Sunday, 31 March 2013

01.04.13


एक बार एक मछुआरा समुद्र किनारे आराम से छांव में बैठकर शांति से बीडी पी रहा था ।

अचानक एक बिजनैसमैन वहाँ से गुजरा और उसने मछुआरे से पूछा "तुम काम करने के बजाय आराम क्यों फरमा रहे हो?"

इस पर गरीब मछुआरे ने कहा "मैने आज के लिये पर्याप्त मछलियाँ पकड चुका हूँ ।"

यह सुनकर बिज़नेसमैन गुस्से में आकर बोला"यहाँ बैठकर समय बर्बाद करने से बेहतर है कि तुम क्यों ना और मछलियाँ पकडो ।"

मछुआरे ने पूछा "और मछलियाँ पकडने से क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : उन्हे बेंचकर तुम और ज्यादा पैसे कमा सकते हो और एक बडी बोट भी ले सकते हो ।

मछुआरा :- उससे क्या होगा ?

बिज़नेसमैन :- उससे तुम समुद्र में और दूर तक जाकर और मछलियाँ पकड सकते हो और ज्यादा पैसे कमा सकते हो ।

मछुआरा :- "उससे क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : "तुम और अधिक बोट खरीद सकते हो और कर्मचारी रखकर और अधिक पैसे कमा सकते हो ।"

मछुआरा : "उससे क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : "उससे तुम मेरी तरह अमीर बिज़नेसमैन बन जाओगे ।"

मछुआरा :- "उससे क्या होगा ?"

बिज़नेसमैन : "अरे बेवकूफ उससे तू अपना जीवन शांति से व्यतीत कर सकेगा ।"

मछुआरा :- "तो आपको क्या लगता है, अभी मैं क्या कर रहा हूँ ?!!"

बिज़नेसमैन निरुत्तर हो गया ।

मोरल – जीवन का आनंद लेने के लिये कल का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं ।

और ना ही सुख और शांति के लिये और अधिक धनवान बनने की आवश्यकता है । जो इस क्षण है, वही जीवन है। दिल से जियो ।

Saturday, 30 March 2013

31.03.13


 यह बात राजा के कानों तक पहुंच गई। तीसरे दिन जब राज पुरोहित ने फिर तीन मुद्राएं उठाईं तो यह बात सारे दरबारियों को भी मालूम हो गईं। अगले दिन पुरोहित के दरबार में आने पर कोई सम्मान में खड़ा नहीं हुआ। राजा ने पुरोहित से प्रश्न किया, 'यदि राजा का विश्वासपात्र भी चोरी करे तो उसे क्या दंड दिया जाए?' पुरोहित ने उत्तर दिया, 'उसे मौत की सजा दी जानी चाहिए।'

राजा ने फिर पूछा, 'लेकिन आप जो लगातार तीन दिन से थाल से तीन मुद्राएं चोरी कर रहे हैं, तो आपको क्या सजा दी जाए?' पुरोहित ने उत्तर दिया, 'मुझे भी मौत की सजा दी जाए। लेकिन इससे पहले एक रहस्य जान लें। यह मेरा एक प्रयोग था, जिसके द्वारा मैं यह अनुभव करना चाहता था कि मेरा सम्मान मेरे ज्ञान के कारण है या सदाचरण के कारण। अब मुझे समझ में गया कि सदाचरण सबसे ऊपर है। उसके बिना ज्ञान का कोई अर्थ नहीं है। अब आप चाहे जो दंड दें, वह मैं स्वीकार करूंगा।' राजा ने पुरोहित को क्षमा कर दिया।

Friday, 29 March 2013

30.03.13


 जय श्री कृष्ण..............
अर्जुन का अहंकार.

एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनको श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।

रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी।

अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’

ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’

‘ आपके शत्रु कौन हैं?’ अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की ।

ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं।

फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’

‘ आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने पूछा। ‘

वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।

और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवानको अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।

यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।


Thursday, 28 March 2013

29.03.13


संसार में हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ईश्वर या परमात्मा को स्त्रीवाचक शब्दों जैसे सरस्वती माता, दुर्गा माता, काली मैया, लक्ष्मी माता से भी संबोधित करता है । वही हमारा पिता है, वही हमारी माता है (त्वमेव माता च पिता त्वमेव) । हम कहते हैं राधे-कृष्ण, सीता-राम अर्थात् स्त्रीवाचक शब्द का प्रयोग पहले । भारतभूमि भारतमाता है । पशुओं में भी गाय गो माता है किन्तु बैल पिता नहीं है । हिन्दुओं में ‘ओम् जय जगदीश हरे’ या ‘ॐ नम: शिवाय’ का जितना उद्घोष होता है उतना ही ‘जय माता की’ का भी । स्त्रीत्व को अत्यधिक आदर प्रदान करना हिन्दू जीवन पद्धति के महत्त्वपूर्ण मूल्यों में से एक है । कहा गया है :-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।

जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं ।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।

जिस कुल में स्त्रियाँ दु:खी रहती हैं, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है । जहां वे दु:खी नहीं रहतीं, उस कुल की वृद्धि होती है
 

Wednesday, 27 March 2013

28.03.13


 बहुत पुरानी कथा है । किसी गांव में दो भाई रहते थे । बडे की शादी हो गई थी । उसके दो बच्चे भी थे । लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था । दोनों साझा खेती करते थे ।
एक बार उनके खेत में गेहूं की फसल पककर तैयार हो गई । दोनों ने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया । इसके बाद दोनों ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया । अब उन्हें ढोकर घर ले जाना बचा था । रात हो गई थी, इसलिए यह काम अगले दिन ही हो पाता । रात में दोनों को फसल की रखवाली के लिए खलिहान पर ही रुकना था । दोनों को भूख भी लगी थी ।
दोनों ने बारी-बारी से खाने की सोची । पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया । छोटा भाई खलिहान पर ही रुक गया । वह सोचने लगा- भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है, इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी । यह सोचकर उसने अपने ढेर से कई टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई वाले ढेर में मिला दिया । बड़ा भाई थोड़ी देर में खाना खाकर लौटा । उसके बाद छोटा भाई खाना खाने घरचला गया । बड़ा भाई सोचने लगा - मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं । लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे देखने वाला कोई नहीं है । इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत है । उसने अपने ढेर से उठाकर कई टोकरी गेहूं छोटे भाई वाले गेहूं के ढेर में मिला दिया!

इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्रा में कोई कमी नहीं आई। हां, दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में थोड़ी और वृद्धि जरूर हो गई ।
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Tuesday, 26 March 2013

27.03.13


भारतीय संस्कृति का अनोखा पर्व : होली

होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है । होली .... एक संकेत है वसंतोत्सव के रूप में ऋतू-परिवर्तन का .... एक अवसर है भेदभाव की भावना को भुलाकर पारम्परिक प्रेम और सदभावना प्रकट करने का।।।। एक संदेश है जीवन में ईश्वरोपासना एवं प्रभुभक्ति बढ़ाने का ....

इस उत्सव ने कितने ही खिन्न मानों को प्रसन्न किया है, कितने ही अशांत-उद्धिग्न चेहरों पर रौनक लायी है । होलिकात्सव से मानव-जाति ने बहुत कुछ लाभ उठाया है । इस उत्सव में लोग एक-दुसरे को पाने-अपने रंग से रँगकर, मन की दूरियों को मिटाकर एक-दुसरे के नजदीक आते है ।

यह उत्सव जीवन में नया रंग लाने का उत्सव है .... आनंद जगाने का उत्सव है .... ' परस्पर देवो भव । ' की भावना जगानेवाला उत्सव है ... विकारी भावों पर पर धुल डालने एवं निर्विकार नारायण का प्रेम जगाने का उत्सव है ....

हमारी इन्द्रियों, तन और मन पर संसार का रंग पड़ता है और उतर जाता है लेकिन भक्ति और ज्ञान का रंग अगर भूल से भी पड़ जाय तो मृत्यु के बाप की भी ताकत नहीं कि उस रंग को हटा सके । इसी भक्ति और ज्ञान के रंग में खुद को रँगने का पर्व है होली ।

होली रंगो का त्यौहार है । यह एक संजीवनी है जो साधक की साधना को पुनर्जीवित करती है । यह समाज में प्रेम का सन्देश फ़ैलाने का पर्व है ।

होली मात्र लकड़ी के ढेर को जलने का त्यौहार नहीं है, यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है ।

आज के दिन से विलास, वासनाओं का त्याग करके परमात्म-प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्मपालन, करुणा, दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिए । भक्त प्रहलाद जैसी दृढ़ इश्वरनिष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता व समता का आव्हान करना चाहिए । ....

26.03.13


होली का स्वदेशी रूप
- आज होली विकृत रूप में मनाई जाती है. आइये दृढ़ता पूर्वक ऐसी होली को रोके और अपने मूल स्वरूप में होली मनाये. --
- वर्ष में एक बार पलाश के फूलों के रंग से होली खेलने से वर्ष भर शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है.
- सप्त रंगों से शरीर की सप्त धातुओं में संतुलन बना रहता है.
- सामूहिक रूप से होली खेलने से भाईचारा और आपसी मेल -मिलाप , सद्भाव बना रहता है.उल्ल्हास और उमंग का उत्सवपूर्ण माहौल तैयार होता है.अपने अपने मोहल्ले में इस तरह के सामूहिक पलाश के रंग के छिडकाव का होली महोत्सव मनाये.
- केमिकल रंग अगर सूखे इस्तेमाल किये तो रोमछिद्रों में भर जाते है और त्वचा रोगों को जन्म देते है.इन्हें छुडाने में लाखो गैलन पानी जाया होता है.
- सामूहिक होली में प्रति व्यक्ति के हिसाब से ५० मी. ली. पानी ही लगता है.
- होली के समय ऋतू परिवर्तन से शरीर में हानिकारक परिवर्तन, असंतुलन और विकृतियाँ आती है .प्राकृतिक रंग अपने विशिष्ट गुणों के कारण सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में इन विकृतियों को नियंत्रित करने में सक्षम होते है.
- रासायनिक रंगों में अनेक प्रकार के हानिकारक केमिकल होते है जो अनेको बीमारियाँ उत्पन्न करते है.
- प्राकृतिक रंगों में पलाश सबसे औषधीय और स्वास्थ्यप्रद गुणों से भरपूर है.यह शरीर की अनावश्यक गर्मी को दूर करता है और त्वचा के रोगों से रक्षा करता है.
- पलाश के फूलों को रात भर पानी में भिगोकर ,सुबह छान ले. सुगंध के लिए इसमें गुलाब की पंखुड़ियां या केवडा या खास मिला सकते है. हल्दी से पीला रंग बना ले.

26.03.13


  होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करकेबैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.
1. एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने कीबालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.
2. इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.
3. होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक मालापितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.
4. कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षतव पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.
5. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका  लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.
6. सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है.
7. ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.

आपको होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं.

Monday, 25 March 2013

26.03.13


एक आदमी हमेशा की तरह अपने नाई की दूकान पर बाल कटवाने गया . बाल कटाते वक़्त अक्सर देश-दुनिया की बातें हुआ करती थीं ….आजभी वे सिनेमा , राजनीति , और खेल जगत , इत्यादि के बारे में बात कर रहे थे कि अचानकभगवान् के अस्तित्व को लेकर बात होने लगी .
नाई ने कहा , “ देखिये भैया , आपकी तरह मैं भगवान् के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता .”
“ तुम ऐसा क्यों कहते हो ?”, आदमी ने पूछा .
“अरे , ये समझना बहुत आसान है , बस गली में जाइए और आप समझ जायेंगे कि भगवान् नहीं है . आप ही बताइए कि अगर भगवान् होते तो क्या इतने लोग बीमार होते ?इतने बच्चे अनाथ होते ? अगर भगवान् होते तो किसी को कोई दर्द कोई तकलीफ नहीं होती ”, नाई ने बोलना जारी रखा , “ मैं ऐसे भगवान के बारे में नहीं सोच सकता जो इन सब चीजों को होने दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”
आदमी एक क्षण के लिए रुका , कुछ सोचा , पर बहस बढे ना इसलिए चुप ही रहा .
नाई ने अपना काम ख़तम किया और आदमी कुछ सोचते हुए दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे एक लम्बी दाढ़ी – मूछ वाला अधेड़ व्यक्ति उस तरफ आता दिखाई पड़ा , उसे देखकर लगता था मानो वो कितने दिनों से नहाया-धोया ना हो .
आदमी तुरंत नाई कि दुकान में वापस घुस गया और बोला , “जानते हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”
“भला कैसे नहीं होते हैं ?” ,नाई ने सवाल किया , “ मैं साक्षात तुम्हारे सामने हूँ!! ”
“नहीं ” आदमी ने कहा , “ वो नहीं होते हैं वरना किसी की भी लम्बी दाढ़ी – मूछ नहीं होती पर वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”
“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन बहुत से लोग हमारे पास नहीं आते .” नाई बोला
“बिलकुल सही ” आदमी ने नाई को रोकते हुए कहा ,” यही तो बात है , भगवान भी होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.”

Sunday, 24 March 2013

25.03.13


भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग

 सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

१. सोमनाथ प्रभास पाटन, सौराष्ट्र गुजरात - श्री सोमनाथ सौराष्ट्र, (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर को अतीत में छह बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है। १०२२ ई में इसकी समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सार्वाधिक नुकसान पहुँचा था।


२. मल्लिकार्जुन कुर्नूल ,आन्ध्र प्रदेश - प्रांत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।

३. महाकालेश्र्वर महाकाल, उज्जैन, मध्य प्रदेश -श्री महाकालेश्र्वर (मध्यप्रदेश) के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तटपर पवित्र उज्जैन नगर में विराजमान है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अवंतिकापुरी कहते थे।

४. कारेश्र्वर मध्य प्रदेश -नर्मदा नदी में एक द्वीप पर मालवा क्षेत्र में श्रीकारेश्र्वर स्थान नर्मदा नदी के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है, वहां से यह स्थान १० मील दूर है। यहां कारेश्र्वर और मामलेश्र्वर दो पृथक-पृथक लिंग हैं, परन्तु ये एक ही लिंग के दो स्वरूप हैं। श्रीकारेश्र्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है।

५. केदारनाथ केदारनाथ उत्तराखंड - श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रिंग पर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। यह स्थान हरिद्वार से १५० मील और ऋषिकेश से १३२ मील दूर उत्तरांचल राज्य में है।

६. भीमाशंकर भीमाशंकर महाराष्ट्र- श्री भीमशंकर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर है। यह स्थान नासिक से लगग १२० मील दूर है। सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशंकर ज्योतिर्लिग को असम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है। भ

७. काशी विश्र्वनाथ वाराणसी उत्तर प्रदेश -वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी के श्रीविश्र्वनाथजी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट स्थित काशी विश्र्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है।

८. त्रयम्बकेश्र्वर त्रयम्बकेश्र्वर, (निकट नासिक) महाराष्ट्र - श्री त्र्यम्बकेश्र्वर ज्योतिर्लिग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से १८ मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्‌गम भी है।

९. वैद्यनाथ, जिला देवघर झारखंड -शिवपुराण में "वैद्यनाथं चिताभूमौ" ऐसा पाठ है, इसके अनुसार (झारखंड) राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में जसीडीह स्टेशन के पास देवघर (वैद्यनाथधाम) नामक स्थान पर श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिग सिद्ध होता है, क्योंकि यही चिताभूमि है। महाराष्ट्र में पासे परभनी नामक जंक्शन है, वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोडी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिग माना जाता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिग को ही प्रमाणिक मान्यता है।

१०. नागेश्र्वर दारुकावन,द्वारका गुजरात -श्रीनागेश्र्वर ज्योतिर्ल‌ग बडोदा क्षेत्रांतर्गत गोमती द्वारका से ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढा ग्राम में स्थित शिवलि‌ग को ही कोई-कोई नागेश्र्वर ज्योतिर्लि‌ग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से १७ मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्र्वर) शिवलिग ही नागेश ज्योतिर्लि‌ग है।

११. रामेश्र्वर , रामेश्र्वरम तमिलनाडु - श्रीरामेश्र्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्र्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्र्वर या श्रीरामलिंगेश्र्वर के नाम से जाना जाता है।

१२. घृष्णेश्र्वर , निकट एल्लोरा, औरंगाबाद जिला महाराष्ट्र - श्रीघुश्मेश्र्वर (गिरीश्र्नेश्र्वर) ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्र्वर या घृष्णेश्र्वर भी कहते हैं। इनका स्थान महाराष्ट्र प्रांत में दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गांव के पास है।
............................................. जय महारुद्र !!!
 

Saturday, 23 March 2013

24.03.13


एक व्यक्ति अपने जीवन से बहुत निराश हो गया था। उसे ऐसा लगता था कि वह इतनी बड़ी इस दुनियाँ में बिलकुल अकेला हैं। न तो कोई उसे चाहता हैं और न ही प्यार करता हैं। वह किसी का प्यार पाने के काबिल भी नहीं हैं। यही सोच-सोचकर वह हमेशा दुखी रहा करता था। बसंत के मौसम में सुंगंधित फूलों से सारा वातावरण सुंदर व सुंगंधित हो रहा था, परंतु वह व्यक्ति अपने घर में बंद ही रहा। एक दिन पड़ोस में रहने वाली लड़की अचानक उसके घर का द्वार खोलकर अंदर आई। उस व्यक्ति को गुमसुम देखकर उसने पूछा- आप इतने उदास क्यों हैं? वह व्यक्ति बोला- मुझे कोई प्यार नहीं करता। कोई मेरी परवाह नहीं करता। मैं बिलकुल अकेला हूँ। लड़की ने कहा- यह तो बहुत दुख की बात हैं कि कोई आपको प्यार नहीं करता, कोई आपकी परवाह नहीं करता। किन्तु यह तो बताइए कि आप कितने लोगों को प्यार और उनकी परवाह करते हैं। उस व्यक्ति के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। तब लड़की बोली -आप बाहर आइए और देखिए कि आपके द्वार पर ही कितना प्यार हैं। आप प्यार चाहते हैं, तो इन फूलों से लीजिए। ये आपको अटूट स्नेह करेंगे। बस बदले में आप भी थोड़ा सा इनका खयाल रखना,इन्हे थोड़ा सा प्यार देना। लड़की की बातें सुनकर उस व्यक्ति के मन की गाँठे खुल गई। उसे अपनी गलती का व सांसरिक नियम का अहसास हो गया। उसे पता चल गया कि बिना कुछ भी दिए, पाने की अपेक्षा रखना मूर्खता हैं।
मित्रों, हम लोगों की भी यही आदत हैं हम चाहते हैं कि सब हमें महत्व दे, सम्मान दे, प्रेम करें परंतु स्वयं न तो किसी को महत्व देना चाहते हैं, न सम्मान देना और न प्रेम करना। मित्रों, अधिकाधिक मेल-जोल और सारगर्भित संवाद प्रसन्नता को बढ़ावा देते हैं जबकि इनका अभाव एकाकीपन व निराशा को जन्म देता हैं।

Friday, 22 March 2013

23.03.13


 देखिये प्रभु, आप परमात्मा हैं,
लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा!

परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी,
समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी !
किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, कि फ़सल कैसे उगाई जाती हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,
किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको किसी प्रकारकी चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है!”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता !
ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं,
अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी,
अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.
अगर जिंदगीमें प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना हीपड़ेगा !

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Thursday, 21 March 2013

22.03.13


लोग तुम्हें पूछ रहे थे।

किसान ने कहा, दरअसल प्रवचन की सारी व्यवस्था हो गई थी, पर तभी अचानक मेरा बैल बीमार हो गया। पहले तो मैंने घरेलू उपचार करके उसे ठीक करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो मुझे उसे लेकर पशु चिकित्सक के पास जाना पड़ा। अगर नहीं ले जाता तो वह नहीं बचता। आपका प्रवचन तो मैं बाद में भी सुन लूंगा। अगले दिन सुबह जब गांव वाले पुन: बुद्ध के पास आए तो उन्होंने किसान की शिकायत करते हुए कहा, यह तो आपका भक्त होने का दिखावा करता है। प्रवचन का आयोजन कर स्वयं ही गायब हो जाता है।

बुद्ध ने उन्हें पूरी घटना सुनाई और फिर समझाया, उसने प्रवचन सुनने की जगह कर्म को महत्व देकर यह सिद्ध कर दिया कि मेरी शिक्षा को उसने बिल्कुल ठीक ढंग से समझा है। उसे अब मेरे प्रवचन की आवश्यकता नहीं है। मैं यही तो समझाता हूं कि अपने विवेक और बुद्धि से सोचो कि कौन सा काम पहले किया जाना जरूरी है। यदि किसान बीमार बैल को छोड़ कर मेरा प्रवचन सुनने को प्राथमिकता देता तो दवा के बगैर बैल के प्राण निकल जाते। उसके बाद तो मेरा प्रवचन देना ही व्यर्थ हो जाता। मेरे प्रवचन का सार यही है कि सब कुछ त्यागकर प्राणी मात्र की रक्षा करो। इस घटना के माध्यम से गांव वालों ने भी उनके प्रवचन का भाव समझ लिया।

Wednesday, 20 March 2013

21.03.13


एक 17 साल का लडका सोचता है कि वह खुब मेहनत करेगा और बडा होकर करोडपति बनेगा..!
लडका कोलेज पुरी करके नौकरी लगता है लेकिन उस छोटी सी नौकरी से घर का गुजारा नही होता है..!
इसलिए उसने एक छोटा सा धन्धा चालुकरने की सोची..!
लगातार मेहनत के बावजुद भी धंधा बराबर नही चलता है..!
फिर 3-4 धंधे बदलकर देखता है लेकिन उसमे मेँ भी मुँह की खानी पडती है..!

उसको लगता है कि उसके नसीब मेँ कभी भी करोडपति बनना नही लिखा है,
ऐसे करते करते उसकी उम्र 35 साल हो जाती है..!

पैसे कमाने के लालच मेँ वह जुगार खेलने की आदत लग जाती है..!
और जितना कमाया था वह सब कुछ जुगार मेँ हार जाता है और रस्ते पर आ जाता है..!
और एक गरीब भिखारी बन जाता है और भीख माँगकर खाता है और रास्ते पर ही सो जाता था..!

ऐसे करते करते उसकी उम्र 55 साल की हो जाती है..!
सब उसको पागल बोलने लगे, वह पागलो की तरह गाने गाता रहता था..!

एक रात जब वह गाना गा रहा था तब वहा से चेनल V का रिपोर्टर निकलता है और उसका एक विडियो बनाकर YOUTUBE पर अपलोड करता है..!
उस विडियो को अच्छा रिस्पोनस मिलता है तो, चेनल वालो ने पुरा एलबम बनाने का विचार किया..!

ओर उस भिखारी को एक साल के लिए साईन करके एक करोड का दिया जाता है

आखिर 56 साल का होता है तब वह करोडपति बनता है

(अमेरिका की सच्ची घटना )

नशीब से ज्यादा और समय से पहले
ना किसी को मिला है और ना ही मिलेगा..

Tuesday, 19 March 2013

20.03.13


योगी नामक व्यक्ति अत्यंत धैर्यवान, ईमानदार और दयालु था। वह सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। वह गेरुआ वस्त्र नहीं धारण करता था, फिर भी लोग उसे किसी साधु-संत जैसा सम्मान देते थे। उसी शहर में साधुओं की एक टोली आई हुई थी। काफी दिन बीत जाने पर भी जब साधुओं के पास कोई अपनी समस्या लेकर नहीं आया तो उन्हें अत्यंत बेचैनी हुई। वे आपस में बातें करते हुए बोले, 'यह नगर तो बड़ा अजीब है। आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमारे पास अपनी समस्याओं को लेकर लोगों की लंबी कतारें न लगी हों। बड़े अचरज की बात है कि लोग हमें देखकर भी हमारी ओर न आकर आगे बढ़ जाते हैं। आखिर इसका क्या कारण है?' उन्होंने अपने झुंड में शामिल एक युवा साधु अंबुज को इस बात का पता करने के लिए भेजा।

अंबुज को कई बार अपने झुंड में शामिल लोगों के अंधविश्वास व पाखंड को देखकर बुरा लगता था, लेकिन वह सबसे छोटा होने के कारण चुप रह जाता था। अंबुज ने बताया कि इस नगर में योगी नामक व्यक्ति साधु न होकर भी साधु से बढ़कर है। वह समस्याओं के समाधान चुटकियों में कर देता है और अपने कार्य में लगा रहता है। एक दिन योगी को एक रोगी के बारे में पता चला। वह उसकी मदद के लिए चला तो रास्ते में इन्हीं साधुओं की मंडली से टकरा गया। उसे टकराते देखकर सभी साधु उसे घेरकर खड़े हो गए और क्रोधित होकर उसे अपशब्द कहने लगे। यह देखकर योगी बोला, 'आपने गेरुए वस्त्र धारण कर स्वयं को साधु तो घोषित कर दिया लेकिन साधक के गुणों से दूर हैं। साधक तो क्रोध, ईर्ष्या, लोभ से दूर होता है और नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा में लगा रहता है।' सभी साधु दंग रह गए। अंबुज योगी से बहुत प्रभावित हुआ। उसने अपने गेरुए वस्त्र उतारे और उसके साथ रहकर लोगों की सेवा करने लगा।

Monday, 18 March 2013

19.03.13


दूसरों के नहीं स्वयं के सेवक बनो !!!

एक जज साहब कार में जा रहे थे, अदालत की ओर। मार्ग में देखा कि एक कुत्ता नाली में फंसा हुआ है। जीने की इच्छा है, किंतु प्रतीक्षा है कि कोई आए और उसे कीचड़ से बाहर निकाल दे। जज साहब ने कार रुकवाई और पहुंचे उस कुत्ते के पास। उनके दोनों हाथ नीचे झुक गए और कुत्ते को निकाल कर सड़क पर खड़ा कर दिया। सेवा वही कर सकता है जो झुकना जानता है।

बाहर निकलते ही कुत्ते ने जोर से सारा शरीर हिलाया और पास खड़े जज साहब के कपड़ों पर ढेर सारा कीचड़ लग गया। सारे कपड़ों पर कीचड़ के धब्बे लग गए। किंतु जज साहब घर नहीं लौटे। उन्हीं वस्त्रों में पहुंच गए अदालत में। सभी चकित हुए, किंतु जज साहब के चेहरे पर अलौकिक आनंद की आभा थी।

वे शांत थे। लोगों के बार-बार पूछने पर बोले, मैंने अपने हृदय की तड़पन मिटाई है, मुझे बहुत शांति मिली है। वास्तव में दूसरे की सेवा करने में हम अपनी ही वेदना मिटाते हैं। दूसरों की सेवा हम कर ही नहीं सकते। वे तो मात्र निमित्त बन सकते हैं। उन निमित्तों के सहारे हमें अपने अंतरंग में उतरना होता है, यही सबसे बड़ी सेवा है।

वास्तविक सुख स्वावलंबन में है। आपको शायद याद होगा, उस हाथी का किस्सा जो दलदल में फंस गया था। वह जितना प्रयास करता उतना अधिक धंसता जाता। बाहर निकलने का एक ही मार्ग था कि कीचड़ सूर्य की धूप में सूख जाए। इसी तरह आप भी संकल्पों - विकल्पों के दलदल में फंस रहे हो। अपनी ओर देखने का अभ्यास करो, अपने आप ही ज्ञान की किरणों से यह मोह की कीचड़ सूख जाएगी।

बस अपनी सेवा में जुट जाओ, अपने आपको कीचड़ से बचाने का प्रयास करो।

महावीर ने यही कहा है, 'सेवक बनो स्वयं के।' और खुदा ने भी यही कहा है, 'खुद का बंदा बन।' एक सज्जन जब भी आते हैं , एक अच्छा शेर सुना कर जाते हैं। हमें याद हो गया है :

अपने दिल में डूब कर पा ले सुरागे जिंदगी।
तू अगर मेरा नहीं बनता , न बन , अपना तो बन।।

सेवक मत बनो , स्वयं के सेवक बनो। भगवान के सेवक भी स्वयं के सेवक नहीं बन पाते। खुदा का बंदा बनना आसान है , किंतु खुद का बंदा बनना कठिन है। खुद के बंदे बनो। भगवान की सेवा हम और आप क्या कर सकेंगे , वे तो निर्मल और निराकार हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में अकेले जीने की बात को आत्मविकास का प्रयास माना जाता है , क्योंकि वहां यही चिंतन शेष रहता है कि व्यक्ति अकेला जनमता है , अकेला मरता है। यहां कोई अपना - पराया नहीं। सुख - दुख भी स्वयं द्वारा कृत कर्मों का फल है। क्यों किसी के लिए जीएं ?
सामाजिक दृष्टि से सबके लिए जीने को तत्पर बने।

Sunday, 17 March 2013

18.03.13


 बोलो हर हर बम बम !!

मूर्ति की परिक्रमा हमेशा सीधे हाथ की तरफ से करना चाहिए क्योंकि...
मंदिर या देवालय वह स्थान है जहां जाकर कोई भी व्यक्ति मानसिक शांति महसूस करता है। किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है और हमें सुख प्राप्त होता है। हम इस मनोभाव से भगवान की शरण में जाते हैं कि हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी, जो बातें हम दुनिया से छिपाते हैं वो भगवान के आगे बता देते हैं, इससे भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है।
श्रद्धालु जब मंदिर या किसी देव स्थान पर जाते हैं तो आपने उन्हें देवमूर्ति की परिक्रमा करते हुए देखा होगा। दरअसल परिक्रमा इस कारण की जाती है क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि देवमूर्ति के निकट दिव्य प्रभा होती है।इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ती हो जाती है।
लेकिन देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है।

ॐ नम: शिवाय ! ॐ नम: शिवाय !! ॐ नम: शिवाय !!!
ॐ नम: शिवाय ! ॐ नम: शिवाय !! ॐ नम: शिवाय !!!
ॐ नम: शिवाय ! ॐ नम: शिवाय !! ॐ नम: शिवाय !!!
ॐ नम: शिवाय ! ॐ नम: शिवाय !! ॐ नम: शिवाय !!!
Ψ बम बम महादेव Ψ हर हर महादेव Ψ जय हो भोलेनाथ की Ψ

Saturday, 16 March 2013

17.03.13


दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुई है। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभ से पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'
उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके। दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

Friday, 15 March 2013

16.03.13


 लम्बे अरसे तक ऐसा रोज़ होता रहा और किसान सिर्फ डेढ़ बाल्टी पानी लेकर ही घर आतारहा. अच्छी बाल्टी को रोज़-रोज़ यह देखकर अपने पर घमंड हो गया. वह छेदवाली बाल्टीसे कहती थी की वह आदर्श बाल्टी है और उसमें से
ज़रा सा भी पानी नहीं रिसता. छेदवाली बाल्टी को यह सुनकर बहुत दुःख होता था और उसे अपनी कमी पर लज्जा आती थी.

छेदवाली बाल्टी अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थी. एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा – “मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूँ. मेरे तले में छोटे से छेद के कारण पानी रिसता रहता है और तुम्हारे घर तक पहुँचते-पहुँचते-मैं आधी खाली हो जाती हूँ.” किसान ने छेदवाली बाल्टी से कहा – “क्या तुम देखती हो कि पगडण्डी के जिस और तुम चलती हो उस और हरियाली है और फूल खिलते हैं लेकिन दूसरी ओर नहीं. ऐसा इसलिए है कि मुझे हमेशा से ही इसका पता था और मैं तुम्हारे तरफ की पगडण्डी में फूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था जिन्हें तुमसे रिसने वाले पानी से सिंचाई लायक नमी मिल जाती थी. यदि तुममें वह बात नहीं होती जिसे तुम अपना दोष समझती हो तो हमारे आसपास
इतनी सुन्दरता नहीं होती.”

"मुझमें और आपमें भी कई दोष हो सकते हैं. दोषौ से कोई अछूता नहीं रह पाया है. कभी-कभीऐसे दोषों और कमियों से भी हमारे जीवन को सुन्दरता और
पारितोषक देनेवाले अवसर मिलते हैं. इसीलिए दूसरों में दोष ढूँढने के बजाय
उनमें अच्छाई की तलाश करना चाहिये ।

Thursday, 14 March 2013

15.03.13


पिता का आशीर्वाद
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एक बार एक युवक अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाला था। उसकी बहुत दिनों से एक शोरूम में रखी स्पोर्टस कार लेने की इच्छा थी। उसने अपने पिता से कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर उपहारस्वरूप वह कार लेने की बात कही क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता उसकी इच्छा पूरी करने में समर्थ हैं। कॉलेज के आखिरी दिन उसके पिता ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा कि वे उसे बहुत प्यार करते हैं तथा उन्हें उस पर गर्व है। फिर उन्होंने उसे एक सुंदर कागज़ में लिपटा उपहार दिया । उत्सुकतापूर्वक जब युवक ने उस कागज़ को खोला तो उसे उसमें एक आकर्षक जिल्द वाली ‘भगवद् गीता’ मिली जिसपर उसका नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा था। यह देखकर वह युवक आगबबूला हो उठा और अपने पिता से बोला कि इतना पैसा होने पर भी उन्होंने उसे केवल एक ‘भगवद् गीता’ दी। यह कहकर वह गुस्से से गीता वहीं पटककर घर छोड़कर निकल गया।

बहुत वर्ष बीत गए और वह युवक एक सफल व्यवसायी बन गया। उसके पास बहुत धन-दौलत और भरापूरा परिवार था। एक दिन उसने सोचा कि उसके पिता तो अब काफी वृद्ध हो गए होंगे। उसने अपने पिता से मिलने जाने का निश्चय किया क्योंकि उस दिन के बाद से वह उनसे मिलने कभी नहीं गया था। अभी वह अपने पिता से मिलने जाने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक उसे एक तार मिला जिसमें लिखा था कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है और वे अपनी सारी संपत्ति उसके नाम कर गए हैं। उसे तुरंत वहाँ बुलाया गया था जिससे वह सारी संपत्ति संभाल सके।

वह उदासी और पश्चाताप की भावना से भरकर अपने पिता के घर पहुँचा। उसे अपने पिता की महत्वपूर्ण फाइलों में वह ‘भगवद् गीता’ भी मिली जिसे वह वर्षों पहले छोड़कर गया था। उसने भरी आँखों से उसके पन्ने पलटने शुरू किए। तभी उसमें से एक कार की चाबी नीचे गिरी जिसके साथ एक बिल भी था। उस बिल पर उसी शोरूम का नाम लिखा था जिसमें उसने वह स्पोर्टस कार पसंद की थी तथा उस पर उसके घर छोड़कर जाने से पिछले दिन की तिथि भी लिखी थी। उस बिल में लिखा था कि पूरा भुगतान कर दिया गया है।

कई बार हम भगवान की आशीषों और अपनी प्रार्थनाओं के उत्तरों को अनदेखा कर जाते हैं क्योंकि वे उस रूप में हमें प्राप्त नहीं होते जिस रूप में हम उनकी आशा करते हैं।

Wednesday, 13 March 2013

14.03.13


एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनको श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।

रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी।

अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’

ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’

‘ आपके शत्रु कौन हैं?’ अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की।

ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं।

फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’

‘ आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने पूछा। ‘

वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।

और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवानकी असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।

यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।’जय श्री कृष्ण

Tuesday, 12 March 2013

13.03.13


 मिट्टी ने मटके से पूछा, मैं भी मिट्टी हूं और तू भी, परंतु पानी मुझे बहा ले जाता है और तू पानी को अपने में रोके रखता है। मटका बोला, मैं भी मिट्टी हूं और तू भी मिट्टी है, परंतु पहले मैं पानी में गुंथा, फिर चाक पर चला, तत्पश्चात प्रहार सहे, फिर अग्नि में तपाया गया.। इन सब मार्गो पर चलने के बाद आज मुझमें यह क्षमता आ गई है कि पानी मेरा कुछ भी बिगाड नहीं सकता।

इसी तरह मंदिर की सीढियों के मार्बल ने मूर्ति रूपी मार्बल से पूछा, तू भी मार्बल है और मै भी मार्बल हूं, परंतु लोग तेरी पूजा करते हैं और मुझे पैरों तले रौंदते हैं। ऐसा क्यों? मूर्ति ने उत्तर दिया, तू नहीं जानती मैंने कितनी छेनियों के प्रहार झेले हैं। तू नहीं जानती मुझे कितना घिसा गया है। उसके उपरांत ही आज मैं इस काबिल हो सकी हूं कि लोग मुझे देवता मान बैठे हैं।

इन दोनों काल्पनिक कथाओं में एक अहम संदेश है। संदेश यह है कि तप का कोई भी विकल्प नहीं होता। कोई भी व्यक्ति तप के द्वारा ही ऊंचाई पर पहुंच पाता है। सामान्यतया हम सब के पास दो हाथ, दो पांव, दो आंखें अर्थात एक जैसा ही शरीर होता है, परंतु क्या वजह है कि एक व्यक्ति समाज में सम्माननीय बन जाता है, तो दूसरा निकृष्ट? आत्मबोध ग्रंथ के प्रथम श्लोक में आदि शंकराचार्य ने तपोभिक्षीणपापानां का उल्लेख किया है, जिसका अर्थ है जिसका जीवन तप से पवित्र हो गया है। तप का अर्थ स्वयं को तपाना है। हम मेहनत से ही स्वयं को तपाते हैं। तप का अर्थ है अपने मन और बुद्धि की ऊर्जा को अपने लक्ष्य में लगाना और उस लक्ष्य के मार्ग में जो भी प्रलोभन आएं उनका तिरस्कार करना। कुल मिलाकर यह मानव से महामानव बनने की प्रक्रिया है।

सर्दियों में सुबह चार बजे ठंडे पानी से नहाना तप नहीं है। घर-परिवार छोडकर जंगलों में जाना तप नहीं है। तप है तपना, प्रयास करना, मेहनत करना। एक बच्चा जो परीक्षा की तैयारी कर रहा है, वह भी उसके लिए तप है। एक मां रात-रात भर जागकर अपने बीमार बच्चे की सेवा कर रही है, वह भी तप है। एक व्यक्ति, जो अपने हर काम को बिना किसी प्रलोभन के दत्तचित्त से कर रहा है, वह भी तप है।

एक राजा की कथा है, जिसकी कोई संतान नहीं थी। जब वह बूढा हो गया तो उसे अगले योग्य राजा की खोज के लिए एक उपाय सूझा। उसने मेले का आयोजन किया और घोषणा करवा दी कि मैं इस मेले में छिप जाऊंगा, जो मुझे खोज निकालेगा, वही राजा बनेगा। राजा ने इस मेले में लोभ पैदा करने के लिए जगह-जगह तमाम इंतजाम कर दिए। कहीं मुफ्त में सोने के सिक्के दिए जा रहे थे, तो कहीं अन्य लालच। सब लोग आए थे राजा को खोजने के लिए परंतु सब के सब प्रलोभनों में अटक गए। लेकिन एक युवक राजा की खोज में लगा रहा। उसने आखिरकार राजा को मेले के सबसे आखिरी पडाव पर ढूंढ ही निकाला। जैसे ही युवक ने राजा को खोजा, जिन-जिन प्रलोभनों को उसने पीछे छोडा था, वह उन सबका मालिक बन गया। इसी को कहते हैं तप! जब भी आप अपने लक्ष्य पर चलते हैं, तो रास्ते में प्रलोभन आते हैं। उन प्रलोभनों में अधिकतर लोग फिसल जाते हैं, परंतु जो व्यक्ति उन प्रलोभनों के मौजूद रहते हुए भी उनसे निस्पृह बना रहता है और अपने आपको स्थिर रखकर अपने लक्ष्य के लिए अपने कर्म में निरंतर लगा रहता है, वही है सच्चा तपस्वी, वही है स्थितिप्रज्ञ, वही है योगी। तन, मन और बुद्धि का तप ही आपको साधारण से असाधारण बना देता है .!

खुला मत छोड़ो अपने जख्मों को
मुट्ठी में नमक लिए लोग बैठे हैं..

Monday, 11 March 2013

12.03.13


एक व्यक्ति मंदिर के लिए फूल तोड़ रहा था । कई पेड़ो से कई तरह के फूल एकत्रित किये - उन फूलो के साथ भूलवश कुछ कलिया भी तोड़ दी, फूल तोड़ते समय उसने एक डाली भी तोड़ डाली - अब वो भजन गाता मंदिर को चला गया । बगीचे के पेड़ बड़े क्रुद्ध हुए और एक बुजुर्ग पेड़ से शिकायत की, देखो उस आदमी ने फूल के साथ कलिया और डाली भी तोड़ डाली । बूढ़ा पेड़ मुस्कुराया और बोला - जो उसने किया वो उसका कार्य था और फूल, फल देना हमारा कर्त्तव्य, कभी कभी कर्त्तव्य पथ पर लोग चोटिल भी कर देते है हम फिर भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते है और पुनः अपना स्वरुप प्राप्त कर लेते है - प्रकृति हमें नयी डालियों और फूलो से लाद देती है इसलिए कभी रुष्ट मत हो कष्ट सहो क्योकि जिसमे देने की सामर्थ्य है वो कभी खाली नहीं होता, इसलिए प्रभु से यही प्रार्थना करना की प्रभु जीवन में हमेशा देने की भावना बनी रहे । सही भी है मित्रो पेड़ ज़िन्दगी भर - फल, फूल, छाव देते है और अपनी मृत्यु के बाद अपनी काया भी समर्पित कर देते है - लेकिन मनुष्य कभी उनसे सीख नहीं पाता बस अपने ही संग्रह में लगा रहता है .

Sunday, 10 March 2013

11.03.13


एक फकीर 50 साल से एक ही जगह बैठकर रोज की 5 नमाज पढता था.

एक दिन आकाशवाणी हुई और खुदा की आवाज आई

"हे फकीर.!
तु 50 साल से नमाज पढ रहा है, लेकिन तेरी एक भी नमाज स्वीकार नही हुई"

फकीर के साथ बैठने वाले दुसरे बंदो को भी दु:ख हुआ कि,

यह बाबा 50 साल से नमाज पढ रहे है और इनकी एक भी नमाज कबुल नही हुई.
...
खुदा यह तेरा कैसा न्याय.?

लेकिन फकीर दु:खी होने के बजाय खुशी से नाचने लगा.

दुसरे लोगो ने फकीर को देखकर आश्चर्य हुआ.

एक बंदा फकीर से बोला : बाबा, आपको तो दु:ख होना चाहिए कि आपकी 50 साल कि बंदगी बेकार गई.!

फकीर ने जवाब दिया : " मेरी 50 साल की बंदगी भले ही कबुल ना हुई तो क्या हुआ...!!! लेकिन खुदा को तो पता है ना कि मैँ 50 साल से बंदगी कर रहा हु"

इसिलिए दोस्तो जब आप मेहनत करते हो और फल ना मिले तो निराश मत होना,

क्युकिँ

भगवान को तो पता है ही कि आप मेहनत कर रहे है, इसिलिए फल तो जरुर देग

Saturday, 9 March 2013

10.03.13


महाशिवरात्रि कल: इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा, 
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महाशिवरात्रि(इस बार 10 मार्च, रविवार) के दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलता है। जो व्यक्ति इस दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत रखता है उसे अक्षय पुण्य मिलता है। धर्म शास्त्रों में महाशिवरात्रि व्रत के संबंध में विस्तृत उल्लेख है। उसके अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत इस प्रकार करें-

शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन व्रती(व्रत करने वाला) सुबह जल्दी उठकर स्नान संध्या करके मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर श्वि मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।
यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
रात्रिपूजा
व्रती दिनभर शिवमंत्र (ऊँ नम: शिवाय) का जप करे तथा पूरा दिन निराहार रहे। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) धर्मग्रंथों में रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान है। सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर(नम: शिवाय) मंत्र का जप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान, इन आठ नामों से पुष्प अर्पित कर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।
अगले दिन सुबह पुन: स्नानकर भगवान शंकर की पूजा करके पश्चात व्रत खोलना चाहिए।

10.03.13


एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया बनाकर रहते थे,एक किरात ( जानवरों का शिकार करने वाला) रहता था.संत को देखकर हमेशा प्रणाम करता था.ऐसा हमेशा होता था, रोज किरात कुटिया के सामने से निकलता और संत को प्रणाम करता.
एक दिन किरात संत से बोला - बाबा! मै तो मृग का शिकार करने आता हूँ ,आप यहाँ किसका शिकार करने आते हो?
संत बोले - मै श्रीकृष्ण मृग का शिकार करने आता हूँ,इतना कहकर संत रोने लगे.
किरात बोला - बाबा रोते क्यों हो,मुझे बताओ ये कृष्ण देखने में कैसा है ? मैंने कभी इस तरह के शिकार के बारे में नहीं सुना.मै अवश्य ही आपका शिकार आपको लाकर दूँगा, संत ने भगवान का स्वरुप बता दिया,काले रंग का है,मोर का मुकुट लगाता है,बासुरी बजाता है.
किरात बोला - तुम्हारा शिकार हम पकड़कर लाते है,जब तक शिकार हम आपको लाकर नहीं देगे, तब तक पानी भी नहीं पीयेगे,इतना कहकर किरात चला गया. अब तो एक जगह जाल बिछाकर बैठ गया, ३ दिन हो गए किरात के मन में वही संत द्वारा बताई छवि बसी हुई थी,यूँ ही बैठा रहा.
भगवान को दया आ गई और बाल कृष्ण बासुरी बजाते हुए आ गए,और स्वयं ही जाल में फस गए,किरात ने तो कभी देखा नहीं था संत द्वारा बताई,छवि जब आँखों के सामने देखी तो तुरंत चिल्लाने लगा फस गया! फस गया! मिल गया! मिल गया!
अच्छा बच्चू तीन दिन भूखा प्यासा रखा अब हाथ में आये हो! तुरंत ठाकुर जी को जाल में ही फसे हुए अपने कंधे पर शिकार की भांति टांगा और संत की कुटिया की ओर चला,कुटिया के बाहर से ही आवाज लगायी,बाबा जल्दी से बाहर आओ आपका शिकार लेकर आया हूँ.
संत झट कुटिया से बाहर आये तो क्या देखते है किरात के कंधे पर जाल में फसे ठाकुर जी मुस्कुरा रहे है,संत चरणों में गिर पड़ा.

फिर ठाकुर जी से बोला - प्रभु हमने बचपन से घर-बार छोड़ा, अब तक आप नहीं मिले,और इसको तुम ३ दिन में ही मिल गए? ऐसा क्यों ?
भगवान बोले - बाबा !इसने तुम्हारा आश्रय लिया इसलिए इस पर ३ दिन में ही कृपा हो गई.

कहने का अभिप्राय ये है कि भगवान पहले उस पर कृपा करते है जो उनके दासों के चरण पकडे होता है,किरात को पता भी नहीं था भगवान कौन है? कैसे होते है ? पर संत को रोज प्रणाम करता था,संत प्रणाम और दर्शन का फल ये हुआ कि ३ दिन में ही ठाकुर जी मिल गए.


Friday, 8 March 2013

09.03.13


फूलों के लिए सारा जगत फूल है और कांटों के लिए कांटा. जो जैसा है, उसे दूसरे वैसा ही प्रतीत होते हैं. जो स्वयं में नहीं है, उसे दूसरों में देख पाना कैसे संभव है! सुंदर को खोजने के लिए चाहे हम सारी भूमि पर भटक लें, पर यदि वह स्वयं के ही भीतर नहीं है, तो उसे कहीं भी पाना असंभव है.

एक अजनबी किसी गांव में पहुंचा. उसने उस गांव के प्रवेश द्वार पर बैठे एक वृद्ध से पूछा, ”क्या इस गांव के लोग अच्छे और मैत्रिपूर्ण हैं?”

उस वृद्ध ने सीधे उत्तर देने की बजाय स्वयं ही उस अजनबी से प्रश्न किया, ”मित्र, जहां से तुम आते हो वहां के लोग कैसे हैं?”

अजनबी दुखी और क्रुद्ध हो कर बोला, ”अत्यंत क्रूर, दुष्ट और अन्यायी. मेरी सारी विपदाओं के लिए उनके अतिरिक्त और कोई जिम्मेवार नहीं. लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं?”

वृद्ध थोड़ी देर चुप रहा और बोला, ”मित्र, मैं दुखी हूं. यहां के लोग भी वैसे ही हैं. तुम उन्हें भी वैसा ही पाओगे.”

वह व्यक्ति जा भी नहीं पाया था कि एक दूसरे राहगीर ने उस वृद्ध से आकर पुन: वही बात पूछी, ”यहां के लोग कैसे हैं?”

वह वृद्ध बोला, ”मित्र क्या पहले तुम बता सकोगे कि जहां से आते हो, वहां के लोग कैसे हैं?”

इस प्रश्न को सुन यह व्यक्ति आनंदपूर्ण स्मृतियों से भर गया. उसकी आंखें खुशी के आंसुओं से गीली हो गई. उसने कहा, ”आह, वे बहुत प्रेमपूर्ण और बहुत दयालू थे. मेरी सारी खुशियों का कारण वे ही थे. काश, मुझे उन्हें कभी भी न छोड़ना पड़ता!”

वृद्ध बोला, ”मित्र, यहां के लोग भी बहुत प्रेमपूर्ण हैं, इन्हें तुम उनसे कम दयालु नहीं पाओगे, ये भी उन जैसे ही हैं. मनुष्य-मनुष्य में बहुत भेद नहीं है.”

संसार दर्पण है. हम दूसरों में जो देखते हैं, वह अपनी ही प्रतिक्रिया होती है. जब तक सभी में शिव और सुंदर के दर्शन न होने लगें, तब तक जानना चाहिए कि स्वयं में ही कोई खोट शेष रह गई है.

Thursday, 7 March 2013

08.03.13

<< बाज की उड़ान >>

एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्ही की तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-
” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”
तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”
बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.
दोस्तों , हममें से बहुत से लोग उसबाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.
आप चूजों की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए.आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर दिखाइए क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है...........

Wednesday, 6 March 2013

07.03.13


क्रोध पर विजय
एक व्यक्ति के बारे में यह विख्यात था कि उसको कभी क्रोध आता ही नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ बुरी बातें ही सूझती हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में से एक ने निश्चय किया कि उस अक्रोधी सज्जन को पथच्युत किया जाये और वह लग गया अपने काम में। उसने इस प्रकार के लोगों की एक टोली बना ली और उस सज्जन के नौकर से कहा – “यदि तुम अपने स्वामी को उत्तेजित कर सको तो तुम्हें पुरस्कार दिया जायेगा।” नौकर तैयार हो गया। वह जानता था कि उसके स्वामी को सिकुडा हुआ बिस्तर तनिक भी अच्छा नहीं लगता है। अत: उसने उस रात बिस्तर ठीक ही नहीं किया।

प्रात: काल होने पर स्वामी ने नौकर से केवल इतना कहा – “कल बिस्तर ठीक था।”

सेवक ने बहाना बना दिया और कहा – “मैं ठीक करना भूल गया था।”

भूल तो नौकर ने की नहीं थी, अत: सुधरती कैसे? इसलिये दूसरे, तीसरे और चौथे दिन भी बिस्तर ठीक नहीं बिछा।

तब स्वामी ने नौकर से कहा – “लगता है कि तुम बिस्तर ठीक करने के काम से ऊब गये हो और चाहते हो कि मेरा यह स्वभाव छूट जाये। कोई बात नहीं। अब मुझे सिकुडे हुए बिस्तर पर सोने की आदत पडती जा रही है।”

अब तो नौकर ने ही नहीं बल्कि उन धूर्तों ने भी हार मान ली।

Tuesday, 5 March 2013

06.03.13


एक डॉक्टर ने अपने अति-महत्वाकांक्षी और आक्रामक बिजनेसमैन मरीज को एक बेतुकी लगनेवाली सलाह दी. बिजनेसमैन ने डॉक्टर को बहुत कठिनाई से यह समझाने की कोशिश की कि उसे कितनी ज़रूरी मीटिंग्स और बिजनेस डील वगैरह करनी हैं और काम से थोड़ा सा भी समय निकालने पर बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा:

“मैं हर रात अपना ब्रीफकेस खोलकर देखता हूँ और उसमें ढेर सारा काम बचा हुआ दिखता है” – बिजनेसमैन ने बड़े चिंतित स्वर में कहा.

“तुम उसे अपने साथ घर लेकर जाते ही क्यों हो?” – डॉक्टर ने पूछा.

“और मैं क्या कर सकता हूँ!? काम तो पूरा करना ही है न?” – बिजनेसमैन
झुंझलाते हुए बोला.

“क्या और कोई इसे नहीं कर सकता? तुम किसी और की मदद क्यों नहीं लेते?” –
डॉक्टर ने पूछा.

“नहीं” – बिजनेसमैन ने कहा – “सिर्फ मैं ही ये काम कर सकता हूँ. इसे तय समय में पूरा करना ज़रूरी है और सब कुछ मुझपर ही निर्भर करता है.”

“यदि मैं तुम्हारे पर्चे पर कुछ सलाह लिख दूं तो तुम उसे मानोगे?” –
डॉक्टर ने पूछा.

यकीन मानिए पर डाक्टर ने बिजनेसमैन मरीज के पर्चे पर यह लिखा कि वह सप्ताह में आधे दिन की छुट्टी लेकर वह समय कब्रिस्तान में बिताये!

मरीज ने हैरत से पूछा – “लेकिन मैं आधा दिन कब्रिस्तान में क्यों बैठूं?
उससे क्या होगा?”

“देखो” – डॉक्टर ने कहा – “मैं चाहता हूँ कि तुम आधा दिन वहां बैठकर
कब्रों पर लगे पत्थरों को देखो. उन्हें देखकर तुम यह विचार करो कि
तुम्हारी तरह ही वे भी यही सोचते थे कि पूरी दुनिया का भार उनके ही कंधों पर ही था. अब ज़रा यह सोचो कि यदि तुम भी उनकी दुनिया में चले जाओगे तब भी यह दुनिया चलती रहेगी. तुम नहीं रहेगो तो तुम्हारे जगह कोई और ले लेगा. दुनिया घूमनी बंद नहीं हो जायेगी!”

मरीज को यह बात समझ में आ गयी. उसने झुंझलाना और कुढ़ना छोड़ दिया. शांतिपूर्वक अपने कामों को निपटाते हुए उसने अपने बिजनेस में खुद के लिए और अपने कामगारों के लिए काम करने के बेहतर वातावरण का निर्माण किया.


Monday, 4 March 2013

05.03.13


Jai sri Krishna.

सकारात्मक सोच
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पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।
एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।
लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।

जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।
पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ मनुष्य हैं।”
मित्रो, अगर ऐसा ही हमारे साथ हो तो क्या हमारी सोच भी यही होती है जो पिडार्टस की थी या कुछ और ? कोई हमारा जबाब पूछे तो शायद हम कुछ ये कहते हैं :

वहां पर तो सोर्स और रिश्वत चल रही थी। मैंने भी सोर्स तो बहुत लगायी थी पर काम नहीं हुआ। बहुत से लोग तो नौकरी का इंटरव्यू देने से पहले जुगाड़ ढूढ़ते हैं। अपनी योग्यता पर भरोसा रहना चाहिए। एक मौका गया तो दूसरा मिलेगा। सदैव आशावान रहना चाहिए।

Sunday, 3 March 2013

04.03.13


एक टीले पर बैठे हुए संत अनाम डूबते सूर्य को बड़े ध्यान से देख रहे थे !
वे देख रहे थे कि किस प्रकार एक दिन महाशक्तिओं का वैभव नष्ट हो जाता है !संत अनाम इन्हीं विचारों में डूबे ही थे कि एक आदमी उनके पास आया और प्रणाम कर चुपचाप खड़ा हो गया !संत अनाम ने पूछा -वत्स क्या मुझसे कुछ काम है ?
आगंतुक ने कहा -भगवन !मैं पुरु देश का धनी सेठ हूँ तीर्थयात्रा के लिये चलने लगा तो मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि आप इतने स्थानों की यात्रा करेंगे ;कहीं से मेरे लिये शांति सुख और प्रसन्नता मोल ले आना !मैंने अनेक स्थानों पर ढूंढा पर ये तीनों वस्तुएं कहीं नहीं मिली !आप को अत्यंत शांत सुखी और प्रसन्न देखकर ही तो आपके पास आया हूँ ;संभव है आप के पास ही ये वस्तुएं उपलब्ध हो जाये !
संत अनाम मुस्कराये और अपनी कुटिया के भीतर चले गये !कुछ ही क्षणों के बाद वे लौट कर आये और एक कागज की पुड़िया आगंतुक को देते हुए बोले -यह अपने मित्र को दे देना और हां तब तक इसे कहीं खोलना मत !
आगंतुक पुड़िया लेकर चला गया और मित्र को दे दी !कुछ दिनों बाद जब वह फिर मित्र से मिलने गया तो देखा कि मित्र काफी प्रसन्न दिख रहा है !उसने कहा -मित्र मुझे भी अपनी औषधि का कुछ अंश दे दो तो मेरा भी कल्याण हो जाये !
मित्र ने पुड़िया खोलकर दिखाई उसमें लिखा था -अंत:करण में विवेक और संतोष का भाव रखने से ही स्थायी-सुख शांति और प्रसन्नता मिलती है !

Saturday, 2 March 2013

03.03.2013


महामूर्ख कौन ?

"ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था।

वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था।

रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ, ध्यान-भजन करने का उसका नियम था।

उसके बाद वह दुकान में काम करने जाता।

दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था।
बाकी के समय में वह साधु-संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु-संग एवं दान-पुण्य करता।

व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था।

उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते।

लोग कहतेः
'यह तो महामूर्ख है।
कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है।
फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है।

सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ में गँवा देता है।
यह तो पागल ही है।'

एक बार गाँव के नगर सेठ ने उसे अपने पास बुलाया।

उसने एक लाल टोपी बनायी थी।

नगर सेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहाः
'यह टोपी मूर्खों के लिए है।
तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा,इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ।

इसके बाद यदि कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूर्ख दिखे तो तू उसे पहनने के लिए दे देना।'

ज्ञानचंद शांति से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया।

एक दिन वह नगर सेठ खूब बीमार पड़ा।

ज्ञानचंद उससे मिलने
गया और उसकी तबीयत के हालचाल पूछे।

नगरसेठ ने कहाः
'भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।'

ज्ञानचंद ने पूछाः
'कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो?
वहाँ आपसे पहले किसी व्यक्ति को सब तैयारी करने के लिए भेजा कि नहीं?
आपके साथ आपकी स्त्री, पुत्र, धन, गाड़ी, बंगला वगैरह आयेगा किनहीं?'

'भाई ! वहाँ कौन साथ आयेगा?
कोई भी साथ नहीं आने वाला है।
अकेले ही जाना है।

कुटुंब-परिवार, धन- दौलत, महल-गाड़ियाँ सब छोड़कर यहाँ से जाना है।

आत्मा-परमात्मा के सिवाय किसी का साथ नहीं रहने वाला है।'

सेठ के इन शब्दों को सुनकर ज्ञानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगर सेठ को वापस देते हुए कहाः
'आप ही इसे पहनो।'

नगर सेठः'क्यों?'

ज्ञानचंदः 'मुझसे ज्यादा मूर्ख तो आप हैं। जब आपको पता था कि पूरी संपत्ति, मकान, परिवार वगैरह सब यहीं रह जायेगा, आपका कोई भी साथी आपके साथ नहीं आयेगा, भगवान के सिवाय कोई भी सच्चा सहारा नहीं है, फिर भी आपने पूरी जिंदगी इन्हीं सबके पीछे क्यों बरबाद कर दी?

सुख में आन बहुत मिल बैठत रहत चौदिस घेरे।

विपत पड़े सभी संग छोड़तकोउ न आवे नेरे।।

जब कोई धनवान एवं शक्तिवान होता है तब सभी 'सेठ... सेठ.... साहब... साहब...' करते रहते हैं और अपने स्वार्थ के लिए आपके आसपास घूमते रहते हैं।

परंतु जब कोई मुसीबत आती है तब कोई भी मदद के लिए पास नहीं आता।

ऐसा जानने के बाद भी आपने क्षणभंगुर वस्तुओं एवं संबंधों के साथप्रीति की, भगवान से दूर रहे एवं अपने भविष्य का सामान इकट्ठा न किया तो ऐसी अवस्था में आपसे महान् मूर्ख दूसरा कौन हो सकता है?

गुरु तेग बहादुर जी ने कहा हैः
करणो हुतो सु ना कीओ परिओ लोभ के फंध।
नानक समिओ रमि गइओ अब किउ रोवत अंध।।

सेठजी ! अब तो आप कुछ भी नहीं कर सकते।
आप भी देख रहे हो कि कोई भी आपकी सहायता करने वाला नहीं है।'

क्या वे लोग महामूर्ख नहीं हैं जो जानते हुए भी मोह-माया में फँसकर ईश्वर सेविमुख रहते हैं?

संसार की चीजों में, संबंधों का संग एवं दान-पुण्य करते हुए जिंदगी व्यतीत करते तो इस प्रकार दुःखी होने एवं पछताने का समय न आता।" ...!!!

Friday, 1 March 2013

02.03.2013


एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव जंगली मक्खी और मकड़ी बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती। इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं। हर एक की कहीं न कहीं उपयोगिता है।