एक आदमी जब पैदा होता है तो उस समय जब
उसकी जीवन उर्जा बड़ी संवेदनशील होती है
तो उसे एक स्त्री ही संभालती है…
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वो है उसकी माँ.
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फिर जब थोडा सा बड़ा होता है (बैठने लायक)
तो वहां भी एक लड़की ही मिलती है
जो उसकी देखरेख करती है उसके साथ खेलती है
….
उसका मन बहलाती है……. जब तक
की वो इतना बड़ा नहीं हो जाता की बाहर
के संसार में अपने दोस्त बना सके…
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वो है उसकी बहिन……
……
फिर जब वो स्कूल जाता है तो वहां फिर एक
महिला है जो उसकी सहायता
करती है….. चीज़ों को समझने में………… उसे
सहारा देती है, उसकी कमजोरियों को दूर करने
में….. और उसको एक अच्छा इंसान बनाने
में…
…
……
वो है उसकी अध्यापिका…
…….…
फिर जब वो बड़ा होता है……….. और जब जीवन
से उसका संघर्ष शुरू
होता है…. जब भी वो संघर्ष में वो कमजोर
हो जाता है…..
तो एक लड़की ही उसको साहस देती है
…
…
वो है उसकी प्रेमिका
(सामान्यत:)
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जब आदमी को जरूरत होती है………. साथ
की अपनी अभिव्यक्ति प्रकट
करने के लिए …… अपना दुःख और सुख बाटने
के लिए फिर एक लड़की वहां
होती है…
…
…..
वो है उसकी पत्नी……
…..
फिर जब जीवन के संघर्ष और रोज
की मुश्किलों का
सामना करते करते आदमी कठोर होने लगता है
……..
तब उसे निर्मल बनाने वाली भी एक
लड़की ही होती है…
…
…..
और वो है उसकी बेटी.……
……
और जब आदमी की जीवन यात्रा ख़त्म होगी तब
फिर एक स्त्रीलिंग ही होगी जिससे उसका अंतिम
मिलन होगा ….. जिसमे वो समां कर
पूरा हो जायेगा…
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… और वो होगी मात्रभूमि…
…..…
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याद रखें अगर आप मर्द हैं तो सम्मान दें हर
महिला को…
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जो हर पल आपके साथ किसी न किसी रूप में है…
…….
और अगर आप महिला हैं तो गर्व करें अपने
महिला होने पर.
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