Monday, 31 December 2012

01.01.13

Today is a new day, a day for new beginnings, new starts, old endings, a day to remember, a day to live for. Life has its course & every course is a new chapter.
Happy new year 2013

01.01.13

प्रिय मित्रो, सुप्रभात। आपका दिन मंगलमय हो।
विक्रम सम्वत् 2069 शुक्ल पक्ष, द्वादशी, मार्गशीर्ष, मंगलवार, कृत्तिका
इस बार नया वर्ष 11th अप्रैल से शुरू हो रहा है..

ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन। जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए।सितंबर,अक्टूबर,नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ,8वाँ,नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है।ये क्रम से 9वाँ,,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है।हिन्दी में सात को सप्त,आठ को अष्ट कहा जाता है,इसे अङ्ग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है।इसी से september तथा October बना।नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अङ्ग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया।

ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।इसका एक प्रमाण और है।जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है???? इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना।चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया।

इन सब बातों से ये निस्कर्ष निकलता है की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था।साल को 365 के बजाय 345 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है।लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू।भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है।दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है!!!तुक बनता है।भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है,सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है।यानि की करीब 4-4.30 के आस-पास और इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे इसलिए उनलोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया।

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं हमारा अनुसरण करते हैं और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का,अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं।

कितनी बड़ी विडम्बना है ये

31.12.12

एक समय की बात है। चाणक्य अपमान भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की खुली गांठ हर पल एहसास कराती कि धनानंद के राज्य को शीघ्राति शीघ्र नष्ट करना है। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसको उन्होंने बचपन से ही मनोयोग पूर्वक तैयार किया था।

अगर चाणक्य प्रकांड विद्वान थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अद्भुत शिष्य था। चाणक्य बदले की आग से इतना भर चुके थे कि उनका विवेक भी कई बार ठीक से काम नहीं करता था।

चंद्रगुप्त ने लगभग पांच हजार घोड़ों की छोटी-सी सेना बना ली थी। सेना लेकर उन्होंने एक दिन भोर के समय ही मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। चाणक्य, धनानंद की सेना और किलेबंदी का ठीक आकलन नहीं कर पाए और दोपहर से पहले ही धनानंद की सेना ने चंद्रगुप्त और उसके सहयोगियों को बुरी तरह मारा और खदेड़ दिया।

चंद्रगुप्त बड़ी मुश्किल से जान बचाने में सफल हुए। चाणक्य भी एक घर में आकर छुप गए। वह रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी।

दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरमा-गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके गरमा-गरम घी भी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था- जल गया, जल गया।

दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमा-गरम खिचड़ी के बीच में अंगुलियां डाल दी थीं।

दादी बोली- 'तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, अरे गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है...।'

चाणक्य बाहर निकल आए और बुढ़िया के पांव छूए और बोले- आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़े हुए हैं।

चाणक्य ने उसके बाद मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए।




ज़िन्दगी का कड़वा सच..31.12.12

ज़िन्दगी का कड़वा सच

एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है?
जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते? एक दिन उससे न रहा गया| वह भिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?"

भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|"

लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं| :)

A Lesson In Psychology!! 31.12.12

A Lesson In Psychology!!

¤ When A Person Laughs
2 Much Even On Stupid
Things,
Be Sure That Person Is
Sad Deep Inside.

¤ When A Person Sleeps
Alot, Be Sure Dat Person
Is Lonely.

¤ When A Person Talks
Less, And If He Talks,
He Talks Fast Then It
Means That Person Keeps
Secrets.

¤ When Someone Can't
Cry Then That Person Is
Weak.

¤ When Someone Eats In
Abnormal Way Then That
Person Is In Tension.

¤ When Someone Cry On
Little Things Then It
Means
He Is Innocent & Soft
Hearted.

¤ When Someone Gets
Angry On Silly Or Small
Things It Means He Is In
Love.

So True, Try To See All
These In Real Life, U Will
Find All

Yamuna Expressway | India’s longest six-laned Expressway. 31.12.12

Yamuna Expressway | India’s longest six-laned Expressway.

The Yamuna Expressway, formerly known as Indian Taj Expressway, It’s a 6-lane (extendable to 8 lanes), 165 km long, controlled-access expressway, connecting Greater Noida with Agra in the Indian state of Uttar Pradesh. It’s India’s longest six-laned controlled-access expressway stretch. The total project cost was 12,839 crore (US$2.32 billion).

Saturday, 29 December 2012

जीवन का आधार ............. आयुर्वेद...30.12.12

जीवन का आधार ............. आयुर्वेद
WHO कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है | अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि जितनी ज्यादा दवाए बिकेगी डॉक्टर का कमिसन उतना ही बढेगा|

एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है | एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है| इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है | यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है |

ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमिसन देती है डॉक्टर को| यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है|

सारांस के रूप में हम कहे कि मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा|

फिर सवाल आता है कि अगर इन एलोपेथी दवाओं का सहारा न लिया जाये तो क्या करे ? इन बामारियों से कैसे निपटा जाये ?

........... तो इसका एक ही जवाब है आयुर्वेद |

एलोपेथी के मुकाबले आयुर्वेद श्रेष्ठ क्यों है ? :-

(1) पहली बात आयुर्वेद की दवाएं किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करती है, जबकि एलोपेथी की दवाएं किसी भी बीमारी को केवल कंट्रोल में रखती है|
(2) दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि आयुर्वेद का इलाज लाखों वर्षो पुराना है, जबकि एलोपेथी दवाओं की खोज कुछ शताब्दियों पहले हुवा |
(3) तीसरा सबसे बड़ा कारण है कि आयुर्वेद की दवाएं घर में, पड़ोस में या नजदीकी जंगल में आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जबकि एलोपेथी दवाएं ऐसी है कि आप गाँव में रहते हो तो आपको कई किलोमीटर चलकर शहर आना पड़ेगा और डॉक्टर से लिखवाना पड़ेगा |
(4) चौथा कारण है कि ये आयुर्वेदिक दवाएं बहुत ही सस्ती है या कहे कि मुफ्त की है, जबकि एलोपेथी दवाओं कि कीमत बहुत ज्यादा है| एक अनुमान के मुताबिक एक आदमी की जिंदगी की कमाई का लगभग 40% हिस्सा बीमारी और इलाज में ही खर्च होता है|
(5) पांचवा कारण है कि आयुर्वेदिक दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है, जबकि एलोपेथी दवा को एक बीमारी में इस्तेमाल करो तो उसके साथ दूसरी बीमारी अपनी जड़े मजबूत करने लगती है|
(6) छटा कारण है कि आयुर्वेद में सिद्धांत है कि इंसान कभी बीमार ही न हो | और इसके छोटे छोटे उपाय है जो बहुत ही आसान है | जिनका उपयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है | जबकि एलोपेथी के पास इसका कोई सिद्दांत नहीं है|
(7) सातवा बड़ा कारण है कि आयुर्वेद का 85% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और केवल 15% हिस्सा में आयुर्वेदिक दवाइयां आती है, जबकि एलोपेथी का 15% हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और 85% हिस्सा इलाज के लिए है |

पूरी दुनिया में केवल २ देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है (1) भारत (2) चीन

नरेन्द्र भाई मोदी जी.. 29.12.12

दोस्तों नरेन्द्र भाई मोदी जी ने आज गुजरात में एक बार फिर अपना परचम फहराया है ....आइये जानते हैं उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें ....

1965 में जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो नरेंद्र मोदी करीब 15 साल के थे. उन दिनों वो सुबह ही अपनी टोली के साथ रेलवे स्टेशन पहुंच जाते और रेलवे स्टेशन से होकर गुजरने वाले सैनिकों की सेवा में जुट जाते थे. इसी तरह 1967 में जब गुजरात में भयंकर बाढ़ आई तो नरेंद्र मोदी अपने साथियों के साथ बाढ़ पीड़ितों की मदद और सेवा में कूद पड़े.
-बंद कर दिया था नकम और तेल खाना
आरएसएस से जुड़ने के बाद नरेंद्र मोदी ने नमक और तेल खाना बंद कर दिया था. इससे उनकी मां और भाई प्रह्लाद मोदी डर गए कि कहीं नरेंद्र मोदी फिर से साधु बनने तो नहीं जा रहे हैं.

नरेंद्र मोदी बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए थे. 1958 में दीपावली के दिन गुजरात आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार उर्फ वकील साहब ने नरेंद्र मोदी को बाल स्वयंसेवक की शपथ दिलवाई थी. मोदी आरएसएस की शाखाओं में जाने लगे. लेकिन जब मोदी ने चाय की दुकान खोली तो शाखाओं में उनका आना जाना कम हो गया.
-प्रचारकों के लिए चाय-नाश्ता बनाते थे मोदी
नरेंद्र मोदी की जीवनी लिखने वाले लेखक एमवी कामथ के मुताबिक गुजरात आरएसएस के दफ्तर हेडगेवार भवन में सुबह नरेंद्र मोदी प्रचारकों के लिए चाय नाश्ता बनाते थे. इसके बाद हेडगेवार भवन के सारे कमरों की सफाई में जुट जाते थे. आठ नौ कमरों की सफाई के बाद अपने और वकील साहब के कपड़े धोने की बारी आती थी.

-मोदी थे मेहनती कार्यकर्ता
नरेंद्र मोदी बहुत मेहनती कार्यकर्ता थे. आरएसएस के बड़े शिविरों के आयोजन में वो अपने मैनेजमेंट का कमाल भी दिखाते थे. आरएसएस नेताओं का ट्रेन और बस में रिजर्वेशन का जिम्मा उन्हीं के पास होता था. इतना ही नहीं गुजरात के हेडगेवार भवन में आने वाली हर चिट्ठी को खोलने का काम भी नरेंद्र मोदी को ही करना होता था.

नरेंद्र मोदी का मैनेजमेंट और उनके काम करने के तरीके को देखने के बाद आरएसएस में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला लिया गया. इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय कार्यालय नागपुर में एक महीने के विशेष ट्रेनिंग कैंप में बुलाया गया.

आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में ट्रेनिंग लेकर नरेंद्र मोदी गुजरात आरएसएस प्रचारक बनकर लौटे. आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को गुजरात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रभारी बना दिया. 1975 में इमरजेंसी के दौरान भी नरेंद्र मोदी के पास यही भूमिका थी.

इमरजेंसी के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने आज के सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन शंकर सिंह बाघेला के साथ मिलकर गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने का काम किया किया और मज़बूत कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की. उन दिनों शंकर सिंह बाघेला जनता के प्रिय नेता थे और मोदी को बेहतरीन रणनीति बनाने के लिए जाना जाता था.

-शुरू से थे थोड़े मनमाने

नरेंद्र मोदी शुरू से ही थोड़े मनमाने थे. उनके पुराने साथी बताते हैं कि मोदी रात में देर से सोने के चलते अक्सर संघ की सुबह की शाखा के लिए लेट हो जाया करते थे और जब सभी कार्यकर्ता फुल स्लीव कुर्ता पहनते तो नरेंद्र मोदी हाफ स्लीव का कुर्ता पहनते थे. जब सभी कार्यकर्ता खाकी नेकर पहनते तो मोदी सफेद रंग का नेकर पहनकर आते थे.
-स्टाइल था जुदा

नरेंद्र मोदी की स्टाइल सारे प्रचारकों से जुदा थी. वो दाढ़ी रखते थे और ट्रिम भी करवाते थे. एक बार आरएसएस के तब के अध्यक्ष माधवराव गोलवलकर ने सबके सामने मोदी से दाढ़ी ट्रिम किए जाने की वजह भी पूछी थी.
इमरजेंसी के दिनों में मोदी ने गुजरात में कई भाषाओं में लाखों की तादाद में संघ की विचारधारा को दर्शाने वाले पर्चे और पोस्टर छपवाए और पूरे देश में बेहद गुप्त तरीके से संघ के दफ्तरों तक पहुंचाने का काम किया.

इमरजेंसी के दौरान ही मोदी को विश्व हिंदू परिषद की एक सभा के संचालन की जिम्मेदारी दी गई. चंदे के तौर पर एक बड़ी रकम वहां इकट्ठा हुई और तमाम विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को उस रकम की चिंता हो रही थी. मोदी ने उसी वक्त जमीन में एक गड्ढा खोदकर उसमें वो सारी रकम दबा दी और खुद अपना गद्दा उसके ऊपर बिछा कर लेट गए.

सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका

90 के दशक में नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा में बड़ी भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्हें उस वक्त के बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा का संयोजक बनाया गया. ये यात्रा दक्षिण में तमिलनाडु से शुरू होकर श्रीनगर में तिरंगा लहराकर खत्म होनी थी.
... जब मिली अनुशासन की नसीहत

नरेंद्र मोदी के शानदार मैनेजमेंट में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा बहुत कामयाब हुई, लेकिन एक दिन जोशी नरेंद्र मोदी पर भड़क गए. दरअसल तय ये हुआ था कि राष्ट्रीय नेताओं और सभी कार्यकर्ताओं को खाना साथ खाना था. लेकिन बंगलुरू में नरेंद्र मोदी अनंत कुमार के साथ गायब हो गए. जोशी इस पर बहुत नाराज हुए. सुबह उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने मोदी को कड़ी फटकार लगाते हुए अनुशासन में रहने की नसीहत दे डाली.
जोशी की एकता यात्रा के बाद से ही नरेंद्र मोदी की महात्वाकांक्षाएं बढ़ने लगीं. मोदी को लगने लगा कि उन्हें गुजरात बीजेपी के सीनियर लीडर्स केशुभाई पटेल और शंकर सिंह बाघेला की हैसियत का समझा जाना चाहिए. मोदी का बढ़ता कद शंकर सिंह बाघेला को भी अखरने लगा था.

1995 में जब बीजेपी जीतकर सत्ता में आई तो केशूभाई पटेल को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया. शंकर सिंह बाघेला ने पार्टी में बगावत कर दी. इस सारे फसाद की जड़ माना गया नरेंद्र मोदी को. तब पार्टी ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय सचिव बनाकर गुजरात से दिल्ली रवाना कर दिया. दिल्ली में मोदी 9 अशोक रोड के एक छोटे से कमरे में रहते थे.

अटलजी बनाना चाहते थे मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री-

2001 की बात है. एक दिन उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को बुलाया और बोले- तुम यहां पंजाबी खाना खा खाकर मोटे होते जा रहे हो. अब दिल्ली छोड़ो, यहां से जाओ. मोदी ने पूछा कहां- तो अटलजी बोले गुजरात जाओ और वहां चुनाव लड़ो. मोदी सकपकाकर बोले- मैं गुजरात से छह साल दूर रहा हूं, तमाम मुद्दों से दूर हूं, ये कैसे होगा. खैर थोड़ी देर बाद उन्हें पता चला कि अटलजी उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भेजना चाहते थे.

29.12.12

कामी लज्या ना करै, मन माहें अहिलाद।
नींद न मांगै सांथरा, भूख न मांगै स्वाद॥

अर्थ- गलत रास्ते या तरीके अपनाते हुए कामी मनुष्य को लज्जा नहीं आती, मन में बड़ी खुशी होती है। ठीक वैसे ही जैसे नींद लगने पर बिस्तर कैसा है, यह नहीं देखा जाता और भूखा मनुष्य चाहे जो खा लेता है, स्वाद नहीं समझना चाहता।
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परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं।
दिवस चारि सरसा रहै, अंति समूला जाहिं॥

अर्थ – पराई स्त्री से जो प्रेम संबंध बनाते हैं और चोरी की कमाई खाते हैं, भले ही वे चार दिन खुशी से उछलते-कूदते फिरते हैं, पर आखिरकार पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं।
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परनारि का राचणौं, जिसी लहसण की खानि।
खूणैं बैसि र खाइए, परगट होइ दिवानि॥

अर्थ- चरित्र की कमजोरी से किया गया परस्त्री का संग व्यक्ति के कर्म, बोल, भाव, व्यवहार, मनोदशा या अन्य जरियों से उजागर हो ही जाता है। ठीक वैसे ही जैसे लहसुन को किसी भी जगह पर छिपकर खाने पर भी उसकी गंध छिपाए नहीं छिपती।
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कामी अमी न भावई, विष ही कौं लै सोधि।
कुबुद्धि न जाई जीव की, भावै स्यंभ रहौ प्रमोधि॥

अर्थ- कामी मनुष्य को अमृत पसंद नहीं आता, वह तो जगह-जगह जहर को ही ढूंढता रहता है। यानी अपने सुख के लिए गलत काम चुनता है। कामी की भ्रष्ट बुद्धि जाती नहीं, फिर चाहे उसे स्वयं भगवान् शिव ही सबक दे-देकर समझावें

हिंदुओं को तिलक क्यों धारण करना चाहिए ? 29.12.12

हिंदुओं को तिलक क्यों धारण करना चाहिए ?

हमारे दोनों भोहों के मध्य में आज्ञा चक्र होता है , इस चक्र में सूक्ष्म द्वार होता है जिससे इष्ट और अनिष्ट दोनों ही शक्ति प्रवेश कर सकती है , यदि इस सूक्ष्म प्रवेश द्वार को हम सात्त्विक पदार्थ का लेप एक विशेष रूप में दें तो इससे ब्रह्माण्ड में व्याप्त इष्टकारी शक्ति हमारे पिंड में आकृष्ट होती है और इससे हमारा अनिष्ट शक्तियों से रक्षण भी होता है | तिलक लगते समय चन्दन, बुक्का, विभूति , हल्दी-कुमकुम जैसेसात्त्विक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए साथ ही स्त्रीयों ने गोल और पुरुषों ने खड़े तिलक लगाने चाहिए , यदि कोई विशेष संप्रदाय से संबन्धित हो तो उसके अनुसार तिलक लगाना चाहिए | तिलक लगाने से मन शांत रहता है , अनिष्ट शक्तियों से रक्षण होने के कारण और देवत्व आकृष्ट होने के कारण हमारे चारों ओर सूक्ष्म कवच का निर्माण होता है | आजकल कुछ स्त्रीयाँ टीवी धारावाहिक देखकर विचित्र आकार के टीका लगती हैं उससे भी ऐसे व्यक्ति को आसुरी शक्ति का कष्ट होता है | उसी प्रकार आजकल बाज़ार में उपलब्ध प्लास्टिक की बिंदी लगाने से भी कोई लाभ नहीं होता क्योंकि उसमे देवत्व को आकृष्ट करने की क्षमता नहीं होती ! तिलक धारण करने से प्रत्येक जीवात्मा को उसके आध्यात्म शास्त्रीय लाभ अवश्य मिलता है चाहे वह हिन्दू हो या ईसाई हो या अन्य किसी भी धर्म का हो !! —

नारियल ...29.12.12

जेसा की आप सभी जानते हें की नारियल एक ऐसी वस्तु है जो कि किसी भी सात्त्विक अनुष्ठान, सात्त्विक पूजा, धार्मिक कृत्यों तथा हरेक मांगलिक कार्यों के लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामग्री है. इसकी कुछ विभिन्न विधियों द्वारा हम अपने पारिवारिक, दाम्पत्य तथा आर्थिक परेशानियों से निजात पा सकते हैं. ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार

—–घर में किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या हो तो—-
एक नारियल पर चमेली का तेल मिले सिन्दूर से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें. कुछ भोग (लड्डू अथवा गुड़ चना) के साथ हनुमान जी के मन्दिर में जाकर उनके चरणों में अर्पित करके ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें. तत्काल लाभ प्राप्त होगा.

—यदि कुण्ड़ली में शनि, राहू, केतु की अशुभ दृष्टि, इसकी अशुभ दशा , शनि की ढ़ैया या साढ़े साती चल रही तो-
एक सूखे मेवे वाला नारियल लेकर उस पर मुँह के आकार का एक कट करें. उसमें पाँच रुपये का मेवा और पाँच रुपये की चीनी का बुरादा भर कर ढ़क्कन को बन्द कर दें. पास ही किसी किसी पीपल के पेड़ के नीचे एक हाथ या सवा हाथ गढ्ढ़ा खोदकर उसमें नारियल को स्थापित कर दें. उसे मिट्टी से अच्छे से दबाकर घर चले जायें. ध्यान रखें कि पीछे मुड़कर नही देखना. सभी प्रकार के मानसिक तनाव से छुटकारा मिल जायेगा.

—-यदि आपके व्यापार में लगातार हानि हो रही हो, घाटा रुकने का नाम नही ले रहा हो तो -
गुरुवार के दिन एक नारियल सवा मीटर पीले वस्त्र में लपेटे. एक जोड़ा जनेऊ, सवा पाव मिष्ठान के साथ आस-पास के किसी भी विष्णु मन्दिर में अपने संकल्प के साथ चढ़ा दें. तत्काल ही लाभ प्राप्त होगा. व्यापार चल निकलेगा.

यदि धन का संचय न हो पा रहा हो, परिवार आर्थिक दशा को लेकर चिन्तित हो तो-
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के मन्दिर में एक जटावाला नारियल, गुलाब, कमल पुष्प माला, सवा मीटर गुलाबी, सफ़ेद कपड़ा, सवा पाव चमेली, दही, सफ़ेद मिष्ठान एक जोड़ा जनेऊ के साथ माता को अर्पित करें. माँ की कपूर व देसी घी से आरती उतारें तथा श्रीकनकधारास्तोत्र का जाप करें. धन सम्बन्धी समस्या तत्काल समाप्त हो जायेगी.

—–शनि, राहू या केतु जनित कोई समस्या हो, कोई ऊपरी बाधा हो, बनता काम बिगड़ रहा हो, कोई अनजाना भय आपको भयभीत कर रहा हो अथवा ऐसा लग हो कि किसी ने आपके परिवार पर कुछ कर दिया है तो इसके निवारण के लिये-
शनिवार के दिन एक जलदार जटावाला नारियल लेकर उसे काले कपड़े में लपेटें. 100 ग्राम काले तिल, 100 ग्राम उड़द की दाल तथा एक कील के साथ उसे बहते जल में प्रवाहित करें. ऐसा करना बहुत ही लाभकारी होता है

.—–किसी भी प्रकार की बाधा, नजर दोष, किसी भी प्रकार का भयंकर ज्वर, गम्भीर से गम्भीर रोगों की समस्या विशेषकर रक्त सम्बन्धी हो तो-
शनिवार के दिन एक नारियल, लाल कपड़े में लपेटकर उसे अपने ऊपर सात बार उवारें. किसी भी हनुमान मन्दिर में ले जाकर उसे हनुमान जी के चरणों में अर्पित कर दें. इस प्रयोग से तत्काल लाभ होगा.

—-यदि राहू की कोई समस्या हो, तनाव बहुत अधिक रहता हो, क्रोध बहुत अधिक आ रहा हो, बनता काम बिगड़ रहा हो, परेशानियों के कारण नींद न आ रही हो तो-
बुधवार की रात्रि को एक नारियल को अपने पास रखकर सोयें. अगले दिन अर्थात् वीरवार की सुबह वह नारियल कुछ दक्षिणा के साथ गणेश जी के चरणों में अर्पित कर दें. मन्दिर में यथासम्भव 11 या 21 लगाकर दान कर कर दें. हर प्रकार का अमंगल, मंगल में बदल जायेगा

.—–यदि आप किसी गम्भीर आपत्ति में घिर गये हैं. आपको आगे बढ़ने का कोई रास्ता नही दिख रहा हो तो -
दो नारियल, एक चुनरी, कपूर, गूलर के पुष्प की माला से देवी दुर्गा का दुर्गा मंदिर में पूजन करें. एक नारियल चुनरी में लपेट कर (यथासम्भव दक्षिणा के साथ) माता के चरणों में अर्पित कर दें. माता की कपूर से आरती करें. ‘हुं फ़ट्’ बोलकर दूसरा नारियल फ़ोड़कर माता को बलि दें. सभी प्रकार के अनजाने भय तथा शत्रु बाधा से तत्काल लाभ होगा.

Friday, 28 December 2012

29.12.12

एक मासूम कहानी....... एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका-हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका छोटा सा बेटा सोने की बजाय उसका इंतज़ार कर रहा है . अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ
सकता हूँ ?” “ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा . बेटा - “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?” “ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया . बेटा - “ मैं बस यूँ ही जाननाचाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , नहीं बताऊंगा , तुम जाकर सो जाओ “यह सुन बेटा दुखी हो गया …और वह अपने कमरे में चला गया . व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे ने ऐसा क्यों पूछा ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “ क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया . “ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया ,
दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा. सारी बेटा “.......मै एक घंटे में १०० रूपया कमा लेता हूँ....... थैंक यूं पापा ” बेटे ने ख़ुशी से बोला और तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने अपने गोल्लक तोड़े और ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा . “ पापा मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपसे आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .” दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा अहमयित रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी भरी जिंदगी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया...

Thursday, 27 December 2012

28.12.12

The great iconic man and the chairman of the tata group of company Mr. Ratan tata retires today He is the anmol ratan of india.. A big salute to the service he has given to india and the great job done for rising India internationally..
God bless him..

28.12.12

एक आश्रम में दो संत रहते थे। दोनों हर समय ईश्वर की आराधना में लगे रहते थे। लेकिन फिर भी दोनों में एक प्रसन्न रहते थे और दूसरे अत्यंत दुखी। इस कारण दोनों के नाम ही सुखी व दुखी संत पड़ गए थे। लोग इनके पास परामर्श लेने के लिए तो आते ही थे साथ ही यह भी देखते थे कि एक जैसे ही कार्य करने के कारण भी दोनों में एक सुखी हैं और एक दुखी।
दोनों ही लोगों की समस्याओं के समाधान
भी बताते थे। हैरानी इस बात की थी कि दुखी संत के
समाधान भी सही और प्रेरणादायक होते थे।
दुखी संत अपने दुख का कारण जानना चाहते थे।
यह जानने की इच्छा लिए वह सुखी संत के साथ
अपने वयोवृद्ध गुरु के पास पहुंचे। दुखी संत
बोले, 'गुरुजी, मेरा नाम तो सात्विक था लेकिन लोगों ने मेरे चेहरे पर दुख के भावों को देखकर मुझे दुखी संत की संज्ञा दे दी।' इस पर सुखी संत बोले, 'मेरा नाम भी पहले सत्गुण था। लेकिन मेरे चेहरे पर प्रसन्नता के
भावों को देखकर मुझे सुखी नाम दे दिया गया।'
दुखी संत बोले, 'हम दोनों की सभी गतिविधियां एक जैसी हैं लेकिन फिर भी मैं दुखी रहता हूं और सुखी खुश। भला ऐसा क्यों?' गुरु दोनों की बात सुनकर मुस्कराते हुए बोले, 'दुखी बेटा, दरअसल एक जैसे काम करते हुए भी सुख और दुख के भाव अलग-अलग हो सकते
हैं। उसके पीछे कारण यह कि जो व्यक्ति हमेशा हर समस्या और दुख का सामना शांत व निश्चल मन से करता है, उसका मन प्रसन्न रहता है क्योंकि वह
जानता है कि उसकी आंतरिक शक्तियां इतनी शक्तिशाली हैं कि कोई भी विकराल समस्या या दुख उनके आगे ठहर ही नहीं सकता। यही भावना उसे प्रसन्न रखती है। पर यदि व्यक्ति का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है तो वह दुखी हो जाता है। आत्मविश्वास की मजबूत डोर ही व्यक्ति को हर परिस्थिति में सुखी बनाए रखती है।'

27.12.12

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक
दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था,
एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर
से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस
भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा.
दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजाखोला, जिसे
देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उस...ने
पानी का एक गिलास पानी माँगा.लड़की ने भांप
लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक........बड़ा गिलास
दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया." कितने पैसे
दूं?" लड़के ने पूछा." पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव
मेंकहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर
दया करो तो उसके पैसेनहीं लेने चाहिए."" तो फिर मैं
आपको दिल से धन्यबाद देताहूँ."जैसे ही उस लड़के ने वह घर
छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल
चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और
भी बढ़ गया था.
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी.
लोकल डॉक्टर ने उसे शहरके बड़े अस्पताल में इलाज के लिए
भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज
देखने के लिए
बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना,
उसकी आँखों में चमकआ गयी. वहएकदम सीट से उठा और उस
लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम
पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने
के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न
रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी.
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज
का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे
उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल
कालिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह
बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिनबिल कि रकम जरूर
उसकी जान लेलेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम
को देखाऔर फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से
लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखाथा," एक गिलास दूध
द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुकाहै." नीचे
डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.ख़ुशी और अचम्भे से
उस लड़की के गालोंपर आंसूटपक पड़े उसने ऊपर कि और
दोनों हाथ उठा कर कहा,"
हे भगवान! आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार
इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल
चुका है....

Wednesday, 26 December 2012

27.12.12

एक गुरुजी थे। उनके आश्रम में कुछ शिष्य शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। एक बार बातचीत में एक शिष्य ने पूछा -गुरुजी, क्या ईश्वर सचमुच है? गुरुजी ने कहा - ईश्वर अगर कहीं है तो वह हम सभी में है। शिष्य ने पूछा - तो क्या मुझमें और आपमें भी ईश्वर है?
गुरुजी बोले - बेटा, मुझमें, तुममें, तुम्हारे सारे सहपाठियों में और हर जीव-जंतु में ईश्वर है। जिसमें जीवन है उसमें ईश्वर है। शिष्य ने गुरुजी की बात याद कर ली।

कु
छ दिनों बाद शिष्य जंगल में लकड़ी लेने गया। तभी सामने से एक हाथी बेकाबू होकर दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया। हाथी के पीछे-पीछे महावत भी दौड़ता हुआ आ रहा था और दूर से ही चिल्ला रहा था - दूर हट जाना, हाथी बेकाबू हो गया है, दूर हट जाना रे भैया, हाथी बेकाबू हो गया है।

उस जिज्ञासु शिष्य को छोड़कर बाकी सभी शिष्य तुरंत इधर-उधर भागने लगे। वह शिष्य अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिला, बल्कि उसने अपने दूसरे साथियों से कहा कि हाथी में भी भगवान है फिर तुम भाग क्यों रहे हो? महावत चिल्लाता रहा, पर वह शिष्य नहीं हटा और हाथी ने उसे धक्का देकर एक तरफ गिरा दिया और आगे निकल गया। गिरने से शिष्य होश खो बैठा।

कुछ देर बाद उसे होश आया तो उसने देखा कि आश्रम में गुरुजी और शिष्य उसे घेरकर खड़े हैं। साथियों ने शिष्य से पूछा कि जब तुम देख रहे थे कि हाथी तुम्हारी तरफ दौड़ा चला आ रहा है तो तुम रस्ते से हटे क्यों नहीं? शिष्य ने कहा - जब गुरुजी ने कहा है कि हर चीज में ईश्वर है तो इसका मतलब है कि हाथी में भी है। मैंने सोचा कि सामने से हाथी नहीं ईश्वर चले आ रहे हैं और यही सोचकर मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा, पर ईश्वर ने मेरी कोई मदद नहीं की।

गुरुजी ने यह सुना तो वे मुस्कुराए और बोले -बेटा, मैंने कहा था कि हर चीज में भगवान है। जब तुमने यह माना कि हाथी में भगवान है तो तुम्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए था कि महावत में भी भगवान है और जब महावत चिल्लाकर तुम्हें सावधान कर रहा था तो तुमने उसकी बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? शिष्य को उसकी बात का जवाब मिल गया था।

Tuesday, 25 December 2012

भारत में हिन्दुओं के चार धाम – बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, द्वारिकापुर और जगन्नाथपुरी और आदि गुरु शंकराचार्य.... 26.12.12

भारत में हिन्दुओं के चार धाम – बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, द्वारिकापुर और जगन्नाथपुरी और आदि गुरु शंकराचार्य
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राष्ट्रीय एकता और सद्भाव के लिए इन चार धामों एवं द्वादश ज्योतिर्लिंगों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। आदि शंकराचार्य का प्रादुर्भाव केरल में अलवाई नदी के तट पर बसे कालाड़ी ग्राम में 780 ईस्वी में वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। उनके माता-पिता भगवान शंकर के परम भक्त थे और इसी कारण से उन्होंने पुत्र का नाम शंकर रखा। बालक शंकर की बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण थी और उन्होंने सात वर्ष की आयु में ही वेद, वेदान्त और वेदाङ्गों का पूर्ण अध्ययन कर लिया।

अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात् शंकर सन्यास ग्रहण करना चाहते थे किन्तु सन्यास के लिए उनकी माता उन्हें आज्ञा नहीं दे रही थीं। कहा जाता है कि एक दिन एक दिन माता-पुत्र नदी में स्नान के लिए गए थे तो एक मगरमच्छ ने बालक शंकर के पैर को जकड़ लिया और उन्हें गहरी धारा में खींचने लगा। इस स्थिति को देखकर उनकी माता विकल हो उठीं तब बालक शंकर ने माता से कहा माता यदि आप मुझे सन्यास ग्रहण की अनुमति दे दें तो शायद मुझे जीवनदान मिल जाएगा। विकट परिस्थिति को देखते हुए माता ने उन्हें सन्यास ग्रहण करने की अनुमति दे दी। अनुमति मिलते ही आश्चर्यजनक रूप से मगरमच्छ ने शंकर के पैर को अपनी जकड़ से मुक्त कर दिया। इस प्रकार से बालक शंकर ने आठ वर्ष की अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर लिया।

सन्यासी होने के बाद उन्होंने श्री गोविन्द भगवद्पाद से दीक्ष ग्रहण की और गुरु के बताए मार्गदर्शन के अनुसार चल कर साधना करके अल्पकाल में ही योग सिद्धि प्राप्त कर लिया। फिर गुरु की आज्ञानुसार वे काशी चले गए जहाँ पर एक चाण्डाल से उन्हें “अद्वैत” का ज्ञान प्राप्त हुआ।

सन्यासी शंकर समस्त भारत को सनातन धर्म के माध्यम से एकता और सद्भाव के सूत्र में बाँधने के प्रयास में जुट गए। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे महान मीमांसक कुमारिल भट्ट से भेंट करने प्रयाग पहुँचे किन्तु जब वे उनके पास पहुँचे तो वे स्वेच्छा से देह-त्याग करने हेतु भूसी की चिता सजा कर उसमें बैठ चुके थे। देहत्याग करने के पूर्व कुमारिल भट्ट ने उनसे कहा कि वे यदि सुधीश्वर मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ में जीत लें तो माना जाएगा कि उन्होंने दिग-दिगन्त को जीत लिया है। इस प्रकार से मण्डन मिश्र को हराकर वे अपने उद्देश्य पूर्ति के मार्ग में आगे बढ़ सकते हैं।

मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ करने के लिए शंकर महिष्मती पहुँचे। जब वे मिश्र जी का घर तलाश कर रहे थे तो मार्ग में उन्हें कुछ स्त्रियाँ दिखीं जो कि सेविकाएँ प्रतीत होती थीं। सन्यासी शंकर ने उनमें से पूछा, “देवि! इस नगरी में मण्डन मिश्र का निवास स्थान कहाँ पर है?”

इस प्रश्न के उत्तर में उस स्त्री ने कहा -
”स्वत:प्रमाणं परत:प्रमाणं
कीरांगना यत्र गिरागिरन्ति।
द्वारस्थ नीडान्तर-सन्निरुद्धा
जानीहि तन्मंडन पण्डितौक:॥”

जिस घर के द्वार पर पिंजरे में बंद मैनाएँ तर्क कर रही हों कि “वेद स्वयं में ही प्रमाण है या उन्हें अन्य प्रमाण की आवश्यकता है”, वही घर मण्डन मिश्र का आवास है।

अपने प्रश्न का उत्तर विशुद्ध संस्कृत में पाकर सन्यासी को हर्षमिश्रित आश्चर्य हुआ और उन्होंने उत्तर देनेवाली से पूछ लिया, ‘भद्रे! आप का परिचय क्या है?’

उत्तर मिला ‘हम उन्हीं प्रकाण्ड पण्डित मण्डन मिश्र की परिचारिकाएं हैं।’

अस्तु, सन्यासी शंकर ने मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ किया जिसका निर्णायक बनीं मण्डन मिश्र की विदुषी भार्या भारती। जब शंकर ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में हरा दिया तो भारती ने कहा कि आपने मेरे पति को अभी आधा ही हराया है, आप पूरी तरह से तब जीतेंगे जब आप मुझे भी शास्त्रार्थ में हरा देंगे। सन्यासी शंकर और भारती के मष्य हुए शास्त्रार्थ के दौरान भारती ने शंकर से “गृहस्थ जीवन के सुख” के सम्बन्ध में प्रश्न किया। शंकर तो सन्यासी थे, गृहस्थ जीवन का उन्हें किंचित मात्र भी अनुभव नहीं था अतः इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए उन्होंने कुछ समय की मोहलत माँगी। बताया जाता है कि उन्होंने एक व्यक्ति, जिसके प्राण रात्रि में सोते समय निकल गए थे, के शरीर में परकाया प्रवेश विद्या के माध्यम से अपनी जीवात्मा का प्रवेश कराया और कुछ काल तक गृहस्थ जीवन का अनुभव प्राप्त कर पुनः अपने शरीर में वापस आ गए तथा भारती के प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें शास्त्रार्थ में हराया।

शास्त्रार्थ में हार जाने के बाद मण्डन मिश्र, जो कि सन्यास के विरोधी थे, शंकराचार्य का शिष्य बन कर सन्यासी बन गए।

बत्तीस वर्ष की अल्पायु में आदि शंकराचार्य का स्वर्गवास हो गया किन्तु उनके द्वारा किए गए सद्कार्यों ने उन्हें अमर बना दिया।

भक्त ध्रुव की कथा :- 26.12.12

भक्त ध्रुव की कथा :-
मनु पुत्र उत्तानपाद की पत्नी सुरुचि उनकी अत्यन्त प्रिया थी। दूसरी पत्नी सुनीति पति से अवहेलित और शरणहीन थी। वह नित्य प्रति भगवान् नारायण की ही शरण में जाती थी, नारायण जो अशरणों के शरण हैं। पिता की गोद में सुरुचि के पुत
्र उत्तम को देख कर सुनीति के पुत्र ध्रुव ने भी पिता की गोद में चढने का उपक्रम किया। फलस्वरूप उस बालक को सुरुचि ने अत्यधिक कठोरता से डांटा। पत्नी के वशीभूत हुए पिता के चुपचाप देखते रह जाने पर कटुवचनों से आहत ध्रुव वहां से हट गया और अपनी माता
के पास गया। माता ने भी उस बालक को यही बतलाया कि मनुष्य मात्र को अपने कर्मों की गति को पार करने के लिये, एकमात्र भगवान् नारायण की ही की शरण में जाना होता है। यह सुन कर वह पांच वर्षीय स्वाभिमानी बालक आपकी आराधना का मन में दृढ निश्चय कर के नगर से निकल गया। मार्ग में उसकी नारद जी से भेंट हुई और उनसे मन्त्र मार्ग की दीक्षा मिली। फिर वह मधुवन में जा कर आपकी आराधना और तपस्या करने लगा। ध्रुव के पिता उत्तानपाद का हृदय अत्यन्त दुखित हो गया। उसी समय नारद जी उनके नगर को गये और उनको सान्त्वना देते हुए शान्त किया। ध्रुव भी एकाग्र चित्त से आपकी आराधना करते रहा और क्रमश: उसकी तपस्या बढती गई। इस प्रकार उसने पांच महीने बिताए। ध्रुव के तप के बल से सभी दिशांओं में श्वासावरोध हो गया। तब देवताओं ने आपसे प्रार्थना की। ध्रुव के तप और देवों की प्रार्थना से करुणा के उदित होने से आपका मन पिघल गया। आपके स्वरूपभूत चिदानन्द रस में निमग्न उस बालक ध्रुव के समक्ष फिर आप गरुड के ऊपर आरूढ हो कर प्रकट हुए। आपके दर्शन जनित हर्ष के अतिरेक से ध्रुव का तरङ्गित मन भगवान् के स्वरूप के अमृत में डूब गया। वह स्तुति करने का इच्छुक है यह समझ कर आपने उसके गाल पर प्यार से अपना शंख छुआ दिया। तब तक तत्त्व बोध से विमल हुआ ध्रुव भगवान् की स्तुति करने लगा। उसके मनोभाव को जानते हुए आपने कहा - ' चिरकाल तक राज्य का उपभोग कर लेने के पश्चात तुम सब से ऊपर स्थित ध्रुव पद को प्राप्त करो, जो पुनरावृत्ति रहित लोक है।'
सभी लोगों को आनन्दित करता हुआ यह राजकुमार ध्रुव नगर को लौट गया। उसके पिता उसके ऊपर राज्य भार सौंप कर वन को चले गये। आपकी कृपा से पूर्ण काम हुए ध्रुव ने चिरकाल तक राज्य का उपभोग किया। यक्ष के द्वारा उत्तम के मारे जाने पर ध्रुव उस यक्ष के साथ युद्ध करने लगे किन्तु फिर मनु के कहने पर युद्ध को रोक भी दिया। ध्रुव के शान्त स्वभाव से प्रसन्न हो कर कुबेर उसके पास पहुंचे। महात्मा ध्रुव ने कुबेर से भी आपमें दृढ भक्ति का ही वरदान मांगा। आपके पार्षदों के द्वारा लाये गये विमान पर ध्रुव अपनी माता के संग चले गये। वे ध्रुव पद पर प्रसन्नता पूर्वक विराजमान हैं।
ॐ ॐ
 —

श्री त्र्यम्बकेश्वर 26.12.12

श्री त्र्यम्बकेश्वर
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवानकी भी बड़ी महिमा हैं गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतिक माने जाते हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौडी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

त्र्यंबकेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर काले पत्‍थरों से बना है। मंदिर का स्‍थापत्‍य अद्भुत है। इस मंदिर ke panchakroshi me कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है। जिन्‍हें भक्‍तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।
‘प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि‍ की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।’

गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

ॐ नमः शिवाय
हर हर महादेव

गाय और पृथ्वी... 26.12.12

गाय और पृथ्वी
गोमाता समष्टि प्रकृति की पोषक है अर्थात् प्रकृति के आठों अंगों को पोषण प्रदान करती है। ये आठ अंग हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार। इन आठों अंगों की पोषक होने के कारण गाय समष्टि प्रकृति की माता मानी जाती है। जो पोषण प्रदान करे वह माँ है। इस दृष्टि से ‘गो’ प्रकृति की माता सिद्ध होती है। प्रकृति के प्रकाशक, सर्जक तथा नियामक की सृष्टि रचना में गो एक दिव्य एवं महत्वपूर्ण प्राणी है। जिसकी तुलना और किसी से नहींहो सकती। क्योंकि मूल प्रकृति में भी समय-समय पर आने वाली विकृतियों का शमन गोमाता के द्वारा होता है। प्रकृति के सम्पूर्ण अंगों का संरक्षण-संवर्धन एवं पोषण गौ ही कर सकती है। कामधेनु रूपा गो में जीवनी शक्ति-सृजन की अथाह क्षमता है। गाय गोबर से पृथ्वी को, गोमूत्र से जल को श्वाँस से अग्नि को, प्राण शक्ति स्पन्दन से पवन को, हुंकार से आकाश को, दूध-दही एवं घृतसे मन-बुद्धि एवं चित्त को शुद्ध-बुद्ध एवं सशक्त पोषणप्रदान करती है। गौमाता के प्रत्येक अन्तस्थ दिव्य यन्त्रों का सम्बन्ध समष्टिप्रकृति से निरन्तर सजगता पूर्वक बना रहता है। जिससे प्रकृति को सत्वमय जीवनी ऊर्जा मिलती रहती है। अतः गाय कई अर्थो में समष्टि प्रकृति से भी बढ़कर है। जैसेऊपर वर्णन हुआ है कि गाय प्रकृति के आठों अंगों का पोषण करती है। इस अष्टांग प्रकृति से सम्पूर्ण चर-अचरप्राणियों का निर्माण होता है। सूर्य से लेकर चींटी पर्यन्त सभी स्थूल, सूक्ष्म शरीरों का अधिष्ठान ये आठ अंग ही है। अगर प्रकृति के इन आठ अंगो में कोई विकृति आती है तो इसका प्रभाव समस्तशरीरधारी प्राणियों पर पड़ताहै। आठ तो क्या एक-एक भी समष्टि अंग की विकृति का परिणाम समस्त देहधारी प्राणियों को भोगना ही पड़ता है। प्रकृति के इन आठो अंगोंकी विकृतियों को मिटाने का उपाय गाय को छोड़कर दूसरा कोईभी नहीं दिखता है।
अष्टांग प्रकृति की विकृतियों को शमन करने में केवल गोमाता ही सक्षम है-
प्रकृति की विकृतियाँ से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की हानि तथा विकृतियों के शमन से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को लाभ होता है। बिना किसी भेदभाव चराचर प्राणियों का हित साधने वाली गाय सर्व-भूत प्राणियों की माँ हैं। ‘‘मातरःसर्वभूतानाम्’’ स्वभाव से ही समष्टि प्रकृति शुद्ध बुद्ध एवं सशक्त है। परन्तु मानवीय प्रमाद से समष्टि प्रकृति में नाना प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है, इन विकृतियों के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विष निर्मितहो जाता है। यह विष प्राकृतिक आपदाओं के रूप में, मृत्यु के रूप में, रोगों के रूप में, विनाशकारीअस्त्र-शस्त्रों के रूप में, दुर्भावनाओं-दुर्विचारों-दुर्मान्यताओंआदि के रूप में प्रकट होकर परस्पर संघर्ष, कलह एवं सर्व-विनाश का कारण बनता है। यह विष दुर्दमनीयं महाशक्ति है। और ये शक्ति सामूहिक सर्व-विनाश का रूप कभी-कभी ले लेती है। ऐसे अमोघ महाविनाषकारी विष का भी गव्य शमन करने में सक्षम है। पंचगव्य में विष को अमृतके रूप में परिवर्तित करने की अथाह शक्ति है। गौमाता सेप्राप्त पंचगव्य का प्राकृतविज्ञानानुसार विनियोग करने से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, एवं व्यक्तित्व में मिश्रित विनाशकारी विष का सर्व शमन होकर वह अमृत के रूप में हो जाता है, परिणामस्वरूप समष्टि प्रकृति संतुलित एवंसुव्यवस्थित रहती है

26.12.12

एक सदना नाम का कसाई था,मांस बेचता था पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहा था रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया.उसे अच्छा लगा उसने सोच
ा बड़ा अच्छा पत्थर है क्यों ना में इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करू. उसे उठाकर ल
े आया.और मांस तौलने में प्रयोग करने लगा.
जब एक किलो तौलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तौलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार चाहे जितना भी तौलता हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता.
एक दिन की बात है उसी दूकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत उस सदना के पास आये और गुस्से में बोले ये तुम क्या कर रहे हो क्या तुम जानते नहीं जिसे पत्थर समझकर तुम तौलने में प्रयोग कर रहे हो वे शालिग्राम भगवान है इसे मुझे दो जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला हे ब्राह्मण देव मुझे पता नहीं था कि ये भगवान है मुझे क्षमा कर दीजिये.और शालिग्राम भगवान को उसने ब्राह्मण को दे दिया.
ब्राह्
मण शालिग्राम शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की. जब रात हुई और वह ब्राह्मण सोया तो सपने में भगवान आये और बोले ब्राह्मण मुझे तुम जहाँ से लाए हो वही छोड आओं मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा. इस पर ब्राह्मण बोला भगवान ! वो कसाई तो आपको तुला में रखता था जहाँ दूसरी ओर मास तौलता था उस अपवित्र जगह में आप थे.

भगवान बोले - ब्रहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तौलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से झूला झूला रहा हो जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था.हर पल मेरा भजन करता था जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था वो आनंद यहाँ नहीं.इसलिए आप मुझे वही छोड आये.तब ब्राह्मण तुरंत उस सदना कसाई के पास गया ओर बोला मुझे माफ कर दीजिए.वास्तव में तो आप ही सच्ची भक्ति करते है.ये अपने भगवान को संभालिए.
♥ ♥....श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री श्री राधा श्री राधा
श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री श्री राधा श्री राधा...♥ ♥

25.12.12

The tower is made of 54
duplex apartments
surrounded by their own
and individual gardens.
The flats (1150sqf net
plus a 525 square feet of
garden/balcony) are like
modern tree houses:
immersed in nature.The
tower has an optimized
structure with standard
units to minimize the
construction cost and can
be easily reproduced into
multiple towers, its green
envelope making each
tower unique and
integrated into its natural
surrounding.

Merry x'mas....25.12.12

The only prayer u must offer God
is expression of thankfullness.
God listens to no other prayer
dan dis bcos everything you need
is already provided.(ask, knock,
seek) De ABILITY to grasp is your
duty! Remember to positivize
your Karma always! Merry x'mas.

25.12.12

एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान आया – एक परिव्राजक. रात को बातें हुईं. उस परिव्राजक ने कहा, “तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो. साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है. तुम यह जमीन वगैरह छोड़कर साइबेरिया चले जाओ. वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी. बड़ी ज़मीन में मनचाही फसल उगाओ. और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं.”

उस आदमी के मन में लालसा जगी. उसने तुरंत ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी. जब पहुँचा तो उसे बात सच्ची मालूम पड़ी. उसने वहां के ज़मींदारों से कहा, “मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ.” वे बोले, “ठीक है. जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो उसे मुनीम के पास जमा करा दो. जमीन बेचने का हमारा तरीका यह है कि कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चल पड़ो और सूरज के डूबते तक जितनी जमीन घेर सकते हो घेर लो. वह सारी जमीन तुम्हारी होगी. बस चलते जाना, चाहो तो दौड़ भी लेना. भरपूर बड़ी जमीन घेर लेना और सूरज के डूबते-डूबते ठीक उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे. बस यही शर्त है. जितनी जमीन तुम घेर लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी.”

यह सुनकर रात-भर तो सो न सका वह आदमी. कोई और भी नहीं सो पाता. ऐसे क्षणों में कोई सोता है? रात भर वह ज्यादा से ज्यादा ज़मीन घेरने की तरकीबें लगाता रहा. सुबह सूरज निकलने के पहले ही भागा. उसका कारनामा देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था. सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा. उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था. रास्ते में भूख लगे, प्यास लगे तो सोचा था चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा. रुकना नहीं है; चलना भी नहीं है, बस दौड़ते रहना है. सोचा उसने, चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – वह भागा… बहुत तेज भागा….

उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुँच जाऊँ. बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर वासना का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन… थोड़ी सी और घेर लूँ तो क्या हर्ज़ है! वापसी में ज्यादा तेज़ दौड़ लूँगा. इतनी ही बात है, फिर तो पूरी ज़िंदगी आराम ही करना है. एक ही दिन की तो बात है!

उसने पानी भी न पीया, क्योंकि उसके लिए रुकना पड़ेगा. सोचा, एक दिन की ही तो बात है, बाद में पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे. उस दिन उसने खाना भी न खाया. रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है. उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना हल्का हो सकता था हो गया.

एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और अच्छी ज़मीन नज़र आती है. लेकिन लौटना तो था ही, दोपहर के दो बज रहे थे. वह घबरा गया. अब शरीर जवाब दे रहा था. सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी. सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं. सारी ताकत लगा दी. पागल होकर दौड़ा. सब दाँव पर लगा दिया. और सूरज डूबने लगा… ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है, लोग दिखाई पड़ने लगे. गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! कैसे देहाती लोग हैं, – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए. मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ!

उसने आखिरी दम लगा दी – भागा, भागा… सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर भाग रहा है… सूरज डूबते-डूबते बस जाकर गिर पड़ा. कुछ पाँच-सात गज की दूरी रह गई है; घिसटने लगा.

अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई – घिसटने लगा. और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया. वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया. इतनी मेहनत कर ली! शायद दिल का दौरा पड़ गया. और सारे गाँव के लोग जिन्हें वह सीधा-सादा समझ रहा था, वे हँसने लगे और एक-दूसरे से बात करने लगे!

“ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं!”

यह कोई नई घटना न थी, अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे. यह कोई अपवाद नहीं था, यही नियम था. अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो. उस गाँव के लोगों के खाने-कमाने का जरिया थे ऐसे आदमी.

यह कहानी तुम्हारी कहानी है, तुम्हारी जिंदगी की कहानी है, सबकी जिंदगी की कहानी है. यही तो तुम कर रहे हो – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! बारह भी बज जाते हैं, दोपहर भी आ जाती है, लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है.

जीने का समय कहाँ है? पहले जमीन घेर लें, पहले तिजोरी भर लें, पहले बैंक में रुपया इकट्ठा हो जाए; फिर जी लेंगे, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है. और कभी कोई नहीं जी पाता. गरीब मर जाते हैं भूखे, अमीर मर जाते हैं भूखे, कभी कोई नहीं जी पाता. जीने के लिए थोड़ा सुकून चाहिए. जीने के लिए थोड़ी समझ चाहिए. जीवन मुफ्त नहीं मिलता. जीने के लिए बोध चाहिए.

25.12.12

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सिर्फ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनायी। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आज 88 वर्ष के हो गए।

Sunday, 23 December 2012

24.12.12

एक प्रेरक प्रसंग - एक बार भोले शंकर ने दुनिया पर बड़ा भारी कोप किया। पार्वती को साक्षी बनाकर संकल्प किया कि जब तक यह दुष्ट दुनिया सुधरेगी नहीं, तब तक शंख नहीं बजाएंगे। शंकर भगवान शंख बजाएं तो बरसात हो। बरसात रुक गई। अकाल-दर-अकाल पड़े। पानी की बूंद तक नहीं बरसी। न किसी राजा के क्लेश व सन्ताप की सीमा रही और न किसी रंक की। दुनिया में त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया। लोगों ने मुंह में तिनका दबाकर खूब ही प्रायश्चित किया। पर महादेव अपने प्रण से तनिक भी नहीं डिगे।

संयोग की बात ऐसी बनी कि एक दफा शंकर-पार्वती आकाश में उड़ते जा रहे थे तो उन्होंने एक अजीब ही दृश्य देखा कि एक किसान भरी दोपहरी जलती धूप में खेत की जुताई कर रहा है। पसीने में सराबोर, मगर अपनी धुन में मगन। जमीन पत्थर की तरह सख्त हो गयी थी। फिर भी वह जी-जोड़ मेहनत कर रहा था, जैसे कल-परसों ही बारिश हुई हो। उसकी आंखों और उसके पसीने की बूंदों से ऐसी ही आशा चू रही थी।
भोले शंकर को बड़ा आश्चर्य हुआ कि पानी बरसे तो बरस बीते। तब यह मूर्ख क्या पागलपन कर रहा है। शंकर पार्वती आकाश से नीचे उतरे। उससे पूछा, “अरे
बावले! क्यों बेकार कष्ट उठा रहा है? सूखी धरती में केवल पसीने बहाने से ही खेती नहीं होती। बरसात का तो अब सपना भी दूभर है।”
किसान ने एक बार आंख उठा कर उनकी ओर देखा और फिर हल चलाते-चलाते ही जवाब दिया, “हां, बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप। मगर हल चलने का हुनर भूल न जाऊं, इसलिए मैं हर साल इसी तरह पूरी लगन के साथ जुताई करता हूं। जुताई करना भूल गया तो केवल वर्षा से ही गरज सरेगी क्या! मेरी मेहनत का अपना आनंद भी तो है। फ़कत लोभ की खातिर ही मैं खेती नहीं करता।”
किसान के ये बोल कलेजे को पार करते हुए शंकर भगवान के मन में ठेठ गहरे बिंध गए। सोचने लगे,”मुझे भी शंख बजाए बरस बीत गए। कहीं शंख बजाना भूल तो नहीं गया! बस, उससे आगे सोचने की जरूरत ही उन्हें नहीं थी। खेत में खड़े-खड़े ही झोली से शंख निकला और जोर से फूंका। चारो और घटाएं उमड़ पडी। मतवाले हाथिओं के सामान आकाश में गडगडाहट पर गडगडाहट गूंजने लगी और बेशुमार पानी बरसा। बेशुमार जिसके स्वागत में किसान के पसीने की बूंदें पहले ही खेत में मौजूद थीं।

24.12.12

卐 !! ॐ नमः शिवाय !! हर हर महादेव !! 卐

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।
तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।
卐 !! ॐ नमः शिवाय !! हर हर महादेव !! 卐

23.12.12


23.12.12

एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान आया – एक परिव्राजक. रात को बातें हुईं. उस परिव्राजक ने कहा, “तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो. साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है. तुम यह जमीन वगैरह छोड़कर साइबेरिया चले जाओ. वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी. बड़ी ज़मीन में मनचाही फसल उगाओ. और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं.”

उस आदमी के मन में लालसा जगी. उसने तुरंत ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी. जब पहुँचा तो उसे बात सच्ची मालूम पड़ी. उसने वहां के ज़मींदारों से कहा, “मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ.” वे बोले, “ठीक है. जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो उसे मुनीम के पास जमा करा दो. जमीन बेचने का हमारा तरीका यह है कि कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चल पड़ो और सूरज के डूबते तक जितनी जमीन घेर सकते हो घेर लो. वह सारी जमीन तुम्हारी होगी. बस चलते जाना, चाहो तो दौड़ भी लेना. भरपूर बड़ी जमीन घेर लेना और सूरज के डूबते-डूबते ठीक उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे. बस यही शर्त है. जितनी जमीन तुम घेर लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी.”

यह सुनकर रात-भर तो सो न सका वह आदमी. कोई और भी नहीं सो पाता. ऐसे क्षणों में कोई सोता है? रात भर वह ज्यादा से ज्यादा ज़मीन घेरने की तरकीबें लगाता रहा. सुबह सूरज निकलने के पहले ही भागा. उसका कारनामा देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था. सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा. उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था. रास्ते में भूख लगे, प्यास लगे तो सोचा था चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा. रुकना नहीं है; चलना भी नहीं है, बस दौड़ते रहना है. सोचा उसने, चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – वह भागा… बहुत तेज भागा….

उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुँच जाऊँ. बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर वासना का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन… थोड़ी सी और घेर लूँ तो क्या हर्ज़ है! वापसी में ज्यादा तेज़ दौड़ लूँगा. इतनी ही बात है, फिर तो पूरी ज़िंदगी आराम ही करना है. एक ही दिन की तो बात है!

उसने पानी भी न पीया, क्योंकि उसके लिए रुकना पड़ेगा. सोचा, एक दिन की ही तो बात है, बाद में पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे. उस दिन उसने खाना भी न खाया. रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है. उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना हल्का हो सकता था हो गया.

एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और अच्छी ज़मीन नज़र आती है. लेकिन लौटना तो था ही, दोपहर के दो बज रहे थे. वह घबरा गया. अब शरीर जवाब दे रहा था. सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी. सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं. सारी ताकत लगा दी. पागल होकर दौड़ा. सब दाँव पर लगा दिया. और सूरज डूबने लगा… ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है, लोग दिखाई पड़ने लगे. गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! कैसे देहाती लोग हैं, – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए. मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ!

उसने आखिरी दम लगा दी – भागा, भागा… सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर भाग रहा है… सूरज डूबते-डूबते बस जाकर गिर पड़ा. कुछ पाँच-सात गज की दूरी रह गई है; घिसटने लगा.

अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई – घिसटने लगा. और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया. वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया. इतनी मेहनत कर ली! शायद दिल का दौरा पड़ गया. और सारे गाँव के लोग जिन्हें वह सीधा-सादा समझ रहा था, वे हँसने लगे और एक-दूसरे से बात करने लगे!

“ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं!”

यह कोई नई घटना न थी, अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे. यह कोई अपवाद नहीं था, यही नियम था. अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो. उस गाँव के लोगों के खाने-कमाने का जरिया थे ऐसे आदमी.

यह कहानी तुम्हारी कहानी है, तुम्हारी जिंदगी की कहानी है, सबकी जिंदगी की कहानी है. यही तो तुम कर रहे हो – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! बारह भी बज जाते हैं, दोपहर भी आ जाती है, लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है.

जीने का समय कहाँ है? पहले जमीन घेर लें, पहले तिजोरी भर लें, पहले बैंक में रुपया इकट्ठा हो जाए; फिर जी लेंगे, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है. और कभी कोई नहीं जी पाता. गरीब मर जाते हैं भूखे, अमीर मर जाते हैं भूखे, कभी कोई नहीं जी पाता. जीने के लिए थोड़ा सुकून चाहिए. जीने के लिए थोड़ी समझ चाहिए. जीवन मुफ्त नहीं मिलता. जीने के लिए बोध चाहिए.

भगवान के फोटो कहां और क्यों न लगाएं?....23.12.12

भगवान के फोटो कहां और क्यों न लगाएं?

हमारी धार्मिक मान्यताओं में एक यह भी है कि अपने शयनकक्ष यानी बेडरूम में भगवान की कोई प्रतिमा या तस्वीर नहीं लगाई जाती। केवल स्त्री के गर्भवती होने पर बालगोपाल की तस्वीर लगाने की छूट दी गई है। आखिर क्यों भगवान की तस्वीर अपने शयनकक्ष में नहीं लगाई जा सकती है? इन तस्वीरों से ऐसा क्या प्रभाव होता है कि इन्हें लगाने की मनाही की गई है?

वास्तव में यह हमारी मानसिकता को प्रभावित कर सकता है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही लगाने को कहा गया है, बेडरूम में नहीं। चूंकि बेडरूम हमारी नितांत निजी जिंदगी का हिस्सा है जहां हम हमारे जीवनसाथी के साथ वक्त बिताते हैं। बेडरूम से ही हमारी 
निजी जिंदगी
भी जुड़ी होती है। अगर यहां भगवान की तस्वीर लगाई जाए तो हमारे मनोभावों में परिवर्तन आने की आशंका रहती है। यह भी संभव है कि हमारे भीतर वैराग्य जैसे भाव जाग जाएं और हम हमारे दाम्पत्य से विमुख हो जाएं। इससे हमारी
निजी जिंदगी
  भी प्रभावित हो सकती है और गृहस्थी में अशांति उत्पन्न हो सकती है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही रखने की सलाह दी जाती है।

जब स्त्री गर्भवती होते है तो गर्भ में पल रहे बच्चे में अच्छे संस्कारों के लिए बेडरूम में बाल गोपाल की तस्वीर लगाई जाती है। ताकि उसे देखकर गर्भवती महिला के मन में अच्छे विचार आएं और वह किसी भी दुर्भावना, चिंता या परेशानी से दूर रहे। मां की अच्छी मानसिकता का असर बच्चे के विकास पर पड़ता है।
 

Saturday, 22 December 2012

प्रेम, धन और सफलता...23.12.12

प्रेम, धन और सफलता

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया।
औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।

Friday, 21 December 2012

22.12.12

एक दिन कौए ने जंगल में मोरों की बहुत सी पूंछें बिखरी पड़ी देखीं। वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली। मैं अभी इन पूंछों से अच्छा खासा मोर बन जाता हूं।

इसके बाद कौए ने मोरों की पूंछें अपनी पूंछ के आसपास लगा ली। फिर वह नया रूप देखकर बोला- अब तो मैं मोरों से भी सुंदर हो गया हूं। अब उन्हीं के पास चलकर उनके साथ आनंद मनाता हूं।

वह बड़े अभिमान से मोरों के
सामने पहुंचा। उसे देखते ही मोरों ने ठहाका लगाया। एक मोर ने कहा- जरा देखो इस दुष्ट कौए को। यह हमारी फेंकी हुई पूंछें लगाकर मोर बनने चला है। लगाओ बदमाश को चोंचों व पंजों से कस-कसकर ठोकरें। यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया। कौआ भागा-भागा अन्य कौए के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला- सुनते हो इस अधम की बातें! यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था। इसे इतना भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमान पाता है। आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है। लगाओ इस धोखेबाज को कसकर मार। इतना सुनते ही सभी कौओं ने मिलकर उसकी अच्छी मरम्मत की।

कथा का सार यह है कि ईश्वर ने हमें जिस स्वरूप में बनाया है, उसी में संतुष्ट रहकर अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए।

The brain itself cannot feel pain.22.12.12

The brain itself cannot
feel pain.

While the brain
might be the pain center
when you cut your finger
or burn yourself, the brain
itself does not have pain
receptors and cannot feel
pain. That doesn’t mean
your head can’t hurt. The
brain is surrounded by
loads of tissues, nerves
and blood vessels that are
plenty receptive to pain
and can give you a
pounding headache.

Eyestrain...22.12.12

Eyestrain

Eyestrain is one of the
most common headache
triggers in high-frequency
computer users.

Focusing
You might think the act of
focusing on a screen is a
straightforward process
but it's not as simple as it
sounds. The distance
between the front of a
monitor and our eyes is
called the working
distance. Interestingly, our
eyes actually want to relax
at a point that's farther
away from the screen. We
call that location the
Resting Point of
Accommodation (RPA).

In order to see what's on
the screen the brain has to
direct our eye muscles to
constantly re-adjust its
focus between the RPA
and the front of the
screen. This "struggle"
between where our eyes
want to focus and where
they should be focused
can lead to eyestrain and
eye fatigue, which can
eventually trigger a
headache.

There are a few things we
can do to help alleviate
headaches triggered by
eyestrain:

If you're working for
more than 45 minutes, get
up and take a 10-15
minute break. Use that
time to do activities that
don't require focusing on a
monitor like going for a
walk, looking out of a
window or looking down
a long hallway.

If you're referring to text
on paper while working at
the computer, don't put
the paper down next to
your keyboard. Prop the
page up next to your
monitor so that there is
less distance for your eyes
to travel and less
opportunity for eyestrain.

Illumination

Not all eyestrain-induced
headaches come from
staring at a computer
screen. Eyestrain
headaches can also be
triggered by working in a
bright environment. The
lighting in many office
spaces include sun-filled
windows, overhead
fluorescent lights and desk
lamps. In addition, you
may not only be dealing
with the glare from your
computer but also the
glare from every other
computer in the room.

This kind of excessive
brightness or over-
illumination can trigger
several types of headaches
including migraines.

You may find that
reducing the illumination
can make a big difference
in the frequency of your
headaches:

Try turning the overhead
lights down the next time
you're working at the
computer.

If your work-setting
doesn't allow for you to
easily adjust the room
lighting or where you sit,
try adjusting the
brightness and contrast
settings on your computer
monitor.

If you're working on an
older-style CRT monitor a
glare filter that attaches to
the front of your screen
may also help

21.12.12

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं

21.12.12

ऋषि अंगिरा के शिष्यों में एक था उदयन। वह काफी प्रतिभाशाली था। पर उसमें विनम्रता की कमी थी। वह हर समय अपने गुणों का बखान करता और अपने
सहपाठियों का मजाक उड़ाता रहता था। ऋषि ने
सोचा कि समय रहते इसे न समझाया गया तो यह लक्ष्य से भटक जाएगा। एक बार सर्दी की रात में सत्संग चल रहा था। बीच में अंगीठी में कोयले दहक
रहे थे। एक तरफ ऋषि बैठे थे दूसरी तरफ
शिष्य। ऋषि बोले- अंगीठी खूब चमक
रही है। इसका श्रेय इसमें दहक रहे
कोयलों को है।' सभी ने सहमति में सिर हिलाया। ऋषि ने उदयन से कहा- देखो सबसे बड़ा कोयला सबसे तेजस्वी है। इसे निकाल कर मेरे पास रख दो। उदयन ने चिमटे से पकड़ कर वह तेज भरा अंगारा ऋषि के पास रख दिया। लेकिन जैसे ही वह अंगीठी के अन्य
कोयलों से अलग हुआ जल्दी ही उसकी चमक फीकी पड़ने लगी। उस पर राख की परतें आ गईं और वह
तेजस्वी अंगारा एक काला कोयला भर रह गया। ऋषि ने समझाया- तुम चाहे कितने भी तेजस्वी हो पर इस कोयले जैसी भूल मत कर बैठना। अगर यह
कोयला अंगीठी में सबके साथ रहता तो अंत तक तेजस्वी बना रहता और सबको गर्मी देता रहता। अलग होते ही इसकी चमक नहीं रही। अब हम इसकी तेजस्विता का लाभ भी नहीं उठा सकेंगे। परिवार ही वह अंगीठी है जिसमें प्रतिभाएं संयुक्त रूप से तपती हैं।
व्यक्तिगत प्रतिभा का अहंकार न टिकता है न फलित होता है। सब के साथ रहने में ही वास्तविक बल है। उदयन को अपनी भूल का अहसास हो गया।