Saturday, 3 November 2012

सृष्टि की उत्पत्ति ..04.11.2012

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आदि के पूर्व में जब मात्र परमतत्त्वं (आत्मतत्त्वम्) रूप शब्द-ब्रह्म ही थे। उन्हे संकल्प उत्पन्न हुआ कि कुछ ‘हो’। चूँकि वे सत्ता-सामर्थ्य से युक्त थे और उनके कार्य करने का माध्यम ‘संकल्प’ ही है, इसीलिए कुछ ‘हो’ संकल्प करते ही उन्ही शब्द-ब्रह्म का अंगरूप शब्द-शक्ति ‘सः’ (आत्म) छिटक कर अलग हो गयी, जो संकल्प रूपा आदि शक्ति अथवा मूल प्रकृति कहलायी।(शब्दरूप परमेश्वर से जो ए
क शब्द निकलकर छिटककर प्रचण्ड तेज पुञ्ज हुआ उसी को विज्ञान अनुमान के आधार पर महाविस्फोट कहता है) तत्पश्चात् शब्द-ब्रह्म के निर्देशन में ‘सः’ (आत्म) रूप शब्द-शक्ति को सृष्टि-उत्पत्ति सम्बन्धी कार्य-भार मिला अर्थात् सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के सम्बन्ध में निर्देशन, आज्ञा एवं आदेश परमतत्त्वं (आत्मतत्त्वम्) रूप शब्द-ब्रह्म स्वयं अपने पास तथा उत्पत्ति, संचालन और संहार से सम्बंधित क्रिया-कलाप ‘सः’ (आत्म) रूप शब्द-शक्ति के पास सौपा, परन्तु स्वयं को उसके इन क्रिया-कलापों से परे रखा।
शब्द-शक्ति रूप आदि शक्ति ही मूल प्रकृति कहलायी, क्योंकि प्रकृति की उत्पत्ति इसी आदि-शक
्ति रूप में हुई। इसीलिए यह मूल प्रकृति भी कहलायी। पुनः आदि-शक्ति ने शब्दब्रह्म के निर्देशन एवं सत्ता-सामर्थ्य के अधीन कार्य प्रारम्भ किया। इन्हे कार्य के निष्पादन हेतु इच्छा-शक्ति (Will Power) मिली। तत्पश्चात् आदि-शक्ति ने सृष्टि-उत्पत्ति की इच्छा की, तो इच्छा करते ही शब्द-शक्ति रूपा आदि-शक्ति का तेज दो प्रकार ज्योतियों में विभाजित हो गया; जिसमें पहली ज्योति तो आत्म ज्योति अथवा दिव्य ज्योति कहलायी तथा दूसरी ज्योति मात्र ज्योति ही कहलायी, अर्थात पहली ज्योति आत्मा और दूसरी ज्योति शक्ति कहलायी

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