पुत्र किसी के घर डाका डालकर आता ,तो माँ कमरे में एक कील गाड़ देती,किसी का खून करता ,तो एक और कील गाड़ देती.यह सिलसिला न जाने कब तक
चलता रहा.एक दिन पुत्र ने माँ से पूछा -'माँ ,तुमने ये सारा कमरा कीलों से भर दिया,यह सब क्या है?' ' पुत्र,यह तुम्हारे बुरे काम हैं.तू कोई बुरा काम करता था ,तो मैं एक कील गाड़
देती थी.अब तो पूरा कमरा कीलों से भर गया है,पर........' पुत्र का पाषाण-हृदय पानी- पानी हो गया,उस दिन से वह अच्छे काम करने लगा.हर रोज जब वह घर आता ,तब माँ को अपने अच्छे काम बताता ,माँ एक कील उखाड़ देती.कई वर्षों तक यह क्रम
चलता रहा.एक दिन जब सभी कीलें उखड़ गयी,तब पुत्र ने बड़ी शांति से पूछा -'माँ अब तो कोई पाप नही रहा?' 'पुत्र कीलें तो सभी निकल गयी हैं,पर कीलों के न मिटने वाले दाग दीवार पर रह गये हैं.मुझे ये निशान तुम्हारे बुरे
कामों की हमेशा याद दिलाते रहेंगे.'
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