Thursday 31 January 2013

01.02.13


एक बार किसी विद्वान् से एक बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या इश्वर सच में होता है ? उस विद्वान् ने कहा कि माई आप क्या करती हो ? उसने कहा कि मै तो दिन भर घर में अपना चरखा कातती हूँ और घर के बाकि काम करती हूँ , और मेरे पति खेती करते हैं . उस विद्वान ने कहा कि माई क्या ऐसा भी कभी हुआ है कि आप का चरखा बिना आपके चलाये चला हो , या कि बिना किसी के चलाये चला हो ? उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है कि वो बिना किसी के चलाये चल जाये? ऐसा तो संभव ही नहीं है. विद्वान् ने फिर कहा कि माई अगर आपका चरखा बिना किसी के चलाये नहीं चल सकता तो फिर ये पूरी सृष्टि किसी के बिना चलाये कैसे चल सकती है ? और जो इस पूरी सृष्टि को चला रहा है वही इसका बनाने वाला भी है और उसे ही इश्वर कहते हैं.

उसी तरह किसी और ने उसी विद्वान् से पूछा कि आदमी मजबूर है या सक्षम? उन्होंने कहा कि अपना एक पैर उठाओ, उसने उठा दिया, उन्होंने कहा कि अब अपना दूसरा पैर भी उठाओ, उस व्यक्ति ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है? मै एक साथ दोनों पैर कैसे उठा सकता हूँ? तब उस विद्वान् ने कहा कि इंसान ऐसा ही है, ना पूरी तरह से मजबूर और ना ही पूरी तरह से सक्षम . उसे इश्वर ने एक हद तक सक्षम बनाया है और उसे पूरी तरह से छूट भी नहीं है . उसको इश्वर ने सही गलत को समझने कि शक्ति दी है और अब उसपर निर्भर करता है कि वो सही और गलत को समझ कर अपने कर्म को करे.

Wednesday 30 January 2013

31.01.13


एक दिन एक किसान का गधा सूखे कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा ,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े
रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

Tuesday 29 January 2013

30.01.2013


एक बार किसी विद्वान् से एक बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या इश्वर सच में होता है ? उस विद्वान् ने कहा कि माई आप क्या करती हो ? उसने कहा कि मै तो दिन भर घर में अपना चरखा कातती हूँ और घर के बाकि काम करती हूँ , और मेरे पति खेती करते हैं . उस विद्वान ने कहा कि माई क्या ऐसा भी कभी हुआ है कि आप का चरखा बिना आपके चलाये चला हो , या कि बिना किसी के चलाये चला हो ? उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है कि वो बिना किसी के चलाये चल जाये? ऐसा तो संभव ही नहीं है. विद्वान् ने फिर कहा कि माई अगर आपका चरखा बिना किसी के चलाये नहीं चल सकता तो फिर ये पूरी सृष्टि किसी के बिना चलाये कैसे चल सकती है ? और जो इस पूरी सृष्टि को चला रहा है वही इसका बनाने वाला भी है और उसे ही इश्वर कहते हैं.

उसी तरह किसी और ने उसी विद्वान् से पूछा कि आदमी मजबूर है या सक्षम? उन्होंने कहा कि अपना एक पैर उठाओ, उसने उठा दिया, उन्होंने कहा कि अब अपना दूसरा पैर भी उठाओ, उस व्यक्ति ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है? मै एक साथ दोनों पैर कैसे उठा सकता हूँ? तब उस विद्वान् ने कहा कि इंसान ऐसा ही है, ना पूरी तरह से मजबूर और ना ही पूरी तरह से सक्षम . उसे इश्वर ने एक हद तक सक्षम बनाया है और उसे पूरी तरह से छूट भी नहीं है . उसको इश्वर ने सही गलत को समझने कि शक्ति दी है और अब उसपर निर्भर करता है कि वो सही और गलत को समझ कर अपने कर्म को करे.

30.01.13


Raghupati Raghav raja Ram, patit pavan Sita Ram
Sita Ram Sita Ram,Bhaj pyare tu Sitaram
Ishwar Allah tero naam, Saab ko Sanmti de Bhagavan
A big tribute to d father of d nation.. Mahatma Gandhi

Monday 28 January 2013

29.01.13


एक बच्चा अपनी मां के साथ टॉफियों की एक
दुकान पर पहुंचा। वहां अनेक जारों में अनेक तरह
की टॉफियां सजी हुई थीं। बच्चे की आंखें उन
टॉफियों को देखकर ललचा रही थीं। दुकानदार
को स्नेह उमड़ आया, उसने कहा, बेटे, तुम्हें
जो भी टॉफी पसंद आ रही हो, वह बेझिझक ले
सकते हो।
बच्चे ने कहा, नहीं। दुकानदार ने बच्चे
को हैरानी से देखा और फिर समझाते हुए कहा, मैं
तुमसे पैसे नहीं लूंगा। अब तो तुम अपनी पसंद
की टॉफी ले सकते हो।
दुकान पर बच्चे के साथ उसकी मां भी थी। उसने
कहा, ठीक है बेटे, अंकल कह रहे हैं, तो ले लो।
लेकिन बच्चे ने फिर भी मना कर दिया। मां और
दुकानदार को वजह समझ में नहीं आई। फिर
दुकानदार को एक नया उपाय सूझा, उसने स्वयं
जार में हाथ डाला और बच्चे की तरफ
मुट्ठी बढ़ाई। बच्चे ने झट से अपने स्कूल के
बस्ते में सारी की सारी टॉफियां डलवा लीं।
दुकान से बाहर आने पर मां ने बच्चे से कहा, बड़ा अजीब
लड़का है तू। जब तुझे टॉफियां लेने
को कहा तब तो मना कर दिया और जब दुकानदार
अंकल ने टॉफियां दीं तो मजे से ले लीं। बच्चे ने
मां को समझाया, मेरी मुट्ठी बहुत ही छोटी है,
दुकानदार की मुट्ठी बड़ी है। मैं लेता तो कम
मिलतीं, उसने दीं तो बड़ी मुट्ठी भर कर दीं।

यही हाल आज के मनुष्य का है। हमारी सोच
बड़ी छोटी है; और प्रभु की सोच बहुत बड़ी है।
आज से 25 वर्ष पहले यदि आपको अपनी इच्छाओं
की सूची बनाने को कहा जाता कि आपकी जिन-जिन
वस्तुओं की इच्छा है उसे लिखो। तो शायद उस समय
जो लिखते, वह आज के संदर्भ में बहुत ही तुच्छ
होता।
आज आपको प्रभु ने या प्रकृति ने इतना कुछ
दिया है, जो आपकी सोच से कहीं बड़ा है। अपने
आसपास पड़ी वस्तुओं की तरफ नजर घुमाकर
देखें और सोचें, जिन वस्तुओं को आप
सहजता से भोग रहे हैं, वे कई साल पहले
आपकी सोच में भी नहीं थीं। इसलिए हमारी सोच
बहुत छोटी है तथा प्रभु की सोच हमारे लिए बहुत
व्यापक है

Sunday 27 January 2013

28.01.13


घमंडी कौवा

हंसों को उपेक्षा भरी नज़रों से देखा “तुम लोग कितनी अच्छी उड़ान भर लेते हो !” कौवा मज़ाक के लहजे में बोला, “तुम लोग और कर ही क्या सकते हो बस अपना पंख फड़फड़ा कर उड़ान भर सकते हो !!! क्या तुम मेरी तरह फूर्ती से उड़ सकते हो ??? मेरी तरह हवा में कलाबाजियां दिखा सकते हो ???…नहीं , तुम तो ठीक से जानते भी नहीं कि उड़ना किसे कहते हैं !”

कौवे की बात सुनकर एक वृद्ध हंस बोला ,” ये अच्छी बात है कि तुम ये सब कर लेते हो , लेकिन तुम्हे इस बात पर घमंड नहीं करना चाहिए .”

” मैं घमंड – वमंड नहीं जानता , अगर तुम में से कोई भी मेरा मुकाबला कर सकत है तो सामने आये और मुझे हरा कर दिखाए .”

एक युवा नर हंस ने कौवे की चुनौती स्वीकार कर ली . यह तय हुआ कि प्रतियोगिता दो चरणों में होगी , पहले चरण में कौवा अपने करतब दिखायेगा और हंस को भी वही करके दिखाना होगा और दूसरे चरण में कौवे को हंस के करतब दोहराने होंगे .

प्रतियोगिता शुरू हुई , पहले चरण की शुरुआत कौवे ने की और एक से बढ़कर एक कलाबजिया दिखाने लगा , वह कभी गोल-गोल चक्कर खाता तो कभी ज़मीन छूते हुए ऊपर उड़ जाता . वहीँ हंस उसके मुकाबले कुछ ख़ास नहीं कर पाया . कौवा अब और भी बढ़-चढ़ कर बोलने लगा ,” मैं तो पहले ही कह रहा था कि तुम लोगों को और कुछ भी नहीं आता …ही ही ही …”

फिर दूसरा चरण शुरू हुआ , हंस ने उड़ान भरी और समुद्र की तरफ उड़ने लगा . कौवा भी उसके पीछे हो लिया ,” ये कौन सा कमाल दिखा रहे हो , भला सीधे -सीधे उड़ना भी कोई चुनौती है ??? सच में तुम मूर्ख हो !”, कौवा बोला .

पर हंस ने कोई ज़वाब नही दिया और चुप-चाप उड़ता रहा, धीरे-धीरे वे ज़मीन से बहुत दूर होते गए और कौवे का बडबडाना भी कम होता गया , और कुछ देर में बिलकुल ही बंद हो गया . कौवा अब बुरी तरह थक चुका था , इतना कि अब उसके लिए खुद को हवा में रखना भी मुश्किल हो रहा था और वो बार -बार पानी के करीब पहुच जा रहा था . हंस कौवे की स्थिति समझ रहा था , पर उसने अनजान बनते हुए कहा ,” तुम बार-बार पानी क्यों छू रहे हो , क्या ये भी तुम्हारा कोई करतब है ?”"नहीं ” कौवा बोला ,” मुझे माफ़ कर दो , मैं अब बिलकुल थक चूका हूँ और यदि तुमने मेरी मदद नहीं की तो मैं यहीं दम तोड़ दूंगा ….मुझे बचा लो मैं कभी घमंड नहीं दिखाऊंगा …”

हंस को कौवे पर दया आ गयी, उसने सोचा कि चलो कौवा सबक तो सीख ही चुका है , अब उसकी जान बचाना ही ठीक होगा ,और वह कौवे को अपने पीठ पर बैठा कर वापस तट की और उड़ चला .

दोस्तों,हमे इस बात को समझना चाहिए कि भले हमें पता ना हो पर हर किसी में कुछ न कुछ quality होती है जो उसे विशेष बनाती है. और भले ही हमारे अन्दर हज़ारों अच्छाईयां हों , पर यदि हम उसपे घमंड करते हैं तो देर-सबेर हमें भी कौवे की तरह शर्मिंदा होना पड़ता है। एक पुरानी कहावत भी है ,”घमंडी का सर हमेशा नीचा होता है।” , इसलिए ध्यान रखिये कि कहीं जाने -अनजाने आप भी कौवे वाली गलती तो नहीं कर रहे ?

Saturday 26 January 2013

27.01.13


एक बार धर्मशास्त्रों की शिक्षा देने वाला एक विद्वान ईसा मसीह के पास आया। उसने
ईसा मसीह से पूछा- अमरता की प्राप्ति के
लिए क्या करना होगा? ईसा मसीह बोले- इस
पर धर्मशास्त्र क्या कहते हैं? व्यक्ति बोला- वे
कहते हैं कि हमें ईश्वर को संपूर्ण हृदय से प्रेम
करना चाहिए। अपने पड़ोसी और इष्ट मित्रों को भी ईश्वर से जोड़ देना चाहिए। ईसा ने कहा- बिल्कुल ठीक। तुम इसी पर अमल
करते रहे। विद्वान ने तब जिज्ञासा व्यक्त
की- किंतु मेरा पड़ोसी कौन है? ईसा मसीह
बोले-सुनो, यरूशलम का एक व्यक्ति कहीं दूर
यात्रा पर जा रहा था। रास्ते में उसे कुछ चोर
मिल गए। उन्होंने उसे मारा पीटा और अधमरा करके चले गए। संयोगवश उधर से एक
पादरी आया। उसने उस व्यक्ति को वहां पड़े
देखा पर चला गया। फिर एक छोटा पादरी आया और वह भी उसे
देखकर चलता बना। कुछ देर बाद एक
यात्री वहां से निकला। उसने घायल
की मरहमपट्टी की। उसे कंधे पर उठाकर एक
धर्मशाला पहुंचाया और उसकी सेवा की। दूसरे
दिन जब वह जाने लगा तो धर्मशाला वालों से उस व्यक्ति का समुचित ध्यान रखने और
उसके उपचार का व्यय स्वयं वहन करने की बात
कहकर चला गया। अब कहो इन तीनों में से उस घायल
का सच्चा पड़ोसी कौन हुआ? विद्वान बोला-
वह अपरिचित यात्री जिसने उस पर
दया दिखाई। तब ईसा ने कहा- तो बस तुम
भी ऐसा ही आचरण करो, वैसे ही बनो। सभी के
प्रति प्रेम, दया व सहयोग भाव रखना मानवता की पहचान है और ऐसा करने
वाला सच्चे अर्थों में अमरता का पात्र बनता है।

Friday 25 January 2013

26.01.13


एक प्रेरणात्मक कहानी:
एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा।
आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और
चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ
गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह
पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो,
मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?'
शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।
कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल
उठे-'महाराज आपका तो एक भी दाँत शेष
नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।'
साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'
सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।'
इस पर साधू ने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे
जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह
चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ
बची हुई है। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण
है, कभी सोचा?'
शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं।
महाराज, आप ही बतलाइए।'
उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया-
'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में
माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है
परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर
भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।
दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'
हरे कृष्ण

Happy Republic Day. 26.01.13


“India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend, and the great grand mother of tradition. Our most valuable and most artistic materials in the history of man are treasured up in India only!”.13

Thursday 24 January 2013

25.01.13


बुढ़ापा आ गया है, इन्द्रियों की शक्ति जाती रही, सब तरह से दूसरो के मुहँ की ओर ताकना पड़ता है , परन्तु तृष्णा नहीं मिटती | ‘कुछ और जी लूँ, बच्चो के लिए कुछ और कर जाऊँ, दवा लेकर जरा ताजा हो जाऊँ तो संसार का कुछ सुख और भोग लूँ | मरना तो है ही, परन्तु हाथ से बच्चों का विवाह हो जाये तो अच्छी बात है, दूकान का काम बच्चे ठीक से संभाल ले, इतना सा उन्हें और ज्ञान हो जाये’, बहुत से वृद्ध पुरुष ऐसी बातें करते देखे जाते है | मेरे एक परिचित वृद्ध सज्जन जो लगभग करोड़पति माने जाते थे और जिनके जवान पौत्र के भी संतान मौजूद है, एक बार बहुत बीमार पड़े | बचने की आशा नहीं थी | बड़ी दौड़-धूप की गयी, भाग्यवश उस समय उनके प्राण बच गए | मैं उनसे मिलने गया, मैंने शरीर का हाल पूछ कर उनसे कहा कि ‘अब आपको संसार की चिन्ता छोड़ कर भगवद्भजन में मन लगाना चाहिये | इस बीमारी में आपके मरने की नौबत आ गयी थी, भगवत कृपा से आप बच गए है, अब तो जितने दिन आपका शरीर रहे, आपको केवल भगवान का भजन करना चाहिये |’ उन्होंने कहा ‘आपका कहना तो ठीक है, परन्तु लड़का इतना होशियार नहीं है , पाँच साल मैं अगर और जिन्दा रहूँ तो घर को कुछ और ठीक कर जाऊँ, लड़का भी कुछ और समझने लगे | मरना तो है ही | क्या करू, भजन तो होता नहीं |’ मैंने फिर कहा कि ‘अब आपको घर की क्या ठीक करना है | परमात्मा की कृपा से आपके घर में काफी धन है | आपके लड़के भी बूढ़े होने चले है | मान लीजिये, अभी आप मर जाते तो पीछे से घर को कौन ठीक करता ?’ उन्होंने कहा ‘यह तो मैं भी जानता हूँ, परन्तु तृष्णा नहीं छूटती |’

इस दृष्टान्त से पता चलता है कि तृष्णा किस तरह से मनुष्य को घेरे रहती है | ज्यों-ज्यों कामना की पूर्ति होती है, त्यों-ही-त्यों तृष्णा की जलन बढ़ती चली जाती है |


‘जिसके पास कुछ नहीं होता, वह चाहता है कि मेरे पास सौ रूपये हो जाये, सौ होने पर हज़ार के लिये इच्छा होती है, हज़ार से लाख, लाख से राजा का पद, राजा से चक्रवर्ती-पद, चक्रवर्ती होने पर इंद्र का पद, इंद्र होने पर ब्रह्मा का पद पाने की इच्छा होती है | इस तरह तृष्णा उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है, इसमें कोई सीमा नहीं बाधी जा सकती |’


श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण.

Wednesday 23 January 2013

मोह का बंधन !..24.01.13


मोह का बंधन !
ऊंटों का काफिला कहीं जा रहा था, राह में रात हो गई,ऊंटों को जब बांधा
गया तो एक रस्सी कम निकली. आशंका थी कि ऊंट को बांधा नहीं गया
तो रात कहीं चला न जाये हर उपाय किये पर बात न बनी
तब दूर साधू कि कुटिया दिखी,काफिले का मालिक साधू के पास गया
और समस्या बताई,साधू ने कहा रस्सी तो मेरे पास भी नहीं है पर उपाय
बताता हूँ जैसे सारे ऊटों को बांधा है, वैसे ही आखरी ऊंट को बांध दो
बिना रस्सी के, काफिले का मालिक ने वैसे ही किया, हाथ में रस्सी न थी
पर गले में हाथ घुमा के गांठ बांध दी फिर खूंटे में रस्सी बंधने का
नाटक किया. ऊंट बैठ गया..!
सुबह काफिले को रवाना होना था, सारे ऊंट तैय्यार हो गये पर ये ऊंट
बैठा रहा. हर यत्न किए..काफिले का मालिक साधू के पास पहुंचा और
समस्या बताई..साधू ने पूछा तुमने ऊंट को खोला..काफिले वाला बोला
मैंने उसे बाँधा ही कहाँ है..साधू ने कहा रात जैसे बांधा था वैसे ही खोल
दो,काफिले वाले ने ऊंट को खोलने का नाटक किया.. ऊंट उठ के खड़ा हो
गया..
क्या हम मोह की ऐसी ही डोर से नहीं बंधे हैं...

Tuesday 22 January 2013

अक्षत...23.01.13


चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्ष...त का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। आगे दिए फोटो में जानिए चावल से जुड़ी खास बातें...

शास्त्रों के अनुसार पूजन कर्म में चावल का काफी महत्व रहता है। देवी-देवता को तो इसे समर्पित किया जाता है साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है तब भी अक्षत का उपयोग किया जाता है। भोजन में भी चावल का उपयोग किया जाता है।

कुंकुम, गुलाल, अबीर और हल्दी की तरह चावल में कोई विशिष्टï सुगंध नहीं होती और न ही इसका विशेष रंग होता है। अत: मन में यह जिज्ञासा उठती है कि पूजन में अक्षत का उपयोग क्यों किया जाता है? आगे के फोटो में जानिए इस परंपरा से जुड़ी मान्यताएं...

दरअसल अक्षत पूर्णता का प्रतीक है। अर्थात यह टूटा हुआ नहीं होता है। अत: पूजा में अक्षत चढ़ाने का अभिप्राय यह है कि हमारा पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो। अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव रहता है कि जो कुछ भी अन्न हमें प्राप्त होता है वह भगवान की कृपा से ही मिलता है। अत: हमारे अंदर यह भावना भी बनी रहे। इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। अत: हमारे प्रत्येक कार्य की पूर्णता ऐसी हो कि उसका फल हमें शांति प्रदान करे। इसीलिए पूजन में अक्षत एक अनिवार्य सामग्री है ताकि ये भाव हमारे अंदर हमेशा बने रहें।

भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों। अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए। चावल साफ एवं स्वच्छ होने चाहिए। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं और भक्तों अखंडित चावल की तरह अखंडित धन, मान-सम्मान प्रदान करते हैं। श्रद्धालुओं को जीवनभर धन-धान्य की कमी नहीं होती हैं।

पूजन के समय अक्षत इस मंत्र के साथ भगवान को समर्पित किए जाते हैं-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठï कुङ्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे पूजा! कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित कर रहा हंू, कृपया आप इसे स्वीकार करें। इसका यही भाव है कि अन्न में अक्षत यानि चावल को श्रेष्ठ माना जाता है। इसे देवान्न भी कहा गया है। अर्थात देवताओं का प्रिय अन्न है चावल। अत: इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको अर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण कर आप भक्त की भावना को स्वीकार करें।

Monday 21 January 2013

22.01.13


एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।
कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'
सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'
शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'
उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।
दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो...

Sunday 20 January 2013

21.01.13


एक बार स्वामी रामतीर्थ कॉलेज से घर आ रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक व्यक्ति को सेब बेचते हुए पाया।
लाल-लाल सेब देखकर उनका मन चंचल हो उठा और वह
सेब वाले के पास पहुंचे और उससे सेबों का दाम पूछने
लगे।
तभी उन्होंने सोचा, 'यह जीभ क्यों पीछे पड़ी है?' वह
दाम पूछकर आगे बढ़ गए। कुछ आगे बढ़कर उन्होंने सोचा कि जब दाम पूछ ही लिए तो उन्हें खरीदने में
क्या हर्ज है। इसी उहापोह में कभी वे आगे बढ़ते और
कभी पीछे जाते। सेब वाला उन्हें देख रहा था।
वह बोला, 'साहब, सेब लेने हैं तो ले लीजिए, इस तरह
बार-बार क्यों आगे पीछे जा रहे हैं?' आखिरकार
उन्होंने कुछ सेब खरीद लिए और घर चल पड़े। घर पहुंचने पर उन्होंने सेबों को एक ओर रखा। लेकिन उनकी नजर
लगातार उन पर पड़ी हुई थी। उन्होंने चाकू लेकर सेब
काटा। सेब काटते ही उनका मन उसे खाने के लिए
लालायित होने लगा, लेकिन वह स्वयं से बोले,
'किसी भी हाल में चंचल मन को इस सेब को खाने से
रोकना है। आखिर मैं भी देखता हूं कि जीभ का स्वाद जीतता है या मेरा मन नियंत्रित होकर
मुझे जिताता है। सेब को [ जारी है ] उन्होंने अपनी नजरों के सामने रखा और स्वयं पर
नियंत्रण रखकर उसे खाने से रोकने लगे। काफी समय
बीत गया। धीरे-धीरे कटा हुआ सेब पीला पड़कर
काला होने लगा लेकिन स्वामी जी ने उसे हाथ तक
नहीं लगाया। फिर वह प्रसन्न होकर स्वयं से बोले,
'आखिर मैंने अपने चंचल मन को नियंत्रित कर ही लिया।' फिर वह दूसरे काम में लग गए।

20.01.13

एक बार एक चिड़िया थी सागर किनारे एक पेड़ पर रहती थी , उसके दो छोटे -छोटे बच्चे थे , चिड़िया दाना लेने जाती और आकर अपने बच्चो के मुंह मे डालती बस ऐसे ही मजे से दिनगुजर रहे थे । एक दिन चिड़िया दाना लेने गई हुई थी, पीछे से सागर को शरारत सुझी उसने अपने लहरे बढाकर , दोनो बच्चो को अपनेमें समा लिया । चिड़िया वापस आयी तब अपने घोसले का पास लहरो के निशान देख समझ गई की उसके बच्चे समुद्र निगल गया है । चिड़िया ने सा
गर से अपने बच्चे वापस मांगे सागर साफ मुकर गया , बोला मेरे पास नही है कोई और ले गया होगा । एक छोटी सी चिड़िया अथाह सागर का क्या बिगाड़ लेती पर वो हार मानने वाली नही थी , उसने तय कर लिया की वो अपने बच्चे सागर से ले कर मानेगी । चिड़िया सागर किनारे बैठकर अपनी चोंच मे सागर का पानी भरकर उसे बाहर मिट्टी मे डालने लगी और प्रण कर लिया की जब तक सागर उसके बच्चे नही दे देता तब तक वो सागर को इसी तरह खाली करेगी । चिड़िया के इस करतब पर सबको हसते थेकि एक अदनी सी चिड़िया भला कैसे सागर का मुकाबला कर सकती है । पर चिड़िया ने भी ठान ली थी , जब प्रकृति मां ने चिड़िया का साहस और प्रण देखा तो उसने सागर का पानी चिड़िया के किये प्रयास के अनुपात मे कम करना शुरु कर दिया । धीरे -धीरे समुद्र का पानी कम होने लगा तो सागर को भय हुआ , उसने चिड़िया से माफी मांगी और उसके बच्चे वापस कर दिये ।

शिक्षा :- अपने को कम ना आंको , जुल्म करने वाला कितना ही ताकतवर क्यो ना हो जीत सच्चाई की होती है , लगातार परिश्रम और अडिग प्रण से ही सफलता मिलती है । जिस तरह से चिड़िया की लगनदेखकर प्रकृति मां ने उसकी सहायता की उसी तरह आप भी अपने कार्य में लगन से जुट जाइये सहायता ईश्वर करेगा इस सोशल मीडिया के अथाह सागर में मेरा प्रयास उस चिड़िया की तरह ही है ,लेकिन विश्वास है एकदिन सफलता जरुर मिलेगी

Lake Hillier: The Pink Lake in Australia..20.01.13

Lake Hillier: The Pink Lake in Australia

Lake Hillier is a pink-coloured lake on Middle Island in Western Australia. Middle island is the largest of the islands and islets that make up the Recherche Archipelago, a group of about 105 islands and over 1,200 ‘obstacles to shipping’.

The tiny lake only spans about 600 meters wide but its rose pink colour in unmistakable. However, the reason why it’s pink remains a mystery.

The shallow briny lake is rimmed with white salt and encircled

Saturday 19 January 2013

Eye care tips ...19.01.13


Eye care tips

1. Clean your eyes with
pure cold water regularly.
This is one of the best
ways to keep eyes healthy
and disease free.

2. Avoid looking directly at
the sun, artificial light or
shining objects. Direct rays
of bright light can damage
the retina.

3. Roll your eyes up and
down and then side to
side. Now move your eyes
in a circular motion.
Repeat this exercise five to
ten times to relax your
eyes.

4. Maintain a good
distance from the
computer screen – sit
approximately 22 to 28
inches away from it.
Sitting too close or too far
may increase the strain on
eyes.

भगवान बुद्ध...19.01.13


एक दिन एक शिष्य भगवान बुद्ध के पास गया| प्रणाम-निवेदन करके बोला - "भंते, मैं देश में घूमना चाहता हूं| आपके आशीर्वाद का अभिलाषी हूं|"

बुद्ध ने कहा - "देश में अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के लोग हैं| बुरे लोग तुम्हारी निंदा करेंगे और गालियां देंगे, तुम्हें कैसा लगेगा?"

शिष्य ने उत्तर दिया - "मैं समझूंगा कि वे बड़े भले हैं क्योंकि उन्होंने मुझ पर धूल नहीं फेंकी|"

बुद्ध ने कहा - "यदि कुछ लोगों ने धूल भी फेंक दी और थप्पड़ भी मार दिया तो?"

शिष्य ने कहा - "मैं उन्हें भी भला ही मानूंगा, क्योंकि उन्होंने थप्पड़ ही तो मारा, डण्डा तो नहीं मारा|"

"यदि कोई डण्डा मार दे तो?"

"तो भी मैं उसे बुरा नहीं मानूंगा, क्योंकि उसने हथियारों से तो नहीं मारा|" शिष्य ने जवाब दिया|

बुद्ध ने आगे कहा - "देश में डाकू मिल सकते हैं, जो हथियारों से तुम्हारी खबर लें|"

"तो क्या हुआ|" शिष्य ने कहा - "मैं उन्हें दयालु ही समझूंगा, क्योंकि उन्होंने मुझे जीवित छोड़ दिया|"

बुद्ध ने कहा - "वे तुम्हें मार भी तो सकते हैं|"

शिष्य बोला - "इसके लिए मैं उनका अहसास ही मानूंगा| यह संसार दुख स्वरूप है| बहुत दिन जीने से दुख-ही-दुख देखना पड़ता है, पर आत्महत्या करना महापाप है| यदि कोई दूसरा मार दे तो उसका उपकार ही होगा|"

शिष्य ने उत्तर सुनकर भगवान् बुद्ध को बड़ा हर्ष हुआ| उन्होंने कहा - "सच्चा साधु वही है, जो किसी भी अवस्था में किसी को बुरा नहीं मानता| जो दूसरों की बुराई नहीं देखता, दूसरों को अच्छा ही समझता है, वही परिव्राजक होने के योग्य है| तुम जाओ और देश में खूब घूमो|"

Friday 18 January 2013

19.01.13

पुत्र किसी के घर डाका डालकर
आता ,तो माँ कमरे में एक कील गाड़
देती,किसी का खून करता ,तो एक और कील
गाड़ देती.यह सिलसिला न जाने कब तक
चलता रहा.एक दिन पुत्र ने माँ से
पूछा -'माँ ,तुमने ये सारा कमरा कीलों से
भर दिया,यह सब क्या है?'
' पुत्र,यह तुम्हारे बुरे काम हैं.तू कोई
बुरा काम करता था ,तो मैं एक कील गाड़
देती थी.अब तो पूरा कमरा कीलों से भर
गया है,पर........'
पुत्र का पाषाण-हृदय पानी-
पानी हो गया,उस दिन से वह अच्छे काम
करने लगा.हर रोज जब वह घर आता ,तब
माँ को अपने अच्छे काम बताता ,माँ एक कील
उखाड़ देती.कई वर्षों तक यह क्रम
चलता रहा.एक दिन जब सभी कीलें उखड़
गयी,तब पुत्र ने बड़ी शांति से पूछा -'माँ अब
तो कोई पाप नही रहा?'
'पुत्र कीलें तो सभी निकल गयी हैं,पर
कीलों के न मिटने वाले दाग दीवार पर रह
गये हैं.मुझे ये निशान तुम्हारे बुरे
कामों की हमेशा याद दिलाते रहेंगे.'

Thursday 17 January 2013

राधा ...18.. 01.13

राधा ...मात्र एक नाम नहीं जो कृष्ण के पूर्व है ! राधा मात्र एक प्रेम स्तम्भ नहीं जो कदम्ब के नीचे कृष्ण के संग सोची जाती है ! राधा एक आध्यात्मिक पृष्ठ है , जहाँ द्वैत अद्वैत का मिलन है ! राधा एक सम्पूर्ण काल का उदगम है जो कृष्ण रुपी समुद्र से मिलती है ! श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।

राधा कृष्ण के प्रेम का एक बहुत ही रोचक दृष्टान्त का उल्लेख भी है ...कृष्ण के राधा के प्रति प्रेम से जलन करते हुए उनकी पत्नियों ने खुलता हुआ दूध राधा को देते हुए कहा की कृष्ण ने भेजा है ...राधा ने बिना कोई प्रश्न किये वह गरम दूध गटक लिया ...जब वे कृष्ण के पास लौटी तो कृष्ण का शरीर छालों से भरा था ...प्रेम की यह परकाष्ठा देख कौन नतमस्तक नहीं होता..!

राधा और कृष्ण, ये वो दो नाम हैं जो दो हो कर भी एक हैं..और एक साथ ही पुकारे जाते हैं...ये वो हैं जिन्होंने दुनिया को सच्चे प्रेम का अर्थ समझाया...

अपनी अलौकिक प्रेम कहानी से इन्होने ना सिर्फ प्रेम के निःस्वार्थ रूप को सार्थक किया बल्कि सारे जग को बता दिया कि प्यार कितना सरल, कितना निश्छल है..कितना पवित्र है...प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि आत्माओं का मिलन है..

भगवान् श्री कृष्ण और राधा का नाम हमेशा एक साथ पुकारा जाता है.. और इन सबका कारण है उनके बीच का अटूट प्रेम जो आज भी सच्चे प्यार का सबसे बड़ा उदाहरण है..

वैसे तो इनकी प्रेम कहानी के अनेक रूप हैं जो अलग अलग लोगों द्वारा अलग अलग प्रकार से बताये जाते हैं.. मगर इन सबके बीच में एक चीज़ कभी नहीं बदलती और वो है इनका पवित्र प्रेम जो अतुलनीय और अमर है..

कहीं इनके विवाह का ज़िक्र है तो कहीं बताया गया है कि इनका विवाह नहीं हुआ था...कुछ का मानना है कि राधा ने मुरली बन कर खुद को कृष्ण को समर्पित कर दिया...कहीं राधा को कृष्ण से उम्र में बड़ी कहा गया है, तो कहीं हमउम्र...मगर राधा और कृष्ण का प्रेम तो इन सब से परे था..इन सबसे ऊपर...इनका प्रेम किसी रिश्ते का मोहताज नहीं था..उनका समर्पण ही उनके प्यार की ताकत थी..!

Wednesday 16 January 2013

17.01.13


 
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनको श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।

रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी।

अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’

ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’

‘ आपके शत्रु कौन हैं?’ अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की।

ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं।

फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’

‘ आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने पूछा। ‘

वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।

और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवानकी असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।

यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।’जय श्री कृष्ण

दर्ज़ी...16.01.13

कहानी ; दर्ज़ी

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एकदर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।
वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा ।
उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को
अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ?
बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद,
उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया-
उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।
उत्तर था- बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं...

Tuesday 15 January 2013

16.01.13

एक बार लक्ष्मी को घमंड हो गया कि मैं सबसे बड़ी हूं। इस बात की जांच के लिए वह धरती पर पहुंचीं। एक मूर्तिकार के यहां अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की मूतिर्यां भी बिक्री के लिए रखी थीं। लक्ष्मी ने सरस्वती की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा पूछा, 'इसकी क्या कीमत
है?' मूर्तिकार ने कहा, 'बहन जी! इसकी कीमत पांच
रुपये है।' लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने सोचा,
दुनिया में सरस्वती की कीमत सिर्फ पांच रुपये है। फिर दुर्गा की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए पूछा, 'इसकी क्या कीमत है?' मूर्तिकार ने कहा, 'बहनजी, इसकी भी कीमत पांच रुपये है।' लक्ष्मी ने सोचा, दुनिया में सरस्वती और दुर्गा एक ही भाव बिकती हैं। फिर उन्होंने स्वयं अपनी, लक्ष्मी की मूर्ति की ओर
इशारा करते हुए पूछा, 'इसकी क्या कीमत है?' मूर्तिकार ने कहा, 'बहन जी, इसे कोई नहीं खरीदता। जो भी हमारे यहां से सरस्वती और दुर्गा की मूर्ति खरीदते हैं, उनको हम यह मूर्ति भेंट में देते हैं। कारण, लोग लक्ष्मी देकर ही सरस्वती और दुर्गा खरीदते हैं। लक्ष्मी देकर कोई लक्ष्मी नहीं खरीदता।' इस तरह लक्ष्मी को सच
का सामना करना पड़ा।

Monday 14 January 2013

15.01.13


एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था. वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में जाता और गुब्बारे बेचता.
बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.

इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”

गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा. बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है .”

दोस्तों, ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागु होती है. कोई अपनी life में क्या achieve करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं depend करता है , ये इस बात पर depend करता है कि उसके अन्दर क्या है. अंतत: हमारा attitude हमारा altitude decide करता है .

परोपकार करने वालों का कभी अनिष्ट नहीं होता। 14.01.13

गुरूजी ने अपने सर्वप्रिय शिष्य को गुरु मंत्र देते हुए कहा - " शिष्य इसे गोपनीय रखना, क्योंकि यह मन्त्र लोक मंगल और परमपद प्राप्ति की संजीवनी है। इसके पाठ से लोक-परलोक दोनों संवर जायेंगे। "

एक दिन गुरूजी ने देखा उनका वही सर्व प्रिय शिष्य उनके दिए गुरु मंत्र का अन्य विद्यार्थियों के साथ सामूहिक पाठ कर रहा था।यह देख गुरूजी ने क्रोधित हो कर कहा -
" यह क्या अनर्थ कर दिया ? गोपनीय मंत्र को उजागर करके तुमने पाप किया है। तुम नरक के भागी बनोगे। "

" ठीक है, लेकिन जिन्होंने इस मंत्र का पाठ किया है, उनका क्या होगा गुरुदेव, क्या वह सब भी नरक के भागी होंगे ? " शिष्य ने विनम्रता पूर्वक पूछा.
" नहीं वत्स, वे सब निसंदेह परमपद के अधिकारी होंगे। " गुरूजी ने बताया .
" गुरूजी, यदि मेरे कारण इतने व्यक्तियों को मोक्ष प्राप्त होगा, तब मुझे सहस्त्रों वर्ष तक नर्क में रहना सहर्ष स्वीकार है।" शिष्य ने प्रसन्नता पूर्वक कहा .

" मुझे तुम पर गर्व है वत्स। यदि तुम्हारे मन में ऐसी भावना है, तब तुम तो मोक्ष प्राप्ति के सर्वोच्च अधिकारी हो। " गुरूजी ने आनंद निमग्न होते हुए कहा।

ज़िंदगी की सीख :
परोपकार करने वालों का कभी अनिष्ट नहीं होता।

चार सवाल -14.01.13

चार सवाल -

एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा, 'मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो। जो यहां हो वहां नहीं, दूसरा- वहां हो यहां नहीं, तीसरा- जो यहां भी नहीं हो और वहां भी न हो, चौथा- जो यहां भी हो और वहां भी।'

मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'

14.01.13

यह कहानी उस राजा की है जो अपने तीन प्रश्नों के उत्तर खोज रहा था।
एक बार एक राजा के मन में आया कि यदि वह इन तीन प्रश्नों के उत्तर खोज लेगा तो उसे कुछ और जानने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी.
पहला प्रश्न: किसी भी कार्य को करने का सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

दूसरा प्रश्न: किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है?

तीसरा प्रश्न: वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?

राजा ने यह घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति उपरोक्त प्रश्नों के सही उत्तर देगा उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा. यह सुनकर बहुत से लोग राजमहल गए और सभी ने अलग-अलग उत्तर दिए. पहले प्रश्न के उत्तर में एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को एक समय तालिका बनाना चाहिए और उसमें हर कार्य के लिए एक निश्चित समय नियत कर देना चाहिए तभी हर काम अपने सही समय पर हो पायेगा. दूसरे व्यक्ति ने राजा से कहा कि सभी कार्यों को करने का अग्रिम निर्णय कर लेना उचित नहीं होगा और राजा को चाहिए कि वह मनविलास के सभी कार्यों को तिलांजलि देकर हर कार्य को व्यवस्थित रूप से करने की ओर अपना पूरा ध्यान लगाये.
किसी और ने कहा कि राजा के लिए यह असंभव है कि वह हर कार्य को दूरदर्शिता पूर्वक कर सके. इसलिए राजा को विद्वानों की एक समिति का निर्माण करना चाहिए जो हर विषय को परखने के बाद राजा को यह बताये कि उसे कब क्या करना है. फिर किसी और ने यह कहा कि कुछ मामलों में त्वरित निर्णय लेने पड़ते हैं और परामर्श के लिए समय नहीं होता लेकिन ज्योतिषियों और भविष्यवक्ताओं की सहायता से राजा यदि चाहे तो किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा सकता है.
दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए भी कोई सहमति नहीं बनी. एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को प्रशासकों में अपना पूरा विश्वास रखना चाहिए. दूसरे ने राजा से पुरोहितों और संन्यासियों में आस्था रखने के लिए कहा. किसी और ने कहा कि चिकित्सकों पर सदैव ही भरोसा रखना चाहिए तो किसी ने योद्धाओं पर विश्वास करने के लिए कहा.
तीसरे प्रश्न के जवाब में भी विविध उत्तर मिले. किसी ने कहा कि विज्ञान का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है तो किसी ने धर्मग्रंथों के पारायण को सर्वश्रेष्ठ कहा. किसी और ने कहा कि सैनिक कौशल में निपुणता होना ही सबसे ज़रूरी है.
राजा को इन उत्तरों में से कोई भी ठीक नहीं लगा इसलिए किसी को भी पुरस्कार नहीं दिया गया. कुछ दिन तक चिंतन-मनन करने के बाद राजा ने एक महात्मा के दर्शन का निश्चय किया. वह महात्मा एक पर्वत के ऊपर बनी कुटिया में रहते थे और सभी उन्हें परमज्ञानी मानते थे.
राजा को यह पता चला कि महात्मा पर्वत से नीचे कभी नहीं आते और राजसी व्यक्तियों से नहीं मिलते थे. इसलिए राजा ने साधारण किसान का वेश धारण किया और अपने सेवक से कहा कि वह पर्वत की तलहटी पर लौटने का इंतज़ार करे. फिर राजा महात्मा की कुटिया की ओर चल दिया.

महात्मा की कुटिया तक पहुँचने पर राजा ने देखा कि वे अपनी कुटिया के सामने बने छोटे से बगीचे में फावड़े से खुदाई कर रहे थे. महात्मा ने राजा को देखकर सर हिलाया और खुदाई करते रहे. बगीचे में काम करना उनके लिए वाकई कुछ कठिन था, वे वृद्ध हो चले थे. हांफते हुए वे जमीन पर फावड़ा चला रहे थे.

राजा महात्मा तक पहुंचा और बोला, “मैं आपसे तीन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहता हूँ.

पहला: किसी भी कार्य को करने का सबसे अच्छा समय क्या है?

दूसरा: किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है?

तीसरा: वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?

महात्मा ने राजा की बात ध्यान से सुनी और उसके कंधे को थपथपाया और खुदाई करते रहे. राजा ने कहा, “आप थक गए होंगे. लाइए, मैं आपका हाथ बंटा देता हूँ.” महात्मा ने धन्यवाद देकर राजा को फावड़ा दे दिया और एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गए.

दो क्यारियाँ खोदने के बाद राजा महात्मा की ओर मुड़ा और उसने फिर से वे तीनों प्रश्न दोहराए. महात्मा ने राजा के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और उठते हुए कहा, “अब तुम थोड़ी देर आराम करो और मैं बगीचे में काम करूंगा.” लेकिन राजा ने खुदाई करना जारी रखा. एक घंटा बीत गया, फिर दो घंटे. शाम हो गयी. राजा ने फावड़ा रख दिया और महात्मा से कहा, “मैं यहाँ आपसे तीन प्रश्नों के उत्तर पूछने आया था पर आपने मुझे कुछ नहीं बताया. कृपया मेरी सहायता करें ताकि मैं समय से अपने घर जा सकूं.”

महात्मा ने राजा से कहा, “क्या तुम्हें किसी के दौड़ने की आवाज़ सुनाई दे रही है?”. राजा ने आवाज़ की दिशा में सर घुमाया. दोनों ने पेड़ों के झुरमुट से एक आदमी को उनकी ओर भागते आते देखा. वह अपने पेट में लगे घाव को अपने हाथ से दबाये हुए था. घाव से बहुत खून बह रहा था. वह दोनों के पास आकर धरती पर गिर गया और अचेत हो गया. राजा और महात्मा ने देखा कि उसके पेट में किसी शस्त्र से गहरा वार किया गया था.राजा ने फ़ौरन उसके घाव को साफ़ किया और अपने वस्त्र को फाड़कर उसके घाव पर बाँधा ताकि खून बहना बंद हो जाए. कपड़े का वह टुकड़ा जल्द ही खून से पूरी तरह तर हो गया तो राजा ने उसके ऊपर दूसरा कपडा बाँधा और ऐसा तब तक किया जब तक खून बहना रुक नहीं गया.

कुछ समय बाद घायल व्यक्ति को होश आया और उसने पानी माँगा. राजा कुटिया तक दौड़कर गया और उसके लिए पानी लाया. सूरज अस्त हो चुका था और वातावरण में ठंडक आने लगी. राजा और महात्मा ने घायल व्यक्ति को उठाया और कुटिया के अन्दर बिस्तर पर लिटा दिया. वह आँखें बंद करके चुपचाप लेटा रहा. राजा भी पहाड़ चढ़ने और बगीचे में काम करने के बाद थक चला था. वह कुटिया के द्वार पर बैठ गया और उसे नींद आ गयी. सुबह जब उसकी आँख खुली तब सूर्योदय हो चला था और पर्वत पर दिव्य आलोक फैला हुआ था.

एक पल को वह भूल ही गया कि वह कहाँ है और वहां क्यों आया था. उसने कुटिया के भीतर बिस्तर पर दृष्टि डाली. घायल व्यक्ति अपने चारों ओर विस्मय से देख रहा था. जब उसने राजा को देखा तो बहुत महीन स्वर में बुदबुदाते हुए कहा, “मुझे क्षमा कर दीजिये”.

“लेकिन तुमने क्या किया है और मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो”, राजा ने उससे पूछा.

“आप मुझे नहीं जानते पर मैं आपको जानता हूँ. मैंने आपका वध करने की प्रतिज्ञा ली थी क्योंकि पिछले युद्ध में आपने मेरे राज्य पर हमला करके मेरे बंधु-बांधवों को मार डाला और मेरी संपत्ति हथिया ली. जब मुझे पता चला कि आप इस पर्वत पर महात्मा से मिलने के लिए अकेले आ रहे हैं तो मैंने आपकी हत्या करने की योजना बनाई. मैं छुपकर आपके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था पर आपके सेवक ने मुझे देख लिया. वह मुझे पहचान गया और उसने मुझपर प्रहार किया. मैं अपने बचाव के लिए भागता हुआ यहाँ आ गया और आपके सामने गिर पड़ा. मैं आपकी हत्या को उद्यत था पर आपने मेरे जीवन की रक्षा की. मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपके उपकार का मोल कैसे चुकाऊँगा. मैं जीवनपर्यंत आपकी सेवा करूंगा और मेरी संतानें भी सदैव आपके कुल की सेवा करेंगीं. कृपया मुझे क्षमा कर दें”.

राजा यह जानकर बहुत हर्षित हुआ कि किस प्रकार उसके शत्रु का रूपांतरण हो गया. उसने न केवल उसे क्षमा कर दिया बल्कि उसकी संपत्ति लौटाने का वचन भी दिया और उसकी चिकित्सा के लिए अपने सेवक के मार्फ़त अपने निजी चिकित्सक को बुलावा भेजा. सेवक को निर्देश देने के बाद राजा महात्मा के पास अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पुनः आया. उसने देखा, महात्मा पिछले दिन खोदी गयी क्यारियों में बीज बो रहे थे.

महात्मा ने उठकर राजा से कहा, “आपके प्रश्नों के उत्तर तो पहले ही दिए जा चुके हैं.”

“वह कैसे?”, राजा ने चकित होकर कहा.
“कल यदि आप मेरी वृद्धावस्था का ध्यान करके बगीचे में कार्य करने में मेरी सहायता नहीं करते तो आप वापसी में घात लगाकर बैठे हुए शत्रु का शिकार बन जाते. तब आपको यह खेद होता कि आपको मेरे समीप अधिक समय व्यतीत करना चाहिए था. अतः आपका कल बगीचे में कार्य करने का समय ही सबसे उपयुक्त था.

आप जिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिले वह मैं ही था. और आपका सबसे आवश्यक कार्य था मेरी सहायता करना. बाद में जब घायल व्यक्ति यहाँ चला आया तब सबसे महत्वपूर्ण समय वह था जब आपने उसके घाव को भली प्रकार बांधा. यदि आप ऐसा नहीं करते तो रक्तस्त्राव के कारण उसकी मृत्यु हो जाती. तब आपके और उसके मध्य मेल-मिलाप नहीं हो पाता. अतः उस क्षण वह व्यक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण था और उसकी सेवा-सुश्रुषा करना सबसे आवश्यक कार्य था.”
“स्मरण रहे, केवल एक ही समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और वह समय यही है, इस क्षण में है. इसी क्षण की सत्ता है, इसी का प्रभुत्व है. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है जो आपके समीप है, आपके समक्ष है, क्योंकि हम नहीं जानते कि अगले क्षण हम किसी अन्य व्यक्ति से व्यवहार करने के लिए जीवित रहेंगे भी या नहीं. और सबसे आवश्यक कार्य यह है कि आपके समीप आपके समक्ष उपस्थित व्यक्ति के जीवन को सुख-शांतिपूर्ण करने के प्रयास किये जाएँ क्योंकि यही मानवजीवन का उद्देश्य है.”

Sources of Calcium..14.01.13


Sunday 13 January 2013

Maker sankranti..14.01.13

Makar Sankranti is a harvest festival and is celebrated by Hindus on 14th January in the month of Magha in India. On this day the Sun returns to the Northern Hemisphere and passes from the Tropic of Cancer to the Tropic of Capricorn. It is celebrated differently in different parts of the State. In the sacred river of Ganges, people take dip in water and worship the Sun God to purify their souls. The festival signifies that one should eliminate from the darkness of deception and commence to enjoy a new life with brightness.
Makar Sankranti is known by various other names in different parts of India which are as follows:
1. Punjab, Haryana and Himachal Pradesh: Maghi
2. Tamil Nadu: Pongal
3. Rajasthan and Gujarat: Uttarayan
4. Assam Valley: Bhogali Bihu or Magh Bihu
5. Sabarimala Temple in Kerala: Makar Vilakku Festival
6. Bihar, Goa, Uttarakhand, West Bengal, Andhra Pradesh, Jharkhand, Madhya Pradesh, Kerala, Orissa, Manipur, Sikkim, Karnataka, Uttar Pradesh, Maharashtra: Makar Sankranti or Sankranti.
7. Kashmir Valley: Shishur Saenkraat
It is celebrated by different names in some other countries also.
Cambodia: Moha Sangkra , Myanmar: Thingyan, ,Nepal: Maghi by Tharu people and Maghe Sankranti or Maghe Sakrati by others.

Saturday 12 January 2013

13.01.13

एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी | कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच रही हो ? “

महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “
कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप और मटके में ? “
महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है | “
कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “
महिला : ” आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? “
महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “

कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ” //
महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है | धिक्कार है ऐसे लोगों को !

Friday 11 January 2013

12.01.13

Ek baalak ne apne maa baap ki khoob sewa ki, dost usse kahte ki agar itni seva tu bhagwan ki karta to tumhe bhagwan mil jate.

Lekin un sab cheejo se anjaan wo apne mata-pita ki seva krta rha.

Ek din uski maa baap ki sewa bhakti se khush hokar bhagwan khud dharti pe aa gaye.

Us wakt wo apni maa ke panv daba rha tha, bhagwan darwaje k bahar se bole, darwaja kholo beta,
Me tumhari mata pita ki sewa se prasann hokar vardaan dene aaya hu.

Ladke ne kha- intjaar kro prabho, me abhi maa ki sewa me lga hu.

Bhagwan bole- dekho, me vaapas chala jaunga,

Balak- aap ja sakte h bhagwan, me sewa beech me ni chhod skta.

Kuch der baad usne darwaja khola,bhagwan bahar khade the.
Bole- log mujhe pane k liye kathor tapsya krte h, me tumhe sahaj mil gyaaur tumne mujhse pratiksha karwai


.
Ladke ka jawab tha-'he ishwar, jis maa baap ki sewa ne tumhe mere paas aane ko majboor kar diya, un maa baap ki sewa beech me chhodkarmai,

'darwaja kholne kese aata'.

150 birth anniversary of Swami Vivekananda,.12.01.13

You cannot believe in God until you believe in yourself.So follow the teachings of Swami Vivekananda to enlight your life.wish a very Happy Swami Vivekananda jayanti…..

Born: January 12, 1863, Kolkata
Died: July 4, 1902, Belur Math

Thursday 10 January 2013

दुष्ट का क्षणिक संग भी कष्टकरी होता है ! 11.01.13

दुष्ट का क्षणिक संग भी कष्टकरी होता है !

किसी जंगल के रस्ते में एक पीपल का विशाल पेड़ था| इस पीपल के पेड़ में अनेक पक्षियों ने अपने घोंसले बना रक्खे थे| उसी पेड़ पर एक हंस भी रहता था| हंस अपने उदार स्वभाव के कारन सभी पक्षियों के आदर का पत्र था| उसी पेड़ में एक कौआ भी रहता था| हंस के इस उदार भाव के कारन कौआ हंस से इर्ष्या करता था| एक दिन कोई यात्री उस मार्ग से जा रहा था, उस के शारीर पर मूल्यवान वस
्त्र और कंधे पर धनुष- बाण सोभा दे रहे थे| वह गर्मी की तपिश से ब्याकुल हो रहा था| पीपल के पेड़ की घनी छाया देख कर उसने उस पेड़ के निचे आराम करने का निश्चय किया| पेड़ की सुखद छाया में लेटते ही उसे नींद आगई| थोड़ी देर बाद सूर्य की रोशनी उस पथिक के ऊपर आगई| नींद गहरी होने के कारन वह सोता ही रहा| हंस ने जब सूर्य किरणों को उसके मुंह पर पड़ते देखा तो दयावश उसने अपने पंखों को फैला कर छाया कर दी, जिस से पथिक को सुख मिल सके| यात्री सुख पूर्वक सोता रहा| नींद में उसका मुंह खुल गया| उसी समय
कौआ भी उडाता हुवा आया और हंस के पास बैठ गया| साधु स्वभाव वाले हंसने कौवे को अपने समीप आया देख उसे सादर बैठाया और कुशल-प्रश्न पूछा| कौवा तो स्वभाव से ही दुष्ट था, हंस को छाया किये देख कर वह मन ही मन सोचने लगा कि यदि में इस यात्री के ऊपर बीट कर के उड़ जाऊ तो यह यात्री जाग जाएगा तथा पंख फैलाए हंस को ही बीट करने वाला समझ कर मार डालेगा, इस से में इस हंस से मुक्ति पा जाऊंगा| जब तक यह हंस यहाँ रहेगा, तब तक सब इसी की प्रशंसा करते रहेंगे|

यह विचार कर उस ईर्ष्यालु कौएने सोए हुए पथिक के मुंह में बीट कर दी और उड़ गया| मुख में बीट गिरते ही यात्री चौंककर उठ बैठा| जब उसने ऊपर कि और देखा तो हंस को पंख फैलाए बैठा पाया| यद्यपि हंस ने उसका उपकार किया था, परन्तु दुष्ट के क्षणिक संग ने उसे ही दोषी बना दिया| यात्री ने सोचा कि इस हंस ने ही मेरे मुंह में बीट की है, यात्री को गुस्सा तो थाही उसने धनुष-बाण उठाया और एक ही तीर से हंस का काम तमाम कर दिया| बेचारा हंस उस दुष्ट कौए के क्षणिक संग के कारन मृत्यु को प्राप्त हुआ| इस लिए कहा गया है कि दुष्ट के साथ न तो कभी बैठना चाहिए और नाही कभी दुष्ट का साथ देना चाहिए|

शुभ साई प्रभात _________ॐ साई राम .. 11.01.13

शुभ साई प्रभात _________ॐ साई राम

कुदरत के नियमो से शिकायत ना करना,
नजरो को कभी शर्मिंदा ना करना,
साईं खुद ही देगा सब कुछ आपको,
बस वक़्त से पहले पाने की फ़रयाद ना करना..
▁ ▂ ▄ ▅ ▆ ▇ █ ॐ साई राम █ ▇ ▆ ▅ ▄ ▂ ▁
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

दुनियाँ पर किया गया
भरोसा तो टूट सकता है
लेकिन दुनियाँ के "मालिक"
पर किया गया भरोसा
कभी नहीं टूटता है .

World's Tallest Tower..10.01.13

Twisted!
EXCELLENT view of the almost completed Infinity Tower Dubai...,
World's Tallest Tower with a FULL 90˚ TWIST!

black panther ...10.01.12

A black panther is typically a melanistic color variant of any of several species of larger cat. Wild black panthers in Latin America are black jaguars (Panthera onca), in Asia and Africa they are black leopards (Panthera pardus), and in North America they may be black jaguars or possibly black cougars (Puma concolor – although this has not been proven to have a black variant), or smaller cats.

T U R M E R I C - B E N E F I T S ..10.01.13

T U R M E R I C - B E N E F I T S !
The active ingredient in turmeric is curcumin. Tumeric has been used for over 2500 years in India, where it was most likely first used as a dye. >The medicinal properties of this spice have been slowly revealing themselves over the centuries. Long known for its anti-inflammatory properties, recent research has revealed that turmeric is a natural wonder, proving beneficial in the treatment of many different health conditions from cancer to Alzheimer's disease.

Here are 20 reasons to add turmeric to your diet:

1. It is a natural antiseptic and antibacterial agent, useful in disinfecting cuts and burns.

2. When combined with cauliflower, it has shown to prevent prostate cancer and stop the growth of existing prostate cancer.

3. Prevented breast cancer from spreading to the lungs in mice.

4. May prevent melanoma and cause existing melanoma cells to commit suicide.

5. Reduces the risk of childhood leukemia.

6. Is a natural liver detoxifier.

7. May prevent and slow the progression of Alzheimer's disease by removing amyloyd plaque buildup in the brain.

8. May prevent metastases from occurring in many different forms of cancer.

9. It is a potent natural anti-inflammatory that works as well as many anti-inflammatory drugs but without the side effects.

10. Has shown promise in slowing the progression of multiple sclerosis in mice.

11. Is a natural painkiller and cox-2 inhibitor.

12. May aid in fat metabolism and help in weight management.


13. Has long been used in Chinese medicine as a treatment for depression.
14. Because of its anti-inflammatory properties, it is a natural treatment for arthritis and rheumatoid arthritis.

15. Boosts the effects of chemo drug paclitaxel and reduces its side effects.

16. Promising studies are underway on the effects of turmeric on pancreatic cancer.

17. Studies are ongoing in the positive effects of turmeric on multiple myeloma.

18. Has been shown to stop the growth of new blood vessels in tumors.

19. Speeds up wound healing and assists in remodeling of damaged skin.

20. May help in the treatment of psoriasis and other inflammatory skin conditions.

Turmeric can be taken in powder or pill form. It is available in pill form in most health food stores, usually in 250-500mg capsules.

Once you start using turmeric on a regular basis, it's fun to find new ways to use it in recipes. My favorite way to use it is to add a pinch of it to egg salad. It adds a nice flavor and gives the egg salad a rich yellow hue.

Contraindications: Turmeric should not be used by people with gallstones or bile obstruction. Though turmeric is often used by pregnant women, it is important to consult with a doctor before doing so as turmeric can be a uterine stimulant

Bahrain World Trade Center ..10.01.13

The most impressive feature of the new Bahrain World Trade Center is, no doubt, the three massive wind turbines situated between the two towers comprising the main building. Each of these 80-foot turbines projects from a bridge between towers. The shape of the towers themselves channels and accelerates air moving between them which will help the building generate even more power. It is by far the largest wind-powered design incorporated into a massive building project to date.

EYE HEALTH FOODS...10.01.13

EYE HEALTH FOODS - Here are ten foods that will help maintain eye health and that may protect against cataracts, macular degeneration, and other eye problems. >AVOCADOS-Avocados are one the most nutrient-dense foods that exist, so it's no wonder they're great for your eyes. They contain more lutein than any other fruit. Lutein is important in the prevention of macular degeneration and cataracts. They are also a great source of other important eye nutrients such as vitamin A, vitamin C, vitamin B6, and vitamin E.

Carrots
Carrots have long been recognized as an eye food due to their high levels of vitamin A.

Broccoli
Broccoli is a good source of vitamin C, calcium, lutein, zeaxanthin, and sulforaphane.

Eggs
Eggs are an excellent source of eye nutrients like vitamin A, zinc, lutein, lecithin, B12, vitamin D, and cysteine.

Spinach
Another great source of vitamin A, spinach also contains other important eye nutrients including lutein and zeaxathin.

Kale Like spinach, kale is a good source of vitamin A, lutein, and zeaxathin.

Tomatoes
Tomatoes are high in vitamin C and lycopene, two important eye nutrients.

Sunflower Seeds
Sunflower seeds contain selenium, a nutrient that may prevent cataracts and promote overall eye health.

Garlic
Garlic contains selenium and other eye nutrients such as vitamin C and quercetin.

Salmon
Salmon is rich in omega-3 fatty acids, which are important for maintaining overall eye health. It also contains folic acid, vitamin D, vitamin B6, vitamin B12, and vitamin A.

The Great Red Spot Of Jupiter ..10.01.13

The Great Red Spot Of Jupiter


The Great Red Spot is a persistent storm on Jupiter that is estimated to be 200 to 300 years old and 40,000 kilometers wide. To put this in perspective, 3 planets the size of Earth could fit inside the Great Red Spot.

Wednesday 9 January 2013

09.01.13

गुरु-शिष्य भ्रमण करते हुए एक वन से गुजर रहे थे। कुछ दूर से एक झरने का पानी बह कर आ रहा था। गुरूजी को प्यास लगी। उन्होंने शिष्य को कमण्डल में पानी भर कर लाने के लिए कहा।
शिष्य ने पानी के पास पहुँच कर देखा कि वहां से अभी-अभी बैल गाड़ियाँ निकलीं हैं, जिससे वहां का पानी गंदा हो गया था और सूखे पत्ते तैर रहे थे।

शिष्य ने आकर गुरूजी से कहा- " कहीं और से पानी का प्रबंध करना होगा।" लेकिन गुरूजी ने शिष्य को बार-बार वहीं से पानी लाने को कहा। हर बार शिष्य देखता कि पानी गंदा था फिर भी ....। पांचवी बार भी जब वहीं से पानी लाने को कहा गया, तब शिष्य के चेहरे पर असंतोष और खीज के भाव थे।

शिष्य गुरूजी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता था, अत: वह फिर वहां गया। इस बार जाने पर शिष्य ने देखा कि झरने का जल शांत एवं स्वच्छ था। वह प्रसन्नता पूर्वक गुरूजी के पीने के लिए पात्र में जल भर लाया।

शिष्य के हाथ से जल ग्रहण करते हुए गुरूजी मुस्कराए और शिष्य को समझाया - " वत्स ! हमारे मन रूपी जल को भी प्रायः कुविचारों के बैल दूषित करते रहते हैं। अत:हमें अपने मन के झरने के शांत होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए, तभी मन में स्वच्छ विचार आयेंगे। उद्वेलित मन से कभी कोइ निर्णय नहीं लेना चाहिए।

ज़िन्दगी की सीख :
अनुकूल परिणाम पाने के लिए प्रतीक्षा करें और धैर्य रखें।

भगवान् का सच्चा भक्त.... 09.01.13

भगवान् का सच्चा भक्त
नारद जी ने देखा कि मंदिरों में लोगों कि भीड़ हमेशा लगी रहती है और हर कोई यह सोचता है कि उस से बड़ा भगवान का भक्त कोई भी नहीं. नारद जी बहुत ही उत्सुक हुए यह जानने के लिए कि सब से बड़ा भगवान का भक्त कौन है.
उन्होंने भगवान विष्णु का दरवाजा खटखटाया यह जानने के लिए कि उनकी नज़र में उनका सबसे बड़ा भक्त कौन है. भगवान् विष्णु ने कहा कि मेरा सबसे बड़ा भक्त वो अमुक किसान है.
प्रशन का उत्तर जानने के बाद नारद जी हैरान हुए कि एक किसान जो पूजा कि विधि भी नहीं जनता वो इतने बड़े-बड़े उपासकों के होते हुए भी भगवान का सब से बड़ा भक्त कैसे हुआ. यही प्रशन नारद जी ने भगवान से किया तो भगवान विष्णु ने कहा कि वह किसान प्रतिदिन अपना हल जोतने का कार्य शुरू करने से पहले पूरी निष्ठा से मेरा स्मरण करता है और फिर कठिन परिश्रम करता है और अपने कार्य कि समाप्ति पर फिर से मेरा स्मरण करता है.
कर्म ही पूजा है.

Fruit for Breakfast, Five Benefits..09.01.13

Fruit for Breakfast, Five Benefits
1. Between the hours of 7-11am the body is doing the heaviest detoxification, so eating fruits, specifically at this time, ensures healing energy is used for detoxification rather than wasted on digesting heavy fatty foods. 
2. Fruit for breakfast is the perfect way to break the overnight fast as it gently wakes the digestive system and metabolism up from a semi slumber, all without the harsh adrenal jolt of a coffee or fatty meal. 
3. Fruit for breakfast promotes nice fluffy fruity floaters, in other words - large satisfying bowel movements! The fruit fiber cleans the colon like a broom, leaving you feeling light, refreshed and ready to go. 
4. If you eat enough fruit for breakfast you will not require a coffee as the natural fruit sugars keep the brain sharp and energised. 
5. People who eat fruit only for breakfast have been shown to be leaner, healthier and more productive during their day.

09.01.13

एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी | कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच रही हो ? “

महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “
कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप और मटके में ? “
महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है | “
कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “
महिला : ” आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? “
महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “

कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ” //
महिला : ” महाराज ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है | धिक्कार है ऐसे लोगों को !

Tuesday 8 January 2013

THE POWER OF PAPAYA!... 08.01.13

BEHOLD THE POWER OF PAPAYA!
- INCREASES ENERGY
- AIDS IN WEIGHT LOSS
- ANTI INFLAMMATORY
- BOOSTS IMMUNE SYSTEM
- HELPS ALLEVIATE ARTHRITIS
- SUPPORTS DIGESTIVE HEALTH
- PREVENTS CATARACT FORMATION
- SUPPORTS CARDIOVASCULAR SYSTEM
- AIDS IN PREVENTING AND FIGHTING CERTAIN CANCERS
- HELPS THE RENEWAL OF MUSCLE TISSUE

Be sure to always go for ORGANIC!

Flu fighting foods! ..08.01.13


left brain...08.01.13

“I am the left brain. I am a scientist. A mathematician. I love the familiar. I categorize. I am accurate. Linear. Analytical. Strategic. I am practical. Always in control. A master of words and language. Realistic. I calculate equations and play with numbers. I am order. I am logic. I know exactly who I am.”

“I am the right brain. I am creativity. A free spirit. I am passion. Yearning. Sensuality. I am the sound of roaring laughter. I am taste. The feeling of sand beneath bare feat. I am movement. Vivid colors. I am the urge to paint on an empty canvas. I am boundless imagination. Art. Poetry. I sense. I feel. I am everything I wanted to be.”

We are all both left and right brain at different times and at different balances

चार बातें ..08.01.13

चार बातें प्राणी को अपराध करने से रोकती हैं :-
(1) ईश्वर का डर;
(2) राज्य के कानून का डर;
(3) कुल के मर्यादा की परवाह और
(4) लोकापवाद का डर ! --
दुर्भाग्य से आज वे चारों बातें नहीं हैं ! --
राजनीतिक पार्टियों की सरकारें, सुनियोजित ढंग से, पूरे देश को ही भ्रष्ट और अपराधी बना रही है ! -- समाज जब इमानदार होगा, तब सरकार, अनाचार और अन्याय कर ही नहीं सकती है ! मित्र, मात्र 273 इमानदार और चरित्रवान ब्यक्ति सुशाशन स्थापित करके, महज 5 सालों में लोक कल्याणकारी राज्य की नीव दाल देंगे ........ -- अरथात = यदि 273 निर्वाचन छेत्र अपने यहाँ से एक एक इमानदार और चरित्रवान ब्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा में भेज दें, तो पार्टियाँ अर्थहीन होजायेंगी, और लोक कल्याणकारी राज्य की नीव पर जायेगी ! -- परन्तु खेद है = ''ना तो नौ मन तेल होगा ना ही राधा नाचेगी'' ....

Monday 7 January 2013

07.01.13

भारत में गॉंव है, गली है, चौबारा है. इंडिया में सिटी है, मॉल है, पंचतारा है.

भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है. इंडिया में फ्लैट और मकान है.

भारत में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है. इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है.

भारत में खजूर है, जामुन है, आम है. इंडिया में मैगी, पिज्जा, माजा का नकली आम है.

भारत में मटके है, दोने है, पत्तल है. इंडिया में पोलिथीन, वाटर व आईन की बोटल है.

भारत में गाय है, गोबर है, कंडे है. इंडिया में सेहतनाशी चिकन बिरयानी अंडे है.

भारत में दूध है, दही है, लस्सी है. इंडिया में खतरनाक विस्की, कोक, पेप्सी है.

भारत में रसोई है, आँगन है, तुलसी है. इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है.

भारत में कथडी है, खटिया है, खर्राटे हैं. इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है.

भारत में मंदिर है, मंडप है, पंडाल है. इंडिया में पब है, डिस्को है, हॉल है.

भारत में गीत है, संगीत है, रिदम है. इंडिया में डान्स है, पॉप है, आईटम है.

भारत में बुआ है, मौसी है, बहन है. इंडिया में सब के सब कजन है.

भारत में पीपल है, बरगद है, नीम है. इंडिया में वाल पर पूरे सीन है.

भारत में आदर है, प्रेम है, सत्कार है. इंडिया में स्वार्थ, नफरत है, दुत्कार है.

भारत में हजारों भाषा हैं, बोली है. इंडिया में एक अंग्रेजी एक बडबोली है.

भारत सीधा है, सहज है, सरल है. इंडिया धूर्त है, चालाक है, कुटिल है.

भारत में संतोष है, सुख है, चैन है. इंडिया बदहवास, दुखी, बेचैन है.

क्योंकि …

भारत को देवों ने, वीरों ने रचाया है. इंडिया को लालची, अंग्रेजों ने बसाया है.

भुख ..... 07.01.13

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पढना मत भुलना : ह्रदय को स्पर्श कर दे ऐसी बात :
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एक श्रीमान जी के घर पर खाने का प्रोग्राम चल रहा था.

कोई खास बडा प्रोग्राम नही था, बस नजदीक के रिश्तेदारो और दोस्तो को बुलाया हुआ था.

होगेँ लगभग चालीस-पचास महमान.

यजमान सबको आग्रह करके खाना परोस रहे थे और महमान भी अपनी-अपनी थाली पकवानो से छला-छल कर रहे थे.

उसी समय यजमान का ध्यान एक औरत पर गया,
वह अपने बच्चे को धीमी आवाज मेँ धमका रही थी.

यजमान उस औरत के पास जाकर कारण पुछा, तो उस औरत ने कहा,
‘देखो ना भाईसाहब ! यह कुछ खाता ही नही.

रोज ऐसा ही करता है.
मैँ तो इसको खिलाने से तंग आ गई हु.

अब आप ही बताओ, इसको धमकाऊ नही तो क्या करु ?’
‘अरे ! इसमेँ धमकाने की कौनसी बात? यजमान नेँ उस औरत को बोला !’.

फिर सामने खडे एक महमान की तरफ इशारा करके बोले,

‘वह मेरे दोस्त डाक्टर मेहता है, और वह आपको ऐसी दवाई देगेँ कि आपका लडका तुरंत खाना खाने लग जाएगा.

मेरा लडका भी पहले ऐसा ही करता था.
Dr. मेहता साहब की दवाई के बाद वो अब टाईम पर खाना खा लेता है.

वह औरत डाक्टर मेहता के पास जाकर बोली: ‘इस जगह आपको पुछने की माफी माँगती हु,

डाकटर साहब ! क्या मेँ मेरे लडके को आपके क्लिनिक पर ला सकती हु ? इसको बिल्कुल भुख नही लगती !’

डा. मेहता :‘ जरुर ला सकती है आप !

मैँ खाना खाने के बाद आपको मेरा कार्ड आपको दुंगा.

कार्ड पर लिखे नम्बर पर आप फोन करके जरुर आ सकते हो.’

उसी समय एक दस साल की एक कामवाली लकडी,जो सब के ग्लास मेँ पानी भर रही थी, वह यह बात ध्यान से सुन रही थी.

डाक्टर खाना खाकर पेन्ट्री मेँ हाथ धोने गये तब जग मेँ पानी भरने के बहाने वो लडकी भी डाक्टर के पास चली गई.

डाक्टर को अकेला देखकर उनको बोला : ‘डाक्टर साहब ! मैँ आपके साथ एक बात कर सकती हु ?’

‘बोल ना बेटा ! तु क्यो बात नही कर सकती? एक क्या दो बाते कर ना !’ एकदम भावनात्मक रुप से डाक्टर ने जवाब दिया.

लडकी : ‘डाक्टर साहब ! मेरा एक छोटा भाई है.
मैँ, मेरी माँ और मेरा भाई हम तीन ही लोग है घर मेँ.

मेरे बापु गुजर गये है.
माँ रोज बीमार ही रहती है.
मैँ काम करती हु लेकिन इस से हमारा गुजारा नही चल पाता.

इसिलिए मैँ यह बात करना चाहती हु कि क्या भुख ना लगे ऐसी कोई दवाई आती है?

अगर ऐसी दवाई आती है तो मुझे खरीदनी है !’

डाक्टर यह बात सुनकर स्तब्ध रह गये.

दोस्तो, इस वार्ता को पढकर सिर्फ एक ही ख्याल आता है कि कितने लोग भुखे पेट सोते है.. :(

दोस्तो कही भी कभी भी कोई भी का भुखा मिले तो उसको पैसे देने के बजाय कुछ खाने की चीज जरुर दे..

"पैसे कि कीमत तो कोई भी लगा सकता है लेकिन किसी की भुख की नही"