रघुवीर अपने बीमार बच्चे के लिए फल
खरीदने के लिए आया था। फलों के बढ़े हुए
दाम सुनकर मन ही मन सोच रहा था,
‘क्या लूं और क्या न लूं? लूं भी कुछ या न लूं?
लेना तो पड़ेगा थोड़ा बहुत शंकर के लिए।
खरीदने के लिए आया था। फलों के बढ़े हुए
दाम सुनकर मन ही मन सोच रहा था,
‘क्या लूं और क्या न लूं? लूं भी कुछ या न लूं?
लेना तो पड़ेगा थोड़ा बहुत शंकर के लिए।
कितनी महंगाई हो गई है? फलों के दाम
भी कहां से कहां पहुंच गए हैं?’
तभी एक अमीर महिला कार से उतरी। उसने
बिना दाम पूछे एक किलो बढ़िया सेब और
एक दर्ज़न बढ़िया केले खरीदे और पांच
सौ रुपए का नोट निकालकर दुकानदार
को पकड़ा दिया। दुकानदार ने चार सौ और कुछ
रुपए उसे वापस कर दिए। रुपए वापस मिलते
देख बरबस ही उस महिला के मुंह से निकला,
‘फ्रूट्स तो सस्ते ही चल रहे हैं।’
यह सुनकर रघुवीर ने उस औरत की तरफ देखा।
उसे लगा कि महंगाई नहीं बढ़ी है, सिर्फ
उसी के पास रुपए नहीं है। जिसके पास रुपए
हैं, उसके लिए कोई महंगाई नहीं है।
भी कहां से कहां पहुंच गए हैं?’
तभी एक अमीर महिला कार से उतरी। उसने
बिना दाम पूछे एक किलो बढ़िया सेब और
एक दर्ज़न बढ़िया केले खरीदे और पांच
सौ रुपए का नोट निकालकर दुकानदार
को पकड़ा दिया। दुकानदार ने चार सौ और कुछ
रुपए उसे वापस कर दिए। रुपए वापस मिलते
देख बरबस ही उस महिला के मुंह से निकला,
‘फ्रूट्स तो सस्ते ही चल रहे हैं।’
यह सुनकर रघुवीर ने उस औरत की तरफ देखा।
उसे लगा कि महंगाई नहीं बढ़ी है, सिर्फ
उसी के पास रुपए नहीं है। जिसके पास रुपए
हैं, उसके लिए कोई महंगाई नहीं है।
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