आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं...
हमारे
देशमें सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत
होने के कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है ।
पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मे । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर
मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए
जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है । पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मन
ोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है । इस पर्वको स्त्री और
पुरुष समानरूपसे मनाते हैं । छठ व्रतके संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं;
उनमेंसे एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएमें हार गए, तब
द्रौपदी ने छठ व्रत रखा । तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको
राजपाट वापस मिल गया । लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध
भाई-बहनका है । लोक मातृका षष्ठीकी पहली पूजा सूर्यने ही की थी । छठ पर्वकी
परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष
खगौलीय अवसर है । उस समय सूर्यकी पराबैगनी किरणें (ultra violet rays)
पृथ्वीकी सतहपर सामान्यसे अधिक मात्रामें एकत्र हो जाती हैं । उसके संभावित
कुप्रभावोंसे मानवकी यथासंभव रक्षा करनेका सामर्थ्य इस परंपरामें है ।
पर्वपालनसे सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभावसे
जीवोंकी रक्षा संभव है । पृथ्वीके जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है ।
सूर्यके प्रकाशके साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं ।
सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है ।
वायुमंडलमें प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है । पराबैगनी किरणोंका
उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप
ओजोनमें बदल देता है । इस क्रियाद्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणोंका अधिकांश
भाग पृथ्वीके वायुमंडलमें ही अवशोषित हो जाता है । पृथ्वीकी सतहपर केवल
उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है । सामान्य अवस्थामें पृथ्वीकी सतहपर
पहुंचनेवाली पराबैगनी किरणकी मात्रा मनुष्यों या जीवोंके सहन करनेकी
सीमामें होती है । अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष
हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते
हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है । छठ जैसी खगौलीय स्थिति
(चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलोंकी सम रेखाके दोनों छोरोंपर) सूर्यकी
पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती
हुई, पृथ्वीपर पुन: सामान्यसे अधिक मात्रामें पहुंच जाती हैं । वायुमंडलके
स्तरोंसे आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती
है । ज्योतिषीय गणनाके अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्याके
छ: दिन उपरांत आती है । ज्योतिषीय गणनापर आधारित होनेके कारण इसका नाम और
कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है । २. छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?
यह पर्व चार दिनोंका है । भैयादूजके तीसरे दिनसे यह आरंभ होता है । पहले
दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसादके रूपमें
ली जाती है । अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है । इस दिन रातमें खीर बनती है ।
व्रतधारी रातमें यह प्रसाद लेते हैं । तीसरे दिन डूबते हुए सूर्यको अर्घ्य
यानी दूध अर्पण करते हैं । अंतिम दिन उगते हुए सूर्यको अर्घ्य चढ़ाते हैं ।
इस पूजामें पवित्रताका ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है । जिन
घरोंमें यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं । आजकल कुछ नई
रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवताकी मूर्तिकी स्थापना
करना । उसपर भी रोषनाईपर काफी खर्च होता है और सुबहके अर्घ्यके उपरांत
आयोजनकर्ता माईकपर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं । पटाखे भी जलाए जाते हैं ।
कहीं-कहींपर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल,
उदबत्ती भी बांटी जाती है ।
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