*. मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता।
*. आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
*. प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते।
...
*. तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक।हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले।
*. धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती।
*. पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता।
*. प्रजा के सुख में ही राजाका सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।
*. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है।
*. कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है।
*. आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्तिके समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें ।)
*. आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
*. प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते।
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*. तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक।हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले।
*. धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती।
*. पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता।
*. प्रजा के सुख में ही राजाका सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।
*. मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है।
*. कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है।
*. आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्तिके समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें ।)
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