जीवन में संयम एक तलवार की धार पर चलने जैसा है.
जीवन में संयम रखना बहुत ही बड़ा काम है. कई बार देखा गया है कि संयमी आदमी भी थोड़ी सी छूट मिलने के पश्चात सभी बाँध तोड़ देता है. ऐसी ही एक कहानी है जिसमे पुरुष को थोड़ी सी छूट और लालच / आकर्षण मिलने के कारण एक ही वर्ष में जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा.
रमेश एक पढ़ा लिखा सम्पन्न परिवार का व्यक्ति. उम्र लगभग ५० वर्ष. बैंक में नौकरी. परिवार में सुशील पत्नी और दो बेटे. कोई बुरी आदत नहीं. बैंक में क्लर्क की नौकरी से शुरुवात की. कोई प्रमोशन नहीं लिया. ५० की उम्र होने पर यह सोचकर की अब बच्चे बड़े हो गए हैं और पत्नी और बच्चे घर संभाल लेंगे और रिटायरमेंट को १० वर्ष बचे हैं, प्रमोशन ले लिया. प्रमोशन के पश्चात बैंक ने ट्रान्सफर २५०-३०० कि. मी. दूर के नगर में कर दिया. रमेश पत्नी और बच्चों को छोड़कर अकेले ही चले गए. यह सोचकर कि स्वयं अकेले रह लेंगे पत्नी और बच्चों को क्यों परेशान करें और कुछ वर्ष बाहर नौकरी करके वापस आ जायेंगे.
नयी जगह बैंक में ज्वाइन करने के पश्चात एक मित्र के साथ मकान साझा कर लिया. मित्र को पीने पिलाने का शौक. रमेश ने कभी पी नहीं. पर होनी अपना काम करती है. इस उम्र में रमेश को मित्र के आग्रह करने पर पीने की लत लग गई. छुट्टियों में घर जाना छोड़ दिया. पत्नी को शंका हुई और वह आई तब तक रमेश तो पक्का शराबी बन चुका था. पत्नी रमेश को सम्हालती इसके पहले ही रमेश की दाढ़ में दर्द रहने लगा. डॉक्टर को दिखाया तो मालूम पडा कि दाढ़ में कैंसर हो गया है. ऑपरेशन की बात आई तो मालूम पडा कि हार्ट में भी समस्या है और ऑपरेशन नहीं हो सकता. कई डॉक्टर आदि को दिखाया पर लाभ नहीं हुआ और दो महीने की बीमारी के बाद रमेश का, बहुत ही कष्ट भोग कर, निधन हो गया.
जब तक रमेश परिवार में पत्नी और बच्चों के साथ था, शायद परिवार में रहने के कारण उसे कोई आदत नहीं लगी पर अकेले मित्र के साथ रहने पर जैसे एक दम छूट मिल गई और बीमारियों ने शरीर पर कब्जा कर लिया. जिसका परिणाम रमेश के निधन के रूप में हुआ.
जीवन में संयम रखना बहुत ही बड़ा काम है. कई बार देखा गया है कि संयमी आदमी भी थोड़ी सी छूट मिलने के पश्चात सभी बाँध तोड़ देता है. ऐसी ही एक कहानी है जिसमे पुरुष को थोड़ी सी छूट और लालच / आकर्षण मिलने के कारण एक ही वर्ष में जिन्दगी से हाथ धोना पड़ा.
रमेश एक पढ़ा लिखा सम्पन्न परिवार का व्यक्ति. उम्र लगभग ५० वर्ष. बैंक में नौकरी. परिवार में सुशील पत्नी और दो बेटे. कोई बुरी आदत नहीं. बैंक में क्लर्क की नौकरी से शुरुवात की. कोई प्रमोशन नहीं लिया. ५० की उम्र होने पर यह सोचकर की अब बच्चे बड़े हो गए हैं और पत्नी और बच्चे घर संभाल लेंगे और रिटायरमेंट को १० वर्ष बचे हैं, प्रमोशन ले लिया. प्रमोशन के पश्चात बैंक ने ट्रान्सफर २५०-३०० कि. मी. दूर के नगर में कर दिया. रमेश पत्नी और बच्चों को छोड़कर अकेले ही चले गए. यह सोचकर कि स्वयं अकेले रह लेंगे पत्नी और बच्चों को क्यों परेशान करें और कुछ वर्ष बाहर नौकरी करके वापस आ जायेंगे.
नयी जगह बैंक में ज्वाइन करने के पश्चात एक मित्र के साथ मकान साझा कर लिया. मित्र को पीने पिलाने का शौक. रमेश ने कभी पी नहीं. पर होनी अपना काम करती है. इस उम्र में रमेश को मित्र के आग्रह करने पर पीने की लत लग गई. छुट्टियों में घर जाना छोड़ दिया. पत्नी को शंका हुई और वह आई तब तक रमेश तो पक्का शराबी बन चुका था. पत्नी रमेश को सम्हालती इसके पहले ही रमेश की दाढ़ में दर्द रहने लगा. डॉक्टर को दिखाया तो मालूम पडा कि दाढ़ में कैंसर हो गया है. ऑपरेशन की बात आई तो मालूम पडा कि हार्ट में भी समस्या है और ऑपरेशन नहीं हो सकता. कई डॉक्टर आदि को दिखाया पर लाभ नहीं हुआ और दो महीने की बीमारी के बाद रमेश का, बहुत ही कष्ट भोग कर, निधन हो गया.
जब तक रमेश परिवार में पत्नी और बच्चों के साथ था, शायद परिवार में रहने के कारण उसे कोई आदत नहीं लगी पर अकेले मित्र के साथ रहने पर जैसे एक दम छूट मिल गई और बीमारियों ने शरीर पर कब्जा कर लिया. जिसका परिणाम रमेश के निधन के रूप में हुआ.
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