Tuesday, 3 September 2013

04-09-13


वास्तविक सौन्दर्य

हर सुबह घर से निकलने के पहले सुकरात आईने के सामने खड़े होकर खुद को कुछ देर तक तल्लीनता से निहारते थे.

एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा. आईने में खुद की छवि को निहारते सुकरात को देख उसके चहरे पर बरबस ही मुस्कान तैर गई. सुकरात उसकी और मुड़े और बोले, " बेशक तुम यही सोचकर मुस्कुरा रहे हो न की यह कुरूप बूढा आईने में खुद को इतनी बारीकी से क्यों देखता है? और पता है मैं ऐसा हर दिन ही करता हूँ."

शिष्य यह सुनकर लज्जित हो गया और सर झुकाकर खडा रहा. इससे पहले की वह माफी मांगता, सुकरात ने कहा, " आईने में हर दिन अपनी छवि देखने पर मैं अपनी कुरूपता के प्रति सजग हो जाता हूँ. इससे मुझे ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिलाती है जिसमें मेरे सद्गुण इतने निखरे और दमकें की उनके आगे मेरे मुखमंडल की कुरूपता फीकी पड़ जाए."

शिष्य ने कहा, "तो क्या इसका अर्थ यह है की सुन्दर व्यक्तियों को आइने में अपनी छवि नहीं देखनी चाहिए/"

"ऐसा नहीं है" सुकरात ने कहा, "जब वे स्वयं को आईने में देखें तो यह अनुभव करें की उनके विचार , वाणी और कर्म उतने ही सुन्दर हों जितना उनका शरीर है. वे सचेत रहें की उनके कर्मों की छाया उनके प्रीतिकर व्यक्तित्व पर नहीं पड़े."

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