Saturday, 10 November 2012

(जय श्री राम ) 11.11.12

कथा है कि त्रेतायुग में मिथिला में महाराज जनक की सभा में जब श्रीराम ने भगवान शंकर के धनुष को भंग कर दिया, तब जानकी ने उनके गले में जयमाल डाल दी। उस रात्रि प्रभु यह विचार करने लगे कि जनकनंदिनीवैदेही अब हमारी अयोध्या जाएंगी। इसलिए उनके लिए वह

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अति सुंदर भवन होना चाहिए।
जिस क्षण भगवान के मन में यह कामना उठी, उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयीको स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पडा। महारानी कैकेयीने महाराजा दशरथ से स्वप्न में दिखे कनक भवन की प्रतिकृति अयोध्या में बनाने की इच्छा व्यक्त की। दशरथ जी के आग्रह पर शिल्पी विश्वकर्मा कनक भवन बनाने के लिए अयोध्या आए। उन्होंने अति सुंदर कनकभवनबना दिया।
माता कैकेयीने वह भवन अपनी बहू सीता को मुंह-दिखाई में दे दिया। विवाह के बाद राम-सीता इसी भवन में रहने लगे। इसमें असंख्य दुर्लभ रत्न जडे हुए थे। श्रीकृष्ण ने पाया श्रीविग्रह माना जाता है कि बाद के काल में यह भवन वीरान हो गया। द्वापर युग में श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी सहित जब अयोध्या आए, तब तक कनक भवन टूट-फूट कर एक ऊंचा
टीला बन चुका था। भगवान श्रीकृष्ण ने उस टीले पर परम आनंद का अनुभव किया। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि इसी स्थान पर कनक भवन अवस्थितथा।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योग-बल द्वारा उस टीले से श्रीसीताराम[युगल सरकार] के प्राचीन विग्रहोंको प्राप्त कर वहां स्थापित कर दिया। विक्रमादित्य ने किया जीर्णोद्धार मान्यता है कि आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाकर सीताराम के युगल विग्रहोंको वहां पुन:प्रतिष्ठित किया था। महाराज विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया विशाल कनक भवन एक हजार वर्ष तक ज्यों का त्यों बना रहा। बीच-बीच में उसकी मरम्मत होती रही। इसके जीर्णोद्धार की दूसरी सहस्त्राब्दिमें अयोध्या पर अनेक बार यवनों का आक्रमण हुआ, जिसमें लगभग सभी प्रमुख देव स्थान क्षतिग्रस्त हुए। कनक भवन भी तोडा गया। इस भवन को व्यवस्थित रूप से बनवाने का श्रेय ओडछेकी रानी वृषभानुकुंवरिको जाता है।
ओडछेके महाराज सवाई महेंद्र प्रताप सिंह जूदेव की धर्मपत्नी महारानी वृषभानुकुं वरिजी भगवान श्री राम की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने कनक भवन में सीता-राम विग्रह की पूर्ण विधि-विधान से प्रतिष्ठा कराई। दिव्य युगल सरकार मान्यता है कि कनक भवन में दाहिनी ओर स्थित छोटे दिव्य मनोहर युगल सरकार त्रेतायुगके हैं। विक्रमादित्य ने इनको ही पुन:प्रतिष्ठित किया था। इनकी बाईओर जो परम सुंदर कनक भवन विहारी-विहारिणी जू हैं, उन्हें महारानी वृषभानुकुंवरिने प्रतिष्ठित किया है। दोनों विग्रह अनुपम और विलक्षण हैं। इनका दर्शन करते ही लोग मंत्रमुग्ध होकर अपनी सुध-बुध भूल जाते हैं। वास्तव में कनक भवन सीता-राम का अन्त:पुर है।
(जय श्री राम )

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