Tuesday 27 November 2012

28.11.12

एक बार एक युवक स्वामी रामानंद जी का प्रवचन सुनने पहुंचा। अंत में उसने पूछा, 'पाप का प्रायश्चित कैसे हो सकता है और प्रायश्चित करने से जीवन कैसे सफल हो सकता है?' स्वामी जी बोले, 'मन, कर्म, वचन से पाप न करने का संकल्प लो। अतीत में जो पाप हो गए हैं उनका प्रायश्चित करो। इससे मन की शुद्धि हो जाती है।'

यह सुनकर युवक बोला, 'महाराज, प्रायश्चित करने से क्या पापों से भी छुटकारा पाया जा सकता है और यदि हां तो

क्यों?' स्वामी रामानंद उसे अपने साथ एक नदी के पास ले गए। नदी के किनारे के एक गड्ढे में भरा पानी सड़ गया था जिसके कारण उसमें बदबू पैदा हो गई थी और कीड़े चल रहे थे। स्वामी जी युवक को सड़ा पानी दिखाकर बोले, 'भइया, यह पानी देख रहे हो, यह क्यों सड़ गया है?' युवक कुछ देर तक पानी को गौर से देखता रहा फिर बोला, 'महाराज प्रवाह रुकने के कारण पानी एक ही जगह इकट्ठा होकर सड़ गया है।' उसकी बात पर स्वामी जी बोले, 'ऐसे सड़े हुए पानी की तरह पाप इकट्ठे हो जाते हैं तो वे अनिष्ट करने लगते हैं। जिस तरह वर्षा का पानी इस सड़े हुए पानी को आगे धकेल कर नदी को पवित्र बना देता है, उसी प्रकार प्रायश्चित रूपी अमृत-वर्षा इन पापों को नष्ट कर मन को पवित्र बना देती है जिससे मन शुभ व सद्कार्यों के लिए तैयार हो जाता है और व्यक्ति प्रयास करता है कि वह आगे से नेक कार्य ही करे ताकि पाप का भागी न बने।' युवक स्वामी जी को नमस्कार कर वहां से चला गया।

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