ये पांच दु:ख हर लेते हैं हनुमान
श्री हनुमान के स्वरूप, चरित्र, आचरण की महिमा ऐसी है कि उनका मात्र नाम ही मनोबल और आत्मविश्वास से भर देता है। रुद्र अवतार होने से हनुमान का स्मरण दु:खों का अंत करने वाला भी माना गया है।
श्री हनुमान के ऐसे ही
श्री हनुमान के स्वरूप, चरित्र, आचरण की महिमा ऐसी है कि उनका मात्र नाम ही मनोबल और आत्मविश्वास से भर देता है। रुद्र अवतार होने से हनुमान का स्मरण दु:खों का अंत करने वाला भी माना गया है।
श्री हनुमान के ऐसे ही
अतुलनीय चरित्र, गुणों और विशेषताओं को श्री राम के परमभक्त गोस्वामी
तुलसीदास ने श्री हनुमान चालीसा में उतारा है। श्री हनुमान चालीसा का पाठ
हनुमान भक्ति का सबसे
श्रेष्ट, सरल उपाय है, बल्कि धर्म की दृष्टि से बताए गए पांच दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है।
श्री हनुमान चालीसा की शुरूआत में ही पंक्तियां आती है कि -
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
इस दोहे में बल, बुद्धि और विद्या द्वारा क्लेशों को हरने के लिए हनुमान से विनती की गई है। यहां जिन क्लेशों का अंत करने के लिए प्रार्थना की गई है, वह पांच कारण है - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। जानते हैं इन पांच दु:खों के अर्थ और व्यावहारिक रूप।
अविद्या - विद्या या ज्ञान का अभाव। विद्या व्यक्ति के चरित्र, आचरण और व्यक्तित्व विकास के लिए अहम है। व्यावहारिक रूप से भी किसी विषय पर जानकारी का अभाव असुविधा, परेशानी और कष्टों का कारण बन जाता है। इसलिए विद्या के बिना जीवन दु:खों का कारण माना गया है।
अस्मिता - स्वयं के सम्मान, प्रतिष्ठा के लिए भी व्यक्ति अनेक पर मौकों अहं भाव के कारण दूसरों का जाने-अनजाने उपेक्षा या अपमान कर देता है। जिससे बदले में मिली असहयोग, घृणा भी व्यक्ति के गहरे दु:ख का कारण बन सकती है।
राग - किसी व्यक्ति, वस्तु या विषय से आसक्ति से उनसे जुड़ी कमियां, दोष या बुराईयों को व्यक्ति नहीं देख पाता। जिससे मिले अपयश, असम्मान विरोध भी कलह पैदा करता है।
द्वेष - किसी के प्रति ईर्ष्या या बैर भाव का होना। यह भी कलह का ही रूप है, जो हमेशा ही व्यक्ति को बेचैन और अशांत रखता है।
अभिनिवेश - मौत या काल का भय। मन पर संयम की कमी और इच्छाओं पर काबू न होना जीवन के प्रति आसक्ति पैदा करता है। यही भाव मौत के अटल सत्य को स्वीकारने नहीं देता है और मृत्यु को लेकर चिंता या भय का कारण बनता है।
व्यावहारिक रूप से इन पांच दु:खों से मुक्ति या बचाव बुद्धि, विद्या या बल से ही संभव है। धार्मिक दृष्टि से हनुमान उपासना से प्राप्त होने वाले बुद्धि और विवेक खासतौर पर इन पांच तरह के कलह दूर रखते हैं।
श्रेष्ट, सरल उपाय है, बल्कि धर्म की दृष्टि से बताए गए पांच दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है।
श्री हनुमान चालीसा की शुरूआत में ही पंक्तियां आती है कि -
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
इस दोहे में बल, बुद्धि और विद्या द्वारा क्लेशों को हरने के लिए हनुमान से विनती की गई है। यहां जिन क्लेशों का अंत करने के लिए प्रार्थना की गई है, वह पांच कारण है - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। जानते हैं इन पांच दु:खों के अर्थ और व्यावहारिक रूप।
अविद्या - विद्या या ज्ञान का अभाव। विद्या व्यक्ति के चरित्र, आचरण और व्यक्तित्व विकास के लिए अहम है। व्यावहारिक रूप से भी किसी विषय पर जानकारी का अभाव असुविधा, परेशानी और कष्टों का कारण बन जाता है। इसलिए विद्या के बिना जीवन दु:खों का कारण माना गया है।
अस्मिता - स्वयं के सम्मान, प्रतिष्ठा के लिए भी व्यक्ति अनेक पर मौकों अहं भाव के कारण दूसरों का जाने-अनजाने उपेक्षा या अपमान कर देता है। जिससे बदले में मिली असहयोग, घृणा भी व्यक्ति के गहरे दु:ख का कारण बन सकती है।
राग - किसी व्यक्ति, वस्तु या विषय से आसक्ति से उनसे जुड़ी कमियां, दोष या बुराईयों को व्यक्ति नहीं देख पाता। जिससे मिले अपयश, असम्मान विरोध भी कलह पैदा करता है।
द्वेष - किसी के प्रति ईर्ष्या या बैर भाव का होना। यह भी कलह का ही रूप है, जो हमेशा ही व्यक्ति को बेचैन और अशांत रखता है।
अभिनिवेश - मौत या काल का भय। मन पर संयम की कमी और इच्छाओं पर काबू न होना जीवन के प्रति आसक्ति पैदा करता है। यही भाव मौत के अटल सत्य को स्वीकारने नहीं देता है और मृत्यु को लेकर चिंता या भय का कारण बनता है।
व्यावहारिक रूप से इन पांच दु:खों से मुक्ति या बचाव बुद्धि, विद्या या बल से ही संभव है। धार्मिक दृष्टि से हनुमान उपासना से प्राप्त होने वाले बुद्धि और विवेक खासतौर पर इन पांच तरह के कलह दूर रखते हैं।
No comments:
Post a Comment