अमीर साहूकार का एक बेटा था । लडक़ा गलत
संगत में बिगड सा गया था। अपने पिता के पास
बहुत पैसा है यह उसे घमंड हो गया था। दिनभर
अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमना फिरना ही उसे
अच्छा लगता था। जैसे जैसे वह बडा हुआ पैसे
खर्च करने की आदत बढती गयी और वह अपने
दोस्तों के कहने पर पानी की तरह पैसा बहाने
लगा।
मेहनत की कमाई अपना बेटा ऐसे गंवा रहा है यह
देख साहूकार को चिंता होने लगी।
उसकी इच्छा थी कि उसका बेटा बडा हो कर सब
कारोबार संभाल ले और वह अपनी पत्नी के साथ
तीर्थयात्रा पर निकल जाये।
एक दिन साहूकार ने बेटे को बुलाया और
फटकारा ''तू घर से बहार जा कर शाम होने तक एक
रुपया भी कमाई करके लाओगे तभी रात
का खाना मिलेगा।"
वह डर गया और रोने लग गया। उसे रोता देख
मां की ममता आडे आ गयी। मां ने उसे एक
रूपया निकालकर दिया और कहा जा दे आ ।शाम
को जब साहूकार ने पूछा तो उसने वह एक
रूपया दिखाया। पिताने वह रूपया उसे कुएं में फेंकने
के लिये कहा। बिना हिचकिचाहट वह रूपया उसने
कुएं में फेंक दिया।
इस तरह रोज वह अपने माँ से पैसे लेता और
पिता को जाकर देता और फिर साहूकार उसे वह
रुपया कुएं में फेक देने को कहता तो वह कुएं में फ़ेंक
देता।
साहूकार बहुत चतुर था वह जनता था कि दाल में
कुछ काला है। उसने सारी बात
पता लगा अपनी पत्नी को कुछ दिनों के लिए
मायके भेज दिया ।
उसका बेटा तो अब फँस चुका था । वह सारा दिन
सोचता रहा। मेहनत करके पैसे कमाने के
अलावा कोई हल नजर नहीं आ रहा था। भूख
भी लगने लगी थी। रात का खाना बिना कमाई के
मिलने वाला था नहीं। आखिरकार वह काम ढूंढने
निकल पडा। पीठ पर बोझा उठाकर दो घंटे मेहनत
करने के बाद उसे एक रूपया नसीब हुआ।वह
रूपया लेकर पिता को देने घर पहूँचा।
साहूकार पहले के भांति उसको वह एक रूपया कूएँ
में फेंकने के लिये कहा। इस पर वह छटपटाया।
उसने अपने पिता से कहा ''आज मैंने
कितना मेहनत किया है, मेरा कितना पसीना बहा है
एक रूपया कमानेके लिये। इसे मैं नहीं फेंक
सकता।" जैसे ही ये शब्द उसके मुह से निकले,
साहूकार खुश हुआ उसे कुछ कहने की जरूरत
नहीं पडी। अब उसके बेटे को पैंसों की कीमत
पता चल गयी थी ।
“पैसे की कीमत पसीना बहाकर ही पता चलती हैं।
मेहनत पसीने से की गयी कमाई ही खरी कमाई
है।“
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