Tuesday 26 March 2013

27.03.13


भारतीय संस्कृति का अनोखा पर्व : होली

होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है । होली .... एक संकेत है वसंतोत्सव के रूप में ऋतू-परिवर्तन का .... एक अवसर है भेदभाव की भावना को भुलाकर पारम्परिक प्रेम और सदभावना प्रकट करने का।।।। एक संदेश है जीवन में ईश्वरोपासना एवं प्रभुभक्ति बढ़ाने का ....

इस उत्सव ने कितने ही खिन्न मानों को प्रसन्न किया है, कितने ही अशांत-उद्धिग्न चेहरों पर रौनक लायी है । होलिकात्सव से मानव-जाति ने बहुत कुछ लाभ उठाया है । इस उत्सव में लोग एक-दुसरे को पाने-अपने रंग से रँगकर, मन की दूरियों को मिटाकर एक-दुसरे के नजदीक आते है ।

यह उत्सव जीवन में नया रंग लाने का उत्सव है .... आनंद जगाने का उत्सव है .... ' परस्पर देवो भव । ' की भावना जगानेवाला उत्सव है ... विकारी भावों पर पर धुल डालने एवं निर्विकार नारायण का प्रेम जगाने का उत्सव है ....

हमारी इन्द्रियों, तन और मन पर संसार का रंग पड़ता है और उतर जाता है लेकिन भक्ति और ज्ञान का रंग अगर भूल से भी पड़ जाय तो मृत्यु के बाप की भी ताकत नहीं कि उस रंग को हटा सके । इसी भक्ति और ज्ञान के रंग में खुद को रँगने का पर्व है होली ।

होली रंगो का त्यौहार है । यह एक संजीवनी है जो साधक की साधना को पुनर्जीवित करती है । यह समाज में प्रेम का सन्देश फ़ैलाने का पर्व है ।

होली मात्र लकड़ी के ढेर को जलने का त्यौहार नहीं है, यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है ।

आज के दिन से विलास, वासनाओं का त्याग करके परमात्म-प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्मपालन, करुणा, दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिए । भक्त प्रहलाद जैसी दृढ़ इश्वरनिष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता व समता का आव्हान करना चाहिए । ....

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