Thursday, 6 December 2012

** बांस और आम **..... 06.12.12

*** बांस और आम ***
एक जंगल में बांस के साथ ही आम का पेड़ भी था। बांस का कद ऊंचा था और आम का छोटा। यह देखकर बांस अक्सर आम का मजाक उड़ाता और कहता, 'अरे आम मैं कि
तना बड़ा हो चला, कितनी तेजी से बढ़ा और एक तुम हो, जो इतनी आयु होने पर भी छोटे ही बने हुए हो।' आम बोला, 'यह तो हर किसी की अपनी-अपनी प्रकृति है। कोई छोटा होता है कोई बड़ा। किंतु कद या शरीर विशाल होने से कुछ नहीं होता। काम भी बड़ा होना चाहिए।
छोटा होने का यह अर्थ नहीं कि वह महान और बड़े काम नहीं कर सकता। इसी तरह लंबे या बड़े होने का यह अर्थ नहीं कि वह छोटे काम को घृणा की नजर से देखे।' किंतु बांस को उसकी बातें समझ में नहीं आईं। वह बोला, 'तुम मेरे बड़े कद से जलते हो, इसलिए मुझे ऐसी बातें सुना रहे हो। भला मैं छोटे काम क्यों करूं?'

कुछ वक्त बाद आम के वृक्ष पर मंजरियां लगीं और फिर कुछ दिनों बाद वह फलों से लद गया। फलों से लदा होने के कारण वह झुक गया और बांस लंबा होकर सूखता चला गया। किंतु उसका अभिमान अभी भी कम नहीं हुआ था। वह आम को देखकर बोला, 'अरे, मुझे देखो मैं दूर से ही नजर आ जाता हूं और एक तुम हो जो फलों से लदकर झुके जा रहे हो, और छोटे होते जा रहे हो।' अभी उनकी बातें खत्म ही हुई थीं कि यात्रियों का एक झुंड वहां पर आया। उन्होंने आम के वृक्ष को फलों से लदा हुआ देखा तो वहीं विश्राम करने लगे। रात होने पर ठंड से बचाव के लिए उन्होंने आग जलाने की सोची और पास ही खड़े बांस के वृक्ष को काटकर लकडि़यों का ढेर लगा दिया। आम का वृक्ष अभी भी शांत था और राहगीरों को अपनी छांव तले विश्राम दे रहा था जबकि अभिमानी बांस का अंत हो चला थI

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