Sunday 10 February 2013

11.01.13


औक्षण क्यों किया जाता है ?
किसी शुभ अवसर पर किसी व्यक्ति की आरती उतारने को औक्षण कहा जाता है .
`औक्षण' की कृति से जीव की सूक्ष्मदेह की शुद्धि में सहायता मिलती है । औक्षण करवाने वाला एवं करने वाला, दोनोंमें यह भाव रहे कि, `एक दूसरेके माध्यमसे प्रत्यक्ष ईश्वर ही यह कृतिस्वरूप कार्य द्वारा हमें आशीर्वाद दे रहे हैं' । कुलदेवता अथवा उपास्य देवता का स्मरण कर अक्षत तीन बार जीवके सिरपर डालनेसे आशीर्वादात्मक तरंगों का स्रोत जीव की संपूर्ण देह में संक्रमित होता है । इस प्रक्रिया से दोनों जीवों की देह से प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगों के कारण वायुमंडल की शुद्धि होती है .
आश्विनी पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला ज्येष्ठापत्यनीरांजन, नरक चतुर्दशी के दिन किया जाने वाला नारीकतृकनीरांजन, बलिप्रतिप्रदा के दिन किया जाने वाला पतिनीरांजन तथा यमद्वितीया के दिन किया जाने वाला भातृनीरांजन , रक्षा बंधन , जन्म दिवस -इन सभी आरतियों को औक्षण कहते हैं। औक्षण के समय पुरूष आरती उतारने वाली स्त्री को भेंट वस्तु देते हैं। औक्षण के समय दो नीरांजनों का उपयोग किया जाता है। औक्षण का अधिकार सभी स्त्रियों को है। भैयादूज के दिन विधवा बहन अपने भाई का औक्षण कर सकती है। आश्विन पूर्णिमा के के दिन विधवा माता अपने ज्येष्ठापत्य का नीरांजन कर सकती है। औक्षण के लिए तेल की दो बत्तियों का प्रयोग करें। औक्षण के लिए पीतल के दो दीये लेते हैं। कई बार औक्षण के लिए पंचारती का भी उपयोग किया जाता है। औक्षण के समय थाली में हल्दी, कुंकुम, अक्षत, पान, सुपारी एवं कुछ सुवर्ण अलंकार रखें।
औक्षण का दिया ब्रम्हांड की शक्ति को आकृष्ट करता है और उसे हम जिसके आस पास घुमाते है उसके चारो तरफ गतिमान सुरक्षा कवच का निर्माण करता है .
घर की दहलीज सभी बुरी तरंगों को धरती में बजने का कार्य करता है इसलिए वहां पर औक्षण करने से तम तरंगे व्यक्ति के आस पास केन्द्रित होंगी . अतः घर के अन्दर पीढ़े पर बैठा कर और उसके चारो ओर रंगोली से शुभ तरंगे संचालित कर उस पर औक्षण करें .
औक्षण की थाली में सीधे हाथ पर सुपारी और सोने का गहना जैसे अंगूठी या चूड़ी रखते है जो प्रत्यक्ष कार्य करने वाले शिव तत्व या पुरुष तत्व का प्रतिक है .
अक्षत सर्व समावेशक होने के कारण थाली के मध्य भाग में रखे जाते है .
अक्षत के थोड़ा आगे दीप रखें जो आत्म शक्ति के बल पर कार्यरत होने वाली सुषुम्ना नाडी का प्रतिक है .
हल्दी - कुंकुम आदि शक्ति के आशीर्वाद को और अंगूठी - सुपारी शिव तत्व के आशीर्वाद को अक्षत के माध्यम से व्यक्ति तक पहुंचाते है .इससे व्यक्ति को शुभ कार्य करने की शक्ति , प्रेरणा और सफलता प्राप्त होती है .

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