Wednesday, 31 October 2012

01.11.2012

सचमुच विपत्ति में ही मनुष्य के धैर्य और धर्म का पता लगता है; परन्तु यह विश्वास रखिये, जिनका जीवन केवल आराम से ही बीतता है उनके लिए जीवन में पूर्ण विकास और पूर्ण परिणति बहुत कठिन हो जाती है l वे न तो अपने को भलीभांति परख - पहचान सकते हैं और न दूसरे की यथार्थ स्थिति का ही अनुभव कर सकते हैं l इसी से बुद्धिमान लोग विपत्ति से घबराते नहीं l वे जानते हैं कि जो लोग 'हाँ हजूर' कहनेवाले खुशामदियों और तारीफ के पुल बांधनेवाले स्वार्थियों से घिरे रहकर इन्द्रिय सुखभोग के आराम में लगे रहते हैं, वे भगवत्कृपा के परम लाभ से प्राय: वंचित ही रहते हैं l विपत्ति में धीरज न छोड़कर उसे भगवान् के दें मानकर सम्पत्ति के रूप में परिणत कर लेना चाहिए l फिर विपत्ति का दुःख मिटते देर न लगेगी l
यही बात निन्दा करने वाले भाइयों के सम्बन्ध में समझिये l आप यह माने कि आपकी जितनी भी निन्दा होती है, उतने ही आपके पातक घुलते हैं l निन्दा करनेवाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते l हमारे पाप धोने जाकर जो स्वाभाविक ही हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार ह
ैं, वे क्या हमारे कम उपकारी हैं ? एक तरह से उनका यह त्याग है l आपकी निन्दा होती है, यह वस्तुत: बहुत अच्छा होता है l आप तो भाग्यवान हैं, जो आप को इतने निन्दा करनेवाले मिल जाते हैं l निन्दकों से कभी न तो द्वेष करना चाहिए, न उन्हें रोकना चाहिए और न मन में बदला लेने कि ही कोई भावना करनी चाहिए l हाँ, उनके बतलाये हुए दोषों पर धीरज तथा शान्ति के साथ विचार करना चाहिए और उनमें से एक भी दोष जान पड़े तो उसे दृढ़ता और साहस के साथ दूर करके मन-ही-मन निन्दकों का उपकार मानना चाहिए l भगवान् और धर्म का दृढ सहारा पकडे रखकर साहस तथा धैर्य के साथ विपत्ति का सामना करना चाहिए l भगवान् ने कहा है -
मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिषयसि l

'मुझ में चित्त लगाने पर तू मेरी कृपा से सारे संकटों से पार हो जायेगा l ' भगवान् के इन वचनों पर विश्वास करके उनमें चित्त लगाना चाहिए


Tuesday, 30 October 2012

वास्तु शुद्धिके सरल उपाय..31.10.2012

वास्तु शुद्धिके सरल उपाय :

शुभ वास्तु के लिए फेंग शुई आदि विदेशी उपाय अपनाने के बजाये स्वदेशी उपाय आजमाए . चाइनीज़ लोग स्वयं तामसिक आहार जैसे कीड़े मकोड़े , कुत्ते , घोड़े सब खाते है . तो वे वास्तु शुद्धि के सात्विक उपाय कैसे दे सकते है ? व

े अक्सर महंगे होते है और इनसे लाभ कितना मिलता है ये भी संदेहास्पद है . इसलिए ये स्वदेशी , सस्ते और टिकाऊ उपाय आजमाए .

१. घरमें तुलसीके पौधे लगायें |

२. घर एवं आसपासके परिसरको स्वच्छ रखें |

३. घरमें नियमित गौ मूत्र का छिड़काव करें | पतंजलि के फीनाइल में गोमूत्र भी है उसका इस्तेमाल किया जा सकता है |

४. घरके अंदर सप्ताहमें दो दिन कच्चे नीम पत्तीकी धूनी जलाएं |

५. घरमें कंडेको प्रज्ज्वलित कर धुना एवं लोबानसे धूप दिखाएँ | आसाराम बापू जी के ऋषि प्रसाद नामक दुकानों में जो धुप मिलती है वह गाय के गोबर से निर्मित है उसकी सुगंध अद्भुत है | पतंजलि की अगरबत्ती यज्ञ सुगंध भी यज्ञ सामग्री से निर्मित है |
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६. घरके चारों दीवार पर वास्तु शुद्धिकी सात्त्विक नामजप की पट्टियाँ लगाएँ |

७. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका (C.D) चलायें |

८. घरमें मृत पितरके चित्र अपनी दृष्टिके सामने न रखें |

९. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं अतः क्लेश से कष्ट और बढ़ता है एवं धन का नाश होता है |

१० घर में सत्संग प्रवचनका आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घर में हो, तो धर्म-कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु, उस स्थानको किसी संत या गुरु के कार्य हेतु अर्पण करें |

११. संतोंके चरण घरमें पड़ने से, घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है अतः संतो के आगमन हेतु अपनी अपनी भक्ति बढ़ाएं |

१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, घर के सदस्यों के मात्र प्रसन्नचित्त रहने से घरकी ३०% तक वास्तु की शुद्धि हो जाती है |

१३॰ घरमें अधिक से अधिक समय, सभी कार्य करते हुए नामजप , स्तोत्र आदि का पाठ करें |

१४. सुबह और संध्या समय घरके सभी सदस्य मिलकर पूजा स्थलपर आरती करें |

१५. घर के पर्दे, दीवार, चादर इत्यादिके रंग काले, बैंगनी या गहरे रंगके न हों यह ध्यान रखें |

भगवान् का महत्व ..30.10.2012

भगवान् का महत्व

भगवान् की ओर चित्त का प्रवाह कम है और सांसारिक विषयों एवं प्रलोभनों की ओर अधिक है - यह अवश्य ही चिन्ता की बात है l श्री भगवान् में जिस दिन पूर्ण रूप से यह भाव हो जायेगा कि भगवान् को भूलने से बढ़ कर और कोई महान हानि नहीं है, उस दिन से फिर ऐसी बात नहीं होगी l किसी भी अधिक मूल्यवान और अधिक महत्त्व की वस्तु के लिए कम मूल्य की या कम महत्त्व की वस्तु का त्याग अनायास हो सकता है l भगवान् के समान बहुमूल्य और महत्त्व की वस्तु और कौन-सी होगी l बुद्धि से सोचने पर ऐसा ही प्रतीत होता है, परन्तु इस तत्व पर पूरी श्रद्धा नहीं होती, इसीसे भगवान् को छोड़कर विषयों की ओर चित्तवृतियों का प्रवाह होता है l श्री भगवान् का महत्व यथार्थत:जान लेने पर अपना सब कुछ देकर भी उन्हें पाने में उनकी कृपा ही कारण दिखाई देती है l त्याग या तप की कीमत देकर कौन भगवान् को खरीद सकता है l उस अमूल्य निधि की तुलना किसी दूसरी वस्तु से की ही नहीं जा सकती l फिर तुच्छ भोगों का त्याग तो तुच्छ-सी बात होगी l भला विचार तो कीजिय
े - उनके समान सौंदर्य, माधुर्य, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, श्री, यश और किस में है l उनमे समान प्रलोभन की वस्तु और कौन-सी है ? हमारा अभाग्य है जो हम उस दिव्य सुधासागर को छोड़कर विषय-विष की ज्वाला से पूर्ण माया-मधुर विषयों के पीछे पागल हो रहे हैं l भगवान् हमारी मति पलटें l कातर प्रार्थना कीजिये l सच्ची कातर प्रार्थना का उत्तर बहुत शीघ्र मिलता है l
एक बात और है बड़े महत्त्व की, हो सके तो कीजिये l जीवन-मरण, बन्धन-मुक्ति, क्या, क्यों और कब की चिन्ता को छोड़कर दयामय की अहैतुकी दया पर निर्भर हो जाइये l बस, उसका चिन्तन हुआ करे और इस निर्भरता में कभी त्रुटि न आने पावे l देखिये, आप क्या से क्या हो जाते हैं और वह भी बहुत ही शीघ्र l

Monday, 29 October 2012

ये पांच दु:ख हर लेते हैं हनुमान...30.10.2012

ये पांच दु:ख हर लेते हैं हनुमान

श्री हनुमान के स्वरूप, चरित्र, आचरण की महिमा ऐसी है कि उनका मात्र नाम ही मनोबल और आत्मविश्वास से भर देता है। रुद्र अवतार होने से हनुमान का स्मरण दु:खों का अंत करने वाला भी माना गया है।

श्री हनुमान के ऐसे ही
अतुलनीय चरित्र, गुणों और विशेषताओं को श्री राम के परमभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने श्री हनुमान चालीसा में उतारा है। श्री हनुमान चालीसा का पाठ हनुमान भक्ति का सबसे
श्रेष्ट, सरल उपाय है, बल्कि धर्म की दृष्टि से बताए गए पांच दु:खों का नाश करने वाला भी माना गया है।

श्री हनुमान चालीसा की शुरूआत में ही पंक्तियां आती है कि -

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि, विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

इस दोहे में बल, बुद्धि और विद्या द्वारा क्लेशों को हरने के लिए हनुमान से विनती की गई है। यहां जिन क्लेशों का अंत करने के लिए प्रार्थना की गई है, वह पांच कारण है - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। जानते हैं इन पांच दु:खों के अर्थ और व्यावहारिक रूप।

अविद्या - विद्या या ज्ञान का अभाव। विद्या व्यक्ति के चरित्र, आचरण और व्यक्तित्व विकास के लिए अहम है। व्यावहारिक रूप से भी किसी विषय पर जानकारी का अभाव असुविधा, परेशानी और कष्टों का कारण बन जाता है। इसलिए विद्या के बिना जीवन दु:खों का कारण माना गया है।

अस्मिता - स्वयं के सम्मान, प्रतिष्ठा के लिए भी व्यक्ति अनेक पर मौकों अहं भाव के कारण दूसरों का जाने-अनजाने उपेक्षा या अपमान कर देता है। जिससे बदले में मिली असहयोग, घृणा भी व्यक्ति के गहरे दु:ख का कारण बन सकती है।

राग - किसी व्यक्ति, वस्तु या विषय से आसक्ति से उनसे जुड़ी कमियां, दोष या बुराईयों को व्यक्ति नहीं देख पाता। जिससे मिले अपयश, असम्मान विरोध भी कलह पैदा करता है।

द्वेष - किसी के प्रति ईर्ष्या या बैर भाव का होना। यह भी कलह का ही रूप है, जो हमेशा ही व्यक्ति को बेचैन और अशांत रखता है।

अभिनिवेश - मौत या काल का भय। मन पर संयम की कमी और इच्छाओं पर काबू न होना जीवन के प्रति आसक्ति पैदा करता है। यही भाव मौत के अटल सत्य को स्वीकारने नहीं देता है और मृत्यु को लेकर चिंता या भय का कारण बनता है।

व्यावहारिक रूप से इन पांच दु:खों से मुक्ति या बचाव बुद्धि, विद्या या बल से ही संभव है। धार्मिक दृष्टि से हनुमान उपासना से प्राप्त होने वाले बुद्धि और विवेक खासतौर पर इन पांच तरह के कलह दूर रखते हैं।

शरद पूर्णिमा.... 29.10.2012

शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है। इस रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत-तत्त्व बरसता है। चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है।
आज की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। भगवान ने भी कहा हैः
पुष्ण
ामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।
'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।' (गीताः15.13)
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है शीतलता। बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन आपके दिल में कोई फरियाद न उठे। आप भीतर से ऐसे पुष्ट हों कि बाहर की छोटी मोटी मुसीबतें आपको परेशान न कर सकें।
शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि में (9 से 12 बजे के बीच) छत पर चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े से ढँककर रखी हुई दूध-पोहे अथवा दूध-चावल की खीर अवश्य खानी चाहिए। देर रात होने के कारण कम खायें, भरपेट न खायें, सावधानी बरतें। रात को फ्रिज में रखें या ठंडे पानी में ढँक के रखें। सुबह गर्म करके उपयोग कर सकते हैं। ढाई तीन घंटे चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है।
इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना। एक आध मिनट आँखें पटपटाना। कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं। इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी। और फिर ऐसा आसन बिछाना जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में। चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मौज पड़े तो आप लेट भी हो सकते हैं। श्वासोच्छवास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, निःसंकल्प नारायण में विश्रान्ति पायें। ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाना। विश्रांति योग... भगवदयोग.... अंतरंग जप करते हुए अपने चित्त को शांत, मधुमय, आनंदमय, सुखमय बनाते जाना। हृदय से जपना प्रीतिपूर्वक। आपको बहुत लाभ होगा। कितना लाभ होगा, यह माप सकें ऐसा कोई तराजू नहीं है। वह तराजू आज तक बनी नहीं। ब्रह्माजी भी बनायें तो वह तराजू टूट जायेगा।
जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें। जिनको दमे की बीमारी हो वे नजदीक के किसी आश्रम या समिति से सम्पर्क के साथ लेना। दमा मिटाने वाली बूटी निःशुल्क मिलती है, उसे खीर में डाल देना। जिसको दमा है वह बूटी वाली खीर खाये और घूमे, सोये नहीं, इससे दमे में आराम होता है। दूसरा भी दमा मिटाने का प्रयोग है। अंग्रजी दवाओं से दमा नहीं मिटता लेकिन त्रिफला रसायन 10-10 ग्राम सुबह शाम खाने से एक महीने में दमे का दम निकल जाता है।
इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।

Sunday, 28 October 2012

Ram Katha.... 29.10.2012

राम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की, हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की, ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,

जम्बुद्वीपे, भरत खंडे. आर्यावर्ते, भारतवर्षे,इक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की,
यही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की,हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की, ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,


रघुकुल के राजा धर्मात्मा, चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा,संतति हेतु यज्ञ करवाया,
धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया,नृप घर जन्मे चार कुमारा, रघुकुल दीप जगत आधारा,
चारों भ्रातों के शुभ नामा, भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण रामा,

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके, अल्प काल विद्या सब पाके,
पूरण हुयी शिक्षा, रघुवर पूरण काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की,ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की,

मृदु स्वर, कोमल भावना, रोचक प्रस्तुति ढंग,इक इक कर वर्णन करें,
लव कुश राम प्रसंग,विश्वामित्र महामुनि राई,
तिनके संग चले दोउ भाई,कैसे राम ताड़का मारी, कैसे नाथ अहिल्या तारी,

मुनिवर विश्वामित्र तब, संग ले लक्ष्मण राम,सिया स्वयंवर देखने, पहुंचे मिथिला धाम,
जनकपुर उत्सव है भारी,जनकपुर उत्सव है भारी,
अपने वर का चयन करेगी सीता सुकुमारी,जनकपुर उत्सव है भारी,

जनक राज का कठिन प्रण, सुनो सुनो सब कोई,जो तोडे शिव धनुष को, सो सीता पति होई,
को तोरी शिव धनुष कठोर, सबकी दृष्टि राम की ओर,राम विनय गुण के अवतार,
गुरुवार की आज्ञा शिरधार,सहज भाव से शिव धनु तोड़ा,

जनकसुता संग नाता जोड़ा,रघुवर जैसा और न कोई,
सीता की समता नही होई,दोउ करें पराजित कांति कोटि रति काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की, ये रामायण है पुण्य कथा सिया राम की,

सब पर शब्द मोहिनी डारी, मन्त्र मुग्ध भये सब नर नारी,यूँ दिन रैन जात हैं बीते, लव कुश नें सबके मन जीते,
वन गमन, सीता हरण, हनुमत मिलन, लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन.
सविस्तार सब कथा सुनाई, राजा राम भये रघुराई,राम राज आयो सुख दाई, सुख समृद्धि श्री घर घर आई

काल चक्र नें घटना क्रम में ऐसा चक्र चलाया,राम सिया के जीवन में फिर घोर अँधेरा छाया,
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,निष्कलंक सीता पे प्रजा नें मिथ्या दोष लगाया,अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,

चल दी सिया जब तोड़ कर सब नेह नाते मोह के,पाषण हृदयों में न अंगारे जगे विद्रोह के,
ममतामयी माँओं के आँचल भी सिमट कर रह गए,गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घट कर रह गए,
न रघुकुल न रघुकुलनायक, कोई न सिय का हुआ सहायक,

मानवता को खो बैठे जब, सभ्य नगर के वासी,तब सीता को हुआ सहायक, वन का इक सन्यासी,
उन ऋषि परम उदार का वाल्मीकि शुभ नाम,सीता को आश्रय दिया ले आए निज धाम,
रघुकुल में कुलदीप जलाए, राम के दो सुत सिय नें जाए,

श्रोतागण, जो एक राजा की पुत्री है, एक राजा की पुत्रवधू है,
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है, वही महारानी सीता वनवास के दुखों में अपने दिन कैसे काटती है. अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान के रक्षा करते हुए, किसी से सहायता मांगे बिना कैसे अपना काम वो स्वयं करती है, स्वयं वन से लकड़ी काटती है, स्वयं अपना धान कूटती है, स्वयं अपनी चक्की पीसती है, और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है अब उसकी एक करुण झांकी देखिये;

जनक दुलारी कुलवधू दशरथजी की,राजरानी होके दिन वन में बिताती है,
रहते थे घेरे जिसे दास दासी आठों याम,दासी बनी अपनी उदासी को छिपती है,
धरम प्रवीना सती, परम कुलीना,सब विधि दोष हीना जीना दुःख में सिखाती है,

जगमाता हरिप्रिया लक्ष्मी स्वरूपा सिया,कूटती है धान, भोज स्वयं बनती है,
कठिन कुल्हाडी लेके लकडियाँ काटती है,करम लिखे को पर काट नही पाती है,
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था,दुःख भरे जीवन का बोझ वो उठाती है,

अर्धांगिनी रघुवीर की वो धर धीर,भरती है नीर, नीर नैन में न लाती है,
जिसकी प्रजा के अपवादों के कुचक्र में वो,पीसती है चाकी स्वाभिमान को बचाती है,
पालती है बच्चों को वो कर्म योगिनी की भाँती,स्वाभिमानी, स्वावलंबी,

सबल बनाती है,ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुःख देते,निठुर नियति को दया भी नही आती है,
उस दुखिया के राज दुलारे, हम ही सुत श्री राम तिहारे,
सीता मां की आँख के तारे, लव कुश हैं पितु नाम हमारे,

हे पितु, भाग्य हमारे जागे, राम कथा कही राम के आगे.
पुनि पुनि कितनी हो कही सुनाई, हिय की प्यास बुझत न बुझाई,
सीता राम चरित अतिपावन, मधुर सरस अरु अति मनभावन.

Saturday, 27 October 2012

चरणामृत का क्या महत्व है? 28.10.12

चरणामृत का क्या महत्व है?

अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.

क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की.

कि चरणामृतका क्या महत्व है.

शास्त्रों में कहा गया है

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।

"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप- व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।

जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता"

जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.

जब भगवान का वामन अवतार हुआ,
और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर
भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत
को वापस अपने
कमंडल में रख लिया.

वह चरणामृत गंगा जी बन गई,
जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है,

ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की.
जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .

जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -

"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "

धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन
किया जाता है।

चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।

कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।

चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।

चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है।

उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।

इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है।

तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।

ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।

कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।

चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?

दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।

कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।
इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।

Friday, 26 October 2012

क्यों वितरित करते हैं प्रसाद..27.10.2012

 क्यों वितरित करते हैं प्रसाद

नित्य पूजा के समय मिश्री या दूध-शक्कर का अर्पित नैवेद्य वहां उपस्थित लोगों को दें एवं खुद भी ग्रहण करें। यह प्रसाद अकेले भी ले सकते हैं। महानैवेद्य का प्रसाद घर के सभी लोग बांटकर ग्रहण करें। पूजा के समय सूजी का मीठा पदार्थ, पेडे तथा मोदक आदि का प्रसाद निमंत्रित लोगों में वितरित करें। वैयक्तिक नित्य पूजा के प्रसाद के अतिरिक्त अन्य नैमित्तिक पूजा का प्रसद अपने आप न लें।
 जब कोई दूसरा व्यक्ति प्रसाद दे तभी ग्रहण करें। नैमित्तिक पूजा का प्रसाद गुरूजी को दें। गुरूजी प्रसाद ग्रहण करके हाथ धो-पोंछकर सबको प्रसाद दें। प्रसाद सेवन करते समय निम्नवत मंत्र पढें- बहुजन्मार्जित यन्मे देहेùस्ति दुरितंहितत्। प्रसाद भक्षणात्सर्वलयं याति जगत्पते (देवता का नाम) प्रसादं गृहीत्वा भक्तिभावत:। सर्वान्कामान वाप्नोति प्रेत्य सायुज्यमाप्नुयात्।। प्रसाद ग्रहण करने के बाद हाथ को जल से धोएं। नैवेद्य अर्पण की विधि क्या हैक् षोडशोपचार पूजा में शुरू के नौ उपचारों के बाद गंध, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य की उपचारमालिका होती है। नैवेद्य अर्पण करने की शास्त्रोक्त विधि का ज्ञान न होने से कुछ लोग नैवेद्य की थाली भगवान के सामने रखकर दोनों हाथों से अपनी आंखें बंद कर लेते हैं जबकि कुछ लोग नाक दबाते हैं। कुछ व्यक्ति तुलसीपत्र से बार-बार सिंचन करके और कुछ लोग अक्षत चढ़ाकर भोग लगाते हैं। इसी प्रकार कुछ मनुष्य तथा पुजारी आदि भगवान को नैवेद्य का ग्रास दिखाकर थोडा-बहुत औचित्य दिखाते हैं। नैवेद्य अपैण करने की शास्त्रीय विधि यह है कि उसे थाली में परोसकर उस अन्न पर घी परोसें। एक-दो तुलसीपत्र छोडें। नैवेद्य की परोसी हुई थाली पर दूसरी थाली ढक दें। भगवान के सामने जल से एक चौकोर दायरा बनाएं। उस पर नैवेद्य की थाली रखें। बाएं हाथ से दो चम्मच जल लेकर प्रदक्षिणाकार सींचें। जल सींचते हुए सत्यं त्वर्तेन परिसिंचामि मंत्र बोलें। फिर एक चम्मच जल थाली में छो़डें तथा अमृतोपस्तरणमसि बोलेें। उसके बाद बाएं हाथ से नैवेद्य की थाली का ढक्कन हटाएं और दाएं हाथ से नैवेद्य परोसें। अन्न पदार्थ के ग्राम मनोमन से दिखाएं। दुग्धपान के समय जिस तरह की ममता मां अपने बच्चो को देती है, उसी तरह की भावना उस समय मन में होनी चाहिए। ग्रास दिखाते समय प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, ब्रrाणे स्वाहा मंत्र बोलें। यदि हो सके तो नीचे दी गई ग्रास मुद्राएं दिखाएं- प्राणमुद्रा-तर्जनी, मध्यमा, अंगुष्ठ द्वारा। अपानमुद्रा-मध्यमा, अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा। व्यानमुद्रा-अनामिका, कनिष्ठिका, अंगुष्ठ द्वारा। उदानमुद्रा-मध्यमा, कनिष्ठिका, अंगुष्ठ द्वारा। समानमुद्रा-तर्जनी, अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा ब्रrामुद्रा-सभी पांचों उंगलियों द्वारा। नैवेद्य अर्पण करने के बाद प्राशनार्थे पानीयं समर्पयामि मंत्र बोलकर एक चम्मच जल भगवान को दिखाकर थाली में छोडें। ऎसे समय एक गिलास पानी में इलायची पाउडर डालकर भगवान के सम्मुख रखने की भी परंपरा कई स्थानों पर है। फिर उपर्युक्ततानुसार छह ग्रास दिखाएं। आखिर में चार चम्मच पानी थाली में छोडें। जल को छोडते वक्त अमृतापिधानमसि, हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि, मुखप्रक्षालनं समर्पयामि तथा आचमनीयं समर्पयामि-ये चार मंत्र बोलें। फूलों को इत्र लगाकर करोद्वर्तनं समर्पयामि बोलकर भगवान को चढाएं। यदि इत्र न हो तो करोर्द्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि कहकर फूल को गंधलेपन करके अर्पण करें। नैवेद्य अर्पण करने के बाद वह थाली लेकर रसाईघर में जाएं। बाद में फल, पान का बीडा एवं दक्षिणा रखकर महानीरांजन यानी महार्तिक्य करें। कितने प्रकार के होते हैं क् देवता की नित्य पूजा का समय सामान्यत: प्रात:कालीन प्रथम प्रहर होता है। यदि इस वक्त रसोई हो गई हो तो दाल, चावल एवं तरकारी आदि अन्न पदार्थो का "महानैवेद्य" अर्पण करने में कोई हर्ज नहीं है। किन्तु यदि पूरी रसोई पूजा के समय तैयार न हो तो चावल में घी-शक्कर मिलाकर या केवल चावल, घी-शक्कर चपाती, परांठा, तरकारी तथा पेडे का नैवेद्य दिखाएं। यह नैवेद्य अकेला पूजा करने वाला स्वयं भक्षण करे। यदि संभव हो तो प्रसाद के रूप में सबको बांटे। नैमित्तिक व्रज पूजा के समय अर्पित किया जाने वाला नैवेद्य "प्रसाद नैवेद्य" कहलाता है। यह नैवेद्य सूजी एवं मोदक आदि पदार्थो का बनता है। नैमित्तिक महापूजा के समय संजीवक नैवेद्य के छोटे-छोटे ग्रास बनाकर उपस्थित मित्रों तथा परिजनों को प्रसाद के रूप में वितरित करें। अन्न पदार्थो का महानैवेद्य भी थोडा-थोडा प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। कुछ वैष्णव सभी अन्न पदार्थो का नैवेद्य अर्पण करते हैं परन्तु यह केवल श्रद्धा का विषय है। वैसे तो भगवान को भी एक थाली में नैवेद्य परोसकर अर्पण करना उचित होता है। कुछ क्षेत्रों में घर के अलग-अलग स्थानों पर स्थित देवी-देवताओं को पृथक-पृथक नैवेद्य परोसकर अर्पण किया जाता है। यदि घर के पूजा स्थान में स्थापित देवी-देवता-गणपति, गौरी एवं जिवंतिका आदि सभी एक जगह हों तो एक ही थाली से नैवेद्य अर्पण करना सुविधाजनक होता है। परन्तु यदि नित्य के देवी-देवताओं के अलावा गौरी-गणपति आदि नैमित्तिक देव और यज्ञादि कर्म के प्रासंगिक देवी-देवता पृथक स्थानों पर स्थापित हों तो उनको अलग-अलग नैवेद्य अर्पण करने की प्रथा है। यदि एक थाली में परोसे गए खाद्य पदार्थो का भोग अलग-अलग देवी-देवताओं को चढाया जाए तो भी आपत्ति की कोई बात नहीं है। ऎसे में नैवेद्य अर्पण करते समय अंशत: का उच्चाारण करें। घर में अलग-अलग स्थानों पर स्थापित देवी-देवता एक ही परमात्मा के विभिन्न रूप हैं। इस कारण एक ही महानैवेद्य कई बार अंशत: चढाया जाना शास्त्र सम्मत है। इस विधान के अनुसार बडे-बडे मंदिरों में एक ही थाली में महानैवेद्य परोसकर अंशत: सभी देवी-देवताओं, उपदेवता, गौण देवता एवं मुख्य देवता को अर्पण किया जाता है। कई परिवारों में वाडी भरने की प्रथा है। वाडी का मतलब है-सभी देवताओं को उद्देश्य करके नैवेद्य निकालकर रखना तथा उनके नामों का उच्चाारण करके संकल्प करना। संकल्प के उपरांत वाडी के नैवेद्य संबंधित देवी-देवताओं को स्वयं चढाए जाते हैं। कई बार संबंधित देवताओं के पुजारी, गोंधली, भोपे या गुरव आदि घर आकर नैवेद्य ले जाते हैं। भगवान भैरव का नैवेद्य विशिष्ट पात्र में दिया जाता है। इसे पत्तल भरना भी कहा जाता है। वाडी में कुलदेवता, ग्रामदेवता, स्थान देवता, मुंजा मूलपुरूष, महाुपरूष, देवचार, ब्राrाण, सती, नागोबा, वेतोबा, पुरवत तथा गाय आदि अनेक देवताओं का समावेश होता है। नैवेद्य को ढंकना सही या गलतक् कुछ मंदिरों में चढाया गया नैवेद्य वैसे ही ढककर रख दिया जाता है और दोपहर के बाद निकाल लिया जाता है। इसी प्रकार घर में ज्येष्ठा गौरी के समय नैवेद्य दिखाई थालियां ढककर रख दी जाती हैं तथा दूसरे दिन उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। ये बातें पूर्णरूपेण शास्त्र के विरूद्ध हैं। व्यवहार में भी भोजन के बाद थालियां हटाकर वह जगह साफ की जाती है। भगवान को भोग लगाने के बाद उसे वैसे ही ढककर रखना अज्ञानमूलक श्रद्धा का द्योतक है। कई बडे क्षेत्रों या तीर्थ स्थानों में पत्थर की मूर्ति के मुंह में पेडा या गुड आदि पदार्थ चिपकाएं जाते हैं। यह भी शास्त्र के विरूद्ध है। ये चीजें नैवेद्य नहीं हो सकती। नैवेद्य को अपैण करना होता है। इस रूढि के कारण पत्थर की मूर्ति को नुकसान पहुंचता है। अनेक लोगों के बाहु स्पर्श से ये चीजें त्याज्य हो जाती हैं। उनका भक्षण करने से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। घर के नयिमित देवी-देवताओं के अलावा नैथ्मत्तिक व्रत प्रसंगों के अवसर पर अन्य देवी-देवताओं की स्थापना अलग-अलग की जाती है। उदाहरण के लिए सत्यनारायण, गणपति, जिवंतिका, चैत्रा गौरी, ज्येष्ठा गौरी तथा गुढी आदि देवी-देवताओं को पूजा स्थान में दूसरी जगह स्थापित किया जाता है। सभी देवी-देवताओं को महानैवेद्य अर्पण करने के पश्चात कुछ लोग महारती (महार्तिक्य) करते समय अलग-अलग आरतियां बोलते हैं परन्तु ऎसी आवश्यकता नहीं होती। महानैवेद्य चढाने के बाद पूजा स्थान में रखे देवी-देवताओं के अलावा अन्य देवताओं की एक साथ आरती करें, यह शास्त्र सम्मत नियम है। प्रत्येक देवता के लिए अलग-अलग आरती बोलना शास्त्र के विरूद्ध है।



Thursday, 25 October 2012

The Benefits of Eating Fruit on an Empty Stomach...26.10.2012

 The Benefits of Eating Fruit on an Empty Stomach

EATING FRUIT…It’s long but very informative. We all think eating fruits means just buying fruits, cutting it and just popping it into our mouths. It’s not as easy as you think. It’s important to know how and when to eat.What is the correct way of eating fruits? IT MEANS NOT EATING FRUITS AFTER YOUR MEALS! * FRUITS SHOULD BE EATEN ON AN EMPTY STOMAC
H. If you eat fruit like that, it will play a major role to detoxify your system, supplying you with a great deal of energy for weight loss and other life activities.FRUIT IS THE MOST IMPORTANT FOOD.Let’s say you eat two slices of bread and then a slice of fruit. The slice of fruit is ready to go straight through the stomach into the intestines, but it is prevented from doing so.In the meantime the whole meal rots and ferments and turns to acid. The minute the fruit comes into contact with the food in the stomach and digestive juices, the entire mass of food begins to spoil….So please eat your fruits on an empty stomachor before your meals! You have heard people complaining every time I eat watermelon I burp, when I eat durian my stomach bloats up, when I eat a banana I feel like running to the toilet, etc. actually all this will not arise if you eat the fruit on an empty stomach. The fruit mixes with the putrefying other food and produces gas and hence you will bloat!Graying hair, balding, nervous outburst, and dark circles under the eyes all these will NOThappen if you take fruits on an empty stomach.There is no such thing as some fruits, like orange and lemon are acidic, because all fruits become alkaline in our body, according to Dr. Herbert Shelton who did research on this matter. If you have mastered the correct way of eating fruits, you have the Secret of beauty, longevity, health, energy, happiness and normal weight.When you need to drink fruit juice – drink only freshfruit juice, NOT from the cans. Don’t even drink juice that has been heated up.. Don’t eat cooked fruits because you don’t get the nutrients at all. You only get to taste. Cooking destroys all the vitamins.But eating a whole fruit is better than drinking the juice.. If you should drink the juice, drink it mouthful by mouthful slowly, because you must let it mix with your saliva before swallowing it. You can go on a 3-day fruit fast to cleanse your body. Just eat fruits and drink fruit juice throughout the 3 days and you will be surprised when your friends tell you how radiant you look!KIWI:Tiny but mighty. This is a good source of potassium, magnesium, vitamin E & fiber. Its vitamin C content is twice that of an orange.APPLE: An apple a day keeps the doctor away? Although an apple has a low vitamin C content, it has antioxidants & flavonoids which enhances the activity of vitamin C thereby helping to lower the risks of colon cancer, heart attack & stroke.

STRAWBERRY: Protective Fruit. Strawberries have the highest total antioxidant power among major fruits & protect the body from cancer-causing, blood vessel-clogging free radicals.

ORANGE : Sweetest medicine. Taking 2-4 oranges a day may help keep colds away, lower cholesterol, prevent & dissolve kidney stones as well as lessens the risk of colon cancer.

WATERMELON: Coolest thirst quencher. Composed of 92% water, it is also packed with a giant dose of glutathione, which helps boost our immune system. They are also a key source of lycopene the cancer fighting oxidant. Other nutrients found in watermelon are vitamin C & Potassium.

GUAVA & PAPAYA: Top awards for vitamin C. They are the clear winners for their high vitamin C content. Guava is also rich in fiber, which helps prevent constipation. Papaya is rich in carotene; this is good for your eyes.

For those who like to drink cold water, this article is applicable to you. It is nice to have a cup of cold drink after a meal. However, the cold water will solidify the oily stuff that you have just consumed. It will slow down the digestion. Once this ‘sludge’ reacts with the acid, it will break down and be absorbed by the intestine faster than the solid food.. It will line the intestine. Very soon, this will turn into fats and lead to cancer. It is best to drink hot soup or warm water after a meal.



Wednesday, 24 October 2012

Mahakaal...25.10.2012

क्या आप जानते हैं कि... उज्जैन में आज जहां महाकाल मंदिर है..... वहां प्राचीन समय में बहुत ही घना वन हुआ करता था, जिसके अधिपति महाकाल थे..... इसलिए, इसे महाकाल वन भी कहा जाता था।

स्कंदपुराण के अवंती खंड, शिव महापुराण, मत्स्य पुराण आदि में म
हाकाल वन का वर्णन मिलता है।

शिव महापुराण की उत्तराद्र्ध के 22वे अध्याय के अनुसार...... दूषण नामक एक दैत्य से भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव... ज्योति के रूप में यहां प्रकट हुए थे।
दूषण नमक दैत्य ...संसार का काल था.... और, भगवान् शिव ने उसे नष्ट किया .....अत:, वे महाकाल के नाम से पूज्य हुए।

और, अगर वैज्ञानिकता की बात करें तो.... इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है .....Tropic of cancer मतलब... कर्क रेखा ...... उज्जैन से गुजरती है ....जिस कारण यह पृथ्वी के केंद्र में आती है और यहाँ .... काल की गणना सबसे सटीक तरीके से की जा सकती है..... जिस कारण भी इन्हें महाकाल कहा जाता है...!

दृष्टव्य है कि.... उजैन नगरी एक काफी प्राचीन नगरी है.... तथा... महाभारत और स्कन्द पुराण के अनुसार .... उज्जैन नगरी 3000 साल पुरानी है...!

उज्जैन के तत्कालीन राजा राजा चंद्रसेन के युग में यहां एक भव्य मंदिर बनाया गया.... जो महाकाल का पहला मंदिर था.....!

महाकाल का वास होने के कारण.... पुरातन साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम भी कहा गया है।

दुनिया में मौजूद....12 ज्योतिर्लिंगों में से एक .... महाकालेश्वर कई कारणों से अलग हैं।

महाकाल के दर्शन से कई परेशानियों से मुक्ति मिलती है.... और, खासतौर पर महाकाल के दर्शन के बाद आकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है क्योंकि महाकाल को काल का अधिपति माना गया है...!

सभी देवताओं में भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं..... जिनका पूजन लिंग रूप में भी किया जाता है।

भारत में विभिन्न स्थानों पर भगवान शिव के प्रमुख 12 शिवलिंग स्थापित हैं... जिनकी महिमा का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में लिखा है।

इनकी महिमा को देखते हुए ही.... इन्हें ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।+

यूं तो इन सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग महत्व है.... लेकिन, इन सभी में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है।

क्योंकि, धर्म ग्रंथों के अनुसार-

आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्
मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।।

अर्थात.... आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है।
इसलिए, महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है..... अर्थात.. वे ही संपूर्ण पृथ्वी के एकमात्र राजा हैं।

सिर्फ इतना ही नहीं.....
महाकालेश्वर की एक और खास विशेषता यह भी है कि ....सभी प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी हैं.... अर्थात, इनकी मुख दक्षिण की ओर है।

क्योंकि....धर्म शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं.... इसलिए, यह भी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के दर्शन व पूजन करता है,,,,, उसे, मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है।

सिर्फ इतना ही नहीं..... संपूर्ण विश्व में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है...... जहां भगवान शिव की भस्मारती की जाती है।

भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.... और, मान्यता है कि प्राचीन काल में मुर्दे की भस्म से भगवान महाकालेश्वर की भस्मारती की जाती थी..... लेकिन, कालांतर में यह प्रथा समाप्त हो गई और वर्तमान में गाय के गोबर से बने उपलों(कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है।

यह आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे की जाती है...... जिसमें भगवान को स्नान के बाद भस्म चढ़ाई जाती है।

आकाल मृत्यु वो मरे.... .....जो काम करे चांडाल का....!
काल हमारा क्या करे.... हम तो भक्त हैं महाकाल का...


Monday, 22 October 2012

Nine forms of Maa Durga, The Universal Mother..23.10.2012

==== Nine forms of Maa Durga, The Universal Mother ====




Dear devotees, the days of Navaratri are among those auspicious days, when the all spiritual powers are at peak. I hope everybody must be celebrating navaratri with full devotion.

Here I give a brief description of nine forms of Maa Durga, the Adi Shakti and universal mother.

Mata Shailputri – First Avatara of Durga
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Mata Shailputri is a daughter of ‘Parvata raju’ (mountain king) – Himalaya / Himvanth. She is the first among nine avatars of Durga and worshiped on the First day of Navaratri . In her previous birth, she was ‘Sati Bhavani Mata’, the daughter of King Daksha. Mata Shailputri, also known as Parvati got married with Lord Shiva. On the first day of Durga Navratri, Paravathi Devi she is worshipped. Mata Shailputri holds a ‘Trishul’, a weapon, in her right hand and a lotus in her left hand. She rides on bull. She has pleasant smile and blissful looks.

Mata Brahmacharini – Second Avatara of Durga
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Mata Brahmacharini is worshipped on second day of Navarathri. Brahmacharini is the goddess who performed ‘Tapa’ (penance) (Brahma – Tapa , Charini - Performer ). Mata personifies love and loyalty. She holds japa mala in her right hand and Kamandal in left hand. She is also called as ‘Uma’ and ‘Tapacharini’ and provides knowledge and wisdom to her devotees.

Mata Chandraghanta – Third Durga
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Mata Chadraghanta is worshipped on the thrid day of Navratri. She is very bright and charming. Durga Maa is astride a tiger, displays a golden hue to HER skin, possesses ten hands and 3 eyes. Eight of HER hands display weapons while the remaining two are respectively in the mudras of gestures of boon giving and stopping harm. Chandra + Ghanta, meaning supreme bliss and knowledge, showering peace and serenity, like cool breeze in a moonlit night.

Mata Kushmanda – Fourth Durga
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Mata Kushmanda is worshipped on the fourth day of Navrathri. . She shines brightly with a laughing face in all ten directions as the Sun. She controls whole Solar system. In her eight hands, she holds several types of weapons in six hands and a rosary and a lotus in remaining hands. She rides on Lion. She likes offerings of ‘Kumhde’, hence her name ‘Kushmanda’ has become popular.

Ma Skanda Mata – Fifth Durga
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Skanda Mata is worshipped on the fifth Day of Navratri. She had a son ‘Skandaa and holds him on her lap . She has three eyes and four hands; two hands hold lotuses while the other 2 hands respectively display defending and granting gestures. Its said, by the mercy of Skandmata, even the idiot becomes an ocean of knowledge. The great and legendary Sanskrit Scholar Kalidas created his two masterpieces works “Raghuvansh Maha Kavya” and “Meghdoot” by the grace of Skandmata. Mata is considered as a deity of fire. She rides on Lion.

Mata Katyayani – Sixth Durga
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Mata Katyayani is worshippedon the the Sixth Day of Navratri. Rishi Katyayan observed a penance to get Jaganmata as his daughter. She blessed him and took birth as his daughter on the bank of river Jamuna for getting Lord Krishna as a husband. She is considered as prime deity of Vraj mandal. Ma Katyayani has three eyes and four hands. . One left hand holds a weapon and the other a lotus She rides on Lion.

Mata Kalratri – Seventh Durga
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Mata Kalaratri is worshipped on the Seventh Day of Navratri . She is dark and black like night, hence she is called as ‘Kalratri’. Her hairs are unlocked and has three eyes and four hands.while the remaining 2 are in the mudras of “giving” and “protecting”. HER vahana is a faithful donkey. The destroyer of darkness and ignorance. She spills out fire from her nostrils. She holds a sharp Sword in her right hand and blesses her devotees with her lower hand. As she blesses her devotees with prosperity, she is also called as ‘Shubhamkari’.

Mata Maha Gauri – Eighth Durga
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Mata Maha Gowri is worshipped on the Eight Day of Navratri. Maha Gauri looks as white as moon and jasmine. She has three Eyes and four hands. Peace and compassion radiate from HER being and SHE is often dressed in a white or green sari. SHE holds a drum and a trident and is often depicted riding a bull . Her above left hand is in fearless pose and she holds ‘Trishul’ in her lower left hand. Her above right hand has tambourine and lower right hand is in blessing mudra.

Mata Siddhidatri – Ninth Durga :
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Mata Siddhidatri is the worshipped on the Ninth Day of Navratri. Maha Shakti gives all the eight siddhis – Anima, Mahima, Garima, Laghima, Prapti, Prakamya, Iishitva and Vashitva. According to ‘Devi Puran’, the supreme God Shiva got all these siddhis by worshipping the supreme Goddess Maha Shakti. With her gratitude, his half body has become of Goddess, hence Lord Shiva’s name ‘Ardhanarishvar’ has become famous. According to some sources she drives on Lion. Other sources say, she is seated on lotus. Siddhidatri Devi is worshipped by all Gods, Rushis, Muniswaras, Siddha yogis, and all common devotees who want to attain the religious asset.

Friday, 19 October 2012

TEETH...20.10.2012

Beware! Brushing Too Soon After Meals May Damage Your Teeth

It is recommended that one should brush their teeth at least twice a day, but many people do it more than the recommended number of times per day – especially after meals, snacks or sugary drinks.

Dentists warn that the extra brushing or brushing soon after meals, particularly after drinking acidic beverages, can seriously damage your teeth. The acid burns tooth enamel and dentin, the layer just beneath the enamel.

“Brushing can accelerate this process. With brushing after meals, you could actually push acid deeper into the enamel and dentin,” said Dr. Howard R. Gamble, president of the Academy of General Dentistry in an interview with the New York Times, as reported in Dailymail.

In the study, a group of volunteers were tested different brushing regimens to examine the impact of brushing on their teeth after they drank diet soda for three months.

At the end of the study, the scientists found an increase in dentin loss when brushing within 20 minutes after drinking soda. But there was considerably less wear when brushing took place 30 or 60 minutes afterward.

“It can be concluded that for protection of dentin surfaces, at least 30 minutes should elapse before tooth brushing after an erosive attack,” the dentist said.

To get rid of acid, Dr. Gamble suggested rinsing the mouth with water or using an acid-neutralising mixtur

Thursday, 18 October 2012

माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा 19.10.2012

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Smile....19.10.2012

Top 10 Reasons to Smile

Smiling is a great way to make yourself stand out while helping your body to function better. Smile to improve your health, your stress level, and your attractiveness. Smiling is just one fun way to live longer read about the others and try as many as you can.

1. Smiling Makes Us Attractive
-We are drawn to people who smile. There is an attraction factor. We want to know a smiling person and figure out what is so good. Frowns, scowls and grimaces all push people away -- but a smile draws them in (avoid these smile aging habits to keep your smile looking great).

2. Smiling Changes Our Mood
-Next time you are feeling down, try putting on a smile. There's a good chance you mood will change for the better. Smiling can trick the body into helping you change your mood.

3. Smiling Is Contagious
-When someone is smiling they lighten up the room, change the moods of others, and make things happier. A smiling person brings happiness with them. Smile lots and you will draw people to you.

4. Smiling Relieves Stress
-Stress can really show up in our faces. Smiling helps to prevent us from looking tired, worn down, and overwhelmed. When you are stressed, take time to put on a smile. The stress should be reduced and you'll be better able to take action.

5. Smiling Boosts Your Immune System
-Smiling helps the immune system to work better. When you smile, immune function improves possibly because you are more relaxed. Prevent the flu and colds by smiling.

6. Smiling Lowers Your Blood Pressure
-When you smile, there is a measurable reduction in your blood pressure. Give it a try if you have a blood pressure monitor at home. Sit for a few minutes, take a reading. Then smile for a minute and take another reading while still smiling. Do you notice a difference?

7. Smiling Releases Endorphins, Natural Pain Killers and Serotonin
-Studies have shown that smiling releases endorphins, natural pain killers, and serotonin. Together these three make us feel good. Smiling is a natural drug.

8. Smiling Lifts the Face and Makes You Look Younger
-The muscles we use to smile lift the face, making a person appear younger. Don't go for a face lift, just try smiling your way through the day -- you'll look younger and feel better.

9. Smiling Makes You Seem Successful
-Smiling people appear more confident, are more likely to be promoted, and more likely to be approached. Put on a smile at meetings and appointments and people will react to you differently.

10. Smiling Helps You Stay Positive
-Try this test: Smile. Now try to think of something negative without losing the smile. It's hard. When we smile our body is sending the rest of us a message that"Life is Good!"Stay away from depression, stress and worry by smiling.


Wednesday, 17 October 2012

Navratri... 18.10.2012

Navratri is a festival being celebrated in India. During this festival people worship, dance and celebrated it over a period of nine days. There are forms of dance known as Garba and dandiya also known as Garba Raas and Dandiya Raas that originated in the states of Gujarat and Sindh. These two forms have religious origin and are considered to be a way of worshipping Goddess Durga for all nine days of Navratri. The merger of these two dances has formed the high-energy, exciting dance that is seen today.

Garba is play by a group of people in a line and moving in a circular motion. Similarly Dandiya is played with two sticks. These sticks, which can vary from 1.5 to 2 feet in length, and is meant to represent the sword of the avenging Goddess Durga. These dances, which were performed in Durga’s honor, this dance form is actually the staging of a mock-fight between the Goddess and Mahishasura, the mighty demon-king, and is nicknamed “The Sword Dance”.

The Men wear special turbans and kedias. The women wear traditional colourful dresses choli, ghagra and bandhani dupattas embroidered, dazzling with mirror work and heavy jewellery. Dhol (kind of Drum) is used as well as complementary percussion instruments such as the dholak, tabla and others. The true dance gets extremely complicated and energetic

7Dngerous acts after meal..18.10.2012

7 Dangerous acts after a meal~

1. Don’t smoke —- Experiments from experts proves that smoking a cigarette after meal is comparable to smoking 10 cigarettes (chances of cancer is higher)

2. Don’t eat fruits immediately — Immediately eating fruits after meals will cause stomach to be bloated with air. Thre fore take fruits 1 -2 hours after meal or 1 hour before meal.

3. Don’t drink tea—— Because tea leaves contain a high content of acid. This substance will cause the protein content in the food we consume to be hundred thus difficult to digest.

4. Don’t loosen your belt———- Loosening the belt after meal will easily cause the intestine to be twisted and blocked.

5. Don’t bathe———- ——- Bathing after meal will cause the increase of blood flow to the hands, legs and body thus the amount of blood around the stomach will therefore decrease, this will weaken the digestive system in our stomach.

6. Don’t walk about———- — People always say that after a meal walk a hundred steps and you will live till 99. In actual fact this is not true. Walking will cause the digestive system to be unable to absorb the nutrition from the food we intake.

7. Don’t sleep immediately—- ——– The food we intake will not be to digest properly. Thus will lead to gastric and infection in our intestine.

Please Share it to your friends let them be aware….

Tuesday, 16 October 2012

Cherries...17.10.2012

Top Ten Great Health Benefits of Eating Cherries.

1. Cherries, known as a “super-fruit”, are packed with antioxidants called anthropocentric which aid in the reduction of heart disease and cancer.

2. Cherries are one of the few food sources that contain melatonin, an antioxidant that helps regulate heart rhythms and the body’s sleep cycles.

3. Cherries are an excellent source of beta carotene (vitamin A). In fact they contain 19 times more beta carotene than blueberries and strawberries.

4. Cherries are rich in vitamins C, E, potassium, magnesium, iron, folate and fiber.

5. Cherries are referred to as “brain food”, aiding in brain health and in the prevention of memory loss.

6. Because cherries contain anthocyanins, they can reduce inflammation and symptoms of arthritis and gout.

7. Eating cherries reduces the risk of diabetes.

8. Cherries are a good source of fiber which is important for digestive health.

9. Cherries are a great snack or dessert choice important for weight-maintenance.

10. Because of their powerful anti-inflammatory benefits, cherries are said to reduce pain and joint soreness for runners and athletes after workouts.

Monday, 15 October 2012

34 साल बाद बना अदभुत संयोग..16.10.2012

34 साल बाद बना अदभुत संयोग, मां के साथ बरसेगी हनुमानजी की कृपा!
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34 साल बाद नवरात्रों पर अद्भुत संयोग बन रहा है। इसके बाद यह संयोग 27 साल बाद ही बनेगा। इसलिए इस शारदीय नवरात्र में खुशियां ही खु
शियां होगी। इस बार शारदीय नवरात्र मंगलवार को शुरू होकर मंगलवार को ही पूरे होंगे। यह संयोग 34 वर्ष पूर्व 1978 में बना था।
भविष्य में 27 साल बाद 2039 में यह संयोग बनेगा। हालांकि इस बार 9 की जगह 8 दिन ही मां भगवती की आराधना होगी।
मंगलवार को नव
रात्र के मंगल कलश की स्थापना होगी। 23 अक्टूबर मंगलवार को नवरात्र पूर्ण हो जाएंगे। ऐसा दुर्लभ संयोग 34 वर्ष पूर्व तीन अक्टूबर 1978 को बना था।
प्रथम नवरात्र को मंगलवार था। 10 अक्टूबर को नवरात्र पूर्ण हुए उस दिन भी मंगलवार ही था। आगामी 18 अक्टूबर 2039 में भी ऐसा संयोग बनेगा।
प्रथम नवरात्र मंगलवार को रहेगा और 25 अक्टूबर 2039 के दिन भी मंगलवार होगा। इस बार मंगल भी अपनी ही राशि वृश्चिक राशि में रहेगा। इसलिए मंगल को बल मिलेगा।
मंगल प्रबल होने से मंगल ही मंगल होगा। इस योग में मातारानी की विशेष कृपा तो होगी ही साथ ही हनुमानजी की भी कृपा दृष्टि रहेगी।
इस बार 16 से 23 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र हैं। 18 अक्टूबर को तृतीया और चतुर्थी तिथि का संयोग होने से एक तिथि घट गई और नवरात्र नौ दिन की बजाए आठ दिन के रह गए।
साल 2013 में पांच से 12 अक्टूबर तक आठ दिन के नवरात्र होंगे। अगले वर्ष नवरात्र में अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन 12 अक्टूबर को होगी। 2014 में भी अष्टमी और नवमी एक ही दिन आएगी।

BRAIN..16.10.2012

10 SIMPLE TIPS TO
SUPERCHARGE YOUR
BRAIN !!!
1) EAT ALMONDS
Almond is believed to
improve memory. If a
combination of
almond oil and milk is
taken together before
going tobed or after
getting up at morning,
it strengthens our
memory power.
Almondmilk is
prepared by crushing
the almonds without
the outer cover and
adding water and
sugar to it.
2) DRINK APPLE JUICE
Research from the
University of
Massachusetts Lowell
(UML) indicates that
apple juice increases
theproduction of the
essential
neurotransmitte r
acetylcholine in the
brain, resulting in an
increased memory
power.
3) SLEEP WELL
Research indicates that
the long-term memory
is consolidated during
sleep by replaying the
images of the
experiences of the day.
These repeated
playbacks program the
subconscious mind to
store these images and
other related
information.
4) ENJOY SIMPLE
PLEASURES
Stress drains our
brainpower. A stress-
ridden mind consumes
much of our memory
resources to leave us
with a feeble mind.
Make a habit to
engage yourself in few
simple pleasures
everyday to dissolve
stress from your mind.
Some of these simple
pleasures are good for
your mind, body and
soul.
*Enjoy music you love
*Play with your
children
*Hug a stranger :p
*Appreciate others
*Run few miles a day,
bike or swim
*Start a blog
*Take a yoga class or
Total wellness routine
5) FAST FOR A DAY
Fasting cleans and
detoxifies our body. It
is known fact that
heavy food not only
causes stress on our
digestive system but
also drains our
brainpower. Fasting
relieves toxic emotions
such as anger, grief,
worry, and fears –
before they
accumulate and cause
disease. By cleansing
toxic emotions, fasting
strengthens metal
clarity with increases
memory,
concentration,
creativity and insight.

6) EXERCISE YOUR MIND
Just as physical
exercise is essential for
a strong body, mental
exercise is equally
essential for a sharp
and agile mind. Have
you noticed that
children have far
superior brainpower
than an adult does?
Children have playful
minds. A playful mind
exhibits superior
memory power.
Engage in some of the
activities that require
your mind to remain
active and playful.
*Play scrabble or
crossword puzzle
*Volunteer
*Interact with others
*Start a new hobby
such as blogging,
reading, painting, bird
watching
*Learn new skill or a
language
7) PRACTICE YOGA OR
MEDITATION
Yoga or Meditation
relives stress. Stress is
a known memory
buster. With less stress,
lower blood pressure,
slower respiration,
slower metabolism,
and released muscle
tension follows. All of
these factors
contribute significantly
towards increases in
our brainpower.
EAT A LIGHT MEAL IN
THE NIGHT
A heavy meal at night
causes tossing and
turning and a
prolonged emotional
stress while at sleep.
Eating a light meal
with some fruits
allows us to sleep well.
Agood night sleep
strengthens our
brainpower.
9) DEVELOP
IMAGINATION
Greeks mastered the
principle of
imagination and
association to
memorize everything.
This technique requires
one to develop a vivid
and colorful
imaginationthat can be
linked to a known
object. If you involve
all your senses –
touching, feeling,
smelling, hearing and
seeing in the
imagination process,
you can remember
greater details of the
event.
10) CONTROL YOUR
TEMPER
Bleached food, excess
of starch or excess of
whitebread can lead to
nerve grating effect.
This results in a violent
and some time
depressive behavior.
Eat fresh vegetables.
Drink lots of water and
meditate or practice
yoga to relieve these
toxic emotions of
temper and violent
mood swings.