Tuesday, 26 March 2013

26.03.13


होली का स्वदेशी रूप
- आज होली विकृत रूप में मनाई जाती है. आइये दृढ़ता पूर्वक ऐसी होली को रोके और अपने मूल स्वरूप में होली मनाये. --
- वर्ष में एक बार पलाश के फूलों के रंग से होली खेलने से वर्ष भर शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है.
- सप्त रंगों से शरीर की सप्त धातुओं में संतुलन बना रहता है.
- सामूहिक रूप से होली खेलने से भाईचारा और आपसी मेल -मिलाप , सद्भाव बना रहता है.उल्ल्हास और उमंग का उत्सवपूर्ण माहौल तैयार होता है.अपने अपने मोहल्ले में इस तरह के सामूहिक पलाश के रंग के छिडकाव का होली महोत्सव मनाये.
- केमिकल रंग अगर सूखे इस्तेमाल किये तो रोमछिद्रों में भर जाते है और त्वचा रोगों को जन्म देते है.इन्हें छुडाने में लाखो गैलन पानी जाया होता है.
- सामूहिक होली में प्रति व्यक्ति के हिसाब से ५० मी. ली. पानी ही लगता है.
- होली के समय ऋतू परिवर्तन से शरीर में हानिकारक परिवर्तन, असंतुलन और विकृतियाँ आती है .प्राकृतिक रंग अपने विशिष्ट गुणों के कारण सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में इन विकृतियों को नियंत्रित करने में सक्षम होते है.
- रासायनिक रंगों में अनेक प्रकार के हानिकारक केमिकल होते है जो अनेको बीमारियाँ उत्पन्न करते है.
- प्राकृतिक रंगों में पलाश सबसे औषधीय और स्वास्थ्यप्रद गुणों से भरपूर है.यह शरीर की अनावश्यक गर्मी को दूर करता है और त्वचा के रोगों से रक्षा करता है.
- पलाश के फूलों को रात भर पानी में भिगोकर ,सुबह छान ले. सुगंध के लिए इसमें गुलाब की पंखुड़ियां या केवडा या खास मिला सकते है. हल्दी से पीला रंग बना ले.

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