Saturday, 5 January 2013

है कि नहीं... 05.01.13

है कि नहीं
स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया," माँ की महिमा संसार में
किस कारण से गायी जाती है? स्वामीजी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर
वजन का एक पत्थर ले आओ | जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, "
अब इस पत्थर को किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद
मेरे पास आओ तो मई तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा |"
स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बाँध लिया और चला
गया | पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना कम करता रहा, किन्तु हर छण उसे परेशानी और
थकान महसूस हुई | शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए
असह्य हो उठा | थका मांदा वह स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला ," मै इस पत्थर
को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूँगा | एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए
मै इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता |"
स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, " पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी
नहीं उठाया गया और माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती
है और ग्रहस्थी का सारा काम करती है | संसार में माँ के सिवा कोई इतना
धैर्यवान और सहनशील नहीं है इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं |
किसी कवी ने सच ही कहा है : -
जन्म दिया है सबको माँ ने पाल-पोष कर बड़ा किया |कितने कष्ट सहन कर उसने, सबको
पग पर खड़ा किया |माँ ही सबके मन मंदिर में, ममता सदा बहाती है|बच्चों को वह
खिला-पिलाकर, खुद भूखी सो जाती है|पलकों से ओझल होने पर, पल भर में घबराती है
|जैसे गाय बिना बछड़े के, रह-रह कर रंभाती है |छोटी सी मुस्कान हमारी, उसको
जीवन देती है |अपने सारे सुख-दुःखहम पर न्योछावर कर देती है |

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