मिट्टी ने मटके से पूछा, मैं भी मिट्टी हूं और तू भी, परंतु पानी मुझे बहा ले जाता है और तू पानी को अपने में रोके रखता है। मटका बोला, मैं भी मिट्टी हूं और तू भी मिट्टी है, परंतु पहले मैं पानी में गुंथा, फिर चाक पर चला, तत्पश्चात प्रहार सहे, फिर अग्नि में तपाया गया.। इन सब मार्गो पर चलने के बाद आज मुझमें यह क्षमता आ गई है कि पानी मेरा कुछ भी बिगाड नहीं सकता।
इसी तरह मंदिर की सीढियों के मार्बल ने मूर्ति रूपी मार्बल से पूछा, तू भी मार्बल है और मै भी मार्बल हूं, परंतु लोग तेरी पूजा करते हैं और मुझे पैरों तले रौंदते हैं। ऐसा क्यों? मूर्ति ने उत्तर दिया, तू नहीं जानती मैंने कितनी छेनियों के प्रहार झेले हैं। तू नहीं जानती मुझे कितना घिसा गया है। उसके उपरांत ही आज मैं इस काबिल हो सकी हूं कि लोग मुझे देवता मान बैठे हैं।
इन दोनों काल्पनिक कथाओं में एक अहम संदेश है। संदेश यह है कि तप का कोई भी विकल्प नहीं होता। कोई भी व्यक्ति तप के द्वारा ही ऊंचाई पर पहुंच पाता है। सामान्यतया हम सब के पास दो हाथ, दो पांव, दो आंखें अर्थात एक जैसा ही शरीर होता है, परंतु क्या वजह है कि एक व्यक्ति समाज में सम्माननीय बन जाता है, तो दूसरा निकृष्ट? आत्मबोध ग्रंथ के प्रथम श्लोक में आदि शंकराचार्य ने तपोभिक्षीणपापानां का उल्लेख किया है, जिसका अर्थ है जिसका जीवन तप से पवित्र हो गया है। तप का अर्थ स्वयं को तपाना है। हम मेहनत से ही स्वयं को तपाते हैं। तप का अर्थ है अपने मन और बुद्धि की ऊर्जा को अपने लक्ष्य में लगाना और उस लक्ष्य के मार्ग में जो भी प्रलोभन आएं उनका तिरस्कार करना। कुल मिलाकर यह मानव से महामानव बनने की प्रक्रिया है।
सर्दियों में सुबह चार बजे ठंडे पानी से नहाना तप नहीं है। घर-परिवार छोडकर जंगलों में जाना तप नहीं है। तप है तपना, प्रयास करना, मेहनत करना। एक बच्चा जो परीक्षा की तैयारी कर रहा है, वह भी उसके लिए तप है। एक मां रात-रात भर जागकर अपने बीमार बच्चे की सेवा कर रही है, वह भी तप है। एक व्यक्ति, जो अपने हर काम को बिना किसी प्रलोभन के दत्तचित्त से कर रहा है, वह भी तप है।
एक राजा की कथा है, जिसकी कोई संतान नहीं थी। जब वह बूढा हो गया तो उसे अगले योग्य राजा की खोज के लिए एक उपाय सूझा। उसने मेले का आयोजन किया और घोषणा करवा दी कि मैं इस मेले में छिप जाऊंगा, जो मुझे खोज निकालेगा, वही राजा बनेगा। राजा ने इस मेले में लोभ पैदा करने के लिए जगह-जगह तमाम इंतजाम कर दिए। कहीं मुफ्त में सोने के सिक्के दिए जा रहे थे, तो कहीं अन्य लालच। सब लोग आए थे राजा को खोजने के लिए परंतु सब के सब प्रलोभनों में अटक गए। लेकिन एक युवक राजा की खोज में लगा रहा। उसने आखिरकार राजा को मेले के सबसे आखिरी पडाव पर ढूंढ ही निकाला। जैसे ही युवक ने राजा को खोजा, जिन-जिन प्रलोभनों को उसने पीछे छोडा था, वह उन सबका मालिक बन गया। इसी को कहते हैं तप! जब भी आप अपने लक्ष्य पर चलते हैं, तो रास्ते में प्रलोभन आते हैं। उन प्रलोभनों में अधिकतर लोग फिसल जाते हैं, परंतु जो व्यक्ति उन प्रलोभनों के मौजूद रहते हुए भी उनसे निस्पृह बना रहता है और अपने आपको स्थिर रखकर अपने लक्ष्य के लिए अपने कर्म में निरंतर लगा रहता है, वही है सच्चा तपस्वी, वही है स्थितिप्रज्ञ, वही है योगी। तन, मन और बुद्धि का तप ही आपको साधारण से असाधारण बना देता है .!
खुला मत छोड़ो अपने जख्मों को
मुट्ठी में नमक लिए लोग बैठे हैं..
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