Thursday, 17 January 2013

राधा ...18.. 01.13

राधा ...मात्र एक नाम नहीं जो कृष्ण के पूर्व है ! राधा मात्र एक प्रेम स्तम्भ नहीं जो कदम्ब के नीचे कृष्ण के संग सोची जाती है ! राधा एक आध्यात्मिक पृष्ठ है , जहाँ द्वैत अद्वैत का मिलन है ! राधा एक सम्पूर्ण काल का उदगम है जो कृष्ण रुपी समुद्र से मिलती है ! श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।

राधा कृष्ण के प्रेम का एक बहुत ही रोचक दृष्टान्त का उल्लेख भी है ...कृष्ण के राधा के प्रति प्रेम से जलन करते हुए उनकी पत्नियों ने खुलता हुआ दूध राधा को देते हुए कहा की कृष्ण ने भेजा है ...राधा ने बिना कोई प्रश्न किये वह गरम दूध गटक लिया ...जब वे कृष्ण के पास लौटी तो कृष्ण का शरीर छालों से भरा था ...प्रेम की यह परकाष्ठा देख कौन नतमस्तक नहीं होता..!

राधा और कृष्ण, ये वो दो नाम हैं जो दो हो कर भी एक हैं..और एक साथ ही पुकारे जाते हैं...ये वो हैं जिन्होंने दुनिया को सच्चे प्रेम का अर्थ समझाया...

अपनी अलौकिक प्रेम कहानी से इन्होने ना सिर्फ प्रेम के निःस्वार्थ रूप को सार्थक किया बल्कि सारे जग को बता दिया कि प्यार कितना सरल, कितना निश्छल है..कितना पवित्र है...प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि आत्माओं का मिलन है..

भगवान् श्री कृष्ण और राधा का नाम हमेशा एक साथ पुकारा जाता है.. और इन सबका कारण है उनके बीच का अटूट प्रेम जो आज भी सच्चे प्यार का सबसे बड़ा उदाहरण है..

वैसे तो इनकी प्रेम कहानी के अनेक रूप हैं जो अलग अलग लोगों द्वारा अलग अलग प्रकार से बताये जाते हैं.. मगर इन सबके बीच में एक चीज़ कभी नहीं बदलती और वो है इनका पवित्र प्रेम जो अतुलनीय और अमर है..

कहीं इनके विवाह का ज़िक्र है तो कहीं बताया गया है कि इनका विवाह नहीं हुआ था...कुछ का मानना है कि राधा ने मुरली बन कर खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया...कहीं राधा को कृष्ण से उम्र में बड़ी कहा गया है, तो कहीं हमउम्र...मगर राधा और कृष्ण का प्रेम तो इन सब से परे था..इन सबसे ऊपर...इनका प्रेम किसी रिश्ते का मोहताज नहीं था..उनका समर्पण ही उनके प्यार की ताकत थी..!

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