"भगवान् श्रीकृष्ण"
बहुत पुरानी और परखी हुई कहावत है कि हर दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है।
सेठ जी को यकीन नहीं आया, सो साधू से बहस कर बैठे।
देखो, नतीजा क्या हुआ।
एक सेठ जी आंगन में बैठे कुछ दाने चबा रहे थे।
तभी एक साधू उधर से निकला।
उसने सेठजी से कहा - ‘कुछ भिक्षा मिल जाए।’
सेठ जी बोले- ‘जाओ-जाओ।’
साधू बोला - ‘भूखा हूं।
खाने के लिए कुछ दाने ही दे दो।’
सेठ जी बोले, ‘दाने मुफ्त में नहीं मिलते।
बच जाएंगे, तो दे दूंगा।’
साधू बोला, ‘एक व्यक्ति सभी दाने कैसे खा सकता है?
दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है।’
यह सुनकर सेठजी को क्रोध आ गया।
वे बोले, ‘अपने आपको बहुत ही ज्ञानी समझते हो।
इधर मेरे हाथ में पकड़े इस दाने को देखो और बताओ कि इस पर किसका नाम लिखा है?’
साधू ने मुस्कराते हुए कहा, ‘इस पर कौए का नाम लिखा है।
यह दाना उसी का आहार है।’
सेठ जी बोले, ‘देखो मैं इसे खा जाऊंगा।
कहां है तुम्हारा कौआ?’
ऐसा कहते हुए सेठ जी ने वह दाना मुंह में डाला, पर वह मुंह में न जाकर उनकी नाक में घुस गया।
सेठजी की सांस रुक गई।
लोग इकट्ठा हो गए।
उन्हें वैद्य जी के पास ले गए।
वैद्य जी ने फौरन चिमटी से सेठ जी की नाक में फंसा दाना निकाल दिया और पास ही फेंक दिया।
तभी एक कौआ आया और वह दाना चोंच में दबाकर उड़ गया।
साधू भी उस समय वहीं पर था।
वह बोला - ‘देखो, उस दाने पर कौए का ही नाम लिखा था।’
सेठ जी की अकल ठिकाने आ गई।
उन्होंने साधू से माफी मांगी और अपने घर ले जाकर आदरपूर्वक भोजन कराया।
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