Tuesday 23 April 2013

24.04.13


बहुत साल पहले की बात है एक लड़का था.
उम्र तकरीबन आठ-नौ साल रही होगी उस समय उसकी. एक शाम वह तेजी से लपका हुआ घर की ओर जा रहा था. दोनों हाथ उसने अपने सीने पर कस कर जकड़ रखे थे और हाथों में कोई चीज छिपा रखी थी. साँस उसकी तेज चल रही थी. घर पहुँच कर वह सीधा अपने दादा के पास पहुँचा |
बाबा, देखो आज मुझे क्या मिला ?
उसने दादा के हाथ में पर्स की शक्ल का एक छोटा सा बैग थमा दिया |
ये कहाँ मिला तुझे बेटा ?
खोल कर तो देखो बाबा, कितने सारे रुपये
हैं इसमें।
इतने सारे रुपये? कहाँ से लाया है तू इसे?
बाबा सड़क किनारे मिला. मेरे पैर से ठोकर
लगी तो मैंने उठाकर देखा. खोला तो रुपये
मिले. कोई नहीं था वहाँ मैं इसे उठा लाया.
तूने देखा वहाँ ढ़ंग से कोई खोज
नहीं रहा था इसे ?
नहीं बाबा वहाँ कोई भी नहीं था. आप और
बाबूजी उस दिन पैसों की बात कर रहे थे
अब तो हमारे बहुत सारे काम हो जायेंगे।
पर बेटा ये हमारा पैसा नहीं है.
पर बाबा मुझे तो ये सड़क पर मिला अब
तो ये मेरा ही हुआ.
दादा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर
आयीं.
नहीं बेटा, ये तुम्हारा पैसा नहीं है. उस
आदमी के बारे में सोचो जिसका इतना सारा पैसा खो गया है
कौन जाने कितने जरुरी काम के लिये वह इस पैसे को लेकर कहीं जा रहा हो. पैसा खो जाने से उसके सामने कितनी बड़ी परेशानी आ जायेगी. उस दुखी आदमी की आह भी तो इस पैसे से जुड़ी हुयी है। हो सकता है इस पैसे से हमारे कुछ काम हो जायें और कुछ आर्थिक परेशानियाँ इस समय कम हो जायें पर यह पैसा हमारा कमाया हुआ नहीं है, इस पैसे के साथ
किसी का दुख दर्द जुड़ा हो सकता है, इन
सबसे पैदा होने वाली परेशानियों की बात
तो हम जानते नहीं. जाने कैसी मुसीबतें इस पैसे के साथ आकर हमें घेर लें. उस आदमी का दुर्भाग्य था कि उसके हाथ से बैग गिर गया पर वह दुर्भाग्य तो इस पैसे से जुड़ा हुआ है ही. हमें तो इसे इसके असली मालिक के पास पहुँचाना ही होगा.
किस्सा तो लम्बा है.
संक्षेप में इतना बता दूँ
कि लड़के के पिता और दादा ने पैसा उसके
मालिक क पँहुचा दिया.
इस घटना के कुछ ही दिनों बाद की बात है.
लड़का अपने दादा जी के साथ टहल
रहा था.
चलते हुये लड़के को रास्ते में दस पैसे मिले, उसने झुककर सिक्का उठा लिया.
उसने दादा की तरफ देखकर पूछा,"बाबा,
इसका क्या करेंगे क्या इसे यहीं पड़ा रहने दें अब इसके मालिक को कैसे ढ़ूँढ़ेंगे ?”
दादा ने मुस्कुरा कर कहा, "हमारे देश
की मुद्रा है बेटा नोट छापने, सिक्के बनाने
में देश का पैसा खर्च होता है. इसका सम्मान करना हर देशवासी का कर्तव्य है. इसे रखलो.
कहीं दान-पात्र में जमा कर देंगे.
बाबा, इसके साथ इसके मालिक की आह
नहीं जुड़ी होगी ?
बेटा, इतने कम पैसे खोने वाले का दुख भी कम होगा. इससे उसका बहुत बड़ा काम सिद्ध नहीं होने वाला था. हाँ तुम्हारे लिये इसे भी रखना गलत है | इसे दान-पात्र में डाल दो, किसी अच्छे काम को करने में इसका उपयोग हो जायेगा |

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