Saturday 29 December 2012

नरेन्द्र भाई मोदी जी.. 29.12.12

दोस्तों नरेन्द्र भाई मोदी जी ने आज गुजरात में एक बार फिर अपना परचम फहराया है ....आइये जानते हैं उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें ....

1965 में जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो नरेंद्र मोदी करीब 15 साल के थे. उन दिनों वो सुबह ही अपनी टोली के साथ रेलवे स्टेशन पहुंच जाते और रेलवे स्टेशन से होकर गुजरने वाले सैनिकों की सेवा में जुट जाते थे. इसी तरह 1967 में जब गुजरात में भयंकर बाढ़ आई तो नरेंद्र मोदी अपने साथियों के साथ बाढ़ पीड़ितों की मदद और सेवा में कूद पड़े.
-बंद कर दिया था नकम और तेल खाना
आरएसएस से जुड़ने के बाद नरेंद्र मोदी ने नमक और तेल खाना बंद कर दिया था. इससे उनकी मां और भाई प्रह्लाद मोदी डर गए कि कहीं नरेंद्र मोदी फिर से साधु बनने तो नहीं जा रहे हैं.

नरेंद्र मोदी बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए थे. 1958 में दीपावली के दिन गुजरात आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार उर्फ वकील साहब ने नरेंद्र मोदी को बाल स्वयंसेवक की शपथ दिलवाई थी. मोदी आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे. लेकिन जब मोदी ने चाय की दुकान खोली तो शाखाओं में उनका आना जाना कम हो गया.
-प्रचारकों के लिए चाय-नाश्ता बनाते थे मोदी
नरेंद्र मोदी की जीवनी लिखने वाले लेखक एमवी कामथ के मुताबिक गुजरात आरएसएस के दफ्तर हेडगेवार भवन में सुबह नरेंद्र मोदी प्रचारकों के लिए चाय नाश्ता बनाते थे. इसके बाद हेडगेवार भवन के सारे कमरों की सफाई में जुट जाते थे. आठ नौ कमरों की सफाई के बाद अपने और वकील साहब के कपड़े धोने की बारी आती थी.

-मोदी थे मेहनती कार्यकर्ता
नरेंद्र मोदी बहुत मेहनती कार्यकर्ता थे. आरएसएस के बड़े शिविरों के आयोजन में वो अपने मैनेजमेंट का कमाल भी दिखाते थे. आरएसएस नेताओं का ट्रेन और बस में रिजर्वेशन का जिम्मा उन्हीं के पास होता था. इतना ही नहीं गुजरात के हेडगेवार भवन में आने वाली हर चिट्ठी को खोलने का काम भी नरेंद्र मोदी को ही करना होता था.

नरेंद्र मोदी का मैनेजमेंट और उनके काम करने के तरीके को देखने के बाद आरएसएस में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला लिया गया. इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय कार्यालय नागपुर में एक महीने के विशेष ट्रेनिंग कैंप में बुलाया गया.

आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में ट्रेनिंग लेकर नरेंद्र मोदी गुजरात आरएसएस प्रचारक बनकर लौटे. आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को गुजरात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रभारी बना दिया. 1975 में इमरजेंसी के दौरान भी नरेंद्र मोदी के पास यही भूमिका थी.

इमरजेंसी के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने आज के सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन शंकर सिंह बाघेला के साथ मिलकर गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने का काम किया किया और मज़बूत कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की. उन दिनों शंकर सिंह बाघेला जनता के प्रिय नेता थे और मोदी को बेहतरीन रणनीति बनाने के लिए जाना जाता था.

-शुरू से थे थोड़े मनमाने

नरेंद्र मोदी शुरू से ही थोड़े मनमाने थे. उनके पुराने साथी बताते हैं कि मोदी रात में देर से सोने के चलते अक्सर संघ की सुबह की शाखा के लिए लेट हो जाया करते थे और जब सभी कार्यकर्ता फुल स्लीव कुर्ता पहनते तो नरेंद्र मोदी हाफ स्लीव का कुर्ता पहनते थे. जब सभी कार्यकर्ता खाकी नेकर पहनते तो मोदी सफेद रंग का नेकर पहनकर आते थे.
-स्टाइल था जुदा

नरेंद्र मोदी की स्टाइल सारे प्रचारकों से जुदा थी. वो दाढ़ी रखते थे और ट्रिम भी करवाते थे. एक बार आरएसएस के तब के अध्यक्ष माधवराव गोलवलकर ने सबके सामने मोदी से दाढ़ी ट्रिम किए जाने की वजह भी पूछी थी.
इमरजेंसी के दिनों में मोदी ने गुजरात में कई भाषाओं में लाखों की तादाद में संघ की विचारधारा को दर्शाने वाले पर्चे और पोस्टर छपवाए और पूरे देश में बेहद गुप्त तरीके से संघ के दफ्तरों तक पहुंचाने का काम किया.

इमरजेंसी के दौरान ही मोदी को विश्व हिंदू परिषद की एक सभा के संचालन की जिम्मेदारी दी गई. चंदे के तौर पर एक बड़ी रकम वहां इकट्ठा हुई और तमाम विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को उस रकम की चिंता हो रही थी. मोदी ने उसी वक्त जमीन में एक गड्ढा खोदकर उसमें वो सारी रकम दबा दी और खुद अपना गद्दा उसके ऊपर बिछा कर लेट गए.

सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका

90 के दशक में नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्हें उस वक्त के बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा का संयोजक बनाया गया. ये यात्रा दक्षिण में तमिलनाडु से शुरू होकर श्रीनगर में तिरंगा लहराकर खत्म होनी थी.
... जब मिली अनुशासन की नसीहत

नरेंद्र मोदी के शानदार मैनेजमेंट में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा बहुत कामयाब हुई, लेकिन एक दिन जोशी नरेंद्र मोदी पर भड़क गए. दरअसल तय ये हुआ था कि राष्ट्रीय नेताओं और सभी कार्यकर्ताओं को खाना साथ खाना था. लेकिन बंगलुरू में नरेंद्र मोदी अनंत कुमार के साथ गायब हो गए. जोशी इस पर बहुत नाराज हुए. सुबह उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने मोदी को कड़ी फटकार लगाते हुए अनुशासन में रहने की नसीहत दे डाली.
जोशी की एकता यात्रा के बाद से ही नरेंद्र मोदी की महात्वाकांक्षाएं बढ़ने लगीं. मोदी को लगने लगा कि उन्हें गुजरात बीजेपी के सीनियर लीडर्स केशुभाई पटेल और शंकर सिंह बाघेला की हैसियत का समझा जाना चाहिए. मोदी का बढ़ता कद शंकर सिंह बाघेला को भी अखरने लगा था.

1995 में जब बीजेपी जीतकर सत्ता में आई तो केशूभाई पटेल को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया. शंकर सिंह बाघेला ने पार्टी में बगावत कर दी. इस सारे फसाद की जड़ माना गया नरेंद्र मोदी को. तब पार्टी ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय सचिव बनाकर गुजरात से दिल्ली रवाना कर दिया. दिल्ली में मोदी 9 अशोक रोड के एक छोटे से कमरे में रहते थे.

अटलजी बनाना चाहते थे मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री-

2001 की बात है. एक दिन उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को बुलाया और बोले- तुम यहां पंजाबी खाना खा खाकर मोटे होते जा रहे हो. अब दिल्ली छोड़ो, यहां से जाओ. मोदी ने पूछा कहां- तो अटलजी बोले गुजरात जाओ और वहां चुनाव लड़ो. मोदी सकपकाकर बोले- मैं गुजरात से छह साल दूर रहा हूं, तमाम मुद्दों से दूर हूं, ये कैसे होगा. खैर थोड़ी देर बाद उन्हें पता चला कि अटलजी उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भेजना चाहते थे.

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