Sunday 3 March 2013

04.03.13


एक टीले पर बैठे हुए संत अनाम डूबते सूर्य को बड़े ध्यान से देख रहे थे !
वे देख रहे थे कि किस प्रकार एक दिन महाशक्तिओं का वैभव नष्ट हो जाता है !संत अनाम इन्हीं विचारों में डूबे ही थे कि एक आदमी उनके पास आया और प्रणाम कर चुपचाप खड़ा हो गया !संत अनाम ने पूछा -वत्स क्या मुझसे कुछ काम है ?
आगंतुक ने कहा -भगवन !मैं पुरु देश का धनी सेठ हूँ तीर्थयात्रा के लिये चलने लगा तो मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि आप इतने स्थानों की यात्रा करेंगे ;कहीं से मेरे लिये शांति सुख और प्रसन्नता मोल ले आना !मैंने अनेक स्थानों पर ढूंढा पर ये तीनों वस्तुएं कहीं नहीं मिली !आप को अत्यंत शांत सुखी और प्रसन्न देखकर ही तो आपके पास आया हूँ ;संभव है आप के पास ही ये वस्तुएं उपलब्ध हो जाये !
संत अनाम मुस्कराये और अपनी कुटिया के भीतर चले गये !कुछ ही क्षणों के बाद वे लौट कर आये और एक कागज की पुड़िया आगंतुक को देते हुए बोले -यह अपने मित्र को दे देना और हां तब तक इसे कहीं खोलना मत !
आगंतुक पुड़िया लेकर चला गया और मित्र को दे दी !कुछ दिनों बाद जब वह फिर मित्र से मिलने गया तो देखा कि मित्र काफी प्रसन्न दिख रहा है !उसने कहा -मित्र मुझे भी अपनी औषधि का कुछ अंश दे दो तो मेरा भी कल्याण हो जाये !
मित्र ने पुड़िया खोलकर दिखाई उसमें लिखा था -अंत:करण में विवेक और संतोष का भाव रखने से ही स्थायी-सुख शांति और प्रसन्नता मिलती है !

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