Thursday 1 August 2013

02.08.13


श्रीकृष्ण ने भी अपने जीवन में ऐसा कौन सा दुःख है जो नहीं देखा ! दुष्टों के
कारागृह में जन्म हुआ, जन्म के तुरन्त बाद उस सुकोमल अवस्था में यमुनाजी की
भयंकर बाढ़ वह उफनती लहरों के बीच टोकरी में छिपाकर पराये घर में ले जाकर रख
दिया गया। राजघराने के लड़के होने के बावजूद गौएँ चराकर रहना पड़ा, चोरी करके
मक्खन-मिश्री खाना पड़ा। कभी पूतना राक्षसी पयःपान में छुपा कर जहर पिलाने आ
गई तो कभी कोई दैत्य छकड़े से दबाने या आँधी में उड़ाने चला आया। कभी बछड़े
में से राक्षस निकल आया तो कभी विशाल गोवर्धन पर्वत को हाथ पर उठाकर खड़े रहना
पड़ा। अपने सगे मामा कंस के कई षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा और अंत में उसे
अपने हाथों से ही मारना पड़ा। उनके माँ-बाप को भी जेल के दारूण सुख सहने पड़े।
जरासन्ध से युद्ध के दौरान जब श्रीकृष्ण द्वारका की ओर भागे तो पाँव में न तो
पादुका थी और न ही सिर पर पगड़ी थी। केवल पीताम्बर ओढ़े नंगे पाँव भाग-भाग कर

पहाड़ों में छिपते-छिपाते, सुरक्षित निवास के लिए कई स्थानों को ढूँढते-ढूँढते
अन्त में समुद्र के बीच में जाकर बस्ती बसाना पड़ा। उनके पारिवारिक जीवन में
भी कई विघ्न-बाधाएँ आती रहीं। बड़े भाई बलरामजी को मणि को लेकर श्रीकृष्ण पर
अविश्वास हो गया था। पत्नियों में भी आये दिन ईर्ष्या-जलन व झगड़े-टंटे चलते
ही रहते थे। बाल-बच्चों एवं पौत्रों में से कोई भी आज्ञाकारी नहीं निकला। एक
ओर, जहाँ श्री कृष्ण साधु-संतों का इतना आदर-सत्कार किया करते थे वहीं पर उनके
पुत्र-पौत्र संत-पुरुषों का मखौल उड़ाया करते थे। और भी अनेकाअनेक विकट
परिस्थितियाँ उनके कदम-कदम पर आती रहीं लेकिन श्रीकृष्ण हरदम मुस्कराते रहे और
प्रतिकूलताओं का सदुपयोग करने की कला अपने भक्तों को सिखलाते गये।

मुस्कुराकर गम का जहर जिनको पीना आ गया।

यह हकीकत है कि जहाँ में उनको जीना आ गया..

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