Monday 23 July 2012

नागपंचमी


इस वर्ष 23 जुलाई का दिन खास रहेगा। इस दिन नागपंचमी और कालसर्प का योग एक साथ बन रहा है। ज्योतिष के अनुसार यह योग 93 साल बाद बन रहा है।

वैसे तो यह कभी-कभी कुछ सालों में बन जाता है। जैसे 2008 में बना था, लेकिन राहु-केतु के साथ कालसर्प योग और नागपंचमी का संयोग 93 साल बाद बना है। इससे पहले इस तरह का योग 10 जुलाई 1919 को बना था, लेकिन तब भी यह योग शनिवार को नहीं बना। राहु का मुख्य (अधी) देवता काल है और उप देवता (प्रत्यागी) सर्प है। इस दिन सोमवार भी है तो इन योगों से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।


पूरे भारत भर में नाग पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है। श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन 'नागपंचमी का पर्व' परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष माहात्म्य ह
ै।

इस दिन सांप मारना मना है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर खिलाई व दूध पिलाया जाता है। कहीं-कहीं सावन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नागपंचमी मनाई जाती है। खास तौर पर इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है।

आइए आपको कालसर्प शांति के लिए अपनाए जाने वाले कुछ सामान्य उपाय बताते हैं-

आप घर के मुख्य द्वार पर चांदी का पत्तर अथवा स्वास्तिक लगा सकते हैं।
इसके अलावा एक पानी वाला नारियल अपने ऊपर से घुमाकर जल में प्रवाहित कर दें। अगर आपके घर में मंदिर है तो उसमें मोर का पंख रखें।

साथ ही नाग गायत्री मंत्र -
'ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥'

इस मंत्र का 3,7,5 अथवा ग्यारह माला जप करें__________




नागपंचमी मनाते हुए इस देश को बरसों हो गये पर आज भी नाग और सांप के नाम पर इतने भ्रम फैले हैं कि देखकर आश्चर्य होता है_______

जो भ्रम इस देश में फैले हैं वह यह है कि

-सारे सांप और नाग जहरीले होते हैं।
-सांप और नाग दूध पीते हैं।
-नाग बीन की आवाज पर नाचता है।



इनका सच यह है कि -


-नब्बे फीसदी से अधिक सांप और नाग जहरीले नहीं होते।

-सांप और नाग दूध पी नहीं सकते क्योंकि उनके मुख में अंदर चीज ले जाने की क्षमता नहीं होती। वह निगलते हैं इसलिये चूहे या मैंढक को सीधे मुंह में लेकर पेट में निगल जाते हैं। ?

-सपेरा बीन बजाते हुए स्वयं भी नृत्य करता है जिसे देखकर उसका पालतू सांप या नाग नृत्य करता है। सांप या नाग को कान नहीं होते वह शरीर की धमनियों में जमीन पर होने वाले स्वर की अनुभूति कर अपना मार्ग चलता है


 

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