हमारे त्योहारो का वैज्ञानिक महत्व :
भारतीय परम्पराओं मे आध्यात्मिकता, कलात्मकता, वैज्ञानिकता, समाजिकता नामक विचार इस प्रकार गुथे हुए है यह बताने के लिए हम होली का ही उदाहरण ले ले होली से जुड़ी समाजिकता, कलात्मकता तो स्पष्ट दिखाई देती है पर प्रह्लाद से जुड़ा आध्यात्मिकता महत्व भी है राजस्थान के सुप्रसिद्ध गौ वैज्ञानिक डॉ॰ स्व॰ गौरीशंकर माहेश्वरी ने इसके गहन वैज्ञानिक महत्व को बताया :
- होलिका दहन के समय गृह शांति के लिए गया के गोबर से चाँद - तारे - सूरज आदि की माला बनाकर उनका दहन किया जाता है
भारतीय परम्पराओं मे आध्यात्मिकता, कलात्मकता, वैज्ञानिकता, समाजिकता नामक विचार इस प्रकार गुथे हुए है यह बताने के लिए हम होली का ही उदाहरण ले ले होली से जुड़ी समाजिकता, कलात्मकता तो स्पष्ट दिखाई देती है पर प्रह्लाद से जुड़ा आध्यात्मिकता महत्व भी है राजस्थान के सुप्रसिद्ध गौ वैज्ञानिक डॉ॰ स्व॰ गौरीशंकर माहेश्वरी ने इसके गहन वैज्ञानिक महत्व को बताया :
- होलिका दहन के समय गृह शांति के लिए गया के गोबर से चाँद - तारे - सूरज आदि की माला बनाकर उनका दहन किया जाता है
- अग्नि की दिशा की लपट देखकर किसान इस बात का अनुमान लगा लेते है की किस दिशा मे वर्षा अधिक होगी राजस्थान मे यह परंपरा किसानो मे आम है ।
- होलिका दहन के समय एक सीधे हरे वृक्ष (प्रत्येक गाँव मे एक) को काटकर बीच मे रोपा जाता है राजस्थान मे हरे वृक्ष को काटना मानव हत्या के समान माना जाता है लेकिन यदि कोई वृक्ष परेशानी पैदा करता है तो एक वर्ष का होने से पूर्व ही इस निमित्त उसे काटकर हटा दिया जाता है जब होली की लपटे अपने शिखर पर होती है तब इस वृक्ष को 5 फुट नीचे से काटने के लिए लोग उमड़ते है और बारी बारे से अपनी सामर्थ्यता के अनुसार वार करते है जब पेड़ जलता हुआ नीचे गिर जाए तो उसे पकड़ कर गोल गोल घुमाते है और काटने के दौरान आग की जबर्दस्त असहनीय गरम लपटों मे से गुजरना होता है इसके पीछे वैज्ञानिक पक्ष यह है की फिर आगे पूरे ग्रीष्म ऋतु मे लू से बचाव होता है
- होलीका दहन की भस्म को घर इसलिए ले जाते है ताकि उसे अनाज मे डालने से कीड़ों का प्रकोप कम हो जाते है कीड़े लगाने का डर नहीं रहता
- होली मे रंग का प्रचालन तो बाद मे हुआ पहले केवल गोबर, मिट्टी के घोल मे प्रत्येक व्यक्ति को बार बार डुबाया जाता था इससे न केवल ग्रीष्म ऋतु मे चर्म रोगो, घमोरियों से बचाव होता था बल्कि पित्त से होने कई रोगो से रक्षा होती थी
क्यों पी जाती है भांग.......?
महाशिवरात्री और होली दोनों वसंत ऋतु मे आते है इन दोनों दिन ठंडाई व भांग पीने का प्रचलन है महाशिवरात्री के दिन शिवजी को भांग चढ़ाई जाती है शिवजी को कोई चीज क्यूँ चढ़ाई जाती है हम जान चुके है अर्थात भांग को औषधि के रूप मे ले तो ठीक है और नशे के रूप मे पिये तो जहर वसंत ऋतु में कफ बढ़ा हुआ रहता है भांड बहुत ठंडी रहती है लेकिन पित्त के साथ साथ कफ का भी नाश करती है इसलिए इन्हीं दोनों पर्वों पर बांग पीने की प्रथा चली है
लेकिन आज भांग के जगह दारू (गर्म जहर) पीने की प्रथा निकली है (ताकि अंग्रेज़ो की आत्मा खुश रहे हर समय, और कंपनियों की चाँदी, लेकिन कोई ग्राहक मर जाये तो कंपनियाँ मुआवजा देती है क्या ? )
ऋषि मुनियों द्वारा प्रस्थवित भारत की हर परंपरा के पीछे आध्यात्मिकता, वैज्ञानिकता, समाजिकता और कलात्मकता हैं । इस तथ्य को हमें नहीं भूलना चाहिए ।
लगातार दो हजार वर्षों से असभ्य पश्चिम (अरब-यूरोप) से हुए ठगो, बलात्कारियों, लुटेरो, असुरो के आक्रमणों व उनके शासन के दौरान हुए अत्याचारों के कारण इन परम्पराओं की कुछ कड़ियाँ विलुप्त हो गई है या विकृत हो गई ।
आज आवश्यकता है की हम इन पर फिर से गहराई से विचार कर इनका लाभ उठाकर अपने जीवन को समृद्ध करें न कि इनका मखौल उड़ाकर अपनी मानसिक गुलामी व बौद्धिक दिवालियेपन का भौंडा प्रदर्शन करें ।
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