Saturday, 4 August 2012

किशोर कुमार

8 Aug : आज किशोर कुमार की जयंती हैं.बहुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार ने न केवल अभिनय और निर्देशन की प्रतिभा से बल्कि अपनी गायकी से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाया। किशोर कुमार से सिने जगत की कोई भी विधा अछूती नहीं रही।

किशोर एक ऐसे संजीदा इंसान थे जिनकी उपस्थिति मात्र से माहौल खुशनुमा हो उठता था। अपने हंसते हंसाते रहने की प्रवृति को उन्होंने अपने अभिनय और गायकी मे भी खूब बारीकी से उकेरा। उनका यह अंदाज आज भी उनके चहेतों की यादों मे तरोताजा है।
मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में 4 अगस्त 1929 को एक मध्य वर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जब सबसे छोटे बालक ने जन्म लिया तो कौन जानता था कि आगे चलकर यह बालक देश और अपने परिवार का नाम रोशन करेगा। भाई बहनों में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था। के.एल.सहगल के गानों से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे। के.एल.सहगल से मिलने की चाह लिए किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र में मुंबई पहुंचे। लेकिन के.एल.सहगल से मिलने की उनकी मशा पूरी नही हो पायी। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे। अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप मे अपनी पहचान बनाए, लेकिन किशोर कुमार को अदाकारी की बजाए पा‌र्श्व गायक बनने की चाह थी हांलाकि उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नही ली। अशोक कुमार की बॉलीवुड में पहचान के कारण उन्हें बतौर अभिनेता काम मिल रहा था। अपनी इच्छा के विपरीत किशोर कुमार ने अभिनय करना जारी रखा जिसका मुख्य कारण यह था कि जिन फिल्मों में वह बतौर कलाकार काम किया करते थे उन्हें उस फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था। किशोर कुमार की उनकी आवाज के.एल.सहगल से काफी हद तक मेल खाती थी। बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष 1948 में बाम्बे टाकिज की फिल्म जिद्दी में सहगल के अंदाज मे ही अभिनेता देवानंद के लिए मरने की दुहाई क्यों मांगू गाने का मौका मिला। एक दिन उनके घर पर एस.डी.वर्मन अशोक कुमार से मिलने आए जहां उन्होंने किशोर कुमार को बाथरूम में गाते सुना तो उन्हें किशोर कुमार के गाने का अंदाज काफी अच्छा लगा। उन्होंने किशोर कुमार को बुलाकर कहा आप के.एल.सहगल की नकल न करे यह बड़े कलाकारों का काम नही है आप खुद अपना एक अलग अंदाज बनाए। इसके बाद किशोर कुमार ने गायकी का एक नया अंदाज बनाया जो उस समय के नामचीन गायक रफी, मुकेश और सहगल से काफी अलग था। वर्ष 1969 में निर्माता निर्देशक शक्ति सामत की फिल्म आराधना के जरिए किशोर गायकी के दुनिया के बेताज बादशाह बने। फिल्म के शुरूआती समय मे संगीतकार सचिन देव वर्मन यह चाहते थे कि फिल्म के गानों को किसी एक गायक को न देकर उसे किशोर कुमार और मोहम्मद रफी दोनों से गवाया जाए, लेकिन बाद में सचिन देव वर्मन की बीमारी के कारण फिल्म अराधना मे उनके पुत्र आर.डी.वर्मन ने संगीत दिया और बाद में मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू और रूप तेरा मस्ताना गाना किशोर कुमार ने गाया जो बेहद पसंद किया गया। रूप तेरा मस्ताना गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक अपना पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला और इसके साथ ही फिल्म आराधना के जरिए वह उन ऊंचाइयो पर पहुंच गए जिसके लिए वह अपने सपनो के शहर मुंबई आए थे। इसके बाद किशोर कुमार ने एक से बढ़कर एक गीत गाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
वर्ष 1951 में बतौर मुख्य अभिनेता उन्होने फिल्म आन्दोलन से अपने कै रियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म लड़की बतौर अभिनेता उनके कैरियर की पहली हिट फिल्म थी। इसके बाद बतौर अभिनेता भी किशोर कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। उनकी अभिनीत कुछ फिल्मों में नौकरी, बाप रे बाप, चलती का नाम गाड़ी, दिल्ली का ठग, बेवकूफ, कठपुतली, झुमरू, बाम्बे का चोर, मनमौजी, हाफ टिकट, बावरे नैन, मिस्टर एक्स इन बाम्बे, दूर गगन की छांव मे, प्यार किए जा, पड़ोसन, दो दूनी चार जैसी कई सुपरहिट फिल्में जो आज भी किशोर कुमार के जीवंत अभिनय के लिए याद की जाती है।
किशोर कुमार को उनके दिए गए सम्मान की चर्चा की जाए तो उन्हें बतौर गायक 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुका है। सबसे पहले उन्हें 1969 में अराधना फिल्म के रूप तेरा मस्ताना गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद 1975 में फिल्म अमानुष के गाने दिल ऐसा किसी ने, 1978 में डॉन के गाने खइके पान बनारस वाला, 1980 में हजार राहे जो मुड़के देखी फिल्म थोड़ी सी बेवफाई, 1082 में फिल्म नमक हलाल के पग घूंघरू बांध, 1983 में फिल्म अगर तुम न होते के अगर तुम न होते,1984 में फिल्म शराबी के मंजिलें अपनी जगह है और वर्ष 1985 में फिल्म सागर के सागर किनारे दिल गाने के लिए भी किशोर कुमार सर्वश्रेष्ठ गायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।


किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कैरियर में 800 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया। हिन्दी फिल्मो के अलावा उन्होंने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी और उडि़या फिल्मों के लिए भी उन्होंने अपनी दिलकश आवाज के जरिए श्रोताओ को भाव विभोर किया। यूं तो किशोर कुमार ने शशि कपूर, धमेन्द्र, विनोद खन्ना, संजीव कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, रणधीर कपूर से लेकर ऋषि कपूर तक के लिए गाने गाए। लेकिन देवानंद, अमिताभ बच्चन, और राजेश खन्ना पर किशोर कुमार की आवाज खूब जमती थी, साथ हीं ये तीनो सुपरस्टार भी अपनी फिल्मों के लिए किशोर कुमार द्वारा गाए जाने की मांग किया करते थे।
1987 में किशोर कुमार ने यह निर्णय लिया कि वह फिल्मो से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएं, लेकिन 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और करोड़ों प्रशंसकों को कभी अलविदा न कहने वाला खुद अलविदा हो गया। बहुगुणी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार की कमी उनके प्रशंसकों को हमेशा खलेगी।

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