.................... खुद को टटोलें ............................
दो आदमी यात्रा पर निकले .... दोनों की मुलाकात हुई ..!
दोनों यात्रा में साथ हो गए। सात दिन बाद दोनों के पृथक होने का समय आया तो एक ने कहा :
'भाईसाहब! एक सप्ताह तक हम दोनों साथ रहे .... क्या आपने मुझे पहचाना?' दूसरे ने कहा, 'नहीं, मैंने तो नहीं पहचाना।' वह बोला, 'माफ करें मैं एक नामी ठग हूं। लेकिन आप तो महाठग हैं। आप मेरे भी उस्ताद निकले।'
'कैसे?' 'कुछ पाने की आशा में मैंने निरंतर सात दिन तक आपकी तलाशी ली, मुझे कुछ भी नहीं मिला। इतनी बड़ी यात्रा पर निकले हैं तो क्या आपके पास कुछ भी नहीं है? बिल्कुल खाली हाथ हैं?'
'नहीं, मेरे पास एक बहुमूल्य हीरा है और थोड़ी-सी रजत मुद्राएं।'
'तो फिर इतने प्रयत्न के बावजूद वह मुझे मिली क्यों नहीं?'
'बहुत सीधा और सरल उपाय मैंने काम में लिया। मैं जब भी बाहर जाता, वह हीरा और मुद्राएं तुम्हारी पोटली में रख देता था। तुम सात दिन तक मेरी झोली टटोलते रहे। अपनी पोटली संभालने की जरूरत ही नहीं समझी। तुम्हें मिलता कहां से?'
कहने का अर्थ यह कि हम अपनी गठरी संभालने की जरूरत नहीं समझते। हमारी निगाह तो दूसरों के झोले पर रहती है। यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। अपनी गठरी टटोलें, अपने आप पर दृष्टिपात करें तो अपनी कमी समझ में आ जाएगी। यह समस्या सुलझा सकें तो जीवन में कहीं कोई रूकावट और उलझन नहीं आएगी ....!
इसलिए खुद को अवश्य टटोलें
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