देशी दीपावली अभियान ::
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रि
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रि
य राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए ।
सदियों से मिटटी के बनाये गए दीपक को घरों में जलाकर हम दीपावली मानते चले आये हैं, लेकिन आज के समय बाजार मे आये चीन के दीपकों ने मिटटी के दियों कि महक को छीन लिया है। जिसके चलते कुम्हार बदहाल हुए जा रहे हैं। मंहगाई और
मरता हुआ व्यापार कहीं कुम्हारों को कहानी न बना दे।
इस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीय परम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी के खिलौने अवश्य खरीदें और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकार का मोल-भाव न करें, नहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीप, खिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगे। इस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिन इनमें भारतीय परम्परा को ज़िंदा रखने का जूनून है...इस जुनून में आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायें।
दीपावली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ...क्योंकि आप चीन से बनी 'झालर' खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीन का सामान कम खरीदे जिससे आप भारत के गरीबो द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सके।
मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने, खील-बताशे, झाड़ू, रंगोली, रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव करना ??
जब हम टाटा- बिरला- अंबानी- भारती के किसी भी उत्पाद में मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी- खोमचे- ठेले वालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्याय ही है।
आने वाले समय मे ऐसा दिन ना आ जाए जब कभी हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को कहानी सुनानी पड़े की, "एक था कुम्हार", जिस तरह से कुम्हार के जीवन यापन करने वाले बाजार पर चीन जैसे दीपक हावी होते जा रहे हैं। उससे तो यही लगता है की शायद कुम्हार का घूमता हुआ चाक रुक जाएगा और कुम्हार सिर्फ कहानियो मे ही सुनने को मिलेंगे। हाडतोड़ मेहनत के बाद दीये बनाने बाले कुम्हार फुटपाथ पर दूकान लगाकर जहां बाजार मे एक एक ग्राहक को तरस रहा है, वहीँ चाईनीज दीपकों की बिक्री हाथों हाथ हो जाती है। दीपावली असत्य पर सत्य की जीत सहित रौशनी का भी त्यौहार है, लेकिन एक सत्य यह भी है की हमारी माटी की महक पर चाईनीज भारी पड़ गए। जिसके चलते आने वाले दिनों मे हजारों कुम्हारों के घरों मे दीपक क्या चूल्हे भी नहीं जल पायेंगे।
"अब वक़्त बदलेगा क्यूंकि अब हम बदलेंगे....
इतिहास पढ़ते सब है हम नया इतिहास लिखेंगे..."
♥ दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ♥
सदियों से मिटटी के बनाये गए दीपक को घरों में जलाकर हम दीपावली मानते चले आये हैं, लेकिन आज के समय बाजार मे आये चीन के दीपकों ने मिटटी के दियों कि महक को छीन लिया है। जिसके चलते कुम्हार बदहाल हुए जा रहे हैं। मंहगाई और
मरता हुआ व्यापार कहीं कुम्हारों को कहानी न बना दे।
इस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीय परम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी के खिलौने अवश्य खरीदें और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकार का मोल-भाव न करें, नहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीप, खिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगे। इस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिन इनमें भारतीय परम्परा को ज़िंदा रखने का जूनून है...इस जुनून में आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायें।
दीपावली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ...क्योंकि आप चीन से बनी 'झालर' खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीन का सामान कम खरीदे जिससे आप भारत के गरीबो द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सके।
मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी के पाने, खील-बताशे, झाड़ू, रंगोली, रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव करना ??
जब हम टाटा- बिरला- अंबानी- भारती के किसी भी उत्पाद में मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी- खोमचे- ठेले वालों से "कठोर मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्याय ही है।
आने वाले समय मे ऐसा दिन ना आ जाए जब कभी हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को कहानी सुनानी पड़े की, "एक था कुम्हार", जिस तरह से कुम्हार के जीवन यापन करने वाले बाजार पर चीन जैसे दीपक हावी होते जा रहे हैं। उससे तो यही लगता है की शायद कुम्हार का घूमता हुआ चाक रुक जाएगा और कुम्हार सिर्फ कहानियो मे ही सुनने को मिलेंगे। हाडतोड़ मेहनत के बाद दीये बनाने बाले कुम्हार फुटपाथ पर दूकान लगाकर जहां बाजार मे एक एक ग्राहक को तरस रहा है, वहीँ चाईनीज दीपकों की बिक्री हाथों हाथ हो जाती है। दीपावली असत्य पर सत्य की जीत सहित रौशनी का भी त्यौहार है, लेकिन एक सत्य यह भी है की हमारी माटी की महक पर चाईनीज भारी पड़ गए। जिसके चलते आने वाले दिनों मे हजारों कुम्हारों के घरों मे दीपक क्या चूल्हे भी नहीं जल पायेंगे।
"अब वक़्त बदलेगा क्यूंकि अब हम बदलेंगे....
इतिहास पढ़ते सब है हम नया इतिहास लिखेंगे..."
♥ दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ♥
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