Saturday 24 August 2013

25.08.13


दान की महिमा

हम आपको राजा बलि के पूर्व जन्म के बारे में बताते हैं. राजा बलि जिनके लिये प्रभु ने वामन अवतार लिया था. कहा जाता है कि ये पूर्व जन्म में जुआरी थे. एक बार इस जुआरी को जुए में कुछ धन मिला. उस धन से इसने वैश्या के लिये एक हार लिया. बहुत खुशी-खुशी ये हार लेकर वैश्या के घर जाने लगा. पर रास्ते में ही इसकी मृत्यु आ गयी. ये मरने ही वाला था कि इसने सोचा कि अब ये हार वैश्या तक तो पहुँचा नहीं पाऊंगा, चलो इसे शिव को अर्पण कर दूँ. ऐसा सोच कर उसने हार शिव को अर्पण कर दिया और मृत्यु को प्राप्त हुआ.

मर कर वो यमराज के सामने पहुँचा . चित्रगुप्त ने उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखा. उसके जीवन में पाप ही पाप थे. पर चित्रगुप्त ने कहा कि मरते समय इसने जुए के पैसे से, वैश्या के लिये ख़रीदा हार ‘शिवार्पण’ किया था. येही मात्र इसका पुण्य है. यमराज ने उससे पूछा कि पहले पाप का फल भोगोगे कि पुण्य का. जुआरी ने कहा कि पाप तो बहुत हैं पहले पुण्य का फल देदो. उस पुण्य के बदले उसे दो घड़ी के लिये इंद्र बनाया गया. इंद्र बनने पर वो अप्सराओं के नृत्य और सुरापान का आनंद लेने लगा. तभी नारदजी आते हैं, उसे देख कर हँसते हैं और एक बात बोलते हैं, कि अगर इस बात में संदेह हो कि स्वर्ग-नर्क हैं तब भी सत्कर्म तो कर ही लेना चाहिए वर्ना अगर ये नहीं हुए तो आस्तिक का कुछ नहीं बिगड़ेगा पर हुए तो नास्तिक जरूर मारा जायेगा. ये सुनते ही उसे होश आ गया. उसने दो घड़ी में ऐरावत, नन्दन वन समेत पूरा इन्द्रलोक दान कर दिया. इसके प्रताप से वो पापों से मुक्त हो इंद्र बना और बाद में राजा बलि हुआ.

अब कुछ बातों पर विचार करें-

१. अभी हमारे पास अच्छा समय है. कोई रोग नहीं है, कोई खास परेशानी नहीं है. अगले पल क्या होगा इसका पता नहीं है. इस समय का सदुपयोग कर लो.
२. सदुपयोग करो. कुछ दान कर लो. देखो, जुआरी ने जो दान किया वो दूसरे का था. शायद इस बात से उसे कुछ बल जरूर मिला होगा. अब जो हमारे पास है, वो भी हमारा नहीं है. सुना होगा ‘मैं नहीं मेरा नहीं ये तन किसी का है दिया, जो भी अपने पास है वो धन किसी का है दिया’... और ‘देने वाले ने दिया वो भी दिया किस शान से’.. कि ‘लेने वाला कह उठा ये मेरा है अभिमान से’.. इस बात पर विचार करो, आपको भी बल मिलेगा.
३. आप धन का दान करो, वस्तु का दान करो, सामर्थ्य के अनुसार , बहुत अच्छी बात. पर सबसे बड़े दानी कौन हैं ? तो गोपियाँ ‘गोपी गीत’ में कहती हैं कि जो भगवान की कथा का दान करें वे संसार में सबसे बड़े दानी हैं.
४. राम कथा, भागवत कथा सुनाओ बड़ी अच्छी बात... पर जानते हो शुद्ध राम कथा क्या है ? चलो इस पर भी एक कहानी सुनते हैं. एक बार समर्थ बाबा रामदास हनुमान जी से बोले कि आप लोगों को दर्शन देकर उनके कष्ट हर लो. हनुमान जी ने कहा बाबा आप शुद्ध राम कथा करना और मैं आकर दर्शन दूँगा. बाबा शिवाजी के गुरु थे, एक गांव में गए. राजगुरु का बहुत आदर हुआ. उन्होंने कहा कि आज शाम कथा होगी. पंडाल सज गया, लोग आ गए... बाबा ने राम नाम संकीर्तन शुरू किया, करते रहे, नाचने लगे.. लोग कुछ देर बाद लोग उठ-उठ जाने लगे.. बाबा तो नाम में मस्त थे.. धीमे धीमे पंडाल भी हटा दिया गया.. बाबा तो नाम लेलेकर नाच रहे थे.. डरी भी हटा दी गयी.. सब चले गए.. हनुमान जी प्रगट हुए, बोले बाबा मैं आ गया. बाबा ने कहा प्रभु सबको दर्शन दीजिए.. पर वहाँ कोई था ही नहीं.. शुद्ध ‘राम-कथा’ तो ‘राम-नाम’ ही है, जिसका मोल हम नहीं जानते..
५. तो आप राम नाम सुनाओ.. पूरी प्रकृति को- पेड़, पौधे, पशु पक्षी सबको.. ये नाम जप की एक विधि है जहाँ अपने लिये नहीं , दूसरों के कल्याण को जपो.. बहुत आनंद की रचना होगी..

अब बताओ ये कोई बहुत कठिन बात है ? नारायण ! नारायण ! नारायण ! 

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