Wednesday 11 September 2013

12-09-13


किसी गांव में एक चरवाहा रहता था । वह नदी पर
जब नहाने जाता तो अपने साथ अपने कंधे पर अपने से कई
गुना भारी भैंस को उठा कर ले जाता और उसे अपने साथ
नहलाकर वैसे ही कंधे पर उठाकर वापस घर लाता था । गांव
के सभी लोग उसके इस क्रम से भली-भांति परिचित थे
इसलिये उन्हें कोई आश्चर्य भी नहीं होता था ।
एक बार किसी राजनेता के आगमन की पूर्व
तैयारी करते उनके कुछ समर्थकों का उस गांव में आना हुआ ।
उन्होंने जब उस चरवाहे को इस तरह भैंस को कंधे पर उठाकर
नदी तक जाते-आते देखा तो वे सभी आश्चर्यचकित हो गये
। उन्होंने उस चरवाहे से पूछा कि तुम्हारे वजन से कई
गुना भारी इस भैंस को तुम इतनी आसानी से कंधे पर कैसे
उठा पाते हो ? क्या तुम्हे इसमें कोई कठिनाई नहीं होती
? तब उस चरवाहे ने जवाब दिया कि कठिनाई
तो होती है, लेकिन मेरे बचपन में मेरे पिताजी इसे बछडे के रुप
में घर लाए थे और खेल-खेल में मैं तबसे ही इसे इसी तरह कंधे पर
उठाकर तालाब तक नहलाने ले जाता था । जब इसका वजन
मुझसे ज्यादा होता गया और मुझे इसे उठाने में कठिनाई हुई
तो मेरे मन ने मुझसे कहा कि कल तो तुमने इसे उठाया था ।
बस यही एक सोच है जो रोज मुझे इस भैंस को मेरे कंधे पर
उठा लेने में मेरे साथ चलती है कि कल तो मैंने इसे
उठाया था तो आज क्यों नहीं
?

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