जय श्री राधे-श्याम
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