Friday 4 January 2013

आस्था एवं संस्कार...05.01.13

आस्था एवं संस्कार
क्या आप जानते है...श्रीबिहारी जी मन्दिर, वृन्दावन में मंगला–आरती नहीं होती हैं।

यहाँ एक विलक्षण बात यह है कि श्रीबिहारी जी मन्दिर में मंगला–आरती नहीं होती हैं। केवल जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं । इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि -

एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा हैं। यह देखकर स्वामी जी बोले– अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा हैं। वहाँ श्रीबिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे। किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को विस्तर पर रखकर चले गये। स्वामी जी, वृद्ध अवस्था में दृष्टि जीर्ण होने के कारण उनकों कुछ नजर नहीं आय । इसके पश्चात श्री बाँकेबिहारीजी मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर के कपाट खोले तो उन्हें श्री बाँकेविहारीजी मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर में कपट खोले तो उन्हें श्रीबाँकेबिहारी जी के पलने में चुड़ा एवं वंशी नजर नहीं आयी। किन्तु मन्दिर का दरवाजा… बन्द था।

आश्चर्यचकित होकर पुजारी जी निधिवन में स्वामी जी के पास आये एवं स्वामी जी को सभी बातें बतायी। स्वामी जी बोले कि प्रातःकाल कोई मेरे पंलग पर सोया हुआ था। वो जाते वक्त कुछ छोड़ गया हैं। तब पुजारी जी ने प्रत्यक्ष देखा कि पंलग पर श्रीबाँकेबिहारी जी की चुड़ा–वंशी विराजमान हैं। इससे प्रमाणित होता है कि श्रीबाँकेबिहारी जी रात को रास करने के लिए निधिवन जाते हैं।
इसका कारण यह है कि ठाकुरजी नित्य-रात्रि में रास में थककर भोर में शयन करते हैं। अतः प्रातः आरती के लिए ठाकुरजी के शयन में बाधा डालकर इन्हें जगाना उचित नहीं है। इसी कारण से प्रातः श्रीबिहारी जी की मंगला–आरती नहीं होती हैं।

मन्दिर में सेवा और महोत्सव सखी भाव से मनाये जाते हैं। यहाँ पर साल में सिर्फ़ एक बार जन्माष्टमी के अवसर पर “मंगला आरती” होती है , वैशाख मास की “अक्षय तृतीया” के दिन साल में एक दिन चरण दर्शन होते हैं, श्रावण के महिने में केवल “हरियाली तीज” के दिन ही ठाकुरजी स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर दर्शन देते हैं, इसी तरहां ठाकुरजी केवल शरद पूर्णिमा के दिन “बंशी धारण” करते हैं, इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में “फ़ूल बंगले”, बिहार पंचमी ( प्राकट्य उत्सव ), होली आदि उत्सवों पर विशेष दर्शन होते हैं।

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