Saturday 27 April 2013

28.04.13


सिकंदर महान जब भारत से लौटने को हुआ तो उसे याद आया कि उसकी जनता ने उसे अपने साथ एक भारतीय योगी को लाने के लिए कहा था। उसने योगीकी खोज़ प्रारंभ कर दी। उसे जंगल में पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे हुए एक योगी दिखायी दिये। सिकंदर, शाति से उनके सामने जाकर बैठ गया।
जब योगी ने अपनी आँखें खोलीं, तो सिकंदर ने पाया कि उनके इर्द-गिर्द एक दैवीय प्रकाश फैलगया है। उसने योगी से कहा -"क्या आप मेरे साथ यूनान चलना पसंद करेंगे ? मैं आपको सब कुछ दूँगा। मेरे महल का एक भाग आपके लिए आरक्षित रहेगा और आपकी सेवा में हर समय सेवक तैयार रहेंगे।'
योगी ने मुस्कराते हुए कहा -"मेरी कोई आवश्यकतायें नहीं हैं।मुझे किसी भी सेवक की आवश्यकता नहीं है और मेरी यूनान जाने की भी कोई इच्छा नहीं है।'
योगी द्वारा दो-टूक मना करने पर सिकंदर नाराज हो गया। वह क्रोधित हो उठा। अपनी तलवार निकालते हुए उसने योगी से कहा, "क्या तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े भी कर सकता हूँ ? मैं विश्वविजेता सिकंदर महान हूँ।'
योगी ने पुनः शांत भाव से मुस्कराते हुए कहा -"तुमने दो बातें कहीं हैं। पहली यह कि तुम मुझे कई टुकड़ों में काट सकते हो। नहीं, तुम कभी मुझे टुकड़ों में नहीं काट सकते। हाँ, तुम सिर्फ मेरे शरीर को काट सकते हो जिसे मैं सिर्फ एक आभूषण की तरह धारण किए हुए हूँ। मैं अमर और नश्वर हूँ। दूसरी बात तुमने यह कही है कि तुम विश्व-विजेता हो। मेरे विचार से तुम केवल मेरे गुलाम के गुलाम हो।'
अचंभित सिकंदर ने पूछा - "मैं कुछसमझा नहीं ?'
तब योगी ने कहा - "क्रोध मेरा गुलाम है। यह पूर्णतः मेरे नियंत्रण में है। लेकिन तुम क्रोध के गुलाम हो। कितनी आसानी से तुम क्रोधित हो जाते हो। इसलिये तुम मेरे गुलाम के गुलाम हुये।

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