अढाई अक्षर प्रेम के लिए हर कोई यह अभिलाषा करता है कि हर जन मुझे से प्रेम करे हर कोई प्रेम तो चाहता है परन्तु कितने हैं जो दूसरों को प्रेम देते हैं... क्या भजन गाने से, हाथ मिलाने से प्रेम हो जाता है....
प्रेम तब होता है जब हम अंदर से सरल हो जाते हैं.... किसी भी वस्तु को तब तक हासिल नहीं किया जा सकता जब तक हम पूर्ण रूप से उसका मूल्य नहीं दे देते.... उसी प्रकार हम पूर्ण समर्पित हुए बिना न तो किसी से प्रेम पा सकते हैं और न हीं किसी को प्रेम दे सकते हैं......
भगवान को पाने के लिए भी हमें द्रौपदी की तरह पूर्ण समपर्ण करना होगा.... द्रौपदी को भी भगवान ने चीर तभी प्रदान किया जब उसने दोनों हाथ उठाकर स्वयं को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया....
हम जब तक अपने मन में अनुराग नहीं जगाते और जब तक क्रोध, काम, मोह, माया का त्याग नहीं करते तब तक परमात्मा का प्रेम नहीं मिलता.... फिर तो हम सब से प्रेम करते है तो सबका भला चाहते है तो एक अच्छाई की ताकत खुद आपको मिल जाती है जिससे आपमें शक्ति आ जाती है ..और अगर कोई आपको दिल से प्रेम करता है तो हर वक्त वो आपका भला चाहता है ..फिर वह आपको हमेशा प्रोत्साहित करते रहेगा..... कोशिश करेगा कि वो आपकी ताकत बने जिससे आपका साहस बढेगा आप निडर हो सकोगे....प्रेम का सही मतलब समझो तो बहुत गहराई है इसमें ..जिस प्रेम से इंसान कमजोर हो रहा हो वो प्रेम नहीं स्वार्थ है ..प्रेम तो इंसान को सिर्फ प्रगति के पथ पर ले जाता है सिर्फ आगे बढाता है ...जय श्री कृष्ण
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