Sunday 21 July 2013

22.07.13


एक निसंतान बादशाह ने सात मंजिला महल बनवा कर अपनी समस्त धन-दौलत उसकी प्रत्येक मंजिल में फैला दी। पहली मंजिल में कौडिय़ा, दूसरी मंजिल में पैसे,तीसरी पर रूपए,चौथी पर मोहरें,पांचवी पर मोती,छठी पर हिरे-जवाराहत और सातवीं पर स्वंय बैठ गया। शहर में एलान करवा दिया जिसको जो चाहिए वे आए और ले जाए लेकिन जो एक बार आएगा वे दोबारा नहीं आएगा।

शहर के लोगों की भीड़ लग गई, बहुत से लोग तो पैसों की गठरियां बांधकर ले गए। जो उनसे ज्यादा समझदार थे, वे रूपयों की गठरियां बांधकर ले गए। जो ओर आगे गए वे चांदी ले गए, उनसे आगे बढऩे वाले मोहरें, मोती, हीरे-जवाराहत लेकर चले गए। एक व्यक्ति ने सोचा, मैं सबसे ऊपर पहुंचूंगा और देखूगां,आखिर वहां है क्या? वह जब ऊपर गया तो देखता है वहां बादशाह खुद आपने सिंहासन पर विराजमान था। उसने उस व्यक्ति को देखकर खुली बांहों से उसका स्वागत किया और उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया।
हर जीव के भाग्य में यह ज्ञान नहीं होता कि जो कर्म हम इस जन्म में करते हैं उसी का फल हमें अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। बड़े खेद की बात है अपने जीवन को व्यर्थ के कार्यों में उलझा लेते हैं। जो बच्चों में उलझे रहते हैं, वे अपना संपूर्ण जीवन पैसे इकट्ठे करने में व्यतित करते है। जो लोग थोड़े समझदार है वे रूपए कमा लेते हैं। जो लोग नित्य नियम, पूजा-पाठ आदि धर्म-कर्म के कार्य करते हैं वे चांदी कमा लेते हैं। जिन्होंने नौ दरवाजे खोल कर अंदर परदा खोला उन्होंने मोहरें ले ली। जो परम ब्रहमा में पहुंचे, उन्होंने मोती ले लिए। जिसने सोचा मुझे धुर तक पंहुचना हैं, वह आगे गया तो आगे बादशाह अकालपुरूष को बैठे देखा। अकालपुरूष ने उसको अपने साथ मिला लिया।

विचार करें, आपके अंदर करोड़ों खण्ड-ब्रहामण्ड है, करोड़ों खुशियां हैं, सुख और शांति है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अकालपुरूष का वास है, मानव चौले का मकसद उस तक पंहुचना हैं। हमें चाहिए कि जो कुछ बन सके, इसी जन्म में कर लें।


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